NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
पर्यावरण
विज्ञान
भारत
उत्तरी हिमालय में कैमरे में क़ैद हुआ भारतीय भूरा भेड़िया
यह पहला फोटोग्राफिक साक्ष्य निचले हिमालय और पश्चिमी तराई क्षेत्र में भेड़िये की उप-प्रजातियों की मौजूदगी को दिखाता है।
सीमा शर्मा
25 Aug 2021
wolf

अचानक सामने आयी यह तस्वीर भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) के उस अध्ययन का हिस्सा नहीं थी, जिसमें बाघों से लेकर तेंदुओं तक पर शोध किये जा रहे हैं। लेकिन यह तस्वीर एक  बड़ी खोज जरूर साबित हुई है। इस विषय पर शोध कर रहीं एमएससी (वन्यजीव विज्ञान) की छात्रा अनुभूति कृष्णा ने फरवरी में उत्तराखंड स्थित राजाजी टाइगर रिजर्व (RTR) में ली गई तस्वीरों के एक ढेर में एक मामूली सी दिखने वाली तस्वीर को उस ढेर से अलग रख दिया था।

जब उन्होंने डब्ल्यूआईआई वैज्ञानिक सल्वाडोर लिंगदोह को कुत्ते जैसे दिखने वाले मांसाहारियों के एक जैविक परिवार, यानी कैनिडे परिवार से सम्बन्धित किसी जानवर की अजीबो-गरीब तस्वीर दिखाई, तो यह एक अहम खोज साबित हुई।

भेड़ियों और हिम तेंदुओं सहित हिमालयी स्तनधारियों के विशेषज्ञ लिंगदोह को इसे एक भारतीय मादा भूरे भेड़िये के रूप में पहचान पाने में तनिक भी देर नहीं लगी। यह तस्वीर 28 फरवरी को आरटीआर के पश्चिमी भाग के बेरीवाड़ा और धोखंड पर्वतमाला के बीच स्थित उत्तरी हिमालय में इस उप-प्रजाति की उपस्थिति का पहला फोटोग्राफिक सबूत थी।

भारतीय वन्यजीव संस्थान चुने हुए कुछ क्षेत्रों में चुपके से कैमरा लगाकर और उपलब्ध होने वाली तस्वीरों का विश्लेषण करके आरटीआर में कई अध्ययन करता रहा है। लिंगदोह ने न्यूज़क्लिक को बताया, “आरटीआर में भारतीय भूरे भेड़िये के छिटपुट रूप से देखे जाने के बारे में एक किस्सा तो है। लेकिन, अब हमारे पास उत्तरी हिमालय में इसकी मौजूदगी का पहला सबूत है। अब उत्तराखंड में इसकी दोनों उप-प्रजातियां हैं- निचले खंड में भारतीय भूरा भेड़िया और ऊपरी खंड पर हिमालयी भेड़िया।

यह साक्ष्य पश्चिमी तराई क्षेत्र में भूरे भेड़िए की मौजूदगी को भी दिखाता है। " बिहार स्थित वाल्मीकि टाइगर रिजर्व जैसे पूर्वी तराई क्षेत्र में तो इस तरह के भूरे भेड़िओं के देखे जाने की सूचना मिली थी, लेकिन पश्चिमी तराई क्षेत्र में अभी तक ऐसी खबर नहीं थी।"

भारतीय भूरा भेड़िया छोटा, दुबला और पतला होता है और इसका वजन लगभग 25 किलो होता है। इसे इसकी पतली काली नुकीली पूंछ और भूरे-धूसर रंग की परत से भी पहचाना जा सकता है। इसके ठीक उलट, ऊपरी हिमालय में भेड़िये बड़े और भारी होते हैं, जिनका वजन लगभग 35 किलोग्राम होता है, एक चौड़ी खोपड़ी, लंबे थूथन और ठंड का सामना करने के लिए उसके शरीर पर अधिक सफेद बाल होते हैं।

