NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
आंदोलन
मज़दूर-किसान
भारत
राजनीति
किसान आंदोलन: नौजवान, कर्मचारी, मज़दूर और महिलाओं का सांझा संघर्ष!
तेज ठंड के बीच केंद्र के तीन कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हजारों किसान शनिवार को लगातार दसवें दिन भी राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर जमे हुए हैं।
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
05 Dec 2020
किसान आंदोलन: नौजवान, कर्मचारी, मज़दूर और महिलाओं का सांझा संघर्ष!

देश में पिछले काफी समय से मज़दूर, छात्र, महिलाओं के आंदोलन हो रहे हैं लेकिन केंद्र की सत्तारूढ़ मोदी सरकार इन आंदोलनों को पूरी तरह नजरअंदाज कर रही थी। हालांकि इस बार देश के किसान आंदोलन ने जिस तरह से सरकार की पीठ को दीवार से लगा दिया है उससे यह साफ जाहिर है कि सरकार के लिए इसे नज़रअंदाज़ करना या इनकी मांगों को अनसुना करना आसान नहीं होगा।

यह आंदोलन अब एक ऐतिहासिक आंदोलन बन गया है। पिछले काफी लंबे समय बाद ऐसा आंदोलन हुआ है जहां बीस-बीस किलोमीटर तक की सड़कें किसानों, मजदूरों व अन्य समर्थकों से लबालब भरी पड़ी हैं। सैकड़ों की तादाद में लंगर व्यवस्थाएं चल रही हैं। आपको बता दें कि किसान पिछले नौ दिनों से दिल्ली के बॉर्डर पर बैठकर किसान विरोधी तीन बिलों के ख़िलाफ़ संघर्ष कर रहे हैं। शनिवार को इस आंदोलन का दसवां दिन है। इस आंदोलन में बड़ी संख्या में मज़दूर, छात्र, कर्मचारी और महिला भी शामिल हैं।  

प्रदर्शन में बड़ी संख्या में शामिल पंजाब के किसान यह इरादा लेकर आए हैं कि जब तक तीन काले कानून और आम जनता विरोधी बिजली कानून व पराली कानून वापस नहीं लिए जाते तब तक वे वापस अपने घर नहीं जाएंगे। वैसे तो पंजाब के किसान अपना खुद का राशन बहुत लेकर आए हैं परंतु हरियाणा के किसानों, आम जनता, कर्मचारियों, व्यापारियों आदि ने उनकी सेवा करने में कोई कसर नहीं छोड़ रखी है।

किसान के साथ शिक्षक भी आंदोलनरत

दिल्ली हरियाणा के टिकरी बॉर्डर पर 4 दिसंबर शुक्रवार को हरियाणा के स्कूल शिक्षक संघ के लोग शामिल हुए जो खुद अपनी मांगों को लेकर सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे हैं। अभी तक  सरकार ने उनकी मांगों पर कोई ध्यान नहीं दिया है। आपको बता दें कि हरियाणा में पीटीआई शिक्षक अपने सेवा की बेदखली को लेकर पिछले काफी समय से प्रदर्शन कर रहे हैं। सैकड़ों शिक्षकों को एक कोर्ट के आदेश के बाद सेवा मुक्त कर दिया गया है।

अब इन शिक्षकों ने भी किसानों के साथ अपनी एकजुटता जाहिर की है और अपनी मांगों को लेकर भी आवाज़ बुलंद की है। अध्यापक संघ का स्पष्ट मानना है कि यह आंदोलन केवल किसानों व मजदूरों का नहीं है बल्कि यह भारत की 90% जनता का आंदोलन है।

कर्मचारी संघों ने भी किया प्रदर्शन

इसी तरह मज़दूर संगठन सीटू के राज्य उपाध्यक्ष आनंद शर्मा एवं सर्व कर्मचारी संघ हरियाणा के उपाध्यक्ष शिलक राम मलिक ने शुक्रवार को कहा कि पांच दिसंबर को दोनों संगठन किसानों के समर्थन में टिकरी एवं सिंघु बॉर्डर पर जोरदार प्रदर्शन करेंगे और देश के तमाम गांवों के स्तर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पुतले जलाए जाएंगे।

उन्होंने कहा कि सिंघु बॉर्डर पर सीटू एवं सर्व कर्मचारी संघ हरियाणा ने संयुक्त रूप से निशुल्क दवाई शिविर लगा रखा है। साथ ही कहा कि जब तक आंदोलन जारी रहेगा, तब तक तमाम सुविधाएं एवं सेवाएं जारी रखी जाएंगी।

उन्होंने केंद्र कि भाजपा सरकार से अपील करते हुए कहा कि देश के अन्नदाता 26 नवंबर से दिल्ली की सीमाओं पर बैठे हैं इसलिए उनकी मांगें मानी जाएं।

