NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
जनसंख्या नियंत्रण कानून और यूपी-बिहार
जनसंख्या नियंत्रण के सवाल पर यूपी-बिहार में चल रही यह बहस लोगों को पहली ही नज़र में तार्किक और उपयोगी कम राजनीतिक नफ़े-नुक़सान पर आधारित अधिक लग रही है। हालांकि यह बड़ा सवाल है कि एक ही मुद्दे पर एनडीए के घटक दल अलग-अलग तरीके की सोच को हवा क्यों दे रहे हैं?
पुष्यमित्र
16 Jul 2021
जनसंख्या नियंत्रण कानून और यूपी-बिहार

दो से कम बच्चे वालों को ही सरकारी नौकरी, सरकारी योजना और स्थानीय निकाय के चुनाव में भाग लेने की अनुमति देने वाले कानून पर यूपी में तो बहस है ही, बिहार के नेता भी इस बहस में उलझे पड़े हैं। दिलचस्प है कि बिहार में यह बहस पक्ष और विपक्ष में नहीं है, सत्ता पक्ष इस मसले पर अलग राय रख रहा है। नीतीश जी और उनकी पार्टी वाले कह रहे हैं कि जनसंख्या नियंत्रण के लिए कानून की नहीं जागरूकता की जरूरत है, जबकि उनकी सरकार के भाजपाई मंत्री बिहार में भी यूपी जैसा कानून बनाने की मांग कर रहे हैं।

जनसंख्या नियंत्रण के सवाल पर यूपी-बिहार में चल रही यह बहस लोगों को पहली ही नजर में तार्किक और उपयोगी कम राजनीतिक नफे-नुकसान पर आधारित अधिक लग रही है। हालांकि यह बड़ा सवाल है कि एक ही मुद्दे पर एनडीए के घटक दल अलग-अलग तरीके की सोच को हवा क्यों दे रहे हैं?

जानकार मानते हैं कि यूपी अभी विधानसभा चुनाव की मुंडेर पर है। योगी सरकार के पास अपनी प्रशासनिक उपलब्धियां बताने के लिए कुछ खास नहीं है। ऐसे में जाहिर है कि वे हिंदू अस्मितावादी मुद्दों के जरिये ही अपने वोटरों को बटोरने की कोशिश कर रहे हैं। लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार और पूर्व बीबीसी संवाददाता रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि हालांकि यूपी सरकार के इस प्रस्तावित कानून का विरोध अब उनके गुट के लोग ही करने लगे हैं। विश्व हिंदू परिषद ने विरोध किया है और भाजपा के कई पिछड़े नेता भी इसके विरोध में हैं। मगर यह बहुत साफ है कि यह बहस चुनावी गिमिक है, गंभीर नहीं है। दुबारा चुनाव जीतने के लिए योगी ऐसे ही मुद्दे को उठा रहे हैं, जिनमें धर्मपरिवर्तन, आतंकवाद और कांवड़ यात्रा जैसे मुद्दे हैं, ताकि अपने कोर हिंदू वोटरों को एकजुट किया जा सके। उनके पास बताने के लिए कुछ खास उपलब्धियां हैं नहीं, तो उनके पास यही चारा बचा है।

इसे पढ़ें : जनसंख्या नियंत्रण तो केवल बहाना है योगी जी को हिंदू मुस्लिम दीवार को तीखा बनाना है!

यूपी में इस बहस की वजह समझ में आती है, मगर ऐसी बहस बिहार में क्यों है? बिहार भाजपा के कई नेताओं ने पिछले दिनों खुल कर कहा है कि जैसा कानून यूपी में बन रहा है, बिहार में भी बनना चाहिए। राज्य के पंचायती राज मंत्री सम्राट चौधरी ने तो यहां तक कह दिया कि बिहार सरकार पंचायत चुनाव में भी ऐसे कानून लागू कर सकती है कि दो से अधिक बच्चे वाले लोगों को चुनाव लड़ने नहीं दिया जाये। जबकि राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने साफ-साफ कहा है कि बिहार में ऐसे कानून की जरूरत नहीं, यहां हमने जागरूकता और लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देकर जनसंख्या नियंत्रण में सफलता हासिल की है।

यूपी के फैसले को लेकर बिहार में चल रही इस बहस पर टिप्पणी करते हुए यूपी और बिहार दोनों जगह की राजनीति पर पैनी नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार और प्रभात खबर के पूर्व कारपोरेट एडीटर राजेंद्र तिवारी कहते हैं कि योगी और नीतीश की राजनीति में सिर्फ इतना फर्क है कि योगी जो कुछ कह रहे हैं वे खुल कर कह रहे हैं, मगर नीतीश कहते कुछ और हैं और करते कुछ और। हम सब जानते हैं कि नीतीश ने खुद नगर निकाय चुनावों में दो से अधिक बच्चे वालों को चुनाव नहीं लड़ने देने का प्रस्ताव रखा था। मगर अब जबकि यह मुद्दा भावनात्मक अधिक लग रहा है तो अपने बयानों के जरिये खुद को सेकुलर दिखाने और अल्पसंख्यकों की सहानुभूति हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं। असल में भाजपा जिस अल्पसंख्यक तुष्टिकरण की बात करती है, नीतीश जैसे नेता जो उनके साथ हैं, वही इसके पुरोधा हैं।

नीतीश के व्यवहार के दोहरेपन की शिकायत बिहार के पूर्व बीबीसी संवाददाता मणिकांत ठाकुर भी करते हैं और वे भी नगर निकाय में दो बच्चों की नीति वाले प्रसंग को उठाते हैं। वे कहते हैं कि दरअसल नीतीश हमेशा इस बात की गुंजाइश रखते हैं कि अगर बीजेपी उनसे अलग हो जाये या उन्हें बीजेपी से अलग राह अपनानी पड़े तो उस वक्त सेकुलर राजनीति में वे आसानी से फिट हो सकें। वे पहले भी ऐसे बयान देते रहे हैं। पर अगर हर फैसला इसी तरह वोट और राजनीति के आधार पर होगा तो देश का क्या होगा?