भारतीय भूरा भेड़िया देश के मध्य, पूर्वी, पश्चिमी और दक्षिणी भागों में पाया जाता है, जबकि इसके हिमालयी समकक्ष लद्दाख, स्पीति (हिमाचल), उत्तराखंड, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश और नेपाल में पाये जाते हैं।

डब्लूआईआई के निदेशक धनंजय मोहन ने न्यूज़क्लिक को बताया कि गहन कैमरा निगरानी से नई-नई प्रजातियों की खोज हो रही है। “जिस तरह भारतीय भूरे भेडिए को आरटीआर में देखा गया है, उसी तरह उत्तराखंड के गंगोत्री नेशनल पार्क में नये-नये वन्यजीव की खोज की गई है। ये नए निष्कर्ष बहुत महत्वपूर्ण इसलिए हैं, क्योंकि हमें इन जानवरों के बारे में बेहतर जानकारी मिलती है।"

आरटीआर निदेशक डीके सिंह ने मोहन की बातों का समर्थन करते हुए कहा, “हमने कभी लोगों के इस दावे पर विश्वास ही नहीं किया कि बाघों को केदारनाथ वन्यजीव अभयारण्य की ऊंचाई पर देखा गया है। लेकिन, मीडिया रिपोर्ट्स में इस इलाके में एक बाघ की कैमरा निगरानी के दौरान मिली फोटो के छपने के बाद ये दावे सही साबित हुए हैं।”

मोहन ने कहा कि इस भूरे भेड़िये को लेकर किसी तरह के निष्कर्ष पर पहुंच जाना जल्दबाजी होगा, और यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या यह बात आगे बढ़ पाती है या फिर टाइगर रिजर्व तक ही सीमित रहती है।

लिंगदोह का मानना भी यही है कि यह भेड़िया सहारनपुर या मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश जैसे इलाकों से भटक गया होगा, जिसे भारतीय भूरे भेड़िये के पाये जाने वाला सबसे उत्तरी इलाका माना जाता है। उनका कहना है, "उत्तर प्रदेश में भूमि उपयोग में तेजी से आ रहे बदलाव के कारण यहां के शुष्क/अर्ध-शुष्क खुले घास के मैदान/झाड़ी वाली जमीन को कृषि भूमि में बदला जा रहा है, ऐसे में ये आरटीआर में भटक गए होंगे।"

खेती-बाड़ी को लेकर जमीन के बढ़ते इस्तेमाल का वन्यजीवों पर कई तरह से व्यापक असर हुआ है। इस तरह के प्रभावों में उनके निवास स्थान का उजड़ जाना, शिकार की वजह से उनकी तादाद में कमी आना, इंसान की बढ़ती गतिविधियों के चलते बढ़ती अशांति और मानव-पशु संघर्ष है, जो जानवरों को पलायन करने के लिए मजबूर कर देते हैं।

लिंगदोह ने बताया, "यूपी में उनके आवास के सिकुड़ने के साथ-साथ इस बात की भी बहुत संभावना है कि यह मादा भेड़िये ने आरटीआर के पश्चिमी भाग के सबसे दक्षिणी क्षेत्र में शरण ली हो, जो कि यूपी में उनके निवास स्थान की तरह ही है,यानी खुला और ऊबड़-खाबड़ इलाक़ा,जो कि इस उप-प्रजातियों का पसंदीदा इलका है। इसके अलावा, राजाजी के पास इस खुर वाले स्तनपायी के लिए आश्रय स्थल के लिहाज से पानी की उपलब्धता और वनावरण का भी अच्छा-खासा आधार है। उन्होंने कहा कि बाघों या तेंदुओं के साथ भेड़िये के संघर्ष में आने की संभावना बहुत ही कम होती है, क्योंकि भेड़िये बड़े शिकारियों से बचते हैं।

लिंगदोह ने बताया कि भेड़िया किसी भी परिवेश के अनुकूल ढल जाने वाली और ऐसी लचीली प्रजाति है, जो जंगली जानवरों का शिकार करना पसंद करती है। “हालांकि, उनकी मायावी प्रकृति के चलते उन्हें अक्सर गलत तरीके से पेश कर दिया जाता है और स्थानीय लोग उन्हें चालाक समझकर उन्हें मार भी देते हैं । उनकी आबादी में गिरावट का यही कारण है, हालांकि उनकी आबादी का कोई निश्चित अंदाजा नहीं है।"

