NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
सेना में महिलाओं के स्थायी कमीशन को मंज़ूरी, सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद बैकफ़ुट पर सरकार!
17 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा था कि महिला अधिकारियों को परमानेंट कमीशन देने से इंकार करना समानता के अधिकार के ख़िलाफ़ है। सरकार द्वारा दी गई दलीलें स्टीरियोटाइप हैं जिसे क़ानूनी रूप से कतई स्वीकार नहीं किया जा सकता है।
सोनिया यादव
24 Jul 2020
सेना में महिलाओं के स्थायी कमीशन को मंज़ूरी
image courtesy : Hindustan Times

"समानता का अधिकार एक तार्किक अधिकार है।"

ये टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की है। महिलाओं को सेना में स्थायी कमीशन मिलने का अहम फ़ैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया था कि अगर महिलाओं की क्षमता और उपलब्धियों पर शक़ किया जाता है ये महिलाओं के साथ-साथ सेना का भी अपमान है।

अब रक्षा मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट के उसी फैसले को लागू करते हुए गुरुवार, 23 जुलाई को भारतीय सेना में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन प्रदान करने के लिए औपचारिक आदेश जारी कर दिया। इसे आधी आबादी की एक बड़ी जीत के तौर पर देखा जा रहा है, हालांकि ये जीत का सफर इतना आसान नहीं था।

साल 2010 में दिल्ली हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि महिला अधिकारियों को भी सेना में परमानेंट कमीशन मिलना चाहिए। दिल्ली हाई कोर्ट के इसी फैसले को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। जिसे लेकर इसी साल फरवरी में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट के निर्णय बरक़रार रखा था।

क्या है परमानेंट कमीशन का मामला?

सेना में फिलहाल महिला अधिकारियों को केवल दो शाखाओं जज एडवोकेट जनरल और शिक्षा कोर में ही स्थायी कमीशन मिलता था। इसके अलावा बाकी सभी जगह उनकी तैनाती शॉर्ट सर्विस कमीशन के तहत होती थी। इसमें महिला अधिकारियों को शुरू में पांच वर्ष के लिए लिया जाता था, जिसे बढ़ा कर 14 वर्ष तक किया जा सकता था। 14 साल के बाद उन्हें आर्मी से ऑप्ट आउट (रिटायर) करना ही होता था। यानी महिला अधिकारी निचली रैंक्स तक ही सीमित रह जाती थीं, उन्हें ऊंची पोस्ट्स, जिन्हें कमांड पोस्ट कहा जाता है वहां तक पहुंचने का मौका ही नहीं मिलता था। इसके अलावा 20 साल की सेवा पूरी न होने के कारण वे रिटायरमेंट के बाद पेंशन बेनिफिट से भी वंचित रह जाती थीं। दूसरी ओर पुरुषों को परमानेंट कमीशन के लिए सभी अवसर मिलते हैं।

सेना के प्रवक्ता कर्नल अमन आनंद ने गुरुवार को बताया कि महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए संगठन में उन्हें बड़ी जिम्मेदारी दी गई है। अब महिला अधिकारियों को आर्मी एयर डिफेंस, सिग्नल, इंजीनियर, आर्मी एवियेशन, इलेक्ट्रॉनिक्स एवं मेकैनिकल इंजीनियर (ईएमई), आर्मी सर्विस कोर, आर्मी आयुध कोर और इंटेलिजेंस कोर के अलावा मौजूदा शाखा जज एंड एडवोकेट जनरल और सैन्य शिक्षा कोर में स्थायी कमीशन मिलेगा। कर्नल आनंद ने कहा कि महिलाओं के चयन के लिए जल्द ही चयन बोर्ड सभी जरूरी औपचारिकताएं पूरी करेगा।

बता दें कि महिला अधिकारियों ने कमांड पोस्ट और परमानेंट कमीशन को लेकर एक लंबा संघर्ष किया, सुप्रीम कोर्ट में एक मुकम्मल लड़ाई लड़ी। जिसका नतीजा आज हम सभी के सामने है।

इस मामले में फ़ैसला सुनाने वाले जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस अजय रस्तोगी की बेंच ने सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार को फटकार लगाते हुए कई अहम बातें कही थीं। जो आज के समाज में महिला सशक्तिकरण के लिए बेहद जरूरी है।

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

*  सामाजिक धारणाओं के आधार पर महिलाओं को समान मौके न मिलना परेशान करने वाला और अस्वीकार्य है।

*  महिला सैन्य अधिकारियों को परमानेंट कमिशन न देना सरकार के पूर्वाग्रह को दिखाता है।

*  केंद्र सरकार को महिलाओं के बारे में मानसिकता बदलनी होगी और सेना में समानता लानी होगी।

*  महिलाओं को कमांड पोस्ट पर प्रतिबंध अतार्किक है और समानता के ख़िलाफ़ है।

केंद्र की दलीलें पूर्वाग्रह से ग्रसित थीं

केंद्र सरकार ने अपनी दलील में कहा था कि सैन्य अधिकारी महिलाओं को अपने समकक्ष स्वीकार नहीं कर पाएंगे क्योंकि सेना में ज़्यादातर पुरुष ग्रामीण इलाकों से आते हैं।

सरकार की तरफ से वकील आर बालासुब्रह्मण्यम और नीला गोखले ने कहा था कि महिला अधिकारियों के लिए कमांड पोस्ट में होना इसलिए भी मुश्किल है, क्योंकि उन्हें प्रेग्नेंसी के लिए लम्बी छुट्टी लेनी पड़ती है। उन पर परिवार की जिम्मेदारियां होती हैं।

