NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
पटना जल जमाव : न लोगों की चिंता, न अदालत का डर !
अदालती फटकार सरकार–नेता व आला अफसरों के लिए कोई नयी बात नहीं है। 1991 से ही राजधानी में होनेवाले जल जमाव से त्रस्त नागरिकों द्वारा याचिकाएँ दी जाती रही है । जिन पर संज्ञान लेते हुए दर्जनों बार अदालती फटकार लगाई जा चुकी है। लेकिन समस्या यथावत बनी रहती है।
अनिल अंशुमन
21 Oct 2019
patna water logging
Image courtesy: Prabhat khabar

ये हमारे दौर की लोकतान्त्रिक कहे जाने वाले सत्ता - शासन की विसंगतियों की ही पराकाष्ठा है, जिसमें सरकार और उसका समूचा तंत्र इतना बेलगाम हो जाय कि हाई कोर्ट की फटकार का भी कोई असर न दिखे। 18 अक्टूबर को पटना हाई-कोर्ट ने पिछले दिनों राजधानी में जल जमाव से उत्पन्न भयावह जन +आपदा से निपटने में फेल राज्य सरकार को बुरी तरह फटकारा। जज ने यह स्पष्ट आदेश दिया कि राजधानी को दीपावली से पहले साफ–सुधरा और जल जमाव से मुक्त बनाने के लिए युद्ध स्तर पर सभी आवश्यक कार्रवाई पूरी कर 25 अक्टूबर को अदालत के समक्ष हलफनामा प्रस्तुत किया जाय। यह फैसला जल जमाव आपदा से तबाहो–बर्बाद हुए राजधानी वासियों की ओर से दायर जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए जज महोदय ने सुनाया।

 25 अक्टूबर को ही इस मामले की अगली सुनवाई होनी है। इस दौरान कोर्ट रूम में उपस्थित सारे लोग उस समय सन्न रह गए जब सुनवाई कर रहे जज महोदय ने जल आपदा के भुक्तभोगी के रूप में अपनी व्यथा सुनाई। उन्होंने बताया कि आपदा के समय जब उन्होंने आशियाना स्थित अपने निवास स्थान के पास टूटे हुए नाले की शिकायत के लिए नगर आयुक्त को फोन किया तो उन्होने रिसिव नहीं किया और जब काफी मशक्कत के बाद उन्हें सूचना दी गयी तो उस पर कोई संज्ञान नहीं लिया गया।

मीडिया की खबरों के अनुसार अदालती फटकार सरकार–नेता व आला अफसरों के लिए कोई नयी बात नहीं है। 1991 से ही राजधानी में होनेवाले जल जमाव से त्रस्त नागरिकों द्वारा याचिकाएँ दी जाती रही है । जिन पर संज्ञान लेते हुए दर्जनों बार अदालती फटकार लगाई जा चुकी है । कोर्ट के सामने राज्य के मुख्य सचिव तक को हाज़िरी लगानी पड़ी लेकिन समस्या यथावत बनी रही । इसी साल 27 जुलाई को तो ऐसी स्थिति हुई कि राज्य के 24 बड़े प्रशासनिक और पुलिस के आला अधिकारियों को जज के सामने एकसाथ हाज़िरी लगानी पड़ी फिर भी नतीजा सिफ़र निकला।
 
 विशेषज्ञों के अनुसार शुरू से ही राजधानी के बसावट को लेकर उसकी अर्बन प्लानिंग पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। मंत्री – नेता – नौकरशाह / अफसरों और ठेकेदारों को नगर विकास की राशि के बंदर बाँट और चुनाव में लोगों के सिर्फ वोट से मतलब रहा। मनमाने तरीके से ऐसी बड़ी बड़ी कोलनियाँ और मुहल्ले बसते गए जहां से पानी निकास और आवागमन इत्यादि की प्लानिंग से किसी को मतलब नहीं रहा। नगर निगम को मतलब रहा सिर्फ मकान का नंबर देने और होल्डिंग टैक्स वसूलने से । वहीं रियल स्टेट निर्माता ठेकेदारों और निजी मकान मालिकों ने भी विधिवत नक्शा बनाए और निगम से पास कराये बगैर ही ‘ खिला–पिला कर ‘ निर्माण कार्य कर लिया। बाद में रस्म अदायगी के लिए नगरवासियों व नगर की मूलभूत सुविधाओं को लेकर हर स्तर पर विमर्श और कागजी योजनाएं बनाकर कर फंड का महागठबंधनी लूट की गयी।

