NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
आंदोलन
साहित्य-संस्कृति
भारत
राजनीति
तिरछी नज़र: ताऊ, तू तो बहुत ही लकी निकला
देख ताऊ, तू तो बहुत ही लकी निकला। जो सरकार कभी विचार विमर्श के लिये तैयार नहीं होती, तैयार हो गई। जो सरकार सोचती नहीं है, सोचने के लिए भी तैयार हो गई।
डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
06 Dec 2020
Farmers protest
फोटो साभार: moneycontrol

किसान भाईयों के आंदोलन का दूसरा सप्ताह बीत रहा है। सरकार से बातचीत चल रही है और सरकार तारीख पे तारीख दिये जा रही है। पहले बातचीत की तारीख इस लिए नहीं मिली क्योंकि हैदराबाद में म्यूनिसिपलटी के चुनाव थे। जब सारे मंत्री चुनाव प्रचार से फारिग हो गये तो सरकार को फुर्सत मिली कि किसानों से बात की जाये। तो सरकार अब किसानों से बात कर रही है और तारीख पे तारीख देती जा रही है।

सरकार ने किसान नेताओं को विज्ञान भवन बुलाया बातचीत के लिए। कहा गया कि वहाँ का खाना बहुत स्वादिष्ट होता है इसलिए वहीं मीटिंग कर लेते हैं। खाना खायेंगे और साथ ही बातचीत भी कर लेंगे। पर किसान अधिक चतुर ठहरे। बोले, बातचीत तो सरकार से करेंगे पर खाना अपना ही खायेंगे। तो खाना उन्होंने अपना ही खाया। लंगर से मंगवाया और लंगर की तरह ही जमीन पर बैठ कर ही खाया।

किसानों को तारीख पे तारीख देते हुए अब नौ तारीख की तारीख दी गई है। कहा है, सोचेंगे, विचार करेंगे और फिर नौ तारीख को मिलेंगे। हम तो पहले से ही मानते थे कि सरकार कोई भी काम बिना सोचे विचारे ही कर देती है। अब सरकार भी यह स्वीकार करने लगी है। सरकार मानती है कि इन कानूनों पर अभी तक सोचा नहीं था अतः अब सोचेंगे। सरकार पहले ही सोच समझ कर इन कानूनों को लाती, संसद में पारित करवाती तो अब सोचने की जरूरत ही नहीं पड़ती। सरकार को चाहिए कि जो भी निर्णय लेना है, पहले ही सोच समझ कर, सलाह मशविरा कर ले। जिससे ऐसी स्थिति बार बार न आए। 

वैसे ऐसा नहीं है कि सरकार सोचती ही नहीं है। सरकार सोचती है और बहुत अधिक सोचती है। सरकार ने बहुत सारे अन्य कामों की तरह सोचने का काम भी आउटसोर्स किया हुआ है। कानून सरकार बनाती है और सरकार की ओर से सोचने का कार्य कोई और करता है। कृषि संबंधित इन तीनों कानूनों को बनाने में भी सोचने समझने का कार्य सरकार ने आउटसोर्स कर दिया था। अब देखना यह है कि सरकार इस बार सोचने समझने का काम स्वंय करती है या फिर उसी आउटसोर्सिंग एजेंसी पर छोड़ देती है जिसने पहले सोचने का कार्य किया था।

इन किसानों को अपने प्रधानमंत्री मोदी जी के बारे में भी सोचना चाहिए। एक तो इस आंदोलन से मोदी जी के आराम में, मनोरंजन में खलल पड़ रहा है। कितने अरमानों से काशी गये थे देव दीवाली मनाने। कि देवताओं के साथ दीवाली मनाएंगे। पर वहाँ भी किसानों की चिंता ही सताती रही। मैं टीवी चैनलों पर प्रसारित वीडियो में स्पष्ट रूप से देख रहा था कि मोदी जी न तो भव्य रोशनी का लुत्फ उठा पा रहे थे और न ही कर्णप्रिय संगीत का और न ही लेज़र शो का। यहाँ तक कि उनके भाषण में किसानों का और  गंगा जैसी निर्मलता अपनी नीयत का भी जिक्र था। 

दूसरे मोदी जी ने बहुत मेहनत कर देश को फिर से विश्व गुरु बनाया है। लेकिन अब आपके इस आंदोलन के कारण कनाडा के प्रधानमंत्री ने, संयुक्त राष्ट्र संघ ने, और भी कुछ विदेशी लोगों ने भारत को शांतिपूर्ण तरीके से किये जा रहे आंदोलन का महत्व समझाना शुरू कर दिया है। वैसे हमने उन्हें अपने अंदरूनी मामलों में दखल देने के लिये डा़ंट दिया है।

एक ये देश और अंतरराष्ट्रीय संगठन हैं जो इतने छोटे छोटे मामलों में दखल देते हैं और एक हम विश्व गुरु हैं जो सीधे ही अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव में 'अबकी बार, ट्रम्प सरकार' और 'नमस्ते ट्रम्प' से दखल देते हैं। ट्रूडो जैसे नेताओं को मोदी जी से सीख लेनी चाहिए। 

