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घटना-दुर्घटना
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पीरागढ़ी हादसाः सुरक्षा इंतज़ाम के बिना मज़दूर और दमकलकर्मी
पीरागढ़ी अग्निकांड कई सवाल छोड़ गया है। यहां काम करने वाले मज़ूदर तो बुनियादी श्रम सुविधाओं से वंचित थे, उन्हें बचाने आए दमकलकर्मी भी बिना सुरक्षा उपकरण के अपनी जान जोखिम में डाले थे। और इन सबकी मदद के लिए आईं सरकारी एंबुलेंस के भी बुरे हाल थे।
मुकुंद झा
04 Jan 2020
delhi fire

दिल्ली: फिर एक फैक्ट्री में आग लगी, फिर नेताओं सहित सभी लोगों ने चिंता ज़ाहिर की। लेकिन सवाल है कि क्या इस तरह यह अंतिम आग की घटना होगी इसको लेकर सबने चुप्पी साध रखी है। उत्तर पश्चिमी दिल्ली के पीरागढ़ी के उद्योग नगर इंडस्ट्रियल एरिया में स्थित ओकाया बैटरी का कारखाना है जो कि रोहतक हाईवे और पीरागढ़ी मेट्रो स्टेशन के पास स्थित है। इस फैक्ट्री के कारखाने में दो जनवरी 2020 को तड़के सुबह साढ़े चार बजे के आसपास भयावह आग लगी। यह आग इतनी भयवाह थी कि शाम के 5 बजे तक इस पर क़़ाबू नहीं पाया जा सका था। आग बुझाने के दौरान इस बिल्डिंग का एक बड़ा हिस्सा भीषण धमाके के साथ ढह गया जिससे एक दमकलकर्मी की मौत हो गई और कई लोग घायल हो गए।

बैटरी के उत्पादन में तेजाब व अन्य केमिकल्स के प्रयोग के कारण कारखाने में शाम तक छोटे-छोटे विस्फोट होते रहे। फैक्ट्री के आस पास के मज़दूरों से बात करने से पता चला कि कारखाने में 100 से ज्यादा मज़दूर काम करते थे। इस फैक्ट्री में अमूमन रात को भी काम किया जाता था लेकिन नया साल होने के कारण उस रात वहां कोई काम नहीं कर रहा था। बताया जाता है कि यहां काम करने वाले मज़ूदर बुनियादी श्रम सुविधाओं से भी वंचित थे। कारखाने में 12-12 घंटे की शिफ्ट में काम लिया जाता है।

इसके एवज में उन्हें न्यूनतम वेतन भी नहीं दिया जाता था। सिर्फ इस फैक्ट्री में नहीं बल्कि हमने इस पूरे क्षेत्र में कई फैक्ट्री को देखा तो पाया कि सभी जगह सुरक्षा उपकरणों को ढूंढना उतना ही मुश्किल था जितना कि भूसे की ढेर में सुई ढूंढना। जिस फैक्ट्री में आग लगी उसका बड़ा हिस्सा गिर गया था। फैक्ट्री की इमारत के पीछे जाकर देखा तो कोई इमरजेंसी निकास नहीं था। लोहे के दरवाजे वाला एक गेट था लेकिन उसे ईंटो से बंद कर दिया गया था।

जिस तरह ऐसी घटनाओं के बाद नेताओं, मंत्री और अधिकारियों के दौरों का सिलसिला शुरू हो जाता है इस घटना में भी ऐसा ही हुआ। वहां पहुंचने वाले सभी नेताओं-अधिकारियों ने घटना पर शोक व्यक्त किया। इसके बाद मृत और घायल लोगों के परिजनों के लिए कुछ मुआवज़े का भी ऐलान किया गया और कार्रवाई का भी वादा किया गया। उधर पुलिस ने कहा कि भारतीय दंड संहिता की संबंधित धाराओं के तहत कार्रवाई कर रही है।

दिल्ली भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी ने घटनास्थल का दौरा किया और जांच की मांग की।

दिल्ली के गृह मंत्री और स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन ने घटनास्थल का दौरा किया, इस पूरे घटना को दुःखदायी बताया और मामले में मजिस्ट्रेट जांच का आदेश दिया।

यह घटना अनाज मंडी अग्निकांड के महज़ एक महीने के भीतर हुई है। अनाज मंडी अग्निकांड में 45 लोगों की जान चली गयी थी। इस बीच 23 दिसंबर को एक अन्य घटना में नौ मज़़दूरों की मौत हो गई थी।

