NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
मज़दूर-किसान
भारत
राजनीति
किसानों व व्यापारियों को नहीं भा रहीं प्रधानमंत्री की पेंशन योजनाएं
देश के एक प्रतिशत किसानों ने भी इस योजना में रुचि नहीं दिखायी है। पीएमकेएमवाई की सरकारी वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक, 3 नवंबर तक इस योजना के तहत महज 18 लाख 46 हजार किसानों ने अपना पंजीकरण कराया है।
सरोजिनी बिष्ट
04 Nov 2019
 PM kisan pension scheme
Image Courtesy: Telegraph Inida

जब बीते 12 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने झारखंड दौरे के दौरान एक भव्य कार्यक्रम के जरिये पूरे देश के छोटे और सीमांत किसानों के लिए प्रधानमंत्री किसान मानधन योजना (पीएमकेएमवाई) का शुभारंभ किया था तो माना जा रहा था कि किसानों के पक्ष और हित में यह अब तक का सबसे क्रांतिकारी कदम साबित होगा। इस दौरान दावा किया गया कि देश के करोड़ों किसानों के लिए यह योजना बुढ़ापे का सहारा बनेगी। लेकिन अब तक के पंजीकरण के आंकड़े साफ बता रहे हैं कि किसानों का रुख इसकी ओर ठंडा ही है। देश के एक प्रतिशत किसानों ने भी इस योजना में रुचि नहीं दिखायी है।

पीएमकेएमवाई की सरकारी वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक, 3 नवंबर तक इस योजना के तहत महज 18 लाख 46 हजार किसानों ने अपना पंजीकरण कराया है। किसानों की संख्या भी उन्हीं राज्यों से ज्यादा है जहां भाजपा की सरकारें हैं। हालांकि प्रधानमंत्री का गृह राज्य गुजरात यहां फिसड्डी साबित हुआ है। छत्तीसगढ़ के अलावा, अन्य पार्टियों द्वारा शासित राज्यों के किसान इस योजना को लेकर कतई उत्साह नहीं दिखा रहे। अगर हरियाणा और झारखंड जैसे तुलनात्मक रूप से छोटे राज्यों को छोड़ दें तो पंजीकरण का आंकड़ा बेहद निराशाजनक है।

2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, भारत में कुल किसानों (जोतदारों) की संख्या लगभग 12 करोड़ है। इनमें सबसे ज्यादा दो करोड़ किसान उत्तर प्रदेश में हैं। लेकिन उत्तर प्रदेश में अभी तक केवल 2 लाख 36 हजार किसानों ने मानधन योजना के लिए पंजीकरण कराया है। पंजीकरण के मामले में वह चौथे स्थान पर है। उत्तर प्रदेश के 10 जिलों से पंजीकरण की संख्या एक हजार तक भी नहीं पहुंची है। पंजीकरण में सबसे आगे हरियाणा और दूसरे नंबर पर झारखंड है। हरियाणा में 24 लाख किसान हैं और अब तक वहां के 4 लाख से ज्यादा किसान पंजीकरण करा चुके हैं।

झारखंड में 38 लाख किसान हैं, जिनमें से 2 लाख 40 हजार किसानों ने पंजीकरण कराया है। तीसरे स्थान पर बिहार है, जहां के 72 लाख किसानों में से केवल 2 लाख 37 हजार किसानों ने पंजीकरण कराया है। छत्तीसगढ़ में लगभग दो लाख और ओड़िशा में 1 लाख 35 हजार किसान मानधन योजना के लिए पंजीकृत हो चुके हैं। बाकी देश के किसी राज्य में अब तक एक लाख पंजीकरण भी नहीं हुआ है। दिल्ली, पुडुचेरी, मिजोरम, लक्षद्वीप, सिक्किम, मेघालय ऐसे राज्य हैं, जहां अब तक 100 किसानों ने भी पंजीकरण नहीं कराया है।

