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भारत
राजनीति
प्रधानमंत्री मोदी का आधिकारिक ट्विटर अकाउंट श्रेष्ठतावादियों को आकर्षित करता है
एक विश्लेषण से खुलासा होता है कि ट्रंप खुले तौर पर मुस्लिमों का डर दिखाकर घृणा फैलाने वाली सामग्री को प्रसारित करते हैं। वहीं मोदी इस तरह की सामग्री को छुप कर फैलाते हैं। जब भी ज़रूरत होती है, दोनों इस बात से इनकार भी कर देते हैं।
शकुंतला राव 
03 Feb 2020
Modi

13 जनवरी को अमेरिका के राष्ट्रपति डोनॉल्ड ट्रंप ने अमेरिकी कांग्रेस की स्पीकर नैनसी पेलोसी और सीनेटर चक स्कूमर की एक मॉर्फ्ड (छेड़खानी की गई) तस्वीर रिट्वीट की। इसमें दोनों नेता मध्य एशियाई पोशाक में ईरानी झंडे के सामने खड़े थे। तस्वीर में पेलोसी ने एक हिजाब पहन रखा था, वहीं स्कूमर के सिर पर एक पगड़ी थी। तस्वीर के नीचे लिखा था- ''डेमोक्रेट्स 2020''। तस्वीर के साथ ट्वीट में लिखा था- ''भ्रष्टाचारी डेम्स (डेमोक्रेटिक पार्टी से संबंधित लोग) अयातोल्लाह को बचाने की हर संभव कोशिश कर रहे हैं।'' एक गुमनाम अकाउंट ''D0wn_Under'' से किए गए इस ट्वीट को ट्रंप ने रिट्वीट किया था। इस अकाउंट से पहले भी पेलोसी और ईरान के संबंध में कई बातें ट्वीट होती रही हैं।

यह पहली बार नहीं है जब प्रेसिडेंट ट्रंप ने ''मुस्लिम के डर से भरी घृणा फैलाने वाली'' सामग्री को ट्वीट किया है। 2019 मार्च में ''क्राइस्टचर्च मस्जिद नरसंहार'' के बाद ट्रंप ने धुर दक्षिणपंथी और मुस्लिमों के प्रति पूर्वाग्रह रखने वाली साइट ''ब्रेटबार्ट न्यूज़'' की एक लिंक ट्वीट की थी, जिसे बाद में ट्रंप ने डिलीट भी कर दिया था। उस लेख में मुस्लिमों के प्रति अपमानजनक बातें कहते हुए हमलावर की निंदा भी नहीं की गई थी, बल्कि हमलावर के श्वेत राष्ट्रवादी और प्रवासी विरोधी मेनिफ़ेस्टो को डिलीट करने के लिए फ़ेसबुक की आलोचना की गई थी।

ट्रंप का हालिया ट्वीट, ईरान के साथ एक बेहद संवेदनशील वक़्त में आया है। लेकिन ट्रंप के लिए किसी भी तरह का कूटनीतिक शिष्टाचार बहुत कम मायने रखता है। आलोचकों का कहना है कि ट्रंप द्वारा मुस्लिमों विरोधी भावनाएं फैलाने से अमेरिकी मुस्लिम ख़तरे में पड़ गए हैं। हालिया अध्ययनों से खुलासा हुआ है कि अमेरिका में पिछले कुछ समय में मुस्लिम विरोधी भावनाओं में उफान आया है। ट्रंप के मुस्लिमों से संबंधित ट्वीट, अमेरिका में मुस्लिमों से ''नफ़रत आधारित बढ़ते अपराधों'' से संबद्ध हैं। जहां ट्रंप ट्वीट करने में खुलकर मुस्लिमों के प्रति पूर्वाग्रह रखते हैं, वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस मुद्दे पर सोशल मीडिया पर दूसरी तरह पेश आते हैं।

