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भारत
राजनीति
बनारस में पीएम की रैलीः जनता के बुनियादी सवालों को गोल कर गए मोदी
पीएम मोदी ने 64 हजार करोड़ के आयुष्मान भारत हेल्थ इंफ्रास्टचर मिशन योजना को लांच किया, लेकिन जनता की मौज़ूदा तकलीफ़ों पर कोई चर्चा नहीं की। जिस इलाके में यह रैली आयोजित की गई थी वहां ज़्यादातर लोग महंगाई और बेरोज़गारी की मार से आहत नज़र आए, मगर दोनों मुद्दों पर मोदी खामोश रहे।
विजय विनीत
25 Oct 2021
Modi
बनारस की सभा में मंच का दृश्य।

उत्तर प्रदेश के वाराणसी में आयोजित प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली किसानों, मजदूरों और बेरोजगार नौजवानों के दर्द पर मरहम नहीं लगा सकी। जनता के बुनियादी मुद्दों को वह पूरी तरह गोल कर गए। देश को महामारियों से बचाने के लिए मोदी ने 64 हजार करोड़ के आयुष्मान भारत हेल्थ इंफ्रास्टचर मिशन को लांच किया, लेकिन लोगों की मौजूदा तकलीफों पर कोई चर्चा नहीं की। जिस इलाके में यह रैली आयोजित की गई थी, वहां ज्यादातर लोग महंगाई और बेरोजगारी की मार से आहत नजर आए, मगर दोनों मुद्दों पर मोदी खामोश रहे।

बनारस ने देखा है कि अब से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब-जब बनारस आते थे तो उनकी सभाओं में मौजूद लोग झूम उठते थे। अबकी उन्हें सुनने और देखने के लिए बहुत लोग जुटे, लेकिन भाषण से भीड़ का रिश्ता और श्रोताओं में जोश-खरोश नजर नहीं आया। पहले मोदी के हर शब्द पर तालियां बजती थीं और हर-हर मोदी के नारे लगते थे। इस बार तालियां भी नहीं के बराबर बजीं। भीड़ बुझी-बुझी सी नजर आई। भीड़ का पहले जैसा रुझान तो पल भर के लिए भी नहीं दिखा। दूसरी बात, इस बार प्रधानमंत्री की समूची शारीरिक भाषा (बॉडी लैंग्वेज) करिश्माई नजर नहीं आई। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने अपनी बनारस की रैली में जिस तरह का जादू दर्शकों पर चलाया था, वैसी कनेक्टिविटी इस सभा में नहीं दिखी।

बनारस के राजातालाब इलाके में जिस स्थान पर प्रधानमंत्री की सभा आयोजित की गई थी वहां सरकार की उपलब्धियों की तमाम बड़ी-बड़ी होर्डिंग्स लगाई गई थीं। अंधाधुंध प्रचार के जरिये रैली में आने वालों को यह समझाने की कोशिश की गई थी भाजपा सरकार ने उनके लिए सुविधाओं का खजाना खोल दिया है।

पीएम ने यहां करीब 5200 करोड़ की परियोजनाओं का लोकार्पण करने के बाद आयुष्मान भारत हेल्थ इंफ्रास्टचर मिशन का ऐलान किया। दावा किया, " यह मिशन महामारियों से निपटने और हेल्थ नेटवर्क को मजबूत  बनाने का समाधान है। गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए 600 जिलों में 35 हजार से ज्यादा नए बेड तैयार किए जाएंगे। सवा सौ जिलों में रेफरल सुविधाएं विकसित की जाएंगी। महामारियों से बचाव के लिए इको सिस्टम डेवलप किया जाएगा। यह काम दशकों पहले हो जान चाहिए था,  मगर नहीं हो सका। केंद्र और राज्य में वो सरकार है जो गरीबों, दलितों, पिछड़ों और समाज के कमजोर तबके के लोगों के बारे में सोचती है। पहले जनता का पैसा घोटालों में जाता था। यूपी में नौ नए मेडिकल कालेज खोले जा रहे हैं। गरीबों के बच्चे भी अब डाक्टर बन सकेंगे।"

