NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
अमेरिका
पुतिन की लक्ष्मण रेखाओं पर नज़र
मालूम होता है कि यूक्रेन को ताजा दी गई $150 मिलियन की सैन्य सहायता में उसके हवाई अड्डों पर अमेरिकी प्रशिक्षणकर्मियों की तैनाती भी शामिल है।
डेविड सी.स्पीडी
05 Dec 2021
putin

राजनीतिक एवं राजनेता के बीच के अंतर को स्पष्ट करने वाली एक क्लासिक परिभाषा यह है कि एक राजनेता अन्य राष्ट्रों के साथ किसी मुद्दे पर असहमति होने की स्थिति होने पर, दूसरे पक्ष की उस स्थिति को समझ सकता है, जबकि राजनीतिक ऐसा नहीं करता है। किसी दूसरे देश से राजनयिक जुड़ाव के लिए इस तत्व को आवश्यक माना जाता रहा है। इस संदर्भ में नवम्बर के मध्य में रूसी राष्ट्रपति पुतिन द्वारा मास्को में विदेश नीति के इलीट क्लास के बीच दिए गए भाषण पर गौर करना चाहिए। वास्तव में, उनके इस भाषण को संयुक्त राज्य अमेरिका एवं रूस के बीच रचनात्मक संबंधों के एक शोकगीत के रूप में वर्णित किया जा सकता है। 

इस दौरान, राष्ट्रपति पुतिन का अभिजन से संवाद का लहजा उतना ही महत्त्वपूर्ण था, जितना कि विषय-वस्तु : कुल मिलाकर, उन्होंने अमेरिका या नाटो या पश्चिमी देशों के उनके प्रति व्यवहारों पर गुस्सा जताने से ज्यादा गहरा दुख जताने वाले लहजे में अपनी बातें रखीं। [हालांकि उन्होंने नाटो द्वारा रूसी राजनयिकों के निष्कासन की बात करते हुए कुछ हद तक नाराजगी भ जाहिर की]।इसके अलावा, वे उस बातचीत के पूरे समय में बेहतर संबंध कायम करने के "चुक गए अवसरों" पर अपना खेद जताते रहे थे। साथ ही संबंधों में वर्तमान तनावों पर एक नपी-तुली प्रतिक्रिया दे रहे थे, जो कि अमेरिका के रूस को हड़काने-धमकाने और उस पर भाषण झाड़ते रहने वाले दृष्टिकोण के एकदम विपरीत है। 

कहा गया है कि इस उचित व्यवहार को किसी की भी कमजोरी या समर्पण समझने का भ्रम नहीं करना चाहिए: पुतिन ने लक्ष्मण रेखाओं के बारे और हमारे (अमेरिका के) उन "सतही" व्यवहारों की मूर्खताओं के बारे में जोरदार ढंग से बात की। [एक ने तो इस पर भी गौर कर लिया कि पुतिन ने कैसे एक सही शब्द खोजने के लिए लंबे क्षण तक रुके रह गए थे।] यह तो जाहिर ही है कि इन लक्ष्मण रेखाओं में सर्वोपरि महत्त्व की रेखा तो यूक्रेन ही है; मिन्स्क समझौते (इसका मकसद यूक्रेन के दोनाबास में जंग को खत्म कराना है) और नॉरमैंडी चतुष्टय (जर्मनी, फ्रांस, रूस और यूक्रेन) दो "तटस्थ" पर्यवेक्षकों-फ्रांस और जर्मनी-के इसके लिए यूक्रेन को जिम्मेदार ठहराने से इनकार के चलते दलदल में फंस गया है। यह तो और भी खतरनाक है, क्योंकि जैसा कि पुतिन ने जोरदार तरीके से कह दिया है कि : मिन्स्क का कोई विकल्प ही नहीं है। यह तथ्य भी खतरनाक तरीके से मामलों को जटिल बनाता है, वह यह कि संयुक्त राज्य अमेरिका इस मामले में सीधे-सीधे दखलकारी का किरदार निभाने से कन्नी काट रहा है [जबकि यूक्रेनियन उससे उसी तरह के दखल की उम्मीद करते हैं,जैसा कि साकाशविली ने 2008 में जॉर्जिया में विनाशकारी नतीजों के साथ किया था।]। इसकी बजाए अमेरिका सांत्वना पुरस्कारस्वरूप यूक्रेन को उच्च श्रेणी के हथियार देना चाहता है, जिसके तहत वाशिंगटन ने 2014 के तख्तापलट के बाद से ही कीव को लगभग 2.5 बिलियन डॉलर की राशि के हथियारों की आपूर्ति कर चुका है, जिनमें इलेक्ट्रॉनिक युद्ध उपकरण जैसे परिष्कृत आइटम भी शामिल हैं। $150 मिलियन की नवीनतम किश्त में यूक्रेनी हवाई अड्डों पर अमेरिकी प्रशिक्षणकर्मियों को भी शामिल किया गया है। नाटो की तरफ से, तुर्की युद्ध में भाग लेने वाले ड्रोन भी आए हैं, जिन्होंने नागोर्नो-कराबाख के युद्ध में 6,000 लोगों को मार डाला था। 

