NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
सांप्रदायिकता से लड़ना चाहती है जनता, विपक्ष आगे आए
इन चुनाव परिणामों का सबसे बड़ा संदेश यह था कि जनता हिंदुत्व से लड़ना चाहती है क्योंकि यह भारत के संविधान और उसके समाज की सहिष्णु परंपरा के विरुद्ध है।
अरुण कुमार त्रिपाठी
03 May 2021
सांप्रदायिकता से लड़ना चाहती है जनता, विपक्ष आगे आए
'प्रतीकात्मक फ़ोटो' साभार: सोशल मीडिया

विधानसभा चुनाव के परिणामों ने एक संकेत जरूर दिया है कि केंद्रीय सत्ता पर काबिज भाजपा और उसके पितृ संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की तमाम कोशिशों के बावजूद यह देश हिंदुत्व की जीती मक्खी निगलने को तैयार नहीं है। वह उस हिंदुत्व को तो एकदम स्वीकार नहीं करेगा जो सिर्फ जबानी जमाखर्च और प्रोपेगेंडा से काम चलाना चाहता है और नफरत की खेती करना चाहता है। अगर हिंदुत्व को अपने को स्वीकार करवाना है तो कुछ काम भी करके देना होगा। लेकिन उससे भी बड़ा संदेश यह आया है कि जनता हिंदुत्व से लड़ना चाहती है क्योंकि यह भारत के संविधान और उसके समाज की सहिष्णु परंपरा के विरुद्ध है।      

इसलिए तृणमूल कांग्रेस, द्रमुक और वाममोर्चा ने इन चुनावों में कोरोना ग्रस्त देश के लोकतंत्र के घटते ऑक्सीजन स्तर के लिए ऑक्सीजन सिलेंडर पहुंचाने का काम किया है। केंद्र की भाजपा नीत सरकार भारत को विश्व गुरु बनाने और दुनिया में उसे प्रतिष्ठा दिलाने की बात करती है और वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम में हमारे प्रधानमंत्री कोरोना को हराने का आदर्श स्थापित करने का दावा करते हैं। लेकिन हकीकत है कि कोरोना की दूसरी लहर के प्रकोप के सामने सरकार की तैयारी ने देश को दुनिया के सामने बहुत कमजोर करके प्रस्तुत किया है। यहां पर भारत के मौजूदा शासक दल का राष्ट्रवाद भरभरा कर गिर गया है। न तो आत्मनिर्भर भारत का नारा टिक पाया है और न ही श्रेष्ठ भारत का। सारी दुनिया हमारी त्रासदी पर हमदर्दी जता रही है और हमें मदद करने का प्रस्ताव भेज रही है। 

हम आगे चाहे जितना संभाल लें लेकिन इस समय देश की छवि को गहरा धक्का लगा है। इसी से साबित हुआ है कि मौजूदा सरकार का राष्ट्रवाद खोखला है जो धार्मिक ध्रुवीकरण और पड़ोसी देशों से टकराव के अतिश्योक्तिपूर्ण आख्यानों पर खड़ा हुआ है। अच्छा हुआ कि पश्चिम बंगाल, केरल और तमिलनाडु की जनता ने इसे पहचान लिया है। संस्कृत में एक कहावत है---क्वचित दोषो गुणायते। यानी कभी कभी दोष भी गुण बन जाते हैं। निश्चित तौर पर कोरोना की दूसरी लहर भयानक है और वह कई देशप्रेमियों को लील रही है लेकिन उसने मौजूदा सरकार के तमाम दावों की कलई खोल दी है। 

चुनाव जीतने वाली भाजपा की मशीनरी ने पश्चिम बंगाल से केरल तक मेहनत में किसी तरह की कोई कसर नहीं छोड़ी। पश्चिम बंगाल में तो उसने हर तरह से संसाधन झोंक दिए। अकेले प्रधानमंत्री मोदी ने 21 रैलियां कीं। वे इस चुनाव को जीतने के लिए बांग्लादेश की यात्रा तक कर आए। इसमें कोई दो राय नहीं कि पश्चिम बंगाल की जनता ममता बनर्जी और उनके परिवारवाद से नाराज थी। वह उनकी हिंसक राजनीतिक शैली को भी नहीं पसंद कर रही थी और न ही वह उनके धार्मिक पैंतरों पर यकीन कर रही थी। लेकिन जनता के समक्ष हिंदुत्व एक ऐसी चुनौती के रूप में उपस्थित था जो पश्चिम बंगाल के इतिहास, संस्कृति और आजादी की लड़ाई के इतिहास के लिए खतरा बन रहा था। इसलिए पश्चिम बंगाल की जनता ने उसे पहचाना और पराजित किया। 

आजादी के बाद से अब तक पश्चिम बंगाल की राजनीति कभी सांप्रदायिक नहीं रही। वहां न तो 1984 में दंगा हुआ जब पूरे देश में सिखों पर हमले हुए थे और न ही 1992 में जब बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद मुस्लिम समुदाय पर हमले हुए थे। इसीलिए अगर बंगाल के लोग अपना स्वर्णिम काल खत्म होने के बावजूद अगर अपनी बौद्धिक श्रेष्ठता का दावा करते थे तो उन्होंने इस चुनाव में वैसा करके दिखा दिया। बंगाल की जनता ने दिखा दिया कि उन्होंने वाम मोर्चा को खारिज करके तृणमूल को स्वीकार जरूर किया है लेकिन अभी भी वे गुजरात, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार की तर्ज पर सांप्रदायिक नहीं हुए हैं। उन्होंने इस चुनाव में देश को एक बड़ा संदेश देने का काम किया है और बताया है कि वहां का अल्पसंख्यक समुदाय भी किसी धार्मिक नेता की बजाय राजनीतिक नेता को ही वोट देना पसंद करता है। 