मैंने नरेंद्र मोदी के ट्विटर हैंडिल @narendramodi के फॉलोवर्स की 3,55,129 प्रतिक्रियाओं का अध्ययन किया। यह अध्ययन 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले का था। इस विश्लेषण से पता चला कि ट्रंप की तरह मोदी भी अक्सर ट्वीट करते हैं। अपनी चुनावी जीत वाले दिन से पहले के तीस दिनों में नरेंद्र मोदी ने 364 ट्वीट किए। जबकि राहुल गांधी ने सिर्फ़ 64 ट्वीट किए। ट्रंप से उलट प्रधानमंत्री मोदी कभी-कभार ही इस्लाम या मुस्लिम जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं। वे इस्लाम विरोधी या इस्लाम से घृणा पैदा करने वाले मीम (Meme) या लिंक को भी शेयर नहीं करते। लेकिन उनके फॉलोवर्स आराम से उनकी भाषणबाज़ी और भाषा समझ जाते हैं, जिसमें अक्सर हिंदू बहुसंख्यकवाद की भावनाएँ झलकती हैं।

मोदी कुछ भी ट्वीट करें या अपने भाषणों में कुछ भी बात करें, उनकी बात पर दी गई प्रतिक्रियाओं में हिंदू पहचान हावी रहती है। अगर वो विकास, कैंपेन या सरकारी नीतियों की भी बातें कर रहे होते हैं, तो भी उनके फॉलोवर्स मोदी की बात को ''हिंदू श्रेष्ठता'' से जोड़ते हैं।

सबसे ज़्यादा 1,25,000 प्रतिक्रियाएं ''जय श्री राम'',''हे मेरे प्रभु'',''वंदे मातरम्'' और ''ओम नम: शिवाय'' जैसे हिंदूवादी नारों की थीं। ''हर हर मोदी'' का नारा भी बेहद लोकप्रिय है। इस नारे को हर हर महादेव को मोड़कर बनाया गया है।

हिंदू नारों के अलावा प्रतिक्रियाओं में हिंदू बहुसंख्यकों के वंचित होने संबंधी प्रतिक्रियाएं भी थीं। इनमें से कुछ मोदी द्वारा विपक्ष पर हमले वाले ट्वीटों की प्रतिक्रिया में दिखाई पड़ती हैं, तो कुछ ट्वीट में कोई पृष्ठभूमि ही नहीं थी।

#StopHinduGenocide और #Hindusundersiege के हैशटैग बेहद आम रहे। इसी तरह विपक्षी पार्टियों, खासकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी, प्रियंका गांधी या ममता बनर्जी पर हिंदू विरोधी या मुस्लिमों से सहानुभूति रखने संबंधी प्रतिक्रियाएं सामने आईं। राहुल गांधी के नमाज पढ़ते हुए बनाए गए मीम (Meme) बेहद आम थे। कुछ मीम में राहुल गांधी को मुस्लिमों की तरह टोपी पहने, दाढ़ी रखे या कुरान पकड़े भी दर्शाया गया।

बड़ी संख्या में शेयर किए गए एक मीम में ममता बनर्जी को एक मुस्लिम महिला बताया गया था, जो गुप्त तौर पर मोदी को चुनाव जिताना चाहती है। इस मीम में बनर्जी हिजाब पहने हुए हैं और कहती हैं- ''किसी को मत बताना, पर अल्लाह की मर्ज़ी है कि मोदी फिर चुनाव जीतें।''

ईयान हार्वे लोपेज ने ''डॉग व्हिसल पॉलिटिक्स: स्ट्रैट्जिक रेसिज़्म, फेक पॉपुलिज़्म एंड द डिवाइडिंग ऑफ अमेरिका'' नाम से एक किताब लिखी है। किताब में इस तरह की राजनीति को ''डॉग व्हिसल पॉलिटिक्स'' का नाम दिया गया है। इस तरह की राजनीति में अल्पसंख्यकों और दूसरे वंचित तबकों पर खुल्लेआम नफ़रत नहीं फैलाई जाती, लेकिन ''गिरगिट की तरह रंग बदले हुए तरीकों'' को अपनाया जाता है। ताकि शोर होने की स्थिति में इससे इनकार किया जा सके।