युवा अपने संयमित जोश के साथ शामिल

किसानों के इस आंदोलन में नौजवान किसानों यानी नई पीढ़ी के किसानों की संख्या भी बहुत है। वो साफतौर पर कह रहे हैं कि ये सरकार तो हमे नौकरी दे नहीं रही बल्कि हमारी खेतीबाड़ी के ऑप्शन को भी हमसे छीन रही है।

आपको बता दें कि हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश से बड़ी संख्या में छात्र नौजवान सरकारी नौकरी की तैयारी करते हैं। और वो इस बात से खासे नाराज़ हैं कि सरकार ने सरकारी नौकरियों की संख्या न केबल घटाई है बल्कि जो भर्ती निकली भी है उसकी प्रक्रिया पूरी नहीं कर रही है।

ऐसे ही एक नौजवान थे धर्मेंद्र जो इस किसान आंदोलन में शमिल है और वो हरियाणा के रोहतक में रहते हैं। उन्होंने न्यूज़क्लिक से कहा कि इस सरकार ने हम नौजवानों से पहले रोजगार छीना और फिर पढ़ाई छीनी और यह हमारी खेती और ज़मीन छीनने आई है। जिससे हम मरकर भी नहीं जाने देंगे।

महिलाओं की भागीदारी भी जबरदस्त

आपको इस तरह इस आंदोलन में महिला संगठन भी शामिल दिख जाएंगे जो किसानों की माँग के साथ ही खुद के लिए भी बराबर अधिकार के लिए संघर्ष कर रही हैं। इस आंदोलन में अब बड़ी संख्या में वो महिला किसान भी शामिल हैं, जिन्हें हम नहीं देखते परन्तु वो किसानी की अदृश्य शक्ति हैं जो लगातार खेत से लकेर घर में फ़सल की तैयारी तक काम करती है।

आठ दिसम्बर को ‘भारत बंद’

फिलहाल केन्द्र सरकार के तीन नये कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे किसानों ने आठ दिसम्बर को ‘भारत बंद’ का शुक्रवार को ऐलान किया और चेतावनी दी कि यदि सरकार उनकी मांगें नहीं मानती है तो वे राष्ट्रीय राजधानी की तरफ जाने वाली और सड़कों को बंद कर देंगे।

भारतीय किसान यूनियन के महासचिव हरिंदर सिंह लखवाल ने कहा, ‘हमारी बैठक में हमने आठ दिसम्बर को ‘भारत बंद’ का आह्वान करने का फैसला किया और इस दौरान हम सभी टोल प्लाजा पर कब्जा भी कर लेंगे।’

उन्होंने कहा, ‘यदि इन कृषि कानूनों को वापस नहीं लिया गया तो हमने आने वाले दिनों में दिल्ली की शेष सड़कों को अवरूद्ध करने की योजना बनाई है।’

उन्होंने कहा कि किसान शनिवार को केन्द्र सरकार और कॉरपोरेट घरानों के खिलाफ प्रदर्शन करेंगे और उनके पुतले फूकेंगे। उन्होंने कहा कि सात दिसम्बर को खिलाड़ी किसानों के साथ एकजुटता दिखाते हुए अपने पदक लौटाएंगे।

किसान नेता अपनी इस मांग पर अड़ गये हैं कि इन नये कृषि कानूनों को निरस्त करने के लिए केन्द्र संसद का विशेष सत्र बुलाये। उनका कहना है कि वे नये कानूनों में संशोधन नहीं चाहते हैं बल्कि वे चाहते हैं कि इन कानूनों को निरस्त किया जाये।

शनिवार को अगले दौर की वार्ता में सरकारी पक्ष का नेतृत्व केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर करेंगे और उनके साथ खाद्य मंत्री पीयूष गोयल एवं वाणिज्य एवं उद्योग राज्यमंत्री सोमप्रकाश भी होंगे।

भारत बंद का वाम दलों ने समर्थन किया

वाम दलों ने किसान संगठनों द्वारा आठ दिसंबर को बुलाए गए राष्ट्रव्यापी बंद को शनिवार को समर्थन करने की घोषणा की। वाम दलों की ओर से जारी बयान में इसकी जानकारी दी गयी है। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी), रिव्ल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी और ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक ने संयुक्त वक्तव्य में यह घोषणा की।

वक्तव्य में कहा गया, ‘वाम दल नए कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे किसान संगठनों के प्रति एकजुटता प्रकट करते हैं और इन प्रदर्शनों का समर्थन करते हैं। वाम दल उनके द्वारा आठ दिसंबर को बुलाए गए ‘भारत बंद’ का भी समर्थन करते हैं।’