अमेरिका से मिली इस सैन्य सहायता की उदारता ने कीव को न केवल मिन्स्क समझौतों पर रोक लगाने के लिए, बल्कि इसके उल्लंघन की धमकी देने के लिए भी उकसाया है।[यूक्रेन से लगी अपनी पूर्वी सीमा, जिसे मिन्स्क ने 2015 में बफर जोन घोषित किया था, उसके भीतर तक रूसी सैनिकों की तैनाती कीव की इस धमकी के जवाब में की गई थी कि वह दो शहरों डोनेट्स्क और लुकांस्क पर हमला करेगा। ये दोनों ही यूक्रेन से आजाद होने का ऐलान कर रखा है।] अंत में, अमेरिकी रक्षा सचिव ऑस्टिन ने 18 अक्टूबर को कीव की अपनी यात्रा में, आखिरकार यूक्रेन को नाटो का सदस्य बनाने (जो रूस के लिए सबसे कड़ी लक्ष्मण रेखाओं में से एक है।) के लिए अमेरिका के समर्थन की पुष्टि कर दी। ये सवाल है कि : रूस के मस्तिष्क की शिराओं में झनझना देने वाला दर्द उभारने के अलावा, यूक्रेन में आखिर संयुक्त राज्य अमेरिका का राष्ट्रीय हित क्या है?

पश्चिम, और विशेष रूप से अमेरिका का उल्लेख करने के लिए पुतिन ने क्रमशः दो उल्लेखनीय विशेषणों का इस्तेमाल किया था,"अविश्वसनीय" और "अप्रत्याशित"। ये विशेषण शायद दो परमाणु महाशक्तियों के बीच उपयोग की सबसे खतरनाक संभावित संदर्भों में दिए गए थे। पुतिन ने विशेष रूप से "पिछले समझौतों पर पीछे हटने" [एबीएम] का उल्लेख किया और मौजूदा नाजुक राजनयिक संबंधों पर भी अपनी घबराहट व्यक्त की ["वे हमसे बात नहीं करना चाहते" उनकी एक ऐसी ही टिप्पणी थी]। मॉस्को के सुविधाजनक बिंदु से यह निश्चित रूप से बहुत महत्त्वपूर्ण है: राजनयिक चैनलों का टूटना द्पक्षीय संबंधों को राजनीतिक/सैन्य समस्याओं में आसानी से धकेल सकता है-और इसमें किसी को आश्चर्य होना चाहिए कि वर्तमान में हमारे संबंधित दूतावासों में वास्तव में क्या किया जा रहा है। 

पुतिन का उद्घाटन वक्तव्य था: "हम क्षेत्रीय संघर्षों को सुलझाने में विदेश नीति की एक प्रमुख भूमिका देखते हैं," और उन्होंने इस क्रम में, अफगानिस्तान, अन्य क्षेत्रीय देशों के साथ मिल कर आतंकवाद और नशीले पदार्थों के विरुद्ध की गई संयुक्त पहल समेत, और नागोर्नो-कराबाख, आर्मेनिया और अजरबैजान के बीच बने निरंतर तनाव का विवरण दिया, जहां रूसी मध्यस्थता ने अहम भूमिका निभाई है,और वह अब भी निभा रही है। उन्होंने गहरी चिंता व्यक्त की कि रूस के पश्चिम में और काला सागर, जो कि नाटो युद्धपोतों के लिए वास्तव में एक बंदरगाह ही बन गया है, में नाटो के बढ़ते आक्रामक युद्धाभ्यासों पर लगातार ध्यान देने के कारण रूस इससे विचलित हो गया है। इसी साल जून में, "सी ब्रीज 21" नामक सैन्य अभ्यास हुआ था, जिसमें कम से कम 32 अन्य देशों की नौसेनाएं शामिल थीं। इनमें अधिकतर नाटो देशों के साथ-साथ संयुक्त अरब अमीरात से लेकर दक्षिण कोरिया तक के अमेरिका के सहयोगी देशों की नौसेनाओं ने भाग लिया था। इनके बारे में, पुतिन के पूरे भाषण में उनके सबसे अनिष्टकारी और ध्यान देने योग्य शब्द थे कि "हम माकूल जवाब देंगे।"

इन सबके निष्कर्ष के लिए हम लेख के शुरू में राजनीतिक एवं राजनेता में भेद पर लौटें: पुतिन के विचार में शीत युद्ध के बाद 30 साल पहले शुरू हुआ खेल अब भी जारी है : हम [अमेरिका] विश्व की व्यवस्था के अपने खास नजरिये के आधार पर दूसरों के साथ जुड़ाव की शर्ते तय करेंगे, और कि, आप जिस हद तक इसके साथ जाने के इच्छुक हैं, हम सहयोग के उन क्षेत्रों की खोज कर सकते हैं।  लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम रूस के सामने आत्मसमर्पण ही कर दें, या स्व की उसकी धारणा को ग्रहण कर लें, और फिर, उसकी वैश्विक भूमिका को संपूर्णता में स्वीकार कर लें। इसका मतलब इतना ही है कि उसके  इस दृष्टिकोण पर अधिक से अधिक सभ्यातिक संवाद करने और  भयावह टकराव कम करने के लिए उसे एक मंच पर लाएं, उससे बातचीत करें। रूस परस्पर महत्त्व के आड़े आने वाले खतरों को रोकने और उनका हल निकालने में अपनी एक वैश्विक भूमिका देखता है: आतंकवाद का प्रसार, नशीले पदार्थों के व्यापार पर नियंत्रण, सामूहिक विनाश के हथियारों से बचाव, जलवायु परिवर्तन और पृथ्वी ग्रह की पारिस्थितिकीय गिरावट से निपटने-जैसे साझा सरोकारों के मुद्दे कोई बेजा मसले नहीं हैं।

