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भारत
राजनीति
देवांगना, नताशा को कोई राहत नहीं, लेकिन अबतक दिल्ली हिंसा में उनकी भूमिका का पता नहीं लगा पायी है पुलिस
पिंजरा तोड़ की देवांगना, नताशा को ज़मानत नहीं मिल पाई है। दिलचस्प यह है कि अन्य आरोप पत्रों की तरह, इस आरोप पत्र में भी कपिल मिश्रा जैसे कई बीजेपी नेताओं द्वारा उकसाने वाली किसी भी तरह की कार्रवाई का ज़िक़्र नहीं है।
तारिक अनवर
18 Jul 2020
देवांगना, नताशा को कोई राहत नहीं

नयी दिल्ली: 14 जुलाई को कड़कड़डूमा की शाहदरा ज़िला अदालत ने इस साल फ़रवरी में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में सांप्रदायिक हिंसा से जुड़े एक मामले में पिंजरा तोड़ की देवांगना कलिता और नताशा नरवाल की ज़मानत याचिका, दलीलों में दम नहीं होने का हवाला देते हुए ख़ारिज कर दी थी।

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के इन छात्राओं को दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा ने 23 मई को गिरफ़्तार किया था और उन पर भारतीय दंड संहिता की जिन अलग-अलग धाराओं के तहत मुकदमा क़ायम किया गया था,  उसमें दंगा, ग़ैरक़ानूनी कार्यों और हत्या का प्रयास शामिल थे।

महिला संगठन, पिंजरा तोड़ की स्थापना 2015 में हॉस्टल और पेइंग गेस्ट में छात्राओं की सुविधा और अधिकारों के मकसद से की गई थी।

एफ़आईआर और उसके बाद की जाने वाली गिरफ़्तारियों का सिलसिला

यह सब 21 दिसंबर, 2019 को सार्वजनिक संपत्ति अधिनियम, 1984 की रोकथाम की धारा 3/4 के साथ-साथ भारतीय दंड संहिता (IPC) की विभिन्न धाराओं के तहत एफ़आईआर के दर्ज होने के साथ शुरू हुआ। इन क़ायम की गयी धाराओं में शामिल थीं-147 (दंगा करने), 148 (घातक हथियार से लैस दंगा भड़काने), 149 (ग़ैरक़ानूनी तौर पर इकट्ठा होने), 153 A (2) (दो समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने), 436 (आग या किसी विस्फ़ोटक पदार्थ से शरारत करने), 427 (पचास रुपये की राशि की संपत्ति को क्षति के पहुंचाने), 323 (जानबूझकर चोट पहुंचाने), 325 (जानबूझकर गंभीर चोट पहुंचाने), 332 (किसी व्यक्ति को लोक सेवक होने के चलते चोट पहुंचाने), 186 (लोकसेवक को उसके सार्वजनिक कर्तव्य के निर्वहन में बाधा डालने) और 120B ( भारतीय दंड संहिता [IPC] की आपराधिक साज़िश)। यह एफ़आईआर नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के विरोध के दौरान उक्त पुलिस स्टेशन के तहत दिल्ली गेट के पास हुई हिंसा से सम्बन्धित है।

इसके बाद 24 फ़रवरी,2020 को आईपीसी की धारा 186/188/353/283/341/109/147/34 के तहत ज़ाफ़राबाद पुलिस स्टेशन में एक और एफ़आईआर (नंबर 48/20) दर्ज की गयी और दोनों को आरोपी बनाया गया।

फ़रवरी में सांप्रदायिक हिंसा से सम्बन्धित एक अलग मामले में अपराध शाखा द्वारा 6 मार्च, 2020 को एक और एफ़आईआर (नंबर 59/20) आईपीसी की धारा 120 B, 124 A, 302, 307, 353, 186, 212, 395, 487, 435, 436, 452, 109, 109, 114, 147, 148 25 और 26 आर्म्स एक्ट की धारा के तहत मामले दर्ज किये गये।

इस मामले की जांच अब सिटी पुलिस की स्पेशल सेल कर रही है। इस स्पेशल सेल के कार्यभार संभालने के बाद, सख़्त आतंकवाद निरोधी क़ानून-ग़ैरक़ानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) को भी इस एफआईआर में जोड़ दिया गया।

नागरिकता क़ानून के समर्थकों और विरोधियों के बीच हिंसा के बाद 24 फ़रवरी को पूर्वोत्तर दिल्ली में सांप्रदायिक झड़पें हुई थीं, जिनमें कम से कम 53 लोग मारे गये थे और क़रीब 200 लोग घायल हो गये थे।

