NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
पीएम को राजनीतिक लाभ के लिए पंजाब और किसानों के ख़िलाफ़ भावनाएं भड़काने से बाज़ आना चाहिए
पंजाब का 5 जनवरी का नाटकीय घटनाक्रम आने वाले दिनों की बड़ी घटनाओं का ट्रेलर साबित हो सकता है।
लाल बहादुर सिंह
07 Jan 2022
Punjab security lapse

क्या पंजाब में राष्ट्रपति शासन लागू होगा ?  इसका विधानसभा चुनावों पर और किसान-आन्दोलन पर क्या असर होगा ?

क्या पंजाब में यह confrontation और बढ़ेगा ? सीमावर्ती सिख बहुल राज्य पंजाब में ऐसे development का पूरे देश की राजनीति पर क्या असर पड़ेगा ?

यह सच है कि प्रधानमंत्री की सुरक्षा बेहद संवेदनशील मसला है। प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए खतरा पैदा होने के पूरे देश के लिए implications हैं। पूरे मामले पर पंजाब सरकार ने उच्चस्तरीय जांच बैठाई है, गृह-मंत्रालय जांच कर ही रहा है। उधर मामला सुप्रीम कोर्ट में भी पहुंच गया है। जाहिर है सच निष्पक्ष जांच से ही सामने आ सकता है- यह साजिश थी, चूक थी अथवा कोई चुनावी स्क्रिप्ट ?

पर प्रथम दृष्टया ही यह सवाल उठता है कि अगर सचमुच कोई साजिश या चूक है तो प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए केंद्रीय तौर पर जिम्मेदार एसपीजी तथा IB, RAW जैसी एजेंसियां जिसके मातहत हैं, वह गृह-मंत्रालय, इसकी जिम्मेदारी से कैसे बच सकता है ?  और अब तो केंद्र के एक नए notification के अनुसार बॉर्डर से 50 किलोमीटर अंदर तक BSF का jurisdiction है।

बहरहाल, कुछ तथ्य निर्विवाद हैं, मसलन, प्रधानमंत्री का हेलीकॉप्टर से वहां जाने का कार्यक्रम खराब मौसम के कारण रद्द कर दिया गया और अचानक उनका काफिला सड़क मार्ग से हुसैनीवाला शहीदस्थल की ओर चल पड़ा। क्या यहां राज्य-सरकार और पुलिस से समुचित कोआर्डिनेशन हुआ और SPG तथा पुलिस के उस मार्ग को sanitise करने का पर्याप्त समय दिया गया ? 

जो भी हो लाख टके का सवाल यह है कि क्या प्रधानमंत्री सचमुच मानते हैं कि विरोध कर रहे किसानों से उनकी जान को खतरा था ? क्या इस तरह का threat perception और intelligence input सरकार के पास था। यदि हां, तो फिर इस तरह अचानक सड़क मार्ग से जाने का खतरा क्यों मोल लिया गया ? यदि नहीं तो फिर महज कुछ किसानों के सड़क पर आ जाने और 20 मिनट जाम में फंस जाने से उनकी जान को खतरा कैसे हो गया ?

सुरक्षा-व्यवस्था में जो भी चूक हुई हो, उसकी जवाबदेही तय करना और फिर ऐसा न हो, इसे सुनिश्चित करना एक बात है, पर पूरे मामले को भाजपा नेतृत्व और मीडिया द्वारा इस तरह पेश किया जा रहा है जैसे सचमुच कोई हमला हो गया हो अथवा हमले की साजिश का उनके पास कोई पुख्ता सबूत मिल गया हो। जाहिर है इसका इशारा स्वयं प्रधानंत्री ने किया जब बकौल ANI  उन्होंने पंजाब के पुलिस अफसरों से कहा कि अपने CM को थैंक यू कहना कि मैं जिंदा वापस लौट सका ! भाजपा नेतृत्व की ओर से स्मृति ईरानी ने बेहद भावुक अंदाज़ में पंजाब सरकार और विपक्ष पर संगीन आरोप लगाए। UP और MP के मुख्यमंत्री उनके जीवन की रक्षा के लिए पूजा अर्चना, महामृत्युंजय जाप आदि में लग गए, प्रधानमन्त्री ने राष्ट्रपति से मिलकर इसके बारे में ब्रीफ किया। 