विपरीत परिस्थितियों में असाधारण साहस का प्रदर्शन

वहीं, सुप्रीम कोर्ट में महिला अफ़सरों का प्रतिनिधित्व कर रही मीनाक्षी लेखी और ऐश्वर्या भाटी ने कहा था कि कई महिलाओं ने विपरीत परिस्थितियों में असाधारण साहस का प्रदर्शन किया है। इस दौरान विंग कमांडर अभिनन्दन को गाइड करने वाली युद्ध सेवा मेडल से पुरस्कृत फ्लाइट कंट्रोलर मिंटी अग्रवाल का नाम भी लिया गया। इसके अलावा काबुल में भारतीय दूतावास पर हमले के दौरान वहां तैनात सेना मेडल से अलंकृत मिताली मधुमिता की बहादुरी की भी मिसाल दी गई।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में क्या कहा?

कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि सरकार द्वारा दी गई दलीलें स्टीरियोटाइप हैं। ये गलत अवधारणा है कि पुरुष ताकतवर होते हैं और महिलाएं कमज़ोर। कानूनी रूप से इसे कतई स्वीकार नहीं किया जा सकता कि महिलाओं को परमानेंट कमीशन न दिया जाए। महिला अधिकारियों को परमानेंट कमीशन देने से इंकार करना समानता के अधिकार के खिलाफ है। मानसिकता बदलना बेहद ज़रूरी है। दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा दिए गए निर्णय पर स्टे नहीं लगाया गया था। केंद्र सरकार चाहती तो महिला अधिकारियों के लिए परमानेंट कमीशन लागू कर सकती थी।”

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले को लागू करने के लिए केंद्र सरकार को तीन माह का समय दिया था, जिसे बाद में कोरोना संकट के चलते और आगे बढ़ा दिया गया था। हालांकि लंबी कानूनी लड़ाई के बाद महिला अधिकारियों को सेना में स्थायी कमीशन का रास्ता तो साफ हो गया, लेकिन अब भी तकनीकी कारणों से उन्हें युद्ध अभियानों में स्थायी नियुक्ति नहीं दी जाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने भी युद्ध अभियानों में भेजने के फैसले को अपने आदेश से अलग रखा था।

Women in army
Indian army
Supreme Court
Permanent commission
equal rights for women

Related Stories

ज्ञानवापी मस्जिद के ख़िलाफ़ दाख़िल सभी याचिकाएं एक दूसरे की कॉपी-पेस्ट!

आर्य समाज द्वारा जारी विवाह प्रमाणपत्र क़ानूनी मान्य नहीं: सुप्रीम कोर्ट

समलैंगिक साथ रहने के लिए 'आज़ाद’, केरल हाई कोर्ट का फैसला एक मिसाल

मायके और ससुराल दोनों घरों में महिलाओं को रहने का पूरा अधिकार

जब "आतंक" पर क्लीनचिट, तो उमर खालिद जेल में क्यों ?

विशेष: क्यों प्रासंगिक हैं आज राजा राममोहन रॉय

विचार: सांप्रदायिकता से संघर्ष को स्थगित रखना घातक

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक आदेश : सेक्स वर्कर्स भी सम्मान की हकदार, सेक्स वर्क भी एक पेशा

तेलंगाना एनकाउंटर की गुत्थी तो सुलझ गई लेकिन अब दोषियों पर कार्रवाई कब होगी?

मलियाना कांडः 72 मौतें, क्रूर व्यवस्था से न्याय की आस हारते 35 साल


बाकी खबरें

  • language
    न्यूज़क्लिक टीम
    बहुभाषी भारत में केवल एक राष्ट्र भाषा नहीं हो सकती
    05 May 2022
    क्या हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा देना चाहिए? भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष से लेकर अब तक हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की जद्दोजहद कैसी रही है? अगर हिंदी राष्ट्रभाषा के तौर पर नहीं बनेगी तो अंग्रेजी का…
  • abhisar
    न्यूज़क्लिक टीम
    "राजनीतिक रोटी" सेकने के लिए लाउडस्पीकर को बनाया जा रहा मुद्दा?
    05 May 2022
    बोल के लब आज़ाद हैं तेरे के इस एपिसोड में अभिसार सवाल उठा रहे हैं कि देश में बढ़ते साम्प्रदायिकता से आखिर फ़ायदा किसका हो रहा है।
  • चमन लाल
    भगत सिंह पर लिखी नई पुस्तक औपनिवेशिक भारत में बर्तानवी कानून के शासन को झूठा करार देती है 
    05 May 2022
    द एग्ज़िक्युशन ऑफ़ भगत सिंह: लीगल हेरेसीज़ ऑफ़ द राज में महान स्वतंत्रता सेनानी के झूठे मुकदमे का पर्दाफ़ाश किया गया है। 
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    गर्भपात प्रतिबंध पर सुप्रीम कोर्ट के लीक हुए ड्राफ़्ट से अमेरिका में आया भूचाल
    05 May 2022
    राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा कि अगर गर्भपात पर प्रतिबंध लगाने वाला फ़ैसला आता है, तो एक ही जेंडर में शादी करने जैसे दूसरे अधिकार भी ख़तरे में पड़ सकते हैं।
  • संदीपन तालुकदार
    अंकुश के बावजूद ओजोन-नष्ट करने वाले हाइड्रो क्लोरोफ्लोरोकार्बन की वायुमंडल में वृद्धि
    05 May 2022
    हाल के एक आकलन में कहा गया है कि 2017 और 2021 की अवधि के बीच हर साल एचसीएफसी-141बी का उत्सर्जन बढ़ा है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License