मगर यूपी और बिहार दोनों राज्यों में सक्रिय और लैंगिक समानता और प्रजनन अधिकार को लेकर सक्रिय रहने वाले वरिष्ठ पत्रकार नसीरुद्दीन नीतीश के स्टैंड को सही करार देते हैं। वे कहते हैं कि योगी और नीतीश का इस मुद्दे पर जो स्टैंड है वह उन दोनों की वैचारिक पृष्ठभूमि का फर्क है। इसलिए इस मुद्दे पर दोनों के विचार अलग-अलग हैं। वे कहते हैं कि यह प्रस्तावित कानून विशुद्ध रूप गरीब विरोधी और स्त्री विरोधी है।

नसीरुद्दीन कहते हैं कि वर्षों के अनुभव से यह साफ हो चुका है कि मानव विकास ही दुनिया का सबसे सफल गर्भनिरोधक है। अगर सरकारें जनसंख्या का नियंत्रण करना चाहती है तो वह अपनी आबादी को बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य और संपन्नता के करीब ले जाये। गर्भनिरोधक उपायों को उनके लिए उपलब्ध कराये। खुद ब खुद जनसंख्या नियंत्रित होने लगेगी। पिछले एक दशक में हमने देखा भी है कि देश का टोटल फर्टिलिटी रेट तेजी से गिरा है। उसकी वजह कोई कानून नहीं है। यह वह विकास है जो लोगों को शिक्षित, स्वस्थ औऱ सक्षम बना रहा है।

इसलिए यह पूरी बहस राजनीतिक है। दरअसल ये लोग हमें लगातार ऐसी बहसों में उलझाकर रखना चाहते हैं, जिनका कोई वास्तविक नतीजा नहीं निकलता। हम बस आपस में  लड़ते हैं। अगर सरकार वाकई नियंत्रण ही करना चाहती है तो वह इसकी शुरुआत लोकसभा और विधानसभा चुनाव से क्यों नहीं करती? 

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

इसे भी पढ़ें :   न भारत की आबादी में भयंकर बढ़ोतरी हो रही है और न ही मुस्लिमों की आबादी में

UttarPradesh
Bihar
Yogi Adityanath
Nitish Kumar
Population Control Act
BJP
UP ELections 2022

Related Stories

बदायूं : मुस्लिम युवक के टॉर्चर को लेकर यूपी पुलिस पर फिर उठे सवाल

बिहार: पांच लोगों की हत्या या आत्महत्या? क़र्ज़ में डूबा था परिवार

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

बिहार : जीएनएम छात्राएं हॉस्टल और पढ़ाई की मांग को लेकर अनिश्चितकालीन धरने पर

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट


बाकी खबरें

  • hisab kitab
    न्यूज़क्लिक टीम
    लोगों की बदहाली को दबाने का हथियार मंदिर-मस्जिद मुद्दा
    20 May 2022
    एक तरफ भारत की बहुसंख्यक आबादी बेरोजगारी, महंगाई , पढाई, दवाई और जीवन के बुनियादी जरूरतों से हर रोज जूझ रही है और तभी अचनाक मंदिर मस्जिद का मसला सामने आकर खड़ा हो जाता है। जैसे कि ज्ञानवापी मस्जिद से…
  • अजय सिंह
    ‘धार्मिक भावनाएं’: असहमति की आवाज़ को दबाने का औज़ार
    20 May 2022
    मौजूदा निज़ामशाही में असहमति और विरोध के लिए जगह लगातार कम, और कम, होती जा रही है। ‘धार्मिक भावनाओं को चोट पहुंचाना’—यह ऐसा हथियार बन गया है, जिससे कभी भी किसी पर भी वार किया जा सकता है।
  • India ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    ज्ञानवापी विवाद, मोदी सरकार के 8 साल और कांग्रेस का दामन छोड़ते नेता
    20 May 2022
    India Ki Baat के दूसरे एपिसोड में वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश, भाषा सिंह और अभिसार शर्मा चर्चा कर रहे हैं ज्ञानवापी विवाद, मोदी सरकार के 8 साल और कांग्रेस का दामन छोड़ते नेताओं की। एक तरफ ज्ञानवापी के नाम…
  • gyanvapi
    न्यूज़क्लिक टीम
    पूजा स्थल कानून होने के बावजूद भी ज्ञानवापी विवाद कैसे?
    20 May 2022
    अचानक मंदिर - मस्जिद विवाद कैसे पैदा हो जाता है? ज्ञानवापी विवाद क्या है?पक्षकारों की मांग क्या है? कानून से लेकर अदालत का इस पर रुख क्या है? पूजा स्थल कानून क्या है? इस कानून के अपवाद क्या है?…
  • भाषा
    उच्चतम न्यायालय ने ज्ञानवापी दिवानी वाद वाराणसी जिला न्यायालय को स्थानांतरित किया
    20 May 2022
    सर्वोच्च न्यायालय ने जिला न्यायाधीश को सीपीसी के आदेश 7 के नियम 11 के तहत, मस्जिद समिति द्वारा दायर आवेदन पर पहले फैसला करने का निर्देश दिया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License