लेकिन ताऊ, तुम भी जरा इस मामले में थोड़ा सरकार की मदद कर दो। अपने आंदोलन में थोड़ा हिंसा विंसा ले आओ। इससे मोदी जी की और सरकार की विदेशों में इमेज सुधार जायेगी। इस मामले में जो सरकारी मदद चाहिए, मिल जायेगी। सरकार को अहिंसक आंदोलनों को हिंसक बनाने और बताने का पर्याप्त अनुभव है।

देख ताऊ, तू तो बहुत ही लकी निकला। जो सरकार कभी विचार विमर्श के लिये तैयार नहीं होती, तैयार हो गई। जो सरकार सोचती नहीं है, सोचने के लिए भी तैयार हो गई। तुमने भले ही न खाया हो, पर खाने पर चर्चा (बातचीत) के लिए भी तैयार हो गई। तो ताऊ, तुम भी जरा सरकार से सहयोग कर दो। अपने आंदोलन को थोड़ा हिंसक बना दो। अन्यथा सरकारों को यह काम भी बखूबी आता है। 

(लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

tirchi nazar
Satire
Political satire
farmers protest
Farm bills 2020
Narendra modi
BJP
Modi government

Related Stories

गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया

छात्र संसद: "नई शिक्षा नीति आधुनिक युग में एकलव्य बनाने वाला दस्तावेज़"

मूसेवाला की हत्या को लेकर ग्रामीणों ने किया प्रदर्शन, कांग्रेस ने इसे ‘राजनीतिक हत्या’ बताया

दलितों पर बढ़ते अत्याचार, मोदी सरकार का न्यू नॉर्मल!

बिहार : नीतीश सरकार के ‘बुलडोज़र राज’ के खिलाफ गरीबों ने खोला मोर्चा!   

आशा कार्यकर्ताओं को मिला 'ग्लोबल हेल्थ लीडर्स अवार्ड’  लेकिन उचित वेतन कब मिलेगा?

दिल्ली : पांच महीने से वेतन व पेंशन न मिलने से आर्थिक तंगी से जूझ रहे शिक्षकों ने किया प्रदर्शन

राम सेना और बजरंग दल को आतंकी संगठन घोषित करने की किसान संगठनों की मांग

विशाखापट्टनम इस्पात संयंत्र के निजीकरण के खिलाफ़ श्रमिकों का संघर्ष जारी, 15 महीने से कर रहे प्रदर्शन

आईपीओ लॉन्च के विरोध में एलआईसी कर्मचारियों ने की हड़ताल


बाकी खबरें

  • जितेन्द्र कुमार
    मुद्दा: बिखरती हुई सामाजिक न्याय की राजनीति
    11 Apr 2022
    कई टिप्पणीकारों के अनुसार राजनीति का यह ऐसा दौर है जिसमें राष्ट्रवाद, आर्थिकी और देश-समाज की बदहाली पर राज करेगा। लेकिन विभिन्न तरह की टिप्पणियों के बीच इतना तो तय है कि वर्तमान दौर की राजनीति ने…
  • एम.ओबैद
    नक्शे का पेचः भागलपुर कैंसर अस्पताल का सपना अब भी अधूरा, दूर जाने को मजबूर 13 ज़िलों के लोग
    11 Apr 2022
    बिहार के भागलपुर समेत पूर्वी बिहार और कोसी-सीमांचल के 13 ज़िलों के लोग आज भी कैंसर के इलाज के लिए मुज़फ़्फ़रपुर और प्रदेश की राजधानी पटना या देश की राजधानी दिल्ली समेत अन्य बड़े शहरों का चक्कर काट…
  • रवि शंकर दुबे
    दुर्भाग्य! रामनवमी और रमज़ान भी सियासत की ज़द में आ गए
    11 Apr 2022
    रामनवमी और रमज़ान जैसे पर्व को बदनाम करने के लिए अराजक तत्व अपनी पूरी ताक़त झोंक रहे हैं, सियासत के शह में पल रहे कुछ लोग गंगा-जमुनी तहज़ीब को पूरी तरह से ध्वस्त करने में लगे हैं।
  • सुबोध वर्मा
    अमृत काल: बेरोज़गारी और कम भत्ते से परेशान जनता
    11 Apr 2022
    सीएमआईए के मुताबिक़, श्रम भागीदारी में तेज़ गिरावट आई है, बेरोज़गारी दर भी 7 फ़ीसदी या इससे ज़्यादा ही बनी हुई है। साथ ही 2020-21 में औसत वार्षिक आय भी एक लाख सत्तर हजार रुपये के बेहद निचले स्तर पर…
  • JNU
    न्यूज़क्लिक टीम
    JNU: मांस परोसने को लेकर बवाल, ABVP कठघरे में !
    11 Apr 2022
    जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में दो साल बाद फिर हिंसा देखने को मिली जब कथित तौर पर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से संबद्ध छात्रों ने राम नवमी के अवसर कैम्पस में मांसाहार परोसे जाने का विरोध किया. जब…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License