पब्लिक डोमेन में उपलब्ध तमाम तथ्यों और विभिन्न स्रोतों से मिल रही सूचनाओं के आधार पर जो अस्ल picture बन रही है, वह यह है कि कई किसान संगठन अपनी मांगों को लेकर कई दिन पहले से प्रधानमंत्री की रैली के विरोध का ऐलान किये थे और उस दिन भी सड़क पर उतरे हुए थे। (वैसे इस कॉल में संयुक्त मोर्चा में शामिल जोगिंदर सिंह उगराहा, डॉ0 दर्शन पाल या दल्लेवाल के नेतृत्व वाली प्रमुख किसान यूनियनें शामिल नहीं थीं।)

उन्हीं में से एक संगठन भारतीय किसान यूनियन  (क्रांतिकारी ) का एक जत्था वहां पहले से प्रोटेस्ट में बैठा हुआ था और जैसा किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा, वे प्रधानमंत्री के काफिले को रोकने के लिए नही आये थे, यह मात्र संयोग था कि प्रधानमंत्री का काफिला उसी रुट पर आ गया। किसानों को तो यह मालूम था कि प्रधानमंत्री हेलीकॉप्टर से जा रहे हैं। इसीलिए उस समय जब अधिकारियों ने प्रधानमंत्री के आने की बात की तो किसानों को उस पर विश्वास ही नहीं हुआ। अनजाने में वहां बैठे किसानों का प्रोटेस्ट वैसे भी PM के काफिले से इतनी दूर था कि   physically harm करने की बात कोरी गप्प के सिवा कुछ नहीं है। प्रधानमंत्री के काफिले के आसपास तो भाजपा के झंडे लिए लोगों के वीडियो वायरल हो रहे हैं।

यहां एक बुनियादी democratic principle का सवाल भी खड़ा होता है। क्या वहाँ प्रधानमंत्री की सुरक्षा के नाम पर रास्ता खाली कराने के लिए किसानों पर अचानक भारी बल प्रयोग करना-लाठी, गोली चलाना उचित होता,  इसमें जान-माल की हानि की परवाह किये बिना ?

यह बात भी सामने आ चुकी है कि प्रधानमंत्री जिस रैली में जा रहे थे उस मैदान में सम्मानजनक संख्या भी नहीं थी, खाली कुर्सियों की फोटो/वीडियो दोपहर से ही वायरल हो रही थीं। क्या यह सुरक्षा का हौवा नैरेटिव बदलने की सोची समझी योजना के तहत खड़ा किया गया ?

आखिर बिना किसी ठोस तथ्य के, अधिक से अधिक जो मामला परिस्थितिजन्य और संयोगवश हुई गलती का है, उसे हत्या की सजिश से जोड़कर इस तरह का भावनात्मक माहौल क्यों बनाया जा रहा है ?

क्या इसकी आड़ में पंजाब में राष्ट्रपति शासन लागू करने की किसी योजना पर काम हो रहा है। क्या यह किसान-आंदोलन को खालिस्तानी प्रचारित कर कुचल देने के पुराने नैरेटिव का ही जारी रूप है ! प्रधानमंत्री और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरे का नैरेटिव खड़ाकर, क्या यह सिख विरोधी माहौल बनाकर विधानसभा चुनावों, सर्वोपरि UP में चुनाव को ध्रुवीकृत करने की रणनीति है ? क्या, लखीमपुर में ठीक इसी रणनीति पर अमल करने वाले अजय मिश्र टेनी को इसीलिए मोदी-शाह से अभयदान मिला हुआ है ?

जाहिर है, दलगत  short-term राजनीतिक फायदे के लिए यह सब होता है तो राष्ट्रीय एकता और धर्मनिरपेक्ष लोकतन्त्र के लिए इसका अंजाम विनाशकारी हो सकता है। इतिहास साक्षी है, राजनीतिक लाभ के लिए भावनाएं भड़काने का खेल बॉर्डर स्टेट पंजाब में बेहद खतरनाक सम्भावनाएं लिए हुए है।

1980 के दशक में इंदिरा गांधी ने पंजाब में उभरते किसान-आंदोलन और विपक्ष की चुनौती से निपटने के  लिए एकदम  इसी पैटर्न पर अंधराष्ट्रवादी भावनात्मक उन्माद 

की आत्मघाती रणनीति पर अमल किया था, जिसने अभूतपूर्व त्रासदी को जन्म दिया था। उसके भयावह दंश को पूरे देश ने दशकों तक झेला। 