बयान में कहा गया, ‘वाम दल भारतीय कृषि और खाद्य सुरक्षा के लिए संघर्ष कर रहे हमारे अन्नदाताओं के खिलाफ आरएसएस/भाजपा के द्वेषपूर्ण प्रचार और बेतुके आरोपों की निंदा करते हैं।’ वाम दलों ने बयान में कहा कि वे किसानों द्वारा तीन कृषि कानूनों और बिजली (संशोधन) विधेयक-2020 को वापस लेने की मांग का भी समर्थन करते हैं। बयान में कहा गया, ‘वाम दल इन कानूनों को वापस लेने की किसानों की मांगों के साथ खड़े सभी राजनीतिक दलों और ताकतों से अपील करते हैं कि वे आठ दिसंबर के भारत बंद का समर्थन करें और सहयोग करें।’

(समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ)

farmers protest
Farm bills 2020
BJP
Modi government
AIKSCC
Punjab Farmers
BJP Government Against Farmers
Corporatisation in Agriculture
MSP
Farmers Against Modi Government

Related Stories

गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया

मूसेवाला की हत्या को लेकर ग्रामीणों ने किया प्रदर्शन, कांग्रेस ने इसे ‘राजनीतिक हत्या’ बताया

बिहार : नीतीश सरकार के ‘बुलडोज़र राज’ के खिलाफ गरीबों ने खोला मोर्चा!   

आशा कार्यकर्ताओं को मिला 'ग्लोबल हेल्थ लीडर्स अवार्ड’  लेकिन उचित वेतन कब मिलेगा?

पंजाब: आप सरकार के ख़िलाफ़ किसानों ने खोला बड़ा मोर्चा, चंडीगढ़-मोहाली बॉर्डर पर डाला डेरा

दिल्ली : पांच महीने से वेतन व पेंशन न मिलने से आर्थिक तंगी से जूझ रहे शिक्षकों ने किया प्रदर्शन

राम सेना और बजरंग दल को आतंकी संगठन घोषित करने की किसान संगठनों की मांग

विशाखापट्टनम इस्पात संयंत्र के निजीकरण के खिलाफ़ श्रमिकों का संघर्ष जारी, 15 महीने से कर रहे प्रदर्शन

आईपीओ लॉन्च के विरोध में एलआईसी कर्मचारियों ने की हड़ताल

जहाँगीरपुरी हिंसा : "हिंदुस्तान के भाईचारे पर बुलडोज़र" के ख़िलाफ़ वाम दलों का प्रदर्शन


बाकी खबरें

  • विकास भदौरिया
    एक्सप्लेनर: क्या है संविधान का अनुच्छेद 142, उसके दायरे और सीमाएं, जिसके तहत पेरारिवलन रिहा हुआ
    20 May 2022
    “प्राकृतिक न्याय सभी कानून से ऊपर है, और सर्वोच्च न्यायालय भी कानून से ऊपर रहना चाहिये ताकि उसे कोई भी आदेश पारित करने का पूरा अधिकार हो जिसे वह न्यायसंगत मानता है।”
  • रवि शंकर दुबे
    27 महीने बाद जेल से बाहर आए आज़म खान अब किसके साथ?
    20 May 2022
    सपा के वरिष्ठ नेता आज़म खान अंतरिम ज़मानत मिलने पर जेल से रिहा हो गए हैं। अब देखना होगा कि उनकी राजनीतिक पारी किस ओर बढ़ती है।
  • डी डब्ल्यू स्टाफ़
    क्या श्रीलंका जैसे आर्थिक संकट की तरफ़ बढ़ रहा है बांग्लादेश?
    20 May 2022
    श्रीलंका की तरह बांग्लादेश ने भी बेहद ख़र्चीली योजनाओं को पूरा करने के लिए बड़े स्तर पर विदेशी क़र्ज़ लिए हैं, जिनसे मुनाफ़ा ना के बराबर है। विशेषज्ञों का कहना है कि श्रीलंका में जारी आर्थिक उथल-पुथल…
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: पर उपदेस कुसल बहुतेरे...
    20 May 2022
    आज देश के सामने सबसे बड़ी समस्याएं महंगाई और बेरोज़गारी है। और सत्तारूढ़ दल भाजपा और उसके पितृ संगठन आरएसएस पर सबसे ज़्यादा गैर ज़रूरी और सांप्रदायिक मुद्दों को हवा देने का आरोप है, लेकिन…
  • राज वाल्मीकि
    मुद्दा: आख़िर कब तक मरते रहेंगे सीवरों में हम सफ़ाई कर्मचारी?
    20 May 2022
    अभी 11 से 17 मई 2022 तक का सफ़ाई कर्मचारी आंदोलन का “हमें मारना बंद करो” #StopKillingUs का दिल्ली कैंपेन संपन्न हुआ। अब ये कैंपेन 18 मई से उत्तराखंड में शुरू हो गया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License