अंग्रेजी में  मूल रूप से प्रकाशित इस लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें

Photo-captures-Indian-grey-wolf-northern-Himalayas

Wildlife Institute of India
Wildlife Conservation
leopard
Biodiversity
himalaya

Related Stories

कांच की खिड़कियों से हर साल मरते हैं अरबों पक्षी, वैज्ञानिक इस समस्या से निजात पाने के लिए कर रहे हैं काम

जम्मू-कश्मीर में नियमों का धड़ल्ले से उल्लंघन करते खनन ठेकेदार

गुजरात में आख़िर लाभ-साझाकरण वाली धनराशि कहां जा रही है?

जब जम्मू-कश्मीर में आर्द्रभूमि भूमि बन गई बंजर

कोकण के वेलास तट पर दुर्लभ ऑलिव रिडले समुद्री कछुओं को मिला जीवनदान, संवर्धन का सामुदायिक मॉडल तैयार

पर्यावरणीय पहलुओं को अनदेखा कर, विकास के विनाश के बोझ तले दबती पहाड़ों की रानी मसूरी

उत्तराखंड: “लिविंग विद् लैपर्ड” या फिर “डाइंग विद् लैपर्ड”

हिमालयी लोगों की आजीविका पर असर डाल रहा जलवायु परिवर्तन

चमोली हादसे के सवाल और सबक़ क्या होंगे, क्या अब भी हिमालय में हज़ारों पेड़ कटेंगे!

ग्लेशियर टूटने से तो आपदा आई, बांध के चलते मारे गए लोगों की मौत का ज़िम्मेदार कौन!


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    मुंडका अग्निकांड के खिलाफ मुख्यमंत्री के समक्ष ऐक्टू का विरोध प्रदर्शन
    20 May 2022
    मुंडका, नरेला, झिलमिल, करोल बाग से लेकर बवाना तक हो रहे मज़दूरों के नरसंहार पर रोक लगाओ
  • रवि कौशल
    छोटे-मझोले किसानों पर लू की मार, प्रति क्विंटल गेंहू के लिए यूनियनों ने मांगा 500 रुपये बोनस
    20 May 2022
    प्रचंड गर्मी के कारण पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे गेहूं उत्पादक राज्यों में फसलों को भारी नुकसान पहुंचा है।
  • Worship Places Act 1991
    न्यूज़क्लिक टीम
    'उपासना स्थल क़ानून 1991' के प्रावधान
    20 May 2022
    ज्ञानवापी मस्जिद से जुड़ा विवाद इस समय सुर्खियों में है। यह उछाला गया है कि ज्ञानवापी मस्जिद विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर बनाई गई थी। ज्ञानवापी मस्जिद के भीतर क्या है? अगर मस्जिद के भीतर हिंदू धार्मिक…
  • सोनिया यादव
    भारत में असमानता की स्थिति लोगों को अधिक संवेदनशील और ग़रीब बनाती है : रिपोर्ट
    20 May 2022
    प्रधानमंत्री आर्थिक सलाहकार परिषद की रिपोर्ट में परिवारों की आय बढ़ाने के लिए एक ऐसी योजना की शुरूआत का सुझाव दिया गया है जिससे उनकी आमदनी बढ़ सके। यह रिपोर्ट स्वास्थ्य, शिक्षा, पारिवारिक विशेषताओं…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    हिसारः फसल के नुक़सान के मुआवज़े को लेकर किसानों का धरना
    20 May 2022
    हिसार के तीन तहसील बालसमंद, आदमपुर तथा खेरी के किसान गत 11 मई से धरना दिए हुए हैं। उनका कहना है कि इन तीन तहसीलों को छोड़कर सरकार ने सभी तहसीलों को मुआवजे का ऐलान किया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License