दिल्ली अग्निशमन सेवा के निदेशक अतुल गर्ग ने बताया कि पीरागढ़ी के इस तीन मंजिला भवन के बेसमेंट में सुबह करीब चार बजे आग लगी और कुछ ही देर में इसने पूरी इमारत को अपनी चपेट में ले लिया।

एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि 50 से अधिक दमकल गाड़ियां और 300 कर्मी आग बुझाने में लगाए गये थे। लेकिन छह बजकर 20 मिनट पर जब आग बुझाने का काम खत्म होने वाला था कि तभी एक विस्फोट के कारण बिल्डिंग का एक हिस्सा ढह गया। शायद बिल्डिंग में एक उपकरण के कंप्रेसर में आग लगने की वजह से यह विस्फोट हुआ।

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अधिकारियों ने कहा कि इमारत से कम से कम 18 लोगों को बचाया गया जिनमें इमारत की देखभाल करने वाले दो लोग व एक चौकीदार शामिल हैं।

मृत दमकलकर्मी की पहचान अमित बालियान (20) के तौर पर हुई है। उन्हें घायल अवस्था में श्री बालाजी एक्शन मेडिकल इंस्टिट्यूट में भर्ती कराया गया था।

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट किया, ‘‘बेहद दुःख के साथ बताना पड़ रहा है कि लोगों को आग से बचाते-बचाते हमारा एक जांबाज शहीद हो गया। भगवान उनकी आत्मा को शांति दे।’’

दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल ने भी दमकलकर्मी की मौत पर दुख जताया है।

एक प्रत्यक्षदर्शी ने बताया कि दमकलकर्मी जब आग बुझाने की कोशिश में जुटे थे, तो उस दौरान इमारत से आग की लपटें और धुएं का गुबार निकल रहा था। उसने बताया कि आग की लपटों में घिरी इमारत में कई धमाकों की आवाज़ सुनी गई।

पास ही स्थित प्लास्टिक फैक्टरी में काम करने वाले संतोष कुमार ने कहा कि सुबह करीब नौ बजे इमारत का पिछला हिस्सा ढह गया। उन्होंने कहा, “दो से चार लोग तब भी इमारत के अंदर फंसे थे और उनकी चीख सुनी जा रही थी। दमकलकर्मियों ने सीढ़ी की मदद से उन्हें बचाया। वे जीवित थे।”

पुलिस के मुताबिक़ इमारत की देखरेख करने वाले दो लोगों और एक चौकीदार समेत 18 लोगों को बचाया गया। अंदर फंसे लोगों में से अधिकतर दमकलकर्मी थे, जिनमें से दो की हालत गंभीर है जबकि अन्य ख़तरे से बाहर हैं।

इस पूरे घटनाक्रम में कई ऐसे पहलू भी थे जिन पर ध्यान देने की जरूरत है, जिसे हर बार अनदेखा किया जाता है। उनका यहां जिक्र करना जरूरी हैं।

न्यूज़क्लिक की टीम घटनास्थल पर क़रीब 12 बजे पहुंची तो देखा पूरी फैक्ट्री जल रही थी, पुलिस ने पूरे इलाके की घेराबंदी कर रखी थी, जबकि दिल्ली फायर सर्विस (डीएफएस) और एनडीआरएफ की टीम आग बुझाने की और फंसे लोगों को निकलने की कोशिश कर रहे थे। इस बीच एकदम हलचल बढ़ गई एंबुलेंस को बुलाया जाने लगा फिर पता चला की अंदर से किसी को रेस्क्यू कर बाहर लाया जा रहा था। वो व्यक्ति जो बाहर लाया गया वो कोई और नहीं बल्कि डीएफएस के कर्मचारी अमित थे।

आपको बता दे इस पूरे इलाके में जहरीले धुएं का एक गुबार बन गया था । फैक्ट्री से निकलने वाला धुआं इतना ज़्यादा था कि फैक्ट्री से दूर खड़े लोगों को सांस लेने में दिक्क्त हो रही थी। इस हालत में भी डीएफएस के कर्मचारी फैक्ट्री के अंदर जाकर आग बुझाने की कोशिश कर रहे थे। वो भी किसी पुख्ता सुरक्षा इंतज़़ाम के बिना। हमने वहां देखा की जितने भी डीएफएस के कर्मचारी थे सुरक्षा के नाम पर सभी के सर पर एक हेलमेट, जूता और उनकी पारंपरिक खाकी वर्दी थी। इसके अलावा किसी भी कर्मचारी के पास कोई सुरक्षा इंतज़ाम नहीं था और न किसी के पास ऑक्सीजन मास्क यहां तक कोई साधारण मास्क भी नहीं था।