बनारस की सभा में अपनी उपलब्धियों का बखान करते मोदी।

खेत-खलिहान और किसानों के मुद्दों को प्रधानमंत्री मोदी पूरी तरह गोल कर गए। बनारस के लोग चाहते थे कि वह आएं तो महंगाई-बेरोजगारी पर बात करें और कृषि बहुल इलाके के लोगों की मुश्किलें दूर करें, लेकिन उनके बुनियादी सवालों पर वह खामोश रहे। रैली में आए बच्चा सिंह, राजू पटेल, रेनू, कविता ने साफ-साफ कहा, " हम चाहते थे कि प्रधानमंत्री खाद-बीज, डीजल का दाम घटाएं। हमें सस्ती बिजली दिलाएं। बेरोजागारी दूर करने का ठोस उपाय बताएं और जिंदगी झंझावतों से मुक्ति दिलाएं। रैली में हमें ऐसा कोई समाधान नहीं मिला, जिससे हमारी तकलीफें कम हों।  

महंगाई की मार, आहत किसान

पीएम मोदी को सुनने के लिए उमड़ी भीड़ सचमुच आसमान छू रही महंगाई का सामाधान चाहती थी। मेहदीगंज में रिंगरोड के किनारे जिस स्थान पर पीएम की रैली आयोजित की गई थी उसी के चंद कदम दूरी पर है इंद्रावती का मकान। इंद्रावती खेतिहर किसान हैं। पशुपालन और सब्जियों की खेती से अपने छह बच्चों की परवरिश करती हैं। इन्हें इस बात का रंज है कि धान-गेहूं और सब्जियां सस्ती हो गईं, खाद-बीज व डीजल महंगा हो गया। आखिर कैसे होगी फसलों की सिंचाई और कितना खर्च करेंगे खाद-बीज पर? सब्जियों का हाल यह है कि वो पानी के भाव बिक रही हैं। धान-गेहूं को कोई पूछने वाला नहीं। सरकार को ओर से समर्थन मूल्य के हिसाब से हमारी उपज कभी नहीं बिकी। अबकी गेहूं की जगह सरसों की खेती करेंगे। जब कड़ुआ तेल होगा, तब पूड़ी खाएंगे। कड़ुआ तेल और रसोई गैस इतनी महंगी हो गया है कि हर कोई नकुवा गया है।"

खाद-बीज और डीजल की महंगाई का दुखड़ा सुनाती महिला किसान इंद्रावती।

इंद्रावती यहीं नहीं रुकतीं। कहती हैं, "मोदी की रैली के बाद आइएगा। हमारी भिंडी दो-तीन रुपये पसेरी (पांच किग्रा) के भाव बिकती है। टमाटर का रेट जानकर हैरान हो जाएंगे। पचास पैसे प्रति किग्रा का दाम भी नहीं मिलता। इस सरकार से तो सबका पेट भर गया है। योगी सरकार से हर कोई खौफजदा है। इसलिए हर किसी की जुबान बंद है। डर इस बात का है कि इस सरकार के खिलाफ मुखर होकर बोलने पर कोई केस-मुकदमा न हो जाए। रैली से पहले हमारे घर कई कमांडो पूछताछ करने आए थे। तभी से हम भयभीत हैं।"

इंद्रावती के घर पर मौजूद मन्नालाल ने ‘न्यूजक्लिक’ से कहा, " हम तो रोज रैली का मंच देख रहे हैं। इतना तामझाम फैलाने से अच्छा होता कि किसानों का कर्ज ही माफ कर देते। पहले कृषि ऋण पर 4 फीसदी ब्याज देना पड़ता था और अब 7 फीसदी हो गया है। आमदनी घटने से जिंदगी पहाड़ बन गई है। पुलिस की धमा-चौकड़ी देख मन में डर समा गया है। नंगा सच हमसे न बोलवाइए। सरकार के खिलाफ कुछ भी बोलने से हम बहुत डरते हैं। ई बात जरूर है कि पहले हम भाजपा को वोट देते थे, लेकिन अबकी दूसरे विकल्प पर जरूर सोचेंगे।"

