NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
आंदोलन
मज़दूर-किसान
भारत
राजनीति
किसान आंदोलन: बीच का रास्ता नहीं होता
इसे ‘डैड लॉक’ इसलिए नहीं कहा जा सकता क्योंकि यह रास्ता तब अख़्तियार किए जाने की बात कही जा रही है जब सरकार अपनी मंज़िल पर पहुँच चुकी है। संवाद के तमाम जरिये और मौके खुद सरकार ने बंद किए हैं।
सत्यम श्रीवास्तव
06 Dec 2020
किसान आंदोलन
फोटो साभार : एनडीटीवी

सरकार व किसान आंदोलन के बीच कल, शनिवार, 5 दिसंबर को हुई पांचवें दौर की वार्ता में जिस तरह से किसान नेताओं ने सरकार के ‘भ्रम निवारण’ कार्यक्रम की धज्जियां उड़ाईं और सरकार को नैतिक रूप से शर्मिंदा किया है उसने दुनिया का ध्यान खींचा है। पता लगा कि वार्ता के दौरान एक ऐसा भी वक़्त आया जब वार्ता की अनिवार्य शर्त यानी संवाद,‘एकालाप’ में बदल गया। सरकार के मंत्री समूह और नौकरशाहों ने ही अपनी बात जारी रखी जबकि किसान नेताओं ने उनकी बात पर केवल अपना ‘साहस और सवाभिमान से भरा मौन’ ज़ाहिर किया।

इसके अलावा सरकार द्वारा दिये गए कागजों को पलटकर उन पर ‘हाँ’ या ‘ना’ लिखकर बार -बार सरकार को दिखलाते रहे। यहाँ ‘हाँ’ से आशय था कि सरकार ये कानून वापस लेगी? और ‘ना’ का मतलब था सरकार ये तीनों कानून वापस नहीं लेगी। ज़ाहिर है सरकार के पास इनका सीधा जवाब नहीं है। अगर होता तो पांचवें दौर की वार्ता की नौबत ही नहीं आती। 

कल की इस वार्ता से यह बात और पुख्ता हो गयी कि किसान आंदोलन का संयुक्त नेतृत्व बीच का कोई भी रास्ता स्वीकार करने तैयार नहीं हैं। इसे ‘डैड लॉक’ इसलिए नहीं कहा जा सकता क्योंकि यह रास्ता तब अख़्तियार किए जाने की बात कही जा रही है जब सरकार अपनी मंज़िल पर पहुँच चुकी है। संवाद के तमाम जरिये और मौके खुद सरकार ने बंद किए हैं। लोकतन्त्र बीच के रास्तों से ही चलता है। सरकार को बीच का रास्ता लेने की तहज़ीब नहीं है क्योंकि यह एक अतिवादी संगठन की सरकार है। जो हर मामले को ‘बाइनरी’ में देखना सिखलाता है।

इस दल के नेताओं ने दुनिया को इसी ढंग से देखा है। विभाजनकारी सोच और विचारधारा में संस्कारित इस दल के पास सामंजस्य साधने का थोड़ा भी प्रशिक्षण नहीं है। लोकतान्त्रिक तक़ाज़ा यह बनता है कि सरकार बिना शर्त किसानों की बात मान ले आखिर बड़े देशों के लोकतंत्र ऐसे ही चलते हैं और सरकार का जनता के सामने झुक जाना उसकी इज्जत अफजाई ही करती है न कि बेइज्जती। लेकिन चुनावी जीतों को ही लोकतन्त्र फतह करना मान चुकी सरकार हालांकि इसे बड़ी हार की तरह देख रही है और और यह एक हार उसके अविजित होने का अभिमान चूर कर सकती है इसलिए भाजपा कतई यहाँ झुकना बर्दाश्त नहीं कर पाएगी। यह सरकार यह भी जैसे भूल रही है कि लोकतन्त्र को फतह नहीं किया जाता बल्कि उसमें खुद का समर्पण किया जाता है।

किसानों ने अब तक के हर आमंत्रण पर सरकार की तरफ से मुहैया कराया गया जलपान या खाना भी नहीं खाया बल्कि अपने लिए खाना, अपने साथ ले गए। यहाँ तक कि ‘सरकार का’पानी तक नहीं पीया। यह खुद्दारी और यह एटीट्यूड अब सरकार को विचलित कर रहा है। सरकार को समझना चाहिए कि जिस गांधी को दुनिया में अपना परिचय देने के लिए इस्तेमाल करते हो वही गांधी इन किसानों की खुद्दारी में तुम्हारे सामने बैठ रहा है। तो क्या सरकार को उसी गांधी की छाया विचलित कर रही है? गांधी से जुड़ा एक वाकया याद किया जा रहा है जब वह अपना अनशन खत्म करने के बाद वायसराय के रात्रिभोज के बुलावे पर उनके यहाँ गए। वायसराय  ने उनके स्वागत में पचास से ज़्यादा व्यंजन रखे। जिसे देखकर गांधी ने कहा कि मैं अपना खाना साथ लाया हूँ और लकड़ी की टूटी चम्मच से अपनी लायी खिचड़ी खाने लगे। ब्रिटिश सरकार की यह नैतिक हार थी। क्योंकि वह एक ऐसे व्यक्ति का आतिथ्य नहीं कर पाया जिसके और जिसके जैसे करोड़ों भारतीयों पर ब्रिटिश सरकार बलात शासन कर रही थी और करते रहना चाहती थी।