23 मई, 2020 को कलिता को एफ़आईआर संख्या 48/20 में गिरफ़्तार किया गया था। अगले ही दिन एक ड्यूटी मजिस्ट्रेट ने उक्त प्राथमिकी में ज़मानत दिये जाने का आदेश पारित कर दिया था। लेकिन, जब आदेश तय किया जा रहा था, उसी दौरान जांच एजेंसी (क्राइम ब्रांच) सामने आयी और 26 फ़रवरी, 2020 को दर्ज की गयी एफ़आईआर संख्या 50/20 में आरोपियों की फिर से गिरफ़्तारी और पुलिस हिरासत की मांग की। इस एजेंसी को दो दिन की पुलिस हिरासत की  मंज़ूरी दे दी गयी थी।

26 मई को मंडोली जेल में ड्यूटी मजिस्ट्रेट ने आवेदक को रिमांड आवेदन की एक प्रति या रिमांड आदेश उपलब्ध कराए बिना "रिमांड को दो दिन बढ़ा दिया।" 28 मई, 2020 को उसके न्यायिक रिमांड को 11 जून, 2020 तक 14 दिनों के लिए बढ़ा दिया गया।

इस अवधि के दौरान, 29 मई, 2020 को दरियागंज में दर्ज प्राथमिकी संख्या 250/19 में जांच एजेंसी ने तिहाड़ जेल में ड्यूटी मजिस्ट्रेट से आवेदक से पूछताछ करने की अनुमति मांगी। 30 मई को, चार दिन के पुलिस रिमांड के लिए आवेदन दिया गया और तीन दिन की पुलिस हिरासत दे दी गयी। 2 जून, 2020 को आवेदक को तिहाड़ जेल में ड्यूटी मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया और उसे एफ़आईआर संख्या 250/19 में ज़मानत दे दी गयी।

2 जून, 2020 को मौजूदा एफ़आईआर संख्या, 50/2020 में आरोप पत्र दायर किया गया। आवेदक को 25 जुलाई, 2020 तक एफ़आईआर संख्या 59/2020 में न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। 11 जून, 2020 को मौजूदा मामले में आरोपी की न्यायिक हिरासत रिमांड मजिस्ट्रेट द्वारा "उसे पेश किये बिना" बढ़ा दी गयी थी।

पेश की गईं दलीलें

वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के ज़रिये की गयी सुनवाई के दौरान इन छात्राओं के वक़ील, एडवोकेट एस.पुजारी ने अदालत को बताया कि उनका नाम एफ़आईआर में नहीं लिया गया है और मामले में पुलिस ने उनकी कोई भूमिका भी नहीं पायी है।

सरकारी वक़ील ने ज़मानत की अर्जी का विरोध करते हुए कहा कि मामले में गिरफ़्तार किये गये आरोपियों में से एक ने जांच के दौरान ख़ुलासा किया था कि कलिता सहित नरवाल ने अपने अन्य सहयोगियों के साथ मिलकर अन्य दंगाइयों को हिंसा के लिए उकसाया था।

छात्रा के वक़ील ने दावा किया कि उनके ख़िलाफ़ जो आरोप लगाये जा रहे हैं, वे झूठे हैं और इस मामले में आरोप पत्र दायर किया जा चुका है और जांच पूरी भी हो चुकी है।

हालांकि, अभियोजक ने कहा कि यह पाया गया है कि सीएए के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन के दौरान, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से एक सतत प्रक्रिया में नरवाल सहित 'उच्च शिक्षा प्राप्त महिलाओं' के एक समूह ने आम मुसलमानों को "भारत सरकार के ख़िलाफ़ विरोध" के लिए यह कहते हुए उकसाया था कि सीएए पूरी तरह से मुसलमानों के ख़िलाफ़ है, और यह क़ानून पारित करके केंद्र सरकार भारत से मुसलमानों को बाहर कर सकती है।

सरकारी वक़ील ने आगे आरोप लगाते हुए कहा कि जांच के दौरान, यह पता चला कि नरवाल अपने सहयोगियों के साथ राष्ट्रीय राजधानी में "शांति और क़ानून-व्यवस्था के हालात को बिगाड़ने के एकमात्र मकसद" के साथ दिल्ली में "दंगों के भड़काने" में सक्रिय रूप से भाग ले रही थीं।

सरकारी वक़ील ने आरोप लगाया कि उन्होंने मुसलमानों के दिमाग में "ज़हर" डाला और उन्हें शहर में प्रतिकूल, ग़ैरक़ानूनी हालात पैदा करने के लिए उकसाया। उन्होंने कहा कि इन दोनों के फ़ोन के लोकेशन से पता चलता है कि वे दंगों के शुरुआती हिस्से के दौरान और उसके ठीक पहले उत्तर-पूर्वी ज़िले में मौजूद थे।