जाहिर है तब से गंगा-सतलज में बहुत पानी बह चुका है। पुरानी रणनीति से अब संकीर्ण  राजनीतिक लाभ भी नहीं होने वाला है, न ही किसान-आंदोलन पीछे हटने वाला है।

इस पूरे प्रकरण का सुखद side-effect यह हुआ है कि पंजाब चुनाव को लेकर पैदा हुए मतभेदों से ऊपर उठते हुए पूरा संयुक्त मोर्चा फिर चट्टान की तरह एकताबद्ध हो गया है। बलबीर सिंह राजेवाल और चढूनी समेत 9 मेम्बरी कमेटी ने अपने बयान में कहा है," यह बहुत अफसोस की बात है कि अपनी रैली की विफलता को ढकने के लिए प्रधानमंत्री ने "किसी तरह जान बची" का बहाना लगाकर पंजाब प्रदेश और किसान आंदोलन दोनों को बदनाम करने की कोशिश की है। सारा देश जानता है कि अगर जान को खतरा है तो वह किसानों को अजय मिश्र टेनी जैसे अपराधियों के मंत्री बनकर छुट्टा घूमने से है। संयुक्त किसान मोर्चा देश के प्रधानमंत्री से यह उम्मीद करता है कि वह अपने पद की गरिमा को ध्यान में रखते हुए ऐसे गैर जिम्मेदार बयान नहीं देंगे। "

जाहिर है किसान-आंदोलन की चुनौती बनी हुई है और बनी रहेगी। सरकार को उसका समुचित समाधान करना चाहिए। उससे निपटने और संकीर्ण राजनीतिक लाभ के लिए भावनाएं भड़काने के खतरनाक खेल से    प्रधानमंत्री को बाज आना चाहिए !

लाल बहादुर सिंह इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं। व्यक्त विचार निजी हैं।

punjab
Punjab security lapse
Narendra modi
Charanjit Singh Channi
Congress
BJP
Modi Govt
PM Modi Rally

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

भारत के निर्यात प्रतिबंध को लेकर चल रही राजनीति


बाकी खबरें

  • hisab kitab
    न्यूज़क्लिक टीम
    लोगों की बदहाली को दबाने का हथियार मंदिर-मस्जिद मुद्दा
    20 May 2022
    एक तरफ भारत की बहुसंख्यक आबादी बेरोजगारी, महंगाई , पढाई, दवाई और जीवन के बुनियादी जरूरतों से हर रोज जूझ रही है और तभी अचनाक मंदिर मस्जिद का मसला सामने आकर खड़ा हो जाता है। जैसे कि ज्ञानवापी मस्जिद से…
  • अजय सिंह
    ‘धार्मिक भावनाएं’: असहमति की आवाज़ को दबाने का औज़ार
    20 May 2022
    मौजूदा निज़ामशाही में असहमति और विरोध के लिए जगह लगातार कम, और कम, होती जा रही है। ‘धार्मिक भावनाओं को चोट पहुंचाना’—यह ऐसा हथियार बन गया है, जिससे कभी भी किसी पर भी वार किया जा सकता है।
  • India ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    ज्ञानवापी विवाद, मोदी सरकार के 8 साल और कांग्रेस का दामन छोड़ते नेता
    20 May 2022
    India Ki Baat के दूसरे एपिसोड में वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश, भाषा सिंह और अभिसार शर्मा चर्चा कर रहे हैं ज्ञानवापी विवाद, मोदी सरकार के 8 साल और कांग्रेस का दामन छोड़ते नेताओं की। एक तरफ ज्ञानवापी के नाम…
  • gyanvapi
    न्यूज़क्लिक टीम
    पूजा स्थल कानून होने के बावजूद भी ज्ञानवापी विवाद कैसे?
    20 May 2022
    अचानक मंदिर - मस्जिद विवाद कैसे पैदा हो जाता है? ज्ञानवापी विवाद क्या है?पक्षकारों की मांग क्या है? कानून से लेकर अदालत का इस पर रुख क्या है? पूजा स्थल कानून क्या है? इस कानून के अपवाद क्या है?…
  • भाषा
    उच्चतम न्यायालय ने ज्ञानवापी दिवानी वाद वाराणसी जिला न्यायालय को स्थानांतरित किया
    20 May 2022
    सर्वोच्च न्यायालय ने जिला न्यायाधीश को सीपीसी के आदेश 7 के नियम 11 के तहत, मस्जिद समिति द्वारा दायर आवेदन पर पहले फैसला करने का निर्देश दिया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License