(डेविड सी. स्पीडी अकुरा बोर्ड के सदस्य हैं, और वे 2007-2017 तक, न्यूयॉर्क में कार्नेगी काउंसिल फॉर एथिक्स इन इंटरनेशनल अफेयर्स में यूएस ग्लोबल एंगेजमेंट कार्यक्रम में सीनियर फेलो एवं कार्यक्रम निदेशक थे। यह लेख अकुरा और ग्लोबट्राटर ने संयुक्त रूप से वितरित किया है।) 

अंग्रेजी में मूल रूप से लिखे गए लेख पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें

https://www.newsclick.in/On-Putin-Red-Lines

vladimir putin
USA
Russia
ukraine

Related Stories

भारत में धार्मिक असहिष्णुता और पूजा-स्थलों पर हमले को लेकर अमेरिकी रिपोर्ट में फिर उठे सवाल

बाइडेन ने यूक्रेन पर अपने नैरेटिव में किया बदलाव

डेनमार्क: प्रगतिशील ताकतों का आगामी यूरोपीय संघ के सैन्य गठबंधन से बाहर बने रहने पर जनमत संग्रह में ‘न’ के पक्ष में वोट का आह्वान

रूसी तेल आयात पर प्रतिबंध लगाने के समझौते पर पहुंचा यूरोपीय संघ

यूक्रेन: यूरोप द्वारा रूस पर प्रतिबंध लगाना इसलिए आसान नहीं है! 

पश्चिम बैन हटाए तो रूस वैश्विक खाद्य संकट कम करने में मदद करेगा: पुतिन

और फिर अचानक कोई साम्राज्य नहीं बचा था

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शक्ति संतुलन में हो रहा क्रांतिकारी बदलाव

अमेरिकी आधिपत्य का मुकाबला करने के लिए प्रगतिशील नज़रिया देता पीपल्स समिट फ़ॉर डेमोक्रेसी

90 दिनों के युद्ध के बाद का क्या हैं यूक्रेन के हालात


बाकी खबरें

  • अजय कुमार
    शहरों की बसावट पर सोचेंगे तो बुल्डोज़र सरकार की लोककल्याण विरोधी मंशा पर चलाने का मन करेगा!
    25 Apr 2022
    दिल्ली में 1797 अवैध कॉलोनियां हैं। इसमें सैनिक फार्म, छतरपुर, वसंत कुंज, सैदुलाजब जैसे 69 ऐसे इलाके भी हैं, जो अवैध हैं, जहां अच्छी खासी रसूखदार और अमीर लोगों की आबादी रहती है। क्या सरकार इन पर…
  • रश्मि सहगल
    RTI क़ानून, हिंदू-राष्ट्र और मनरेगा पर क्या कहती हैं अरुणा रॉय? 
    25 Apr 2022
    “मौजूदा सरकार संसद के ज़रिये ज़बरदस्त संशोधन करते हुए RTI क़ानून पर सीधा हमला करने में सफल रही है। इससे यह क़ानून कमज़ोर हुआ है।”
  • मुकुंद झा
    जहांगीरपुरी: दोनों समुदायों ने निकाली तिरंगा यात्रा, दिया शांति और सौहार्द का संदेश!
    25 Apr 2022
    “आज हम यही विश्वास पुनः दिलाने निकले हैं कि हम फिर से ईद और नवरात्रे, दीवाली, होली और मोहर्रम एक साथ मनाएंगे।"
  • रवि शंकर दुबे
    कांग्रेस और प्रशांत किशोर... क्या सोचते हैं राजनीति के जानकार?
    25 Apr 2022
    कांग्रेस को उसकी पुरानी पहचान दिलाने के लिए प्रशांत किशोर को पार्टी में कोई पद दिया जा सकता है। इसको लेकर एक्सपर्ट्स क्या सोचते हैं।
  • विजय विनीत
    ब्लैक राइस की खेती से तबाह चंदौली के किसानों के ज़ख़्म पर बार-बार क्यों नमक छिड़क रहे मोदी?
    25 Apr 2022
    "चंदौली के किसान डबल इंजन की सरकार के "वोकल फॉर लोकल" के नारे में फंसकर बर्बाद हो गए। अब तो यही लगता है कि हमारे पीएम सिर्फ झूठ बोलते हैं। हम बर्बाद हो चुके हैं और वो दुनिया भर में हमारी खुशहाली का…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License