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पीएम किसान योजना : इसे बेहतर तरीक़े से लागू करने की ज़रूरत है
योजनाओं को सिर्फ़ अच्छे ढंग से ड्राफ़्ट करने की नहीं ज़रूरत नहीं होती, बल्कि उन्हें ज़मीन पर लागू किया जाना ज़्यादा ज़रूरी होता है।
प्रखर रघुवंशी
15 Jan 2020
पीएम किसान योजना

दुनियाभर में सरकारों के लिए किसान प्राथमिकता हैं। अमेरिका में किसानों के साथ काम करने वाले लोगों के लिए एक ट्रेनिंग प्रोग्राम चलाया जा रहा है, ताकि किसानों के तनाव को पहचान की जा सके और उन्हें पेशेवर मदद मिल सके। भारत में भी सरकार ने किसानों की सहायता के लिए क़दम उठाए हैं। हाल में घोषणा हुई कि ''प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि या पीएम- किसान'' के तहत मिलने वाले पैसे की चौथी किस्त किसानों के आधार से जुड़े बैंक अकाउंट में पहुंच जाएगी।

यह योजना 100 फ़ीसदी केंद्र सरकार से प्रायोजित है। 2019 के फ़रवरी में लॉन्च की गई इस योजना में किसानों को किस्तों में सालाना 6,000 रुपये की मदद मिलती है। इस योजना का फ़ायदा पुरानी तारीख़ से दिया जा रहा है। इसके लिए कटऑफ़ डेट एक दिसंबर 2018 रखी गई। वहीं योजना का लाभ उठाने वाले लोगों की पहचान के लिए कटऑफ़ डेट एक फ़रवरी 2019 है। अगर ज़मीन के मालिकाना हक़ में कोई बदलाव होता है, तब योजना के फ़ायदों का भी हस्तांतरण कर दिया जाएगा।

इस योजना में जिस ''परिवार'' का ज़िक्र है, उसमें पति-पत्नी और नाबालिग़ बच्चे शामिल हैं। 2018-19 में ज़रूरतमंदों की संख्या का आंकलन कृषि जनगणना ''2015-16'' के आधार पर किया गया है। यह संख्या 12.5 करोड़ है, जिसमें अच्छी स्थिति वाले किसानों को शामिल नहीं किया गया है। वित्तवर्ष 2018-19 में इस योजना के लिए बीस हज़ार करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था। माना जा रहा है कि 2019-20 में इस योजना पर 75,000 करोड़ रुपये ख़र्च किए जाएंगे। 2019-20 में योजना का लाभ लेने के लिए आधार कार्ड ज़रूरी कर दिया गया, जबकि 2018-19 में कुछ दूसरे दस्तावेज़ भी मान्य थे। हालांकि आधार की अनिवार्यता से फ़िलहाल असम, मेघालय और जम्मू-कश्मीर को 31 मार्च 2020 तक बाहर रखा गया है। परिवारों की पहचान को छोड़कर, इस योजना के सभी हिस्सों को केंद्र लागू करेगा। इस योजना को ''सेंट्रल प्रोजेक्ट मॉनिटरिंग यूनिट'' और कैबिनेट सेक्रेटरी की अध्यक्षता वाली ''मॉनिटरिंग कमेटी'' लागू करेगी।

इस योजना का उद्देश्य छोटे और सीमांत (SMFs) किसानों की आय बढ़ाना है। ऐसे किसान जिनके पास पांच एकड़ से कम ज़मीन है, उन्हें इसका लाभ मिलेगा। इसका लक्ष्य किसानों के लागत मूल्य को कम करना है, ताकि महाजनों और सूदख़ोरों के चंगुल से उन्हें बचाया जा सके। इस सरकार का डायरेक्ट बेनेफ़िट ट्रांसफ़र या डीबीटी में बहुत विश्वास है। योजना को लागू करने के पीछे यह कारण भी हो सकता है। बहुत से लोगों का मानना है कि यह योजना यूनिवर्सल बेसिक इनकम (यूबीआई) की तरफ़ पहला क़दम है। यूबीआई से लोगों को अचानक आय के गिरने से सुरक्षा प्रदान की जाएगी।