प्रधानमंत्री किसान मानधन योजना एक अंशदान आधारित पेंशन योजना है। इसमें 18 से 40 साल तक के किसान शामिल हो सकते हैं, बशर्ते कि उनके पास दो हेक्टेयर से ज्यादा खेती की जमीन नहीं हो। इसके अलावा भी कुछ शर्तें हैं। पेंशन पाने के लिए न्यूनतम 55 रुपये और अधिकतम 200 रुपये तक मासिक अंशदान करना होगा, जो कि उम्र पर निर्भर है। 60 साल की उम्र होने पर योजना में शामिल किसान को 3000 रुपये प्रतिमाह पेंशन मिलेगी। यह योजना किसानों को नहीं लुभा पा रही है तो इसके तीन मुख्य कारण माने जा रहे हैं। पहला कारण यह है कि कोई किसान अमूमन 30 की उम्र होने पर भविष्य के बारे में सोचना शुरू करता है। अगर 30 साल तक अंशदान करे तो उसे 60 साल का होने पर पेंशन मिलेगी। कई किसान कहते हैं कि आज से 30 साल बाद 3000 रुपये का भला क्या मोल होगा।

दूसरे मुख्य कारण को सटीक ढंग से चिह्नित किया है भारतीय किसान आंदोलन के संयोजक कुलदीप कुमार ने। अखबारों में छपे उनके बयान के मुताबिक, ज्यादातर खेती पुश्तैनी जमीन पर होती है। इस व्यवस्था में अधिकतर किसानों के नाम पर भूमि तब हो पाती है जब पिता का निधन हो जाये। यानी अधिकतर किसान भूमि रिकॉर्ड में तब जमीन के मालिक बन पाते हैं जब वे अधेड़ या बुजुर्ग हो चुके हैं। ऐसे में उनके लिए पेंशन योजना में शामिल हो पाना संभव नहीं हो पाता है। तीसरा मुख्य कारण यह है कि किसानों की कमर पहले से टूटी हुई है, वे भला अंशदान कहां से दें। भारतीय किसान यूनियन के एक नेता राकेश टिकैत का कहना है कि किसानों को अपनी उपज का पूरा दाम भी नहीं मिल पाता। ऐसे में वे नियमित रूप से किस्तों का भुगतान कहां से करें।

बीते 12 सितंबर को ही नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री किसान मानधन योजना के साथ देश के करोड़ों व्यापारियों और स्व-रोजगार करनेवालों के लिए भी राष्ट्रीय पेंशन योजना की शुरुआत की। इसे 'नेशनल पेंशन स्कीम फॉर ट्रेडर्स एंड सेल्फ-इम्प्लॉयड पर्सन्स' नाम दिया गया है। इस योजना से जुड़ने के लिए व्यापारियों की उम्र 18 से 40 साल के बीच और सालाना टर्नओवर 1.5 करोड़ रुपये से कम होना चाहिए। किसानों की तरह ये लोग भी हर महीने 55 से 200 रुपये का अंशदान करके 60 साल की उम्र होने पर 3000 रुपये महीने की पेंशन पा सकते हैं। लेकिन इस योजना की हालत और भी खराब है।

मानधन की सरकारी वेबसाइट पर उपलब्ध कराये गये आंकड़ों के मुताबिक, नेशनल पेंशन स्कीम फॉर ट्रेडर्स एंड सेल्फ-इम्प्लॉयड पर्सन्स के तहत अब तक चार हजार से भी कम लोगों ने पंजीकरण कराया है। किसी भी राज्य में पंजीकरण की संख्या 500 तक भी नहीं पहुंच पायी है। हरियाणा सभी राज्यों के बीच अव्वल है जहां 483 पंजीकरण हुए हैं। इसेक बाद चंडीगढ़ में 391, उत्तर प्रदेश में 347, बिहार में 346, कर्नाटक में 342, झारखंड में 262 और महाराष्ट्र में 244 लोगों ने पंजीकरण कराया है। अन्य राज्यों में यह संख्या 200 के नीचे है। दमन व दीव, लक्षद्वीप, मिजोरम, सिक्किम, पुडुचेरी और दादरा एवं नगर हवेली में योजना का खाता तक नहीं खुला है। मेघालय, जम्मू एवं कश्मीर, नगालैंड, गोवा, अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर में इस योजना के लिए आवेदकों की संख्या अभी दहाई के नीचे है।