यह किसान आंदोलन गांधी के उसी सत्याग्रह और नैतिक बल का पूरे आत्म-विश्वास से पालन कर रहा है। सरकार को एक तरह से यह नसीहत भी दे रहा है कि तुम्हारे उपलब्ध कराये भोजन में ‘दलाली’ की तीक्ष्ण गंध आ रही है। किसान सरकार का खाना ज़रूर खाते यदि सरकार की मंशा पवित्र होती, सत्य होती और वह खाना जनता के धन के ट्रस्टी होने के नाते मंगवाया गया होता।

कल ही जब पूरे देश में अडानी, अंबानी और मोदी के पुतले दहन हुए और तीनों को एक सफ में लाकर किसान आंदोलन खड़ा कर दिया। इस किसान आंदोलन ने सरकार को पूरे तौर पर वस्त्रहीन कर दिया है। इससे पहले दशहरे के दिन इन्हीं किसानों ने मोहन भगवात से लेकर, अडानी, अंबानी, मोदी जैसे दस चेहरों को मिलाकर ‘दशानन’ बनाया था और तब भी सब एक सफ में थे। पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में पूँजीपतियों के हितों पर कुर्बान कई सरकारों को जनता देखती आ रही है लेकिन जिस कदर निर्लज्ज ढंग से मोदी सरकार ने अपने चंद पूंजीपती मित्रों के लिए देश की जनता को बार बार ठगा है उसका संचित परिणाम इस विनम्र सत्याग्रह में दिखलाई पड़ता है।

इस सरकार के कॉर्पोरेट गठजोड़ बल्कि उनका सेवक होने को जिस नैसर्गिक ढंग से और सरल सहज ढंग से इस किसान आंदोलन ने समझाया है और देश के तमाम हिस्सों में इस समझ को आवाज़ दी है वह सरकार की उस शक्ति को कमजोर या खत्म कर चुकी है जो एक लोकतान्त्रिक सरकार को आंदोलन से जूझने के लिए दरकार है। और उस शक्ति को ही गांधी नैतिक बल कहते हैं। अब पूरी नैतिकता किसानों के साथ है। सरकार कॉर्पोरेट के साथ है। देश के सामान्य लोग भी अब यह समझ चुके हैं कि लड़ाई किसानों की मेहनत और कॉर्पोरेट की लूट के बीच है। इस लड़ाई में भाजपा शासित केंद्र सरकार कॉर्पोरेट्स के साथ खड़ी है। ये कानून दरअसल कॉर्पोरेट के मुनाफे में गुणोत्तर वृद्धि के लिए हैं न कि किसानों के लिए। अगर किसानों के लिए होते तो कानून बनाने से पहले किसानों से भी बात की गयी होती।

किसान आंदोलन ने बीते छह सालों में इस सरकार द्वारा की गयी तमाम कार्यवाहियों का मूल्यांकन कर दिया है। भले ही इस आंदोलन के केंद्र में खेती-किसानी से जुड़े तीन ऐसे कानून हों जो किसानों के हितों की वजाय केवल कॉर्पोरेट के असीमित मुनाफे की गारंटी के लिए बनाए गए हैं लेकिन इनके माध्यम से वह सरकार की मंशाओं और नीयत को तमाम दुनिया में आसान शब्दों में व्यख्यायित कर रहे हैं। इसलिए जब उनसे पूछा जाता है कि -सरकार और खुद प्रधानमंत्री जब कह रहे हैं कि न्ययुन्तम समर्थन मूल्य व मंडी व्यवस्था यथावत रहेगी तब भी आप क्यों नहीं भरोसा करते? क्या आपको देश के लोकप्रिय,यशस्वी और महान प्रधानमंत्री की बात पर भरोसा नहीं है? इसके जवाब में वो दो टूक कहते हैं -नहीं। यह नहीं शब्द प्रधानमंत्री की छवि के तिलस्म को धराशायी कर देता है जो अरबों रुपए खर्च करके गढ़ी गयी है। यही सत्याग्रह है। बिना लाग लपेट अपनी बात रखना। निर्भय होकर अपनी समझ पर भरोसा करना और उसका इज़हार करना।

सरकार, भाजपा, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, उनकी अपनी मीडिया, क्रोनी कॉर्पोरेट्स और कैपिटलिस्ट्स की संयुक्त सेना में विचलन अब साफ दिखलाई देने लगा है। कम से कम एक राजनैतिक दल के तौर पर भाजपा और उसकी मातृ संगठन आरएसएस के भीतर अंतर्विरोधों के स्वर अब सतह पर आते दिख रहे हैं। सेना जैसा अनुशासन और नियंत्रण रखने वाले संगठनों के भीतर भिन्न भिन्न स्वर ऐसे संगठनों के विचलन और घबराहट बताते हैं। एक तरफ जब प्रधानमंत्री से लेकर कृषि मंत्री और तमाम अन्य ‘जिम्मेदार’ लोग किसानों से यह कह रहे हैं कि उन्हें उनकी फसल की ज़्यादा कीमत के लिए किसी भी राज्य में अपनी फसल बेचने की कानूनी छूट मिलेगी। वहीं शिवराज सिंह चौहान इस मामले में दूसरे राज्यों से फसल बेचने आए किसानों पर कड़ी कार्रवाई करते हुए उन्हें जेल और उनके ट्रैक्टरों को जब्त (राजसात) करने की धमकी दे रहे हैं। यही बात हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर भी कह रहे हैं।