महंगाई-बेरोज़गारी ही होगा चुनावी मुद्दा

मेहंदीगंज गांव की चट्टी पर एक चाय की दुकान में कई लोग इकट्ठा थे। गर्मा-गर्म सियासी बहसें चल रही थीं। हम पहुंचे तो सभी ने चुप्पी साध ली। बड़ी मुश्किल से बोलने के लिए तैयार हुए सूरज पटेल। कहा, "हमें महंगाई तोड़ रही है। हमारे गेहूं-चावल को कोई पूछने वाला नहीं है। उर्वरक और डीजल-पेट्रोल का दाम घटना चाहिए, लेकिन घटने का नाम ही नहीं ले रहा है।" तभी पास में बैठे दशरथ पाल बोलने लगे, "हुजूर, जेकर राज, ओकर दुहाई। हम बोलना ही नहीं चाहते। हमें जेल नहीं जाना है। हम भूल गए हैं कि हमारे कभी अच्छे दिन आएंगे।"

मेहंदीगंद में मजूरी करके अपने परिवार की आजीविका चलाने वाले हाजी रशीद ने हमारा ध्यान खींचा। बोले, "देश की स्थिति ठीक नहीं है। हम डेढ़ साल से बेरोजगार हैं। हमारे पास कोई काम नहीं है। महंगाई डायन सरीखी हो गई है। जब से बड़का मीटर (इलेक्ट्रानिक) लगा है तब से बिजली का बिल तीन गुना बढ़ गया है। जिंदगी बहुत कठिन हो गई है। बिजली का बिल और रसोई गैस का दाम तो मत पूछिए। महंगाई का तूफान थमने का नाम नहीं ले रहा है।"

टूट गया नागेपुर वालों का दिल

मेहंदीगंज के पास है पीएम नरेंद्र मोदी द्वारा गोद लिया गया गांव नागेपुर। इस गांव में घुसते ही ग्रामीणों को बैठने के लिए लोहे की कुछ कुर्सियां लगाई गई हैं। कुछ लोग यहां रैली पर चर्चा करते मिले। गाड़ी पर प्रेस लिखा देख सबकी आंखों की पुतलियां चमकने लगीं। कमलेश पटेल जोर-जोर बोलने लगे, "मोदी ने हमारा दिल तोड़ दिया है। हम क्यों जाएं रैली में। नागेपुर को देख लीजिए। कुछ भी नहीं बदली है इस गांव की तस्वीर। हमारा लोहिया गांव ही अच्छा था, जिसे पूर्व सीएम अखिलेश यादव ने बनवाया था। यहां नया कुछ है तो सिर्फ नंदघर, जिसका फायदा किसी को नहीं है।"

बातचीत बीच में प्रकाश पटेल की टीस उभरी। वह पास में ही जनरल स्टोर की दुकान चलाने हैं। बोले,  "हम लोगों ने मोदी से तरक्की की उम्मीद छोड़ दी है। नागेपुर में पानी की टंकी चालू हो गई है। यही काफी है।" पावरलूम पर कपड़े की बुनाई करने वाले मुन्नीलाल पटेल अपने घर ले गए और महीनों से बंद पड़े कारखाने को दिखाया। कहा, "भाजपा सरकार ने बिजली इतनी महंगी कर दी कि हमारी रोजी-रोटी ही छिन गई। पहले लूम चलाकर रोज दो-चार सौ रुपये कमा लेते थे। अब तो बिजली का महंगा बिल अदा करने के बाद घाटे में साड़ियां बेचनी पड़ रही हैं। बिजली का बिल कम नहीं हुआ तो हमारे सहित गांव के सभी बुनकर लाइन कटवाकर अपना लूम बेच देंगे।"