लेकिन, पुजारी ने कहा कि नरवाल और कलिता की न्यायिक हिरासत 11 जून को अवैध रूप से ड्यूटी मजिस्ट्रेट द्वारा बढ़ा दी गयी थी, क्योंकि मजिस्ट्रेट के सामने आरोपियों को पेश नहीं किया गया था और जांच अधिकारी ने जांच के दौरान रिमांड की ज़रूरत नहीं दिखायी थी।

इस दलील का अभियोजक द्वारा विरोध किया गया था, जिन्होंने कहा कि नरवाल और कलिता की न्यायिक हिरासत को क़ानून के मुताबिक़ और कोविड -19 महामारी की विशेष परिस्थितियों में बढ़ाया गया था।

इन दलीलों को ध्यान में रखते हुए अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत ने कहा, “11 जून को नरवाल को वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के ज़रिये अदालत के सामने पेश करना ज़रूरी था और चूंकि नरवाल कोविड-19 महामारी की रोकथाम को लेकर एहतियाती उपाय के तौर पर क्वारंटाइन में थीं, इस बात से उन्हें अवगत करा दिया गया था,इसलिए ड्यूटी मजिस्ट्रेट ने उनका न्यायिक रिमांड बढ़ा दिया था। "

उन्होंने कहा, “मजिस्ट्रेट के आदेश का मक़सद यह सुनिश्चित करना था कि अदालत की भागीदारी और आदेश के बिना किसी को भी हिरासत में नहीं लिया गया था…कोविड-19 की वजह से एक ग़ैर-मामूली हालात पैदा हो गये हैं, जो कि अपने आप में एक वजह है, और अगर अभियुक्त क्वारंटाइन में है,तो ऐसे में उसे पेश नहीं किया जा सकता था, सिर्फ़ इसी तथ्य के आधार पर अदालत को आरोपी को ज़मानत देने के लिए राजी नहीं किया जा सकता।”

अभियोजक ने कहा कि कुछ "विवेकहीन तत्वों" ने कथित रूप से एक "बड़े पैमाने पर साज़िश रची और उत्तरी-पूर्वी दिल्ली के क्षेत्र में दंगे कराये।"

अभियोजक ने कहा कि दोनों आरोपी 15 जनवरी से ही दिल्ली के सीलमपुर में प्रदर्शन स्थल पर जाने लगे थे और पूर्वोत्तर ज़िले में हिंसक विरोध प्रदर्शन के आयोजन में कथित रूप से मदद की थी।

अभियोजक ने कहा दंगाइयों के कारण गोली चलने से 25 फ़रवरी को अमन नाम के एक व्यक्ति की मौत हो गयी। मौके से कुल 35 ख़ाली कारतूस बरामद किये गये और पुलिस ने केवल 17 का इस्तेमाल किया। ”

अभियोजक ने कहा कि दंगों वाली घटनाओं की पूरी श्रृंखला का पता लगाने के प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन अब भी बहुत सारे आरोपियों को गिरफ्तार किया जाना बाक़ी है।

इसके अलावा, अदालत को सूचित किया गया कि मामले में 10 व्यक्तियों के ख़िलाफ़ आरोप पत्र दायर किया गया है और जांच अभी भी चल रही है।

आरोप पत्र

पुलिस ने उसी कहानी को फिर से दोहरा दिया है, जो उन्होंने विभिन्न दंगों से सम्बन्धित मामलों में पहले दायर किये गये आरोपपत्र में सुनायी थी और यह कहानी कुछ इस तरह थी कि "हथियारों से लैस" "हिंसक" सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों ने कई स्थानों पर "ग़ैर-क़ानूनी रूप से लोगों को इकट्ठा किया", और उन्होंने शाहीन बाग़ सहित कई सड़कों पर अवैध रूप से विरोध कर रहे मुसलमानों को यह कहते हुए गुमराह किया कि नया नागरिकता क़ानून उनकी नागरिकता छीन लेगा। ज़ाफ़राबाद मेट्रो स्टेशन पर 66-फुटा रोड को अवरुद्ध किये जाने से स्थानीय लोग नाराज़ हो गये थे। इन नाराज़ लोगों ने परिवहन मार्ग को साफ़ करने के लिए सड़कों पर तोड़-फोड़ की और इस तरह से हिंसा भड़क उठी।

यहां भी सीएए विरोध की उसी क्रोनोलॉजी यानी क्रम को ठीक उसी तरह सुनाया गया है, जैसे कि पहले सुनाया गया था। इस आरोपपत्र में एकमात्र अंतर यही है कि जांचकर्ताओं ने पिछले साल दिसंबर में शहर भर में सीएए के विरोध प्रदर्शनों के दौरान हुई हिंसा के विवरण का भी उल्लेख किया है।

