NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
फिल्में
भारत
राजनीति
हिटलर से प्रेरित है 'कश्मीर फाइल्स’ की सरकारी मार्केटिंग, प्रधानमंत्री से लेकर कार्यकर्ता तक
एक वह समय था जब भारत के प्रधानमंत्री अपने समय के फिल्मकारों को 'हकीकत’, 'प्यासा’, 'नया दौर’ जैसी फिल्में बनाने के लिए प्रोत्साहित किया करते थे और आज वह समय आ गया है जब मौजूदा प्रधानमंत्री एक खास वर्ग के प्रति घृणा फैलाने वाली फिल्म 'कश्मीर फाइल्स’ की मार्केटिंग कर रहे हैं।
अनिल जैन
17 Mar 2022
the kashmir files

देश बदल नहीं रहा है बल्कि बहुत कुछ बदल चुका है! एक वह समय था जब भारत के प्रधानमंत्री अपने समय के फिल्मकारों को 'हकीकत’, 'प्यासा’, 'नया दौर’ जैसी फिल्में बनाने के लिए प्रोत्साहित किया करते थे और आज वह समय आ गया है जब मौजूदा प्रधानमंत्री एक यौन कुंठित और तीसरे दर्जे के फिल्मकार की तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर बनाई गई बदअमनी फैलाने वाली फिल्म 'कश्मीर फाइल्स’ की मार्केटिंग कर रहे हैं। यह विडंबना तब के और अब के प्रधानमंत्री के बीच उनकी औपचारिक पढ़ाई-लिखाई के फर्क के साथ ही उनके बौद्धिक स्तर और उनके इरादों के फर्क को भी रेखांकित करती है।

आज से पहले कभी किसी सरकार को खुलेआम दंगा-फसाद के लिए लोगों को उकसाते या भड़काते हुए नहीं देखा गया था (दबे-छुपे भले ही पहले ऐसा किया गया हो)। आज प्रधानमंत्री के नेतृत्व में पूरी केंद्रीय मंत्रिपरिषद, दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी, उस पार्टी की सभी राज्य सरकारें, दुनिया का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन और कॉरपोरेट नियंत्रित-सरकार समर्थक मीडिया आम लोगों को फिल्म 'कश्मीर फाइल्स’ देखने के लिए उकसा रहे हैं, ललकार रहे हैं। राज्य सरकारों ने फिल्म को टैक्स फ्री कर दिया है। यही नहीं, वे अपने पुलिसकर्मियों और अन्य कर्मचारियों को फिल्म देखने के लिए अवकाश भी दे रही हैं।

जिस तरह प्रधानमंत्री की रैलियों के लिए बसों के जरिए भीड़ जुटाई जाती है और उसके लिए नाश्ता-भोजन आदि का इंतजाम किया जाता है, उसी तरह इस फिल्म को दिखाने के लिए भी सत्तारूढ़ पार्टी और उसके बगल-बच्चा संगठनों की ओर से आम लोगों को बाकायदा बसों में भर कर सिनेमा हॉल तक ले जाया जा रहा है। उन लोगों के लिए फिल्म के दौरान के चाय-नाश्ते और फिल्म देखने के बाद भोजन की व्यवस्था की जा रही है। सुदूर गांवों में रहने वाले लोगों को फिल्म देखने के लिए निकटवर्ती शहरों में बुलाया जा रहा है। लोग जुलूस की शक्ल में भाजपा और आरएसएस के झंडे लहराते हुए भी फिल्म देखने जा रहे हैं।

फिल्म देख कर सिनेमा हॉल से बाहर निकल रहे लोगों के वीडियो बता रहे हैं कि वे प्रतिहिंसा से उबल रहे हैं। वे भारत माता की जय और एक राजनीतिक दल की जिंदाबाद के साथ मोदी-मोदी के नारे भी लगा रहे हैं और अनियंत्रित होकर एक समुदाय विशेष को मां-बहन की भद्दी गालियां भी बक रहे हैं, बदला लेने के नारे लगा रहे हैं। उनकी नारेबाजी में कश्मीरी पंडितों के विस्थापन-पलायन और उनके दर्द की टीस का कोई नामोनिशान नहीं है। यह सब सिनेमा हॉल के बाहर ही नहीं, भीतर फिल्म देखने के दौरान भी हो रहा है।

आमतौर पर मल्टीप्लेक्सों में लूज टॉक या गाली-गलौज तो छोड़िए, किसी दृश्य पर सीटी या ताली बजाना तक शिष्टाचार या सभ्यता के विपरीत माना जाता है। लेकिन कश्मीर फाइल्स के शो में सब कुछ जायज है। भद्र समझे जाने वाले लोग भी उसे मौन सहमति दे रहे हैं। यानी इस फिल्म ने एक राजनीतिक दल के समर्थकों को इस बात की 'नैतिक’ ताकत दे दी है कि अब वे अपने देश-दुनिया के मुसलमानों को किसी भी सार्वजनिक जगह पर गंदी गाली दे सकते हैं, आसपास के सभ्य पुरुषों को तो छोड़िए, यहां तक कि संभ्रात घरों की महिलाएं भी बुरा नहीं मानेंगीं।

पिछले कुछ सालों से धर्मनिरपेक्षता, सर्वधर्म समभाव या भाईचारे की बात करने वालों को अपमानित और लांछित करने का चलन शुरू हुआ है। यह फिल्म भी यही कर रही है। हिंदू उग्रवाद से हट कर कोई और सोच रखने वालों को यह फिल्म कश्मीर में सक्रिय पाकिस्तान पोषित आतंकवादियों के साथ एक पाले में खड़ा कर देती है। फिल्म के नजरिए में धर्मनिरपेक्ष होना या दूसरे धर्मों के प्रति सम्मान का भाव रखना आतंकवादी होने और अपने धर्म से गद्दारी करने जैसा है। फिल्म साफ-साफ संदेश देती है कि यदि आप अब भी सांप्रदायिक नहीं हुए हैं तो आप खतरे में हैं, आपका मुस्लिम पड़ोसी आपके मकान-दुकान पर कब्जा कर सकता है और आपकी जान तक ले सकता है। इससे बचने के लिए आपका सांप्रदायिक होना नितांत आवश्यक है।

'कश्मीर फाइल्स’ जिस मकसद से बनाई गई है, उसमें वह पूरी तरह सफल रही है। लेकिन सवाल है कि क्या कश्मीर फाइल्स को सिनेमा कहा जा सकता है? दरअसल 'कश्मीर फाइल्स’ कश्मीरी पंडितों के बहाने एक समुदाय विशेष के खिलाफ नफरत पैदा करने का एक राजनीतिक औजार है, जो सत्ता द्वारा प्रायोजित है।

फिल्म बनाने वाले को सरकार से शब्बासी तो मिल ही रही है, खुद प्रधानमंत्री अपनी पार्टी के संसदीय दल की बैठक को संबोधित करते हुए फिल्मकार की, फिल्म में काम करने वालों की और फिल्म की विषय-वस्तु की न सिर्फ मुक्त कंठ से तारीफ कर रहे बल्कि फिल्म की तार्किक आलोचना करने वालों की, उनकी चिंताओं और सद्इच्छाओं की खिल्ली उड़ा रहे हैं। फिल्म से रिकॉर्ड तोड़ कमाई भी हो रही है। विकृत मानसिकता वाले एक तीसरे दर्जे के फिल्मकार और उसके मुख्य किरदार को और क्या चाहिए?

दुनिया के लोकतांत्रिक समाजों में सरकारें कहीं की भी हