NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
मणिपुर के बहाने: आख़िर नीतीश कुमार की पॉलिटिक्स क्या है...
यूपी के संभावित परिणाम और मणिपुर में गठबंधन तोड़ कर चुनावी मैदान में हुई लड़ाई को एक साथ मिला दे तो बहुत हद तक इस बात के संकेत मिलते है कि नीतीश कुमार एक बार फिर अपने निर्णय से लोगों को चौंका सकते हैं।
शशि शेखर
07 Mar 2022
Nitish Kumar

राजनीति में छोटी चीजें कितनी अहम होती है, इसे राजनीतिक दल बखूबी समझते है। इस देश में एक वोट से सरकार गिरती-बनती रही है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी इस तथ्य को भलीभांति समझते है। अन्यथा, 22 सालों के बाद, भाजपा गठबंधन से अलग हो कर मणिपुर में जद(यू) भला अकेले चुनाव लड़ने का फैसला क्यों करती? अब सवाल यह है कि मणिपुर में एनडीए गठबंधन में हुई इस टूट को कैसे देखा जाए या इसके क्या निहितार्थ समझे जाए?

इन सवालों का जवाब इस कयास के जरिये तलाशने की कोशिश की जा सकती है, जिसके मुताबिक़ नीतीश कुमार को अगला राष्ट्रपति उम्मीदवार (विपक्ष का) बनाए जाने की बात की गयी और लगे हाथ राजद ने पर्दे के पीछे टाइप बयान दे कर इस कयास का समर्थन और स्वागत भी कर दिया। गौरतलब है कि नीतीश कुमार अपने चौथे कार्यकाल में है। तकरीबन वह घोषणा कर चुके हैं कि अब वे मुख्यमंत्री नहीं बनेंगे। तो सवाल है कि अब वे क्या करेंगे? जाहिर है, विपक्ष की खेमेबंदी में अब इस बात की गुंजाइश नहीं बची है कि उन्हें विपक्ष का साझा उम्मीदवार (प्रधानमंत्री पद के लिए) बनाया जाए। राजनीतिक ताकत के हिसाब से भी वे इस पद की दावेदारी से दूर हो चुके हैं। ऐसे में राष्ट्रपति जैसा एक सम्मानित पद ही उनके लिए बचता है, जहां के लिए वे जोर-आजमाइश कर सकते है। और शायद भीतर ही भीतर कर भी रहे हो। एक राजनेता के लिए ये उसकी जिंदगी की सबसे बड़ी उपलब्धि हो सकती है। मसलन, प्रणब मुखर्जी एक सुयोग्य उम्मीदवार होते हुए भी कभी पीएम नहीं बन सके लेकिन जाते-जाते कांग्रेस ने उन्हें सर्वोच्च पद पर बिठाया। नीतीश कुमार इस मॉडल का फायदा उठाने की अगर सोच भी रहे हो, तो इसमें भला क्या बुराई है?

लेकिन, यह सोच सच में कैसे तब्दील होगा? भाजपा क्या उन्हें कभी इस पद पर भेजेगी? बिलकुल नहीं। इसकी वजह है, नीतीश कुमार-नरेंद्र मोदी के बीच शुरू से चला आ रहा अंतर्द्वंद। तो ले दे कर इसकी उम्मीद कांग्रेस समेत तमाम विपक्ष से ही होगी। मौजूदा विधानसभा चुनावों के परिणाम से भी अगले राष्ट्रपति चुनाव की तस्वीर प्रभावित होगी, ख़ास कर यूपी के कारण। इधर, जद (यू) ने मणिपुर में 22 साल बाद अकेले दम पर चुनाव लड़ कर क्या संकेत दिया है? और इसके उम्मीदवारों पर भी एक नजर डालिए तो इसमें टी वृंदा जैसी तेज-तर्रार पुलिस अधिकारी रह चुकी उम्मीदवार है, जिन्होंने तत्कालीन सीएम एन बीरेन सिंह तक का नाम मणिपुर में चल रहे ड्रग्स के व्यापार में बता दिया था। मणिपुर की कुल 60 सीटों में से 39 सीटों पर जद (यू) कुछ बहुत ही प्रभावी उम्मीदवारों के साथ चुनाव मैदान में उतरी है। इसमें भाजपा के बागी भी है। मणिपुर में चुनावी लड़ाई को जद (यू) ने चतुष्कोणीय बना दिया और चुनाव परिणाम लोगों को चौंका दे तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। गौरतलब है कि 1980 से 1990 के बीच, मणिपुर में अविभाजित जनता दल का काफी प्रभाव रहा था। साल 2000 में, जद (यू) के एक उम्मीदवार ने जीत हासिल की थी। लेकिन, जब जद (यू) एनडीए का हिस्सा बनी, उसके बाद से इसने करीब 20 साल तक यहां चुनाव नहीं लड़ा।