पिछले आरोपपत्र की तरह, इस बार भी कपिल मिश्रा सहित भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के अन्य नेताओं द्वारा उकसाये जाने वाली किसी भी तरह की गतिविधियों को कोई ज़िक़्र नहीं किया गया है। इस तथ्य के बावजूद कि मिश्रा ने पुलिस के डिप्टी कमिश्नर की मौजूदगी में मौजपुर ट्रैफ़िक सिग्नल पर पुलिस को एक अल्टीमेटम दिया था और कहा था कि अगर ये लोग सड़कों से नहीं हटते हैं, तो वे सड़कों पर उतर आएंगे, मगर, इस चार्जशीट में इस बात को आसानी से नज़रअंदाज़ करते हुए इस घटना का उल्लेख तक नहीं किया गया है। जांचकर्ता इस बात का ज़िक़्र करना भी भूल गये हैं कि कैसे दक्षिणपंथियों की भीड़ ने पूरे उत्तर-पूर्वी दिल्ली की घेरेबंदी की और कई सड़कों पर कब्ज़ा कर लिया।

हालांकि, इस आरोपपत्र में इस बात का ज़िक़्र है कि जब पुलिस ने मौजपुर में इकट्ठे हुए "दूसरे समुदाय" के प्रदर्शनकारियोंकी तरफ़ बढ़ते सीएए प्रदर्शनकारियों की एक "हिंसक" भीड़ को जाफ़राबाद मेट्रो स्टेशन के पास क्रिसेंट पब्लिक स्कूल के नज़दीक रोकने की कोशिश की,तो पुलिस ने "आत्मरक्षा" में 5.56 MM INSAS राइफ़ल से 108 गोलियां चलायी।

लेकिन, इस आरोपपत्र में इस बात का कोई ज़िक़्र नहीं है कि पुलिस की गोलीबारी में किसी को चोट लगी या मौत हुई कि नहीं। हालांकि, इस बात का विवरण है कि प्रदर्शनकारियों के संघर्ष के बाद केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल (सीआरपीएफ़) के दस जवानों और दिल्ली पुलिस से सम्बन्धित नौ लोगों को चोटें आयीं।

न्यू सीलमपुर के रहने वाले 18 वर्षीय अमन की मौत पर जांचकर्ताओं ने निष्कर्ष निकाला है कि इस युवा लड़के को "दंगाइयों द्वार की गयी फ़ायरिंग में" मार दिया गया था, जो असल में "पुलिस दल पर किया गया हमला" था।

इस आरोपपत्र में दावा किया गया है कि आरोपी शाहरुख़ ख़ान से पूछताछ के दौरान कलिता और नरवाल के नाम सामने आये। शाहरुख़ ने कथित तौर पर पुलिस को बताया था कि इन दोनों लड़कियों ने अमेरिका के राष्ट्रपति, डोनाल्ड ट्रम्प की भारत यात्रा से पहले मुख्य जाफ़राबाद सड़क को अवरुद्ध करने के लिए "उकसाया" था। उसने कथित तौर पर यह भी ख़ुलासा किया था कि ये दोनों ‘यूनाइटेड अगेंस्ट हेट’ के सदस्य हैं और जेएनयू के पूर्व छात्र, उमर ख़ालिद के संपर्क में थीं, उमर ख़ालिद को भी एफ़आईआर संख्या 59/20 में सख़्त यूएपीए धाराओं के तहत  मुकदमा क़ायम किया गया है।

पुलिस ने कहा कि वे इस मामले में एक पूरक आरोप पत्र भी दाखिल करेगी, जिसमें आगे की जांच के बाद दोनों और अन्य लोगों द्वारा निभायी गयी भूमिकाओं का पता लगाया जायेगा।

दिलचस्प बात यह है कि इस आरोपपत्र में जिन 53 गवाहों का ज़िक़्र किया गया है, उनमें से केवल दो गवाह स्थानीय हैं (ये दोनों वीडियोग्राफ़र हैं,जिन्हें पुलिस ने उस हिंसा को रिकॉर्ड करने के लिए काम पर रखा हुआ था)। बाक़ी 51 गवाहों में से नौ डॉक्टर हैं, तीन, तीन अलग-अलग दूरसंचार सेवा प्रदाताओं के नोडल अधिकारी हैं, 39 पुलिस अफ़सर हैं।

इस आलेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Pinjra Tod’s Devangana, Natasha Denied Bail Again, Cops Yet to Ascertain Their Role in Delhi Violence

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