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भारत
राजनीति
ओवैसी की AIMIM, मुसलमानों के लिए राजनीतिक विकल्प या मुसीबत? 
यूपी चुनाव के परिणाम आ चुके हैं, भाजपा सरकार बनाने जा रही है, इस परिप्रेक्ष्य में हम ओवैसी की पार्टी से जुड़े तीन मुख्य मुद्दों पर चर्चा करेंगें– पहला ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) ने किसे फायदा पहुँचाया है, दूसरा उनकी पार्टी को कितना वोट मिला है, और तीसरा उनका भारतीय राजनीति में भविष्य क्या है?
असद शेख़
18 Mar 2022
Asaduddin Owaisi

उत्तर प्रदेश चुनावों के परिणाम आ चुके हैं और परिणामों के मुताबिक़ बहुत आसानी के साथ भाजपा दोबारा से सरकार बनाने की तरफ बढ़ चुकी है, भाजपा को बहुमत मिल चुका है। जब से यह परिणाम आए हैं तब से अब तक कई आंकलन तरह तरह से किये जा रहे हैं जिसमें कितने वोट किसे मिलें हैं किस समाज का वोट किसे मिला है, जैसे सवाल लगातार किये जा रहे हैं। इस तरह की खूब चर्चा की जा रही है। लेकिन एक नाम है जिसकी चर्चा हर बार की तरह की इस बार भी बहुत हो रही है वो हैं असदुद्दीन ओवैसी।

असदुद्दीन ओवैसी हैदराबाद लोकसभा से चौथी बार सांसद चुने गये हैं, उनकी पार्टी बिहार, महाराष्ट्र और तेलंगाना में अपना अस्तित्व रखती है और इसी बात को ध्यान में रखते हुए ओवैसी की पार्टी ने 2022 का उत्तर प्रदेश का विधासनभा चुनाव लड़ने का ऐलान किया था, या उनके यूपी के प्रदेश अध्यक्ष की बात पर गौर करें तो उन्होंने कहा था की “हम यूपी में 100 सीटों पर चुनाव लड़ने जा रहे हैं” लेकिन 10 मार्च को आये रिज़ल्ट के बाद वो फ़िलहाल किस स्थिति में हैं ? 

आज हम उन्हीं से जुड़े तीन तीन मुख्य मुद्दों पर चर्चा करेंगें वो कुछ इस तरह हैं की असदुदीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM ) ने किसे फायदा पहुँचाया है उनकी पार्टी को कितना वोट मिला है और तीसरा उनका भविष्य भारतीय राजनीति में क्या है?

ओवैसी ने भाजपा को फायदा पहुँचाया है ?

अक्सर असदुदीन ओवैसी और उनकी पार्टी पर ये इल्ज़ाम लगाया जाता है की उनकी पार्टी “भाजपा की बी पार्टी है” क्यूंकि वो भाजपा को फायदा पहुंचाती है लेकिन इस बार आये चुनावी परिणाम आंकड़े क्या कहते हैं हम उस पर बात करेंगें। एमआईएम ने इस बार के यूपी विधानसभा चुनावों में 100 से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ा था जिसमें से अगर एक सीट (मुबारकपुर विधानसभा जहाँ से शाह आलम “गुड्डू जमाली” चुनाव लडे)  को हटा दें तो बाकी सभी सीटों पर AIMIM के सभी प्रत्याशियों की लगभग ज़मानत जब्त हुई है।

लेकिन बहुत सारी सीटों पर अपनी ज़मानत जब्त कराने के बावजूद भी उनकी पार्टी ने बहुत शांति के साथ अखिलेश यादव के प्रत्याशियों को चुनाव हरवा जरुर दिया है उन्हें 2022 के विधानसभा चुनावों में कुल 0।49 प्रतिशत वोट मिला है जिस तरफ ध्यान भी बहुत कम किया गया है, हम उनमें से कुछ सीटों पर चर्चा करते हैं जहाँ सपा के उम्मीदवार ओवैसी के उम्मीदवारों की वजह से चित हो गये ।

बिजनोर सदर विधानसभा (ज़िला बिजनोर)

इस सीट से रालोद-सपा के गठबंधन के उम्मीदवार के तौर पर डॉ। नीरज चौधरी मैदान में थे वहीँ बसपा से पूर्व विधायक रूचि वीरा चुनाव लड़ रहीं थीं और भाजपा ने वर्तमान विधायक सूचि चौधरी को अपना उम्मीदवार बनाया था। यहाँ पर जीतने वाली सूचि चौधरी को 96,300 वोट मिले हैं, दूसरे नम्बर पर रहे नीरज चौधरी को 94,990 वोट मिला है वहीँ बसपा की प्रत्याशी 51,600 वोट लायी हैं।