फिर से सनद के लिए कि पिछले कई चुनावों से राजधानी की दोनों संसदीय और सभी विधान सभा सीटों पर भाजपा के ही नेता जीतते रहें हैं। लेकिन राजधानी की बुनियादी नागरिक समस्या - संकट समाधान न उनकी प्राथमिकता में कभी नहीं रहा और न ही उन्हें वोट देनेवाले जागरूक मतदाताओं ने उनपर इसके लिए कोई दबाव डाल। बात बात पर नगर - समाज हलकान करनेवाले हुड़दंगी राष्ट्रभक्तों ने भी कभी ऐसे सवालों पर कोई हुड़दंग नहीं मचाई और न ही कोई आवाज़ उठाने का राष्ट्रीय कर्तव्य निभाया  जैसा उन्होने अभी मोदी जी द्वारा पाकिस्तान को खरी खोटी सुनाने के स्वागत में किया।

  खबरों की मानें तो अभी भी कई इलाकों में जमा काला पानी से डायरिया , वायरल फीवर और चरम रोग जैसी बीमारियां हर दिन लोगों को अपनी चपेट में ले रही है । प्रदेश के कई इलाकों में डेंगू फैलने की सूचनाएँ बढ़ती जा रही है वहीं , राजधानी स्थित पीएमसीएच – एनएमसीएच समेत कई अस्पतालों में भी डेंगू पीड़ितों की संख्या लगातार बढ़ रही है। राष्ट्रिय रस्म के तहत केंद्र की एक जांच टीम फिर से दौरा कर रही है । राज्य के वरिष्ठ भाजपा नेता एवं स्वास्थ्य मंत्री इन गंभीर स्थितियों का जायजा खुद लेने जाने की बजाय राजधानी स्थित होटल मौर्या में डाक्टरों की कार्यशाला में उन्हें स्वास्थ्य जागरूकता फैलाने और बिहार स्वस्थ बनेगा का नारा लगा रहें हैं।

 अबकी बार जल जमाव की भीषण आफत ने राजधानीवासियों के हर तबके के नागरिकों के होश ठिकाने लगा दिये हैं । तभी तो ऐसा पहली बार हुआ जब भाजपा को ‘ यही है च्वाइश ’ कहकर हमेशा वोट देनेवाले पॉश नागरिकों को अपने ही चहेते नेता व प्रदेश के उपमुख्यमंत्री जी का राजेन्द्र नगर स्थित पैतृक निवास के साथ साथ निगम कार्यालय का घंटों घेराव कर धरना - प्रदर्शन के लिए सड़कों पर उतरना पड़ा। जल आपदा पीड़ित नागरिक संघर्ष मोर्चा बनाकर सरकार से मांग की गयी है कि --- जल जमाव से हुई व्यग्तिगत क्षति का मुआवजा दिया जाय , दोषी अधिकारियों – कर्मचारियों को चिन्हित कर उनपर तत्काल कारवाई हो , जल जमाव आपदा की पुनरावृति रोकने के लिए फौरन कारगर उपाय अमल में लाये जाएँ, नालों की सफाई के नाम पर हुए भ्रष्टाचार की त्वरित जांच व इसके सरकारी बजट पर श्वेतपत्र जारी हो, पानी में डूबी–क्षतिग्रस्त गाड़ियों की इंश्योरेंस कंपनियों से क्षतिपूर्ति कराई जाय ........ ! अनुमान है कि इस जल – जंजाल ने 100 करोड़ से भी अधिक की नागरिक संपत्ति का नुकसान किया है।

 15 अक्टूबर को मुख्यमंत्री के आदेश से नगर विकास के प्रधान सचिव और वुडको ( बिहार अर्बन इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन ) के एमडी को उनके तत्काल प्रभाव से हटा दिया गया है। 8 आईएस का तबादला समेत जल जमाव आपदा के दौरान अपनी जवाबदेही नहीं निभानेवाले 4 दर्जन से अधिक अधिकारियों व इंजीनियरों को भी नोटिश जारी हुआ है । जबकि राजधानी के नागरिक समाज द्वारा हाई कोर्ट में दायर कई जनहित याचिकाओं पर संज्ञान लेते हुए कोर्ट ने इसे एक गंभीर नागरिक समस्या माना है।