अब सवाल उठता है कि क्या इस चुनाव में 215 सीटें हासिल करके ममता बनर्जी एक विपक्षी एकता की धुरी और प्रधानमंत्री पद की दावेदार हो सकती हैं? इस बारे में साफ तौर पर कुछ कहा नहीं जा सकता। इस चुनाव में ममता बनर्जी झांसी की रानी की तरह खूब मर्दाना तरीके से लड़ी हैं। लेकिन उनका नारा वही था कि मैं झांसी नहीं दूंगी। ममता बनर्जी की इस जीत से 1980 के दशक का वह आरंभिक दौर याद आता है जब भारी बहुमत से एनटीआर आंध्र प्रदेश में सत्ता में आए थे। वे हिंदी नहीं बोल पाते थे और कांग्रेस का विकल्प तैयार करने और विपक्षी एकता के लिए उन्होंने हिंदी सीखी। उन्होंने ज्योति बसु, फारूक अब्दुल्ला, करुणानिधि, बीजू पटनायक, मुलायम सिंह यादव, देवीलाल, चंद्रशेखर जैसे नेताओं को जोड़ा और राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय मोर्चा बनाया। लेकिन जब 1989 का चुनाव हुआ तो उनकी पार्टी को अच्छी जीत नहीं मिली और वे प्रधानमंत्री पद के दावेदार नहीं बचे बल्कि देवीलाल की मदद से वीपी सिंह प्रधानमंत्री बन गए।

इसलिए ममता क्या बनेंगी यह तो अभी नहीं कहा जा सकता। लेकिन उन्होंने पश्चिम बंगाल में जीत के माध्यम से इस देश की धर्मनिरपेक्ष ऊर्जा को गतिशील किया है। उन्हें वाममोर्चा और कांग्रेस के इस एहसान को मानना चाहिए कि उन्होंने खाद बनकर तृणमूल कांग्रेस को फलने फूलने और उसकी सूखती फसल को लहलहाने का मौका दिया है। इसलिए ममता का फर्ज बनता है कि वे लेफ्ट से अफनी कटुता मिटाएं और इस देश के संविधान की रक्षा और सांप्रदायिक सद्भाव की राजनीति के लिए काम करें। वह तभी हो सकता है जब 2024 के चुनाव में कोई गैर भाजपाई गठबंधन सत्ता में आए। लेकिन यह काम अकेले ममता से नहीं होगा। इसके लिए मुकदमों का डर और स्वार्थ छोड़कर तमाम विपक्षी दलों और उनके नेताओं को एकजुट होना पड़ेगा। उसके लिए तमाम सम्मेलन होंगे तमाम वार्ताएं होंगी और आंदोलन भी होंगे। लेकिन अगर वे सक्रिय होते हैं तो जनता विकल्प देने से पीछे नहीं हटेगी।   

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

Assembly elections
Communalism
communal politics
opposition parties
BJP
RSS
Hindutva

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

डिजीपब पत्रकार और फ़ैक्ट चेकर ज़ुबैर के साथ आया, यूपी पुलिस की FIR की निंदा

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !


बाकी खबरें

  • अजय कुमार
    शहरों की बसावट पर सोचेंगे तो बुल्डोज़र सरकार की लोककल्याण विरोधी मंशा पर चलाने का मन करेगा!
    25 Apr 2022
    दिल्ली में 1797 अवैध कॉलोनियां हैं। इसमें सैनिक फार्म, छतरपुर, वसंत कुंज, सैदुलाजब जैसे 69 ऐसे इलाके भी हैं, जो अवैध हैं, जहां अच्छी खासी रसूखदार और अमीर लोगों की आबादी रहती है। क्या सरकार इन पर…
  • रश्मि सहगल
    RTI क़ानून, हिंदू-राष्ट्र और मनरेगा पर क्या कहती हैं अरुणा रॉय? 
    25 Apr 2022
    “मौजूदा सरकार संसद के ज़रिये ज़बरदस्त संशोधन करते हुए RTI क़ानून पर सीधा हमला करने में सफल रही है। इससे यह क़ानून कमज़ोर हुआ है।”
  • मुकुंद झा
    जहांगीरपुरी: दोनों समुदायों ने निकाली तिरंगा यात्रा, दिया शांति और सौहार्द का संदेश!
    25 Apr 2022
    “आज हम यही विश्वास पुनः दिलाने निकले हैं कि हम फिर से ईद और नवरात्रे, दीवाली, होली और मोहर्रम एक साथ मनाएंगे।"
  • रवि शंकर दुबे
    कांग्रेस और प्रशांत किशोर... क्या सोचते हैं राजनीति के जानकार?
    25 Apr 2022
    कांग्रेस को उसकी पुरानी पहचान दिलाने के लिए प्रशांत किशोर को पार्टी में कोई पद दिया जा सकता है। इसको लेकर एक्सपर्ट्स क्या सोचते हैं।
  • विजय विनीत
    ब्लैक राइस की खेती से तबाह चंदौली के किसानों के ज़ख़्म पर बार-बार क्यों नमक छिड़क रहे मोदी?
    25 Apr 2022
    "चंदौली के किसान डबल इंजन की सरकार के "वोकल फॉर लोकल" के नारे में फंसकर बर्बाद हो गए। अब तो यही लगता है कि हमारे पीएम सिर्फ झूठ बोलते हैं। हम बर्बाद हो चुके हैं और वो दुनिया भर में हमारी खुशहाली का…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License