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(डीएफएस के कर्मचारी बिना सुरक्षा इंतजाम के बचाव कार्य करते हुए।) 

सुरक्षा के नाम पर स्थिति तो इससे भी खराब थी। कई कर्मचारी स्पोर्ट्स जूते पहने दिखे वहीं एक कर्मचारी चप्पल पहने हुए थे। इन कर्मचारियों को बिल्डिंग में फंसे लोगो की जान बचानी थी जबकि वह खुद ही असुरिक्षत स्थिति में काम कर रहे थे। हमने कई कर्मचारियों से इसके बारे में बात करने की कोशिश की लेकिन वहां कोई भी खुलकर बात करने को तैयार नहीं था। एक कर्मचारी ने हमें थोड़ा दूर होने पर कहा कि जो आप देख रहे है वही सच्चाई है। जबकि उसी जगह काम कर रहे एनडीआरएफ के जवानों के पास सभी तरह के सुरक्षा इंतज़़ाम दिख रहे थे।

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(एनडीआरएफ के कर्मचारी लगभग सभी सुरक्षा इंतजाम के साथ बचाव कार्य  करते हुए ।) 

इमरजेंसी मेडिकल सुविधा भी बदहाल

इसके अलावा घायलों को अस्पताल ले जाने के लिए सरकारी एंबुलेंस की व्यवस्था भी ठीक नहीं थी। इसके हालात भी बदतर थे। कैट्स ऐंबुलेंस में मरीजों के लिए मूलभूत सुविधा न होने के कारण डीएफएस के कर्मचारी उन्हें डांट रहे थे। सुविधा न होने पर पास के एक निजी अस्पताल से एंबुलेंस मंगाई गई। एंबुलेंस के एक कर्मचारी ने कहा कि हमारी छह गाड़ियां यहां पर मौजूद थी इसके बाद भी निजी एंबुलेंस मांगनी पड़ी क्योंकि एंबुलेंस जो वहां पहुंची भी उनमें प्राथमिक उपचार का कोई इंतजाम नहीं था। आग में झुलसे मरीज़ के लिए एंबुलेंस में अलग से दवाई और कंबल तक मौजूद नहीं थे जो प्राथमिक उपचार व संक्रमण की रोकने के लिए ज़रुरी है। डीएफएस कर्मचारियों ने एंबुलेंस कर्मचारियों को जीवीके कंपनी की लापरवाही पर खड़ी खोटी सुनाई। इस कारण कैट्स एंबुलेंस कर्मी भागने पर मजबूर हुए। निजी अस्पताल की एंबुलेंस से मरीज़ों को अस्पताल में भर्ती कराया गया।


प्रशासनिक लापरवाही

फैक्ट्री के अंदर के सुरक्षा इंतज़ाम और आसपास के अन्य फैक्ट्री के हालात को देखने की कोशिश की तो यह और भी भयावह था। जिस फैक्ट्री में आग लगी थी ठीक उसके बगल की इमारत में काम चल रहा था। उस इमारत की दीवारें काफी गर्म हो रही थी। हालांकि आग वहां भी लग सकती थी इसके बाबजूद उसमें काम चल रहा था। सिर्फ वो वहां अकेली ऐसी फैक्ट्री नहीं थी जिसमें काम हो रहा था बल्कि सभी फैक्ट्री में मज़़दूर काम कर रहे थे। हमने जितनी भी फैक्ट्री देखी किसी में भी इमरजेंसी दरवाज़ा चालू नहीं दिखा। कई फैक्ट्रियों में तो दरवाज़े थे लेकिन उनको ईंटो से बंद कर दिया गया या फिर उन दरवाजों के सामने समान रखे हुए थे। जिस फैक्ट्री में आग लगी थी ठीक उसके सामने एक बड़ी फैक्ट्री थी जिसमें कई तरह के काम होते थे। उसमें तराजू बन रहे थे।