नागेपुर में धूल फांक रहा पावरलूम का कारखाना।

राजेंद्र पटेल और बबलू पटेल भी भाजपा सरकार की नीतियों से खासे नाराज दिखे। तल्ख स्वर में कहा,  "राजभर-पटेल बहुल इस गांव में अब तबाही का मंजर है। बनारसी साड़ियां अब चीन भी बनाने लगा है। फिर हमारी साड़ियों को कौन पूछेगा। बुनकरों की कमर तोड़ने के लिए फ्लैट रेट की जगह मीटर के हिसाब से बिजली का बिल वसूला जा रहा है। आसपास के लोग कहते हैं हमारा गांव मोदी का दुलारा है और हमीं सबसे ज्यादा संकट में हैं। बनारस में रविंद्रपुरी स्थित मोदी के दफ्तर में गए थे। पीएम से मिलने के लिए अर्जी दी थी। वादा किया गया था कि मोदी के लोग हमसे मिलवाएंगे, लेकिन अपना दुखड़ा नहीं सुना सकें। लगता है कि हमारी किसी को चिंता ही नहीं है। वोट लेने का वक्त आता है तो सभी दल लुभावनी बातें करते हैं और बाद में वो कभी दिखते ही नहीं।"

नज़रबंद कर दिए गए किसान नेता

प्रधानमंत्री मोदी की सभा को लेकर भाजपा सरकार इतनी डर गई थी कि किसान नेताओं के अलावा बनारस में विपक्ष के सभी दलों के नेताओं को उनके घरों में नजरबंद कर दिया गया था। रैली में खलल डालने की आशंका में करीब 125 लोगों को नोटिस जारी की गई थी। कमिश्नरेट में 70 और ग्रामीण इलाकों में 55 लोगों को नोटिस थमाया गया था। एक पखवाड़े से वाराणसी पुलिस ने किसी भी दल को राजनीतिक कार्यक्रम आयोजित करने की अनुमति नहीं दे रही थी।

भारतीय किसान यूनियन के लक्ष्मण प्रसाद मौर्य, नंदाराम शास्त्री, आदिब शेख, बाबू अली साबरी समेत बड़ी संख्या में किसान नेताओं को पुलिस ने कई रोज पहले हाउस अरेस्ट कर लिया था। पूर्वांचल किसान यूनियन के अध्यक्ष योगीराज पटेल और महासचिव चंद्र प्रकाश सिंह के घरों पर भारी पुलिस फोर्स भेजी गई। किसान नेता कामरेड लालमनी वर्मा भी नजरबंद कर दिए गए थे। मनरेगा यूनियन के संयोजक सुरेश राठौर, बाबू अली साबरी के घर पर पुलिस का पहरा था। इनके घरों पर पुलिस तब तक डटी रही, जब तक पीएम लौट नहीं गए। नजरबंदी के खौफ के चलते किसानों आंदोलन में अहम भूमिका अदा करने वाले चौधरी राजेंद्र सिंह, अफलातून समेत सभी प्रमुख नेता कई दिन पहले बनारस से कहीं बाहर चले गए अथवा भूमिगत हो गए।

पुलिस अफसर मोदी की रैली को लेकर इस कदर परेशान थे कि विपक्षी दलों के नेताओं को भी उन्होंने कई दिन पहले ही नजरबंद कर दिया था। सत्तारूढ़ दल पर तीखे व्यंग्यबाण चलाने के लिए चर्चित रहे हरीश मिश्र (बनारस वाला मिश्रा जी) कई दिन पहले पुलिस के खौफ से लापता हो गए। पूर्व मंत्री सुरेंद्र पटेल, सपा के जिलाध्यक्ष सुजीत यादव लक्कड़, महानगर अध्यक्ष विष्णु शर्मा, पूर्व विधायक अब्दुल समद अंसारी, राजू यादव, जितेंद्र यादव, पूजा यादव, अमन यादव, जितेंद्र यादव मलिक, वरुण सिंह समेत पार्टी के कई नेताओं के घर पुलिस पहरा देती रही। समाजवादी पार्टी पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ के महानगर सचिव अमन यादव के सामनेघाट स्थित घर पर पुलिस ने पहरा बैठा दिया। वहीं सीरगोवर्धनपुर निवासी सपा नेता अजय यादव को भी नजरबंद कर लिया गया। इनके घरों के बाहर पहले ही नोटिस चस्पा कर दी गई थी।

