NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
इस महामारी ने भारत को 'अनिश्चितता की स्थिति' में डाल दिया है
हमारा नेतृत्व इस संकट के समय में भी घुमा फिराकर बातें कर रहा है, वीडियो कॉन्फ़्रेंस और ट्विटर के ज़रिये अपनी बातें सामने रखते हुए किसी कुलीन वर्ग की तरह पेश आ रहा है।
एम. के. भद्रकुमार
20 Jul 2020
COVID Lockdown
केरल के तिरुवनंतपुरम के पास मछली पकड़ने वालों का पूनतुरा गांव, जहां कोविड-19 महामारी के सामुदायिक संक्रमण की सूचना है।

केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने शुक्रवार को सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया कि राज्य के कुछ तटीय क्षेत्रों में सामुदायिक संक्रमण (community transmission) शुरू हो गया है। संक्षेप में, पिनाराई ने वही बात कह दी है,जिसे अखिल भारतीय स्तर पर 'बेहद गुप्त' रूप से छुपाया जा रहा है। मुख्यमंत्री ने एक ऐसे संवेदनशील मुद्दे को खुलकर सामने रख दिया है, जिसे दूसरे मुख्यमंत्री स्वीकार करने से बच रहे हैं।

मगर, सवाल है कि जब शासक ही इस तरह के संवेदनशील मुद्दों को लेकर नकार वाले मोड में हों, तो इस महामारी का मुकाबला कैसे किया जा सकता है? इस मामले में सच्चाई तो यही है कि हमारे देश में सामुदायिक संक्रमण कुछ समय पहले ही शुरू हो चुका है और यह हाल ही में केरल में भी दिखाई देने लगा है। पिनाराई इस बढ़ रही विश्वव्यापी महामारी के बारे में लोगों को शिक्षित करने के लिए व्यक्तिगत स्तर पर रोज़-रोज़ ब्रीफ़ींग कर रहे हैं।

हक़ीक़त तो यही है कि इस संकट की गंभीरता को लेकर जबतक जनता में जागरूकता नहीं आयेगी, तबतक आप महामारी से भला कैसे लड़ सकते हैं? इस समय केरल में यह सामुदायिक संक्रमण मछली पकड़ने वाले उन गांवों तक ही सीमित है, जहां सोशल डिस्टेंसिंग के मानदंडों को लागू कर पाना मुश्किल है, क्योंकि मछुआरों में वे ‘प्रवासी श्रमिक’ भी शामिल हैं,जो वहां-वहां जाते हैं, जहां-जहां मछली पकड़े जाने की उन्हें अच्छी संभावना दिखती है। इसलिए, मछुआरों को उन पड़ोसी राज्यों में जाने से रोकने के लिए चुनिंदा तटीय क्षेत्रों में 'ट्रिपल लॉकडाउन' को लगाना ज़रूरी हो गया है, जहां यह महामारी फैल रही है।

क्या प्रधानमंत्री मोदी के लिए इस बात का ऐलान करने का वक्त अभीतक नहीं आ पाया है कि सामुदायिक संक्रमण शुरू हो गया है? बेशक, यह ख़बर अच्छी नहीं है। लेकिन, भारत में संक्रमित लोगों की संख्या ने गुरुवार को 10 लाख के आंकड़े को पार कर लिया है।

अगर संक्रमण की यही दर रही, तो बैंगलोर स्थित प्रतिष्ठित भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) द्वारा की गयी उस भविष्यवाणी को आख़िर कैसे हल्के ढंग से लिया जा सकता है कि संक्रमित मामलों की संख्या 1 सितंबर तक 35 लाख से ज़्यादा हो जायेगी और 1 नवंबर तक यह बढ़कर 1 करोड़ 20 लाख (30  लाख से ज़्यादा सक्रिय 'मामले और 5 लाख मौतों की संख्या) हो सकती है?  

जाने-माने वैज्ञानिकों के एक समूह द्वारा किये गये आईआईएससी अध्ययन में कहा गया है कि 1 जनवरी 2021 के नये साल तक भारत में संभवतः 3 करोड़ संक्रमित मामले (60  लाख से ज़्यादा ‘सक्रिय मामले' और 10 लाख लोगों की मौत) होंगे। अनुमान है कि अगले साल मार्च तक यह महामारी 'चरम' तक पहुंच जाए।

यह एक ऐसा अनुमान है, जो भयंकर विध्वंस की आशंका जताता है। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय एक ऐसे संकट की आशंका जता रहा है, जो बड़े पैमाने पर नियंत्रण से बाहर हो सकता है और जो उस भारत पर नज़दीकी नज़र बनाये हुआ है, जहां दुनिया की आबादी का छठा भाग रहता है। शनिवार को बीबीसी रेडियो वर्ल्ड सर्विस पर प्रसारित न्यूज़आवर कार्यक्रम में महामारी के आगोश में आ रहे भारत को लेकर अहम चर्चायें कीं। उन चर्चा के मुख्य अंश इस प्रकार था:

• जिस दर पर भारत में संक्रमण बढ़ रहा है, वह 'चिंताजनक' है।

• कई और ऐसे संक्रमण हैं, जिन्हें आधिकारिक आंकड़ों से परे गिना जाना चाहिए।

• मुंबई और दिल्ली जैसे बड़े शहर सबसे ज़्यादा प्रभावित हैं, लेकिन यह महामारी दूसरे शहरों और क़स्बों तक भी फैल रही है और कुछ क्षेत्रों में लॉकडाउन फिर से लगाया जा रहा है।

• दिल्ली की स्थिति तो ‘बिलकुल ही ख़राब’ है, जहां लोगों की ज़िंदगी पर महामारी से जुड़े मुद्दों के साथ-साथ दूसरी तरह की समस्याओं का असर भी व्यापक तौर पर पड़ रहा है। जो प्रवासी मज़दूर अपने घर वापस जाने की कोशिश कर रहे हैं, वे मुश्किल में हैं, क्योंकि एक बार फिर सरकार ने परिवहन, रेलगाड़ियों के साथ-साथ बस सेवाओं पर रोक लगा दी है।

• केवल दिल्ली में ही प्रवासी कामगारों की तादाद बढ़ी हुई है। उनमें से ज़्यादातर अपने घर वापस जाना चाहते हैं। बेरोज़गारी की दर में भारी बढ़ोतरी हुई है और कई उद्योग अपने कर्मचारियों को वापस रखने से इनकार कर रहे हैं।

• दिल्ली की क्रूर हक़ीक़त यही है कि बड़े पैमाने पर हो रही बेरोज़गारी से भूख की नौबत पैदा हो रही है, और यह कोविड-19 की स्थिति के मुक़ाबले गंभीर चुनौती पेश कर रही है। सरकार ने ‘बड़ी-बड़ी योजनाओं और बहुत सारी चीज़ों का ऐलान ज़रूर किया है, लेकिन ज़मीन पर इनका उतरना अभी बाक़ी है। अगर महीने के भीतर लोगों तक मदद नहीं पहुंच पाती है, तो ‘हालात को संभाल पाना बहुत मुश्किल हो जायेगा।’

• कुल मिलाकर, पूरे देश में कोविड-19 के मामलों में तेज़ी से बढ़ोतरी हो रही है और महामारी के जानकारों और वैज्ञानिकों की राय है कि सरकार को इसे लेकर एक मज़बूत रुख अपनाने की ज़रूरत है और उसे इस बात को स्वीकार करना होगा कि सामुदायिक संक्रमण हो चुका है, ताकि महामारी को नियंत्रित करने के लिहाज से ज़रूरी क़दम उठाये जा सके।

• जिस तरह से महामारी के मामलों की तादाद में बढ़ोत्तरी हो रही है, उसे देखते हुए बिना शक कहा जा सकता है कि सामुदायिक संक्रमण हो रहा है। ठीक है कि यह सक्रिय स्थिति अभी तक कुछ ही राज्यों में केंद्रित है और हालांकि पूरे देश में इन मामलों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है, कुछ राज्यों में इस समय ‘ख़तरनाक रूप से बढ़ोतरी’ हो रही है और वहां भी कुछ ही ज़िलों तक सीमित है। शायद, सरकार इस सामुदायिक संक्रमण की बात को स्वीकार करके 'जनता को' डराना नहीं चाहती है और इस इंकार के पीछे का एक कारण यह भी हो सकता है।

• अन्य देशों के मुक़ाबले यहां मृत्यु दर ज़्यादा नहीं है। लेकिन,यह आंकड़ा बदल रहा है, जैसे-जैसे ज़्यादा परीक्षण किये जा रहे हैं, वैसे-वैसे और ज़्यादा मामले सामने आते जा रहे हैं और गंभीर मामलों में भी यह बढ़ोतरी होती जा रही है। इसके साथ ही अस्पतालों में इन मामलों की 'बाढ़' आ रही है और अस्पताल गंभीर मामलों को संभाल नहीं पा रहे हैं। इसलिए, मृत्यु दर बढ़ रही है।

• हालांकि संयुक्त राज्य अमेरिका और ब्राजील के मुक़ाबले आनुपातिक रूप से संक्रमित मामलों की संख्या अपेक्षाकृत कम है। लेकिन, सच्चाई यही है कि भारत ‘बहुत ही अनिश्चित स्थिति’ का सामना कर रहा है। चूंकि संक्रमण के मामले 'बहुत ही ख़तरनाक दर' से बढ़ रहे हैं, इसलिए, स्थिति आगे चलकर 'किसी भी समय नियंत्रण से बाहर' हो सकती है।