इस पूरी इमारत में निकलने का एक ही रास्ता था ऊपर से नीचे आने का वो सीढ़ी करीब तीन फुट चौड़ी थी और उसमे भी जगह जगह पर सामान रखे हुए थे जिससे लोग मुश्किल से निकल रहे होंगे। मज़़दूरों से बात करने पर पता चला की इसमें रात के समय भी काम होता है। कभी वहां अनाज मंडी जैसा कोई हादसा हुआ तो क्या उसमें काम करने वाले मज़़दूर बच पाएंगे? हाल में जिस तरह से कारखानों में आग लगी रही है उससे पता चलता है कि यहां की फैक्ट्रियां मज़दूरों के लिए कितनी ख़तरनाक होती जा रही है। यही हाल कमोबेश इस पूरे औद्दोगिक क्षेत्र की दिखी। मज़़दूरों की सुरक्षा के नाम पर कुछ भी नहीं था। ये हाल सरकार द्वारा चिन्हित किए गए औद्दोगिक क्षेत्र का है तो इससे आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि जो अनधिकृत इलाकों में फैक्ट्रियां चल रही है उनका क्या हाल होगा।

दिल्ली की फैक्ट्रियां कितनी मजदूरों के लिए खतरानक हो रही है। पिछले दो वर्षों में इस तरह की आग घटनाओं में सौ से अधिक मज़़दूरों ने अपनी जान गंवाई है। लेकिन हर घटना के बाद कुछ सवाल उठते है। हर बार सवाल लगभग एक जैसे होते है। लेकिन उनका जबाब कभी नहीं मिलता है या यूं कहे की ढूढ़ने की कोशिश नहीं की जाती है।

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इसी को लेकर हमने दिल्ली के चीफ फैक्ट्री इंस्पेकटर राजन से बात की। आपको बता दें कि दिल्ली में फैक्ट्री को लाइसेंस देने का काम इन्हीं के तहत है। हमने उनसे फोन पर बात की तो उन्होंने कहा की मामले की जांच की जा रही हैं और यह कहकर उन्होंने फ़ोन काट दिया। इसके बाद हमने उन्हें कई बार फोन किया लेकिन उन्होंने जवाब नहीं दिया। इससे साफ लग रहा था की वो सवालों से बचना चाहते हैं।

पीरागढ़ी की इस घटना के बाद कई मज़दूर संगठन के लोग भी वहां पहुंचे। सभी ने मज़दूरों की लगातर हो रही मौत को लेकर चिंता जाहिर की और सरकारों से मांग की मज़दूरों की सुरक्षा का पुख्ता इंतज़ाम कर इस घटना की विस्तृत जांच और दोषी मालिक पर कानून अनुसार सख्त कार्यवाही की जाए।

मज़दूरों का कहना है कि "यह घटना नहीं है, यह हत्या का एक स्पष्ट मामला है। कारखाने में आग लग रही है क्योंकि सरकार श्रमिकों के जीवन की परवाह नहीं करती है।"

नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (सीएजी) की सामाजिक, सामान्य और आर्थिक क्षेत्रों (गैर-सार्वजनिक उपक्रम) पर 2017 की ऑडिट रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली सरकार असंगठित क्षेत्र में दुकानों और कारखानों के व्यापक डेटाबेस को बनाए रखने में पूरी तरह से विफल रही है। रिपोर्ट में कहा गया है कि "इस तरह के डेटा की अनुपस्थिति में विभाग ने न तो एक व्यापक कार्य योजना तैयार की और न ही समय-समय पर निरीक्षण करने के लिए वार्षिक लक्ष्य निर्धारित किए जो विभिन्न कार्यों के तहत श्रमिकों के वैध हितों, कल्याण और सुरक्षा को सुनिश्चित करने की दिशा में उनके प्रयासों को सुविधाजनक बनाएंगे।"

श्रम डेटा की कमी और नियमित निरीक्षणों ने अवैध उद्योगों को बढ़ावा दिया है जो सुरक्षा नियमों के बिना काम करते हैं और प्रवासी श्रमिकों का शोषण करते हैं। भारत में श्रम कानूनों और सुरक्षा नियमों के कार्यान्वयन का सबसे खराब रिकॉर्ड रहा है।

सरकार को भी चाहिए की वो मज़दूरों को काम करने का सुरक्षित वातवरण दे, नहीं तो ऐसे ही फैक्ट्रियां मज़दूरों को लीलती रहेंगी सरकारें शोक व्यक्त और मुआवज़े का ऐलान करती रहेंगी। मज़दूरों की सुरक्षा और अन्य मांगों को लेकर सेंट्रल ट्रेड यूनियन ने 8 जनवरी को भारत बंद का आवाह्न किया है।

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manoj tiwari

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