आम आदमी पार्टी के प्रदेश सहप्रभारी अभिनव राय, जिला वरिष्ठ उपाध्यक्ष विनोद जायसवाल, जिला महासचिव अखिलेश पांडेय, छात्र विंग के महानगर अध्यक्ष रघुकुल यथार्थ, रोहनिया प्रभारी पल्लवी वर्मा सहित अन्य कई कार्यकर्ताओं को नोटिस भेजी गई। जिलाध्यक्ष कैलाश पटेल, पूर्व जिलाध्यक्ष मनीष गुप्ता के घर पर पुलिस तैनात थी।

आम आदमी पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता मुकेश सिंह ने न्यूजक्लिक से कहा, "हमारी पार्टी के सभी प्रमुख पदाधिकारियों को उनके घरों में नजरबंद किया गया था। घर के अंदर ही कैद रहने की हिदायत दी गई, जबकि हम मोदी की रैली का विरोध करना ही नहीं चाहते थे।" किसानों और विपक्षी दलों के नेताओं को मिले नोटिस और नेताओं की नजरबंदी के फरमान पर पूर्व विधायक अजय राय और महानगर अध्यक्ष राघवेंद्र चौबे ने रोष जताया। अजय राय ने कहा, " यूपी में आपातकाल जैसी स्थिति है। भाजपा अब कांग्रेस की आवाज से ही डर रही है। लोकतंत्र में विपक्ष के प्रति ओछी मानसिकता रखना निंदनीय है।"

राजातालाब के रंजीत पटेल इस बात से नाराज दिखे कि पुलिस ने सुरक्षा नाम पर राजातालाब और आसपास के सभी बाजार तथा स्कूलों को पूरी तरह बंद करा दिया। वह कहते हैं, " मोदी की रैली में भीड़ जुटाने के लिए बाजार और शिक्षण संस्थाएं बंद कराई गईं। टीचर, लेखपाल, सेक्रेटरी, आंगनबाड़ी कार्यकर्त्री, आशा बहू, सफाई कर्मी आदि कर्मचारी तो लगाए ही गए थे, बैंकर्स को हिदायत दी गई थी कि वो उन सभी महिला समूहों, आवास और शौचालय के लाभार्थियों को भी जुटाएं ताकि भीड़ देखकर पीएम मोदी खुश हो जाएं। अगर किसी सियासी दल की रैली को छोटी दिखानी थी तो ईमानदारी से उन लोगों को बुलाया जाता जो सचमुच मोदी को सुनने और देखने के लिए इच्छुक थे। सरकारी विभागों के कर्मचारियों दफ्तरों से हांककर रैली में भेजने का औचित्य समझ में नहीं आ रहा है।"  

दुखी नजर आए किसान

मोदी की रैली के लिए 119 किसानों की जमीन ली गई थी वो काफी दुखी नजर आए। इन किसानों की करीब 50 बीघा जमीन को समतल करके सभा स्थल तैयार किया गया था। मेहदीगंज के जिन किसानों की जमीनें रैली के लिए ली गई थीं, वो कम मुआवजा मिलने की वजह से काफी दुखी थे। मेहदीगंज के दशरथ पाल और इनके भाइयों की करीब साढ़े पांच बीघा जमीन पर खड़ी धान की फसल कई दिन पहले काटवा दी दी गई थी।