सीमांत किसानों के लिए एक तय आय अर्थव्यवस्था को भी फ़ायदा पहुंचाएगी। लेकिन इस योजना के दूसरे पहलू पर भी ध्यान देने की ज़रूरत है। योजना से मिले पैसों को लोग ज़मीन पर लगाने के बजाए दूसरे कामों में उपयोग कर सकते हैं। अगर इस योजना में मिलने वाले फ़ायदों के लिए कुछ ज़रूरी सुरक्षा उपाय नहीं किए गए, तो योजना के पैसों को लोग शराब में भी उड़ा सकते हैं।

योजना को लागू करने से जुड़ी कुछ समस्याएं भी सामने आई हैं। हर महीनों का एक निश्चित काल है, जब तीन बार साल में पैसा दिया जाएगा। लेकिन अगर कोई किसान साल के बीच में जुड़ता है, तो उसे उस साल मिले पिछले फ़ायदों से हाथ धोना पड़ेगा। आंकडों से भी पता चला है कि लोग इस योजना के बारे में अभी जागरुक नहीं हैं। उन्हें जागरुक करने और योजना को सुचारू तरीक़े से चलाने में वक़्त लग रहा है।

केंद्रीय कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक़, 2019 में अक्टूबर के अंत में अभी तक 7.62 करोड़ लोग इस योजना से जुड़े हैं। यह 12.5 करोड़ किसानों के तय लक्ष्य से काफ़ी कम है। साथ ही इस योजना का लाभ केवल उन किसानों को मिलेगा जो दो हेक्टेयर तक का खेत जोत रहे हैं। सरकार ने किराये से खेती करने वालों और ज़मीन विहीन मज़दूरों को योजना से अलग रखा है।

भारत में डीबीटी स्कीम को लागू करने के लिए आधार एक शाप है। योजना में आधार को अनिवार्य तौर पर लागू किए जाने से नवंबर, 2019 तक छूट दी गई थी। सरकार ने बैंक अकाउंट को आधार से जोड़ने के लिए बहुत ज़ोर लगाया। लेकिन किसानों पर इतनी कड़ी शर्त लगाना जल्दबाज़ी है। क्योंकि अभी भी बहुत सारे बैंक अकाउंट भी आधार से नहीं जोड़े गए हैं।

पीएम-किसान योजना में ओडिशा सरकार द्वारा पिछले नवंबर में लागू की गई केएएलआईए (कृषक असिस्टेंस फॉर लाइवलीहुड एंड इनकम ऑगमेंटेशन) स्कीम से बहुत कुछ सीखा जा सकता है। इस योजना में सीमांत और छोटे किसानों को सालाना दो किस्तों में पांच-पांच हज़ार (कुल दस हज़ार) रुपये की मदद दी जाती है। 

पीएम-किसान योजना को अभी बेहतर बनाने की ज़रूरत है। कोई भी योजना, इसका ख़ाका बनाने वालों से ज़्यादा लागू करने वाले अधिकारियों पर अधिक निर्भर करती है। इस बीच फ़ायदों को लेने की शर्तों को आसान बनाया जा सकता है। योजना की मद को बढ़ाए जाने की भी ज़रूरत है। कुछ समय पहले ख़बर आई थी कि मद को बढ़ाकर आठ हज़ार रुपये किया जाएगा। लेकिन इस पर अब कोई चर्चा ही नहीं है। साथ ही किसान पंजीकरण का तरीक़ा भी सरल किया जाना चाहिए। पिछले एक साल में, जबसे यह योजना लागू हुई है, तबसे दस करोड़ किसानों का पंजीकरण किया जा सकता था। लेकिन अब तक सिर्फ़ 7.62 करोड़ किसानों का ही पंजीकरण किया गया, जो काफ़ी कम रहा। पिछले साल यह साफ़ हो गया कि दूसरी किस्त में सिर्फ़ 21 फ़ीसदी किसानों को पैसा मिला। आख़िर में अपने राजनीतिक मतभेदों को किनारे रखकर राज्य सरकारों को इस योजना को लागू करना चाहिए। राजनीतिक मतभेदों से सिर्फ़ योजना को लागू करने में देरी हो सकती है।

लेखक नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी जोधपुर के छात्र हैं। यह उनके निजी विचार हैं।

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