भाजपा के अंदर इस तरह ‘टाइमिंग’ को लेकर लापरवाही प्राय: नहीं देखी गयी। झूठ पर हालांकि सभी का एकाधिकार कायम रहा है। ऊमीद है किसान आंदोलन इन अंतर्विरोधों को दुनिया के सामने उजागर करने में कामयाब होंगे और दुनिया उनके सरोकारों से जुड़कर उन्हें बढ़-चढ़कर समर्थन देगी।

(लेखक पिछले 15 सालों से सामाजिक आंदोलनों से जुड़कर काम कर रहे हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

farmers protest
Farm bills 2020
Bharat Bandh
Narendra modi
BJP
All India Kisan Sabha
Farmer-government Meeting

Related Stories

गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया

छात्र संसद: "नई शिक्षा नीति आधुनिक युग में एकलव्य बनाने वाला दस्तावेज़"

मूसेवाला की हत्या को लेकर ग्रामीणों ने किया प्रदर्शन, कांग्रेस ने इसे ‘राजनीतिक हत्या’ बताया

दलितों पर बढ़ते अत्याचार, मोदी सरकार का न्यू नॉर्मल!

बिहार : नीतीश सरकार के ‘बुलडोज़र राज’ के खिलाफ गरीबों ने खोला मोर्चा!   

आशा कार्यकर्ताओं को मिला 'ग्लोबल हेल्थ लीडर्स अवार्ड’  लेकिन उचित वेतन कब मिलेगा?

दिल्ली : पांच महीने से वेतन व पेंशन न मिलने से आर्थिक तंगी से जूझ रहे शिक्षकों ने किया प्रदर्शन

राम सेना और बजरंग दल को आतंकी संगठन घोषित करने की किसान संगठनों की मांग

आईपीओ लॉन्च के विरोध में एलआईसी कर्मचारियों ने की हड़ताल

जहाँगीरपुरी हिंसा : "हिंदुस्तान के भाईचारे पर बुलडोज़र" के ख़िलाफ़ वाम दलों का प्रदर्शन


बाकी खबरें

  • भाषा
    हार्दिक पटेल भाजपा में शामिल, कहा प्रधानमंत्री का छोटा सिपाही बनकर काम करूंगा
    02 Jun 2022
    भाजपा में शामिल होने से पहले ट्वीट किया कि वह प्रधानमंत्री के एक ‘‘सिपाही’’ के तौर पर काम करेंगे और एक ‘‘नए अध्याय’’ का आरंभ करेंगे।
  • अजय कुमार
    क्या जानबूझकर महंगाई पर चर्चा से आम आदमी से जुड़े मुद्दे बाहर रखे जाते हैं?
    02 Jun 2022
    सवाल यही उठता है कि जब देश में 90 प्रतिशत लोगों की मासिक आमदनी 25 हजार से कम है, लेबर फोर्स से देश की 54 करोड़ आबादी बाहर है, तो महंगाई के केवल इस कारण को ज्यादा तवज्जो क्यों दी जाए कि जब 'कम सामान और…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में कोरोना के मामलों में 35 फ़ीसदी की बढ़ोतरी, 24 घंटों में दर्ज हुए 3,712 मामले 
    02 Jun 2022
    दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के बाद केरल और महाराष्ट्र में कोरोना ने कहर मचाना शुरू कर दिया है। केरल में ढ़ाई महीने और महाराष्ट्र में क़रीब साढ़े तीन महीने बाद कोरोना के एक हज़ार से ज्यादा मामले सामने…
  • एम. के. भद्रकुमार
    बाइडेन ने यूक्रेन पर अपने नैरेटिव में किया बदलाव
    02 Jun 2022
    एनआईटी ऑप-एड में अमेरिकी राष्ट्रपति के शब्दों का उदास स्वर, उनकी अड़ियल और प्रवृत्तिपूर्ण पिछली टिप्पणियों के ठीक विपरीत है।
  • न्यूजक्लिक रिपोर्ट
    नर्मदा के पानी से कैंसर का ख़तरा, लिवर और किडनी पर गंभीर दुष्प्रभाव: रिपोर्ट
    02 Jun 2022
    नर्मदा का पानी पीने से कैंसर का खतरा, घरेलू कार्यों के लिए भी अयोग्य, जांच रिपोर्ट में चौंकाने वाला खुलासा, मेधा पाटकर बोलीं- नर्मदा का शुद्धिकरण करोड़ो के फंड से नहीं, सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट रोकने से…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License