 ये सही है कि राजधानी पटना में जल जमाव का संकट कोई आज पैदा हुई समस्या नहीं है लेकिन अबकी बार यह समस्या कर गई लोगों का बंटाधार । चिंताजनक यह भी है जनहित के लिए राजनीति का दावा करनेवाले गठबंधन सरकार के सत्ताधारी दल भाजपा और जदयू के स्थापित नेता – कार्यकर्त्ता जगह जगह जमा हुए काला पानी में उतरकर लोगों की मदद करते हुए की एक भी सेलफ़ी वायरल करने तक की जहमत नहीं उठाई । मुख्य प्रतिपक्ष राजद के आलवे अन्य विपक्षी दलों के नेता–कार्यकर्ता भी बहुत नहीं दीखे । वहीं सांसद पप्पू यादव और भाकपा माले व उसके छात्र – युवा संगठनों के उत्साही सदस्यों के आलवे अनगिनत स्थानीय और सामाजिक संगठनों–संस्थाओं के लोग और युवाओं ने बढ़ चढ़कर पीड़ितों को राहत–मदद पहुंचाई । सवाल फिर भी रह जाता है कि – ऐसा क्या है कि जिन सरकार व नेताओं को लोग वोट देकर तो सत्ता में स्थापित कर देते हैं , लेकिन उसके बेलगाम हो जाने पर कोई लगाम लगाने और उसके काम काज का हिसाब–जवाब लेने पर उतारू नहीं होते  ……..   ?  

PATNA
water logging
Bihar government
Nitish Kumar

Related Stories

बिहार: पांच लोगों की हत्या या आत्महत्या? क़र्ज़ में डूबा था परिवार

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 

बिहार : दृष्टिबाधित ग़रीब विधवा महिला का भी राशन कार्ड रद्द किया गया

बिहार : नीतीश सरकार के ‘बुलडोज़र राज’ के खिलाफ गरीबों ने खोला मोर्चा!   

बिहार : सरकारी प्राइमरी स्कूलों के 1.10 करोड़ बच्चों के पास किताबें नहीं

बिहार : सातवें चरण की बहाली शुरू करने की मांग करते हुए अभ्यर्थियों ने सिर मुंडन करवाया

बिहार : गेहूं की धीमी सरकारी ख़रीद से किसान परेशान, कम क़ीमत में बिचौलियों को बेचने पर मजबूर

बिहारः मुज़फ़्फ़रपुर में अब डायरिया से 300 से अधिक बच्चे बीमार, शहर के विभिन्न अस्पतालों में भर्ती

कहीं 'खुल' तो नहीं गया बिहार का डबल इंजन...

बिहारः महिलाओं की बेहतर सुरक्षा के लिए वाहनों में वीएलटीडी व इमरजेंसी बटन की व्यवस्था


बाकी खबरें

  • भाषा
    ईडी ने फ़ारूक़ अब्दुल्ला को धनशोधन मामले में पूछताछ के लिए तलब किया
    27 May 2022
    माना जाता है कि फ़ारूक़ अब्दुल्ला से यह पूछताछ जम्मू-कश्मीर क्रिकेट एसोसिएशन (जेकेसीए) में कथित वित्तीय अनिमियतता के मामले में की जाएगी। संघीय एजेंसी इस मामले की जांच कर रही है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    एनसीबी ने क्रूज़ ड्रग्स मामले में आर्यन ख़ान को दी क्लीनचिट
    27 May 2022
    मेनस्ट्रीम मीडिया ने आर्यन और शाहरुख़ ख़ान को 'विलेन' बनाते हुए मीडिया ट्रायल किए थे। आर्यन को पूर्णतः दोषी दिखाने में मीडिया ने कोई क़सर नहीं छोड़ी थी।
  • जितेन्द्र कुमार
    कांग्रेस के चिंतन शिविर का क्या असर रहा? 3 मुख्य नेताओं ने छोड़ा पार्टी का साथ
    27 May 2022
    कांग्रेस नेतृत्व ख़ासकर राहुल गांधी और उनके सिपहसलारों को यह क़तई नहीं भूलना चाहिए कि सामाजिक न्याय और धर्मनिरपेक्षता की लड़ाई कई मजबूरियों के बावजूद सबसे मज़बूती से वामपंथी दलों के बाद क्षेत्रीय दलों…
  • भाषा
    वर्ष 1991 फ़र्ज़ी मुठभेड़ : उच्च न्यायालय का पीएसी के 34 पूर्व सिपाहियों को ज़मानत देने से इंकार
    27 May 2022
    यह आदेश न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बृजराज सिंह की पीठ ने देवेंद्र पांडेय व अन्य की ओर से दाखिल अपील के साथ अलग से दी गई जमानत अर्जी खारिज करते हुए पारित किया।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    “रेत समाधि/ Tomb of sand एक शोकगीत है, उस दुनिया का जिसमें हम रहते हैं”
    27 May 2022
    ‘रेत समाधि’ अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीतने वाला पहला हिंदी उपन्यास है। इस पर गीतांजलि श्री ने कहा कि हिंदी भाषा के किसी उपन्यास को पहला अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार दिलाने का जरिया बनकर उन्हें बहुत…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License