लोपेज ने इस तरह की राजनीति की शुरूआत अमेरिका में 1980 में रोनाल्ड रीगन के राष्ट्रपति चुनाव के लिए कैंपेन से बताई है। उस दौर में रोनाल्ड रीगन कटाक्ष में कैडिलैक (एक लग़्जरी कार) चलाने वाली ''कल्याणकारी रानियों'' और हट्टे-कट्टे युवाओं द्वारा सरकारी छूट पर ''टी-बोन्स स्टीक्स (चर्बी वाले मांस में हड्डी का एक बड़ा हिस्सा)'' ख़रीदने की कहानियां सुनाया करते थे। सरकारी ख़र्चों वाली इन कल्याणकारी योजनाओं पर हाय-तौबा मचाते हुए, रीगन को कभी इनसे लाभ लेने वाली नस्ल के नाम का उल्लेख करने की ज़रूरत नहीं पड़ी। वह नस्लीय अल्पसंख्यकों के बारे में संदेश भेज रहे थे, जो एक स्तर पर सुनाई नहीं देता। लेकिन दूसरे स्तर पर साफ़ समझ में आता है। दरअसल रीगन ''डॉग व्हिसल'' बजा रहे थे।

लोपेज़ लिखते हैं कि डॉग व्हिसल राजनीतिक प्रत्याशियों के लिए उत्साह पैदा करता है, जो अपराध, प्रवासियों को रोकने और देश को अल्पसंख्यक घुसपैठ से बचाने का वायदा करते हैं। लेकिन यह लोग आख़िर में कार्पोरेशन को उद्योगों और वित्तीय बाजारों पर नियंत्रण दे देते हैं और सामाजिक फ़ायदों, जैसे शिक्षा के ख़र्च में कटौती करते हैं। यह अपने मतदाताओं को विश्वास दिला देते हैं कि कि अल्पसंख्यक ही उनके असली दुश्मन हैं और मतदाता उनके राजनीतिक एजेंडा को समझ ही नहीं पाते हैं। वह देख ही नहीं पाते कि किस तरह बढ़ती असमानता और पर्यावरणीय आपदाएं उनके जीवन पर हावी होती जा रही हैं।

जैसे-जैसे नागरिकता संशोधन अधिनियम विरोधी प्रदर्शन तेज़ होते जा रहे हैं, मोदी की ''डॉग व्हिसल'' राजनीति साफ़ होती जा रही है। दिसंबर में मोदी ने एक भाषण में कहा, ''जो लोग आग लगा रहे हैं, उन्हें उनके कपड़ों से पहचाना जा सकता है।''

एक मीडिया आउटलेट ने बताया कि प्रधानमंत्री मोदी ने कपड़ों के बारे में आगे विस्तार में बात नहीं की। लेकिन इस डॉग व्हिसल से जो संदेश फैला, उसमें मोदी की बात को मुस्लिमों से जोड़ा गया। जिसमें पूर्वाग्रह से भरी सांस्कृतिक संकल्पना थी, जिसके तहत टोपी और सलवार-कमीज़ में मुस्लिम आदमी आगज़नी करते, पत्थर फेंकते और पुलिस की गाड़ियों को जलाते हुए नज़र आते हैं।

ट्रंप मुस्लिमों के प्रति घृणा फैलाने वाली सामग्री को खुलेआम फैलाते हैं, वहीं मोदी इस तरह के संदेशों के लिए छुपा तरीक़ा अपनाते हैं। जब ज़रूरत पड़ती है तो दोनों इनकार भी करते हैं। लेकिन एक बात साझा है कि बहुसंख्यक श्रेष्ठता वाले अपने आधारों को इकट्ठा करने के लिए दोनों को डर दिखाने की ज़रूरत होती है।

लेखक प्लाट्सबर्घ की स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ़ न्यूयॉर्क के डिपार्टमेंट ऑफ़ कम्यूनिकेशन में पढ़ाते हैं। यह उनके निजी विचार हैं।

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

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