दयाराम पटेल

दयाराम पटेल अपने घर में उदास बैठे थे। रैली में क्यों नहीं गए, पूछने पर बिफर पड़े। बोले, "हम तो तबाह हो जाएंगे। रैली के लिए जमीन लेते समय किसानों को यह नहीं बताया गया था कि जमीन को समतल करने के लिए हमारे खेतों की उपजाऊ मिट्टी ही निकाल ली जाएगी। हम रबी की फसल की तैयारी कैसे करेंगे?  जिन खेतों में मिट्टी ठोस होकर जमा हो जाएगी उसे उपजाऊ कैसे बनाया जाएगा, इसकी चिंता किसी को नहीं है। किसानों के खेतों की उपजाऊ मिट्टी लौटाने का वादा तो किया गया है, लेकिन यह प्रक्रिया कब और कैसे शुरू होगी यह नहीं बताया गया।"

दयाराम कहते हैं, "एक बीघे में धान की फसल का मुआवजा 19,400 रुपये दिया गया, जबकि उन्हें 16 कुंतल फसल की कीमत मिलनी चाहिए।  मुआवजा मिला सिर्फ 10 कुंतल की दर से। नई फसल उगाने के लिए जी-तोड़ मेहनत करनी होगी।" दरअसल, पीएम की रैली के लिए खड़ी फसल समय से पहले काटे जाने पर मेहंदीगंज के किसानों ने विरोध शुरू कर दिया था। किसानों का कहना था कि उन्हें तय मानक के मुताबिक पूरा मुआवजा नहीं दिया गया।

मेहंदीगंज के किसानों के खेतों से निकाली गई उपजाऊ मिट्टी के ढूहे।

सामाजिक कार्यकर्ता राजकुमार गुप्ता किसानों का पक्ष लेते हुए कहते हैं, " राजातालाब और खजुरी में पीएम की रैलियां हुई थी, जहां दूसरी फसल उगाने के लिए किसानों को काफी जद्दोजहद करनी पड़ी थी। कृषि विभाग फिर से किसानों के खेतों की पड़ताल करे और किसानों को होने वाले नुकसान की भरपाई कराई जाए। रैली के लिए जिस तरह से खेतों की उपजाऊ मिट्टी निकाली गई है उससे सारे मित्र कीट नष्ट हो गए हैं। जाहिर है कि अगली फसल की उत्पादकता घट जाएगी। साथ ही खेती की लागत बढ़ जाएगी। मिट्टी की ऊपरी परत कड़ी होने से जलधारण क्षमता में कमी आएगी। जल स्रोतो पर दबाव भी बढ़ जाएगा। साथ ही जमीन के बहुमूल्य पोषक तत्व नष्ट हो जाएंगे।"

फिर खींची दी जुमलों की लकीर

बनारस में मोदी की रैली पर टिप्पणी करते हुए बनारस के जाने-माने पत्रकार प्रदीप श्रीवास्तव कहते हैं, " पीएम नरेंद्र मोदी अपने संसदीय क्षेत्र में आए, लेकिन कोरोना दम तोड़ऩे वाले अनगिनत लोगों की मौतों पर दो शब्द भी नहीं बोले। उनका सिर्फ यह कहना कि महामारियों से निपटने के लिए हम बड़ा इंफ्रास्टक्टर खड़ा करने जा रहे हैं, लेकिन उन्हें ऐसा करने से सात सालों तक कौन रोका था। पीएम के भाषणों को सुनने-समझने से लगता है कि उन्होंने एक बार फिर जुमलों की एक बड़ी लकीर खींची है। किसानों-मजदूरों और बेरोजगार नौजवानों की मुश्किलों के समाधान पर एक शब्द न बोलना यह साबित करता है कि यह सरकार किसानों, मंहगाई और बेरोजगारी और भ्रष्ट्राचार जैसे ज्वलंत मुद्दों पर पूरी तरह संवेदनहीन है। यूपी में जो नए मेडिकल कालेज खोले जा रहे हैं उन्हें कब अडानी-अंबानी के हवाले किया जाएगा, लगे हाथ इसकी भी घोषणा कर देनी चाहिए थी।"

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