इसमें दो राय नहीं कि जिस जोश और शोर के साथ इन पेंशन योजनाओं को शुरू किया गया था और करोड़ों लोगों को इससे फायदा पहुंचने का दावा किया गया था उसके विपरीत इन योजनाओं में रजिस्ट्रेशन का प्रतिशत देख यही कहा जा सकता है कि योजनाएं उस स्तर तक प्रभावित नहीं कर रही जितना दावा ठोका गया था।

Pradhan Mantri Kisan Maandhan Yojna
farmer
Farmer pension scheme
Narendra modi
BJP
modi sarkar
Jharkhand
Chattisgarh
PMKMY

Related Stories

किसानों और सत्ता-प्रतिष्ठान के बीच जंग जारी है

कार्टून क्लिक: किसानों की दुर्दशा बताने को क्या अब भी फ़िल्म की ज़रूरत है!

तमिलनाडु: छोटे बागानों के श्रमिकों को न्यूनतम मज़दूरी और कल्याणकारी योजनाओं से वंचित रखा जा रहा है

ज़रूरी है दलित आदिवासी मज़दूरों के हालात पर भी ग़ौर करना

मई दिवस: मज़दूर—किसान एकता का संदेश

ब्लैक राइस की खेती से तबाह चंदौली के किसानों के ज़ख़्म पर बार-बार क्यों नमक छिड़क रहे मोदी?

आख़िर किसानों की जायज़ मांगों के आगे झुकी शिवराज सरकार

किसान-आंदोलन के पुनर्जीवन की तैयारियां तेज़

ग्राउंड रिपोर्टः डीज़ल-पेट्रोल की महंगी डोज से मुश्किल में पूर्वांचल के किसानों की ज़िंदगी

सार्वजनिक संपदा को बचाने के लिए पूर्वांचल में दूसरे दिन भी सड़क पर उतरे श्रमिक और बैंक-बीमा कर्मचारी


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    वाम दलों का महंगाई और बेरोज़गारी के ख़िलाफ़ कल से 31 मई तक देशव्यापी आंदोलन का आह्वान
    24 May 2022
    वामदलों ने आवश्यक वस्तुओं की बढ़ती कीमतों और बेरज़गारी के विरोध में 25 मई यानी कल से 31 मई तक राष्ट्रव्यापी आंदोलन का आह्वान किया है।
  • सबरंग इंडिया
    UN में भारत: देश में 30 करोड़ लोग आजीविका के लिए जंगलों पर निर्भर, सरकार उनके अधिकारों की रक्षा को प्रतिबद्ध
    24 May 2022
    संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत ने दावा किया है कि देश में 10 करोड़ से ज्यादा आदिवासी और दूसरे समुदायों के मिलाकर कुल क़रीब 30 करोड़ लोग किसी ना किसी तरह से भोजन, जीविका और आय के लिए जंगलों पर आश्रित…
  • प्रबीर पुरकायस्थ
    कोविड मौतों पर विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट पर मोदी सरकार का रवैया चिंताजनक
    24 May 2022
    भारत की साख के लिए यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि वह विश्व स्वास्थ्य संगठन के 194 सदस्य देशों में अकेला ऐसा देश है, जिसने इस विश्व संगठन की रिपोर्ट को ठुकराया है।
  • gyanvapi
    न्यूज़क्लिक टीम
    ज्ञानवापी मस्जिद की परछाई देश की राजनीति पर लगातार रहेगी?
    23 May 2022
    न्यूज़क्लिक की इस ख़ास पेशकश में वरिष्ठ पत्रकार नीलांजन मुखोपाध्याय ज्ञानवापी मस्जिद और उससे जुड़े मुगल साम्राज्य के छठे सम्राट औरंगज़ेब के इतिहास पर चर्चा कर रहे हैं|
  • सोनिया यादव
    तेलंगाना एनकाउंटर की गुत्थी तो सुलझ गई लेकिन अब दोषियों पर कार्रवाई कब होगी?
    23 May 2022
    पुलिस पर एनकाउंटर के बहाने अक्सर मानवाधिकार-आरटीआई कार्यकर्ताओं को मारने के आरोप लगते रहे हैं। एनकाउंटर के विरोध करने वालों का तर्क है कि जो भी सत्ता या प्रशासन की विचारधारा से मेल नहीं खाता, उन्हें…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License