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श्रम कानूनों में बदलाव का विरोध: राजघाट पर भूख हड़ताल, पुलिस ने मज़दूर नेताओं को हिरासत में लिया
सीटू महासचिव और पूर्व सांसद तपन सेन सहित ट्रेड यूनियनों के राष्ट्रीय स्तर के कई नेता दिल्ली के राजघाट पर एक दिन की भूख हड़ताल पर बैठ थे। सभी मज़दूर नेताओं को राजघाट से पुलिस ने हिरासत में लिया है। इससे पहले सुबह यूपी पुलिस ने भी तीन ट्रेड यूनियन नेताओं को हिरासत में लिया है।
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
22 May 2020
श्रम कानूनों में बदलाव का विरोध

देश में राज्यों द्वारा किए गए श्रम कानूनों में हालिया बदलावों को चुनौती देते हुए, दस सेंट्रल ट्रेड यूनियनों ने 22 मई को देशव्यापी विरोध प्रदर्शन का आह्वान किया है। अखिल भरतीय विरोध दिवस के दिन कश्मीर से तमिलनाडु, असम, गुजरात,बिहार ,दिल्ली ,  बंगाल तक...रेलवे, बंदरगाह, एचएएल, निर्माण मज़दूर , आंगनबाड़ी कर्मचारी सहित तमाम मज़दूरों ने विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।

सीटू महासचिव और पूर्व सांसद तपन सेन सहित ट्रेड यूनियनों के राष्ट्रीय स्तर के कई नेता  दिल्ली के राजघाट पर एक दिन की भूख हड़ताल भी बैठे, लेकिन सभी मज़दूर नेताओं को राजघाट से पुलिस ने हिरासत में लिया।

इसमें सीटू महासचिव तपन सेन, अध्यक्ष हेमलता, सचिव ए आर सिंधु और अमितावा गुहा, इंटक के नेता अशोक सिंह,  एटक के विद्या सागर

गिरी, हिन्द मज़दूर सभा के एच एस सिद्धू, , ऐक्टू के राजीव डिमरी,  और सेवा की नेता  लता  समेत दर्जनों नेताओ को हिरासत में ले लिया गया हैं।  

मज़दूर नेताओ ने कहा "हम लोग शांति पूर्वक अपना विरोध दर्ज करा रहे थे लेकिन सरकार ने उनके इस प्रदर्शन को रोकने और मज़दूरों की आवाज को दबाने के लिए पुलिस की मदद ले रही है। पहले तो करोड़ो मज़दूरों के अधिकारों को छीना और अब हमारे विरोध का अधिकार भी छीन रही है।"

इससे पहले आज यानी शुक्रवार सुबह,  उत्तर प्रदेश की नोएडा पुलिस ने ट्रेड यूनियनों के तीन नेताओं को हिरासत में लिया। इनमें से सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियंस (सीटू) दिल्ली एनसीआर के उपाध्यक्ष, , गंगेश्वर और हिंद मजदूर सभा (एचएमएस) के एक अन्य नेता शामिल हैं  ।

इस बात की पुष्टि करते हुए, दिल्ली के सीटू के महासचिव, अनुराग सक्सेना ने कहा, “तीनों को देशव्यापी विरोध के आगे अपने घर से गिरफ्तार किया गया। वर्तमान में उन्हें विरोध करने से रोकने के लिए यूपी पुलिस द्वारा हिरासत में लिया गया है।”
 
पश्चिम बंगाल के चाय श्रमिकों ने अपने मांग पत्र के साथ मालिकों के खिलाफ एक संयुक्त विरोध प्रदर्शन किया। राज्य में चाय श्रमिकों को कोरोनोवायरस-प्रेरित लॉकडाउन और अम्फैन चक्रवात की दोहरी मार झेल रहे हैं।

तमिलनाडु में भी रेलवे कर्मचारियों ने शरीरिक दुरी का ध्यान रखते हुए विरोध प्रदर्शन किया।

आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, जो भारत के रूप में सीओवीआईडी -19 से लड़ रहे  हैं, अपनी नौकरी नियमित करने की मांग करते हुए प्रदर्शन किया। पंजाब में आंगनवाड़ी महिला श्रमिकों ने केंद्रीय ट्रेड यूनियनों द्वारा बुलाए गए देशव्यापी विरोध प्रदर्शन में भाग लिया लिया। इस दौरन सभी ने अपने मुँह को कपड़े से ढका हुआ था।

ट्रेड यूनियनों ने  15 मई के अपने बयान में कहा था, " कोविड 19 की आड़ में हर दिन सरकार मज़दूर वर्ग व देश की आम जनता पर हमला करते हुए कोई न कोई फैसला ले रही है, तब जब कि वो पहले से ही लॉक डाउन के हालातों में संकट और तकलीफ़ें झेल रहे हैं। ट्रेड यूनियनों ने प्रधानमंत्री तथा श्रम मंत्री को स्वतंत्र व संयुक्त दोनों स्तरों पर इस बाबत व इसके साथ-साथ लॉकडाउन अवधि में वेतन के पूरे भुगतान करने व नौकरी से न निकालने के सरकार के अपने दिशानिर्देशों/सलाहों की अवहेलना के बारे में कई पत्र लिखें हैं। परन्तु इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाए गए। इसके अलावा राशन वितरण, औरतों तथा वृद्धों को कैश ट्रांस्फर आदि सरकार की अधिकतर घोषणाएं विफल साबित हुई हैं व इनका फायदा ज़मीनी स्तर पर संभावित लाभार्थियों को नहीं मिल रहा है।"

अब तक, कम से कम नौ राज्यों ने कारखानों में मज़दूरों की दैनिक कामकाजी समय को आठ घंटे से बढ़ाकर बारह घंटे करने का फैसला किया जा चुका है। इस बीच, एक अध्यादेश के माध्यम से, उत्तर प्रदेश, गुजरात और मध्य प्रदेश सहित राज्यों ने अगले 1000 दिनों के लिए राज्य में 38 श्रम कानूनों के रूप में कई कंपनियों को छूट देने के पूर्व निर्णय के साथ, श्रम कानूनों में परिवर्तन लाने की मांग की है।

दस सेंट्रल ट्रेड यूनियनों ने 22 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखा कि सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों और सरकारी विभागों के "निजीकरण" को रोकने सहित अपनी अन्य मांगों को दोहराया है। इनमें प्रमुख माँगें हैं : फंसे हुए प्रवासी मज़दूरों को सुरक्षित उनके घर पहुंचाने के लिए उचित कदम उठाए जाएं, सभी के लिए भोजन, सभी के लिए राशन, लॉक डाउन की अवधि में वेतन भुगतान को सुनिश्चित करना, असंगठित क्षेत्र के तमाम श्रमिकों (पंजीकृत, गैर पंजीकृत और स्वरोजगार में लगे हुए) के लिए कैश ट्रांस्फर, केंद्र सरकार व केन्द्र सरकार के उपक्रमों के कर्मचारियों   की डीए तथा पेंशनरों की डीआर पर लगी रोक को हटाना, खाली पदों के लिए घोषित भर्तियों पर रोक को हटाना।

इस विशाल मानवीय समस्या से निपटने में केंद्र और राज्यों के बिच समन्वय की कमी है, कोरोनवायरस-प्रेरित लॉकडाउन के मद्देनजर, केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने फंसे श्रमिकों को तत्काल राहत देने, 'न्यू पार्लियामेंट प्रोजेक्ट' पर बजट खर्च को वापस लेने और प्रवासी श्रमिकों के पंजीकरण से संबंधित कानून को मजबूत बनाने की भी मांग की।

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