• एक समस्या यह भी पेश आ रही है कि भारत के दूर-दराज़ के क्षेत्रों में लोग 'सोशल डिस्टेंसिंग' को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। ऐसे में इसे एक अच्छी स्थिति की तरह देखा जा सकता है कि भारत अमेरिका या ब्राजील के मुक़ाबले बेहतर है। हक़ीक़त यही है कि भारत इस समय ‘बहुत अनिश्चितता की स्थिति’ में है और यह सुनिश्चित करने के लिए बहुत सावधानी बरतने की ज़रूरत है ताकि स्थिति विस्फ़ोटक न हो जाए।’ भारत में बेहतरी आने से पहले यहां के हालात बहुत ही ख़राब होने वाले हैं।

अगर यह अनुमान सच के आस-पास का है, तो हमारा नेतृत्व इस संकट के समय भी घुमा फिराकर बातें कर रहा है, वीडियो कॉन्फ़्रेंस और ट्विटर के ज़रिये अपनी बातें सामने रखते हुए किसी कुलीन वर्ग की तरह पेश आ रहा है। आख़िर ये किसके साथ मज़ाक कर रहे हैं? विश्व समुदाय को इस बात की जानकारी होनी चाहिए कि भारत के लोग इस समय अपने वजूद से जुड़े एक संकट से जूझ रहे हैं और आने वाले दिनों में भारत की अर्थव्यवस्था पस्त होने वाली है, और 'वैश्विक संसाधनों' को लेकर इसकी प्रदर्शन क्षमता गंभीर रूप से सीमित होने वाली है।

मेरे हिसाब से नेतृत्व को दूसरे सभी सरकारी कामकाज को एक तरफ रखना होगा और इस महामारी को नियंत्रित करने और इंसानी ज़िंदगी को बचाने को लेकर किये जाने वाले काम को शुरू करना होगा। केंद्र सरकार के पास उपलब्ध सभी संसाधनों को इसी मद में झोंक दिया जाना चाहिए। इस समय एक लोकतांत्रिक देश के तौर पर भारत की साख़ दांव पर है। इस लिहाज से आईआईएससी का यह अध्ययन सरकार के प्रदर्शन को आंकने का एक मानक बन जाता है। आने वाले हफ़्तों और महीनों में विश्व समुदाय की नज़रें भारत पर होंगी, क्योंकि यहां मृत्यु दर तेज़ी से बढ़ने लगी है और भारतीय मक्खियों की तरह मरने लगे हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें-

Pandemic Puts India in ‘Precarious Position’

COVID-19
Coronavirus
Lockdown
kerala model
BJP
Narendra modi
CPI(M)

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, 24 घंटों में 4,518 दर्ज़ किए गए 

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 3,962 नए मामले, 26 लोगों की मौत

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है


बाकी खबरें

  • शारिब अहमद खान
    ईरानी नागरिक एक बार फिर सड़कों पर, आम ज़रूरत की वस्तुओं के दामों में अचानक 300% की वृद्धि
    28 May 2022
    ईरान एक बार फिर से आंदोलन की राह पर है, इस बार वजह सरकार द्वारा आम ज़रूरत की चीजों पर मिलने वाली सब्सिडी का खात्मा है। सब्सिडी खत्म होने के कारण रातों-रात कई वस्तुओं के दामों मे 300% से भी अधिक की…
  • डॉ. राजू पाण्डेय
    विचार: सांप्रदायिकता से संघर्ष को स्थगित रखना घातक
    28 May 2022
    हिंसा का अंत नहीं होता। घात-प्रतिघात, आक्रमण-प्रत्याक्रमण, अत्याचार-प्रतिशोध - यह सारे शब्द युग्म हिंसा को अंतहीन बना देते हैं। यह नाभिकीय विखंडन की चेन रिएक्शन की तरह होती है। सर्वनाश ही इसका अंत है।
  • सत्यम् तिवारी
    अजमेर : ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ की दरगाह के मायने और उन्हें बदनाम करने की साज़िश
    27 May 2022
    दरगाह अजमेर शरीफ़ के नीचे मंदिर होने के दावे पर सलमान चिश्ती कहते हैं, "यह कोई भूल से उठाया क़दम नहीं है बल्कि एक साज़िश है जिससे कोई मसला बने और देश को नुकसान हो। दरगाह अजमेर शरीफ़ 'लिविंग हिस्ट्री' है…
  • अजय सिंह
    यासीन मलिक को उम्रक़ैद : कश्मीरियों का अलगाव और बढ़ेगा
    27 May 2022
    यासीन मलिक ऐसे कश्मीरी नेता हैं, जिनसे भारत के दो भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह मिलते रहे हैं और कश्मीर के मसले पर विचार-विमर्श करते रहे हैं। सवाल है, अगर यासीन मलिक इतने ही…
  • रवि शंकर दुबे
    प. बंगाल : अब राज्यपाल नहीं मुख्यमंत्री होंगे विश्वविद्यालयों के कुलपति
    27 May 2022
    प. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बड़ा फ़ैसला लेते हुए राज्यपाल की शक्तियों को कम किया है। उन्होंने ऐलान किया कि अब विश्वविद्यालयों में राज्यपाल की जगह मुख्यमंत्री संभालेगा कुलपति पद का कार्यभार।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License