बहरहाल, नीतीश कुमार के लिए खुद को मुख्यमंत्री बनाए रखना या राष्ट्रपति पद पर खुद के चुने जाने की लालसा से कहीं बढ़ कर अपनी पार्टी के अस्तित्व को बचाए रखना भी होगा। जद (यू) में दूसरे पंक्ति के ऐसे नेताओं की मौजूदगी है ही नहीं, जो नीतीश कुमार के बाद पार्टी को नीतीश कुमार की तरह चला सके। यह भी तथ्य है कि भाजपा अकेले दम पर तब तक बिहार में सत्ता में नहीं आ सकती, जब तक जद(यू) उसके रास्ते में है। कुछ दिनों पहले भाजपा सांसद छेदी पासवान ने जब सीएम पद के लिए ढाई-ढाई साल फोर्म्यूला की बात की थी तब शाहनवाज हुसैन ने 2 दिन बाद इस बयान को खारिज कर दिया था। लेकिन, हर राजनीतिक बयानबाजी में भविष्य के कुछ संकेत छुपे होते है। 2025 के बाद, बिहार की राजनीति में स्पष्ट रूप से दो धड़े होंगे, भाजपा बनाम राजद। कोई चमत्कार ही जद(यू) की प्रमुखता बनाए रख पाएगी अन्यथा यह बिहार में कांग्रेस, लोजपा स्तर की पार्टी बन जाए, तो कोई बड़ी बात नहीं होगी।

नीतीश कुमार को भी भविष्य की इन तस्वीरों का एहसास होगा। तो ऐसे में, विपक्ष का सांझा उम्मीदवार बन कर राष्ट्रपति चुनाव में उतरना, नीतीश कुमार के लिए एक शानदार पॉलिटिकल रिटायरमेंट साबित हो सकता है। और अगर ऐसा होता है तब अकेले यह घटना देश की मौजूदा राजनीति में भूचाल लाने के लिए काफी साबित हो सकती है। यूपी के संभावित परिणाम और मणिपुर में गठबंधन तोड़ कर चुनावी मैदान में हुई लड़ाई को एक साथ मिला दे तो बहुत हद तक इस बात के संकेत मिलते है कि नीतीश कुमार एक बार फिर अपने निर्णय से लोगों को चौंका सकते हैं।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

MANIPUR Assembly elections 2022
Nitish Kumar
jdu
BJP
Janata Dal United
manipur

Related Stories

बिहार: पांच लोगों की हत्या या आत्महत्या? क़र्ज़ में डूबा था परिवार

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !


बाकी खबरें

  • brooklyn
    एपी
    ब्रुकलिन में हुई गोलीबारी से जुड़ी वैन मिली : सूत्र
    13 Apr 2022
    गौरतलब है कि गैस मास्क पहने एक बंदूकधारी ने मंगलवार को ब्रुकलिन में एक सबवे ट्रेन में धुआं छोड़ने के बाद कम से कम 10 लोगों को गोली मार दी थी। पुलिस हमलावर और किराये की एक वैन की तलाश में शहर का चप्पा…
  • non veg
    अजय कुमार
    क्या सच में हिंदू धर्म के ख़िलाफ़ है मांसाहार?
    13 Apr 2022
    इतिहास कहता है कि इंसानों के भोजन की शुरुआत मांसाहार से हुई। किसी भी दौर का कोई भी ऐसा होमो सेपियंस नही है, जिसने बिना मांस के खुद को जीवित रखा हो। जब इंसानों ने अनाज, सब्जी और फलों को अपने खाने में…
  • चमन लाल
    'द इम्मोर्टल': भगत सिंह के जीवन और रूढ़ियों से परे उनके विचारों को सामने लाती कला
    13 Apr 2022
    कई कलाकृतियों में भगत सिंह को एक घिसे-पिटे रूप में पेश किया जाता रहा है। लेकिन, एक नयी पेंटिंग इस मशहूर क्रांतिकारी के कई दुर्लभ पहलुओं पर अनूठी रोशनी डालती है।
  • एम.के. भद्रकुमार
    रूस पर बाइडेन के युद्ध की एशियाई दोष रेखाएं
    13 Apr 2022
    यह दोष रेखाएं, कज़ाकिस्तान से म्यांमार तक, सोलोमन द्वीप से कुरील द्वीप समूह तक, उत्तर कोरिया से कंबोडिया तक, चीन से भारत, पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान तक नज़र आ रही हैं।
  • ज़ाहिद खान
    बलराज साहनी: 'एक अपरिभाषित किस्म के कम्युनिस्ट'
    13 Apr 2022
    ‘‘अगर भारत में कोई ऐसा कलाकार हुआ है, जो ‘जन कलाकार’ का ख़िताब का हक़दार है, तो वह बलराज साहनी ही हैं। उन्होंने अपनी ज़िंदगी के बेहतरीन साल, भारतीय रंगमंच तथा सिनेमा को घनघोर व्यापारिकता के दमघोंटू…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License