इस सीट पर हार और जीत का अंतर सिर्फ 1310 का रहा है और मजलिस के प्रत्याशी को वोट मिला है 2282 यानी सीधे तौर पर ये सीट भाजपा के जीतने में बहुत बड़ा हाथ ओवैसी जी की पार्टी का है ।

मुरादाबाद शहर विधानसभा ( ज़िला मुरादाबाद)

इस सीट पर भाजपा के उम्मीदवार रितेश गुप्ता ने जीत हासिल की है उन्हें कुल वोट मिले हैं 147,784 और दूसरे नम्बर पर रहे समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी रिजवान कुरैशी जिन्हें कुल वोट मिले हैं- 147,069, इस सीट की जीत और हार में अंतर सिर्फ 715 वोटों का अंतर रहा और मजलिस इत्तेहादुल मुस्लिमीन के प्रत्याशी वक़ी रशीद को वोट मिले हैं- 2658 

खलीलाबाद विधानसभा ( संत कबीर नगर ज़िला )

इस सीट से पीस पार्टी के डॉ। अय्यूब चुनाव लड़ रहे थे, जिन्हें असद्दुदीन ओवैसी की पार्टी समर्थन कर रही थी खुद सांसद जी इनके प्रचार में आये थे इस सीट पर भाजपा के अंकुर तिवारी को कुल वोट मिले हैं- 75833 और समाजवादी पार्टी के उमीदवार को मिले हैं- 62703 और पीस पार्टी और AIMIM के प्रत्याशी डॉ। अय्यूब को वोट मिले हैं-19350 

कन्नौज विधानसभा

इसके अलावा कन्नौज विधानसभा जहाँ पर असद्दुदीन ओवैसी ने सुनील कुमार को अपना प्रत्याशी बनाया था वहां उन्हें कुल 4476 वोट मिला, हा वहां जीत का अंतर 6362 रहा है, हालांकि ये कुल आंकड़ा जीत और हार को पूरी तरह से बदल नहीं रहा है, लेकिन ये भी सच है की एक बहुत बड़ा फर्क ज़रूर डाल रहा है और इस अंतर की ही वजह से भाजपा ये सीट आसानी से जीत गयी है।

इसी तरह से और बहुत सी सीटें ऐसी हैं जहाँ भाजपा और समाजवादी पार्टी की जीत और हार का अंतर असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी को मिले वोटों जितना है। अब अगर कोई ये कहेगा की ओवैसी भाजपा को फायदा पहुँचाने के लिए चुनाव लड़ते हैं तो क्या ये वाक़ई में तथ्यात्मक तौर पर सही नहीं होगा ?

नकुड विधानसभा (ज़िला सहारनपुर)

ये सीट सहारनपुर जिले में है इस सीट का ज़िक्र तब और ज्यादा होने लगा जब 10 मार्च को परिणाम आये और मालूम ये चला कि समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी धर्म सिंह सैनी यहाँ सिर्फ 315 वोटों से चुनाव हार गये हैं और ओवैसी की पार्टी के प्रत्याशी को 3593 वोट मिले हैं।

धर्म सिंह को यहाँ 1 लाख 3 हज़ार 616 वोट मिले और वहीँ भाजपा के प्रत्याशी मुकेश चौधरी को 1 लाख 3 हज़ार 771 मिले हैं और वो नकुड विधानसभा से विधायक चुने गये हैं ।

सुल्तानपुर विधानसभा 

इस विधानसभा सीट पर आये परिणामों ने भी सभी को चौंका कर रख दिया है समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी अनूप सांदा यहाँ 1009 वोटों से चुनाव हार गए हैं और ओवैसी की पार्टी के प्रत्याशी 5240 वोट लाये हैं। यानी कि सीधा सा आंकड़ा ओवैसी की पार्टी के उम्मीदवार को हार या जीत के लिए ज़िम्मेदार बता रहा है ।

अब सबसे अहम सवाल है कि क्या वाक़ई ओवैसी भाजपा को फायदा पहुंचा रहे हैं तो आंकड़ों के मुताबिक जवाब है की हाँ। असदुद्दीन ओवैसी बहुत सी सीटों पर चुनाव लड़कर भाजपा को फायदा पहुंचा रहे हैं। लेकिन असदुद्दीन ओवैसी तो खुलेआम यही कहते भी हैं कि “पहला चुनाव हारने के लिए दूसरा हराने के लिए और तीसरा हार जाने के लिए” और यूपी में यह उनका दूसरा चुनाव था।

क्या है असदुद्दीन ओवैसी की राजनीति का भविष्य?

असदुद्दीन ओवैसी देश के उन गिने चुने नेताओं में शामिल हैं, जो अपने फैक्ट्स, स्टडी और आंकड़ों के मामलों में एक नम्बर पर रहते हैं, इस मामले में उनका हाथ पकड़ा जाना आसान नही है, टीवी डिबेट्स में और अक्सर “राम मंदिर” से जुड़ी डिबेट्स में वो अपने फेवरेट कपड़े शेरवानी, टोपी और हल्की सी दाढ़ी वाले चेहरे को शांत रख जवाब देते हुए नज़र आते हैं।

ओवैसी असल मे जिस कद के (शारिरिक लम्बाई नहीं) नेता हैं वो हमेशा “राष्ट्रीय” चेहरा बने रहते हैं, अब इसी में बहुत बड़ा मसला है, वो मसला ये है कि जब जब वो टीवी पर, डिबेट्स में या स्टेज पर खड़े होकर अपने बोलने में “मुसलमान” कहते हैं तो दूसरे वालों को भी हिन्दू कहे जाने पर गलत कहा जाना मुनासिब नहीं रह जाता है।

लेकिन ये भी बहुत हद तक सच है कि असदुदीन ओवैसी के चाहने वालों की तादाद बढ़ी है क्यूंकि जब उत्तर प्रदेश के युवाओं ने फायरब्रांड नेता के तौर पर योगी आदित्यनाथ को चुना है दूसरा वर्ग भी इसी तरह का अपना नेता तलाश रहा है और वो नेता असद्दुदीन की शक्ल में उसे नज़र आ जाये तो ये कुछ हैरानी की बात नहीं होनी चाहिए।

इस पर राष्ट्रीय राजनीति पर नज़र रखने वाले पत्रकार और लेखक ज़ैगम मुर्तज़ा से बात की, उन्होंने कहा कि “मेरा मानना ये है कि कोई भी पार्टी बनती है तो वो चुनाव लड़ने के लिए ही बनती है, लेकिन अहम ये है कि आप नेगेटिव पॉलिटिक्स कर रहे हैं या पॉजिटिव पॉलिटिक्स कर रहे हैं, अब ज़ाहिर है इनका अहम वोट कथित तौर पर मुस्लिम है तो इनका मुकाबला मुसलमान से ही होगा, क्योंकि ये भाजपा के लिए खतरा नहीं हैं, सेक्युलर पार्टियों के लिए हैं।”

वो आगे कहते हैं, “दूसरी बात ओवैसी की पार्टी एक ऑप्शन भी है, क्यूंकि ओवैसी जैसे लोग अगर न हों तो सेक्युलर पार्टियां मुस्लिमों पर शायद ध्यान भी न दें, और मुस्लिमों को इग्नोर करना शुरू कर दें, उनके साथ रिप्रजेंटेशन का ही सवाल खड़ा हो जाये जिस तरह का माहौल आज कल चल रहा है, इसलिए ओवैसी की पार्टी एक राजनीतिक ऑप्शन है।’’

असद्दुदीन ओवैसी बहुत बारीकी से राजनीति करते हैं उन्होंने चुनावों से पहले टीवी डिबेट्स में खुद को “लैला" तक कहा और खुद के राजनीतिक कद को बढ़ाने की कोई नहीं छोड़ी और आखिर में वो खुद को उस जगह पर ले आये हैं जहाँ उनकी चर्चा तो हो रही है नेगेटिव या पोज़िटि,  इसकी शायद उन्हें कोई फ़िक्र फ़िलहाल शायद नहीं है। 

दिल्ली में फ्रीलांस पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर काम कर रहीं शबनम अंसारी, असदुद्दीन ओवैसी के राजनीतिक भविष्य पर कहती हैं कि “असदुदीन ओवैसी या उनकी पार्टी के सही या गलत होने पर हम बहस कर सकते हैं लेकिन क्या मुस्लिमों के खिलाफ होने वाली किसी भी घटना में या चिंता में ओवैसी और उनकी पार्टी सबसे पहले नहीं बोलती है।’’

तब सेक्युलर पार्टियाँ कहाँ होती हैं? दूसरी बात जिस तरह की राजनीति फ़िलहाल हो रही है उसमें असद्दुदीन ओवैसी की पार्टी का भविष्य देश भर में उज्जवल है और उसे जनता और खासतौर पर मुस्लिम युवा बहुत पसंद करेगा इसमें फ़िलहाल कोई शक नहीं है।

अंत में सिर्फ इतना ही कहा जा सकता है की असदुद्दीन ओवैसी और उनकी पार्टी का राजनीतिक भविष्य बेहतर फ़िलहाल नज़र आता है क्योंकि मुस्लिम युवाओं में उनके चाहने वाले बहुत हैं लेकिन फिर एक सवाल भी उनसे और उनके समर्थकों से पूछा जरुर जाना चाहिए की ये सब किस क़ीमत पर होगा?

ये भी पढ़ें: यूपी चुनाव नतीजे: कई सीटों पर 500 वोटों से भी कम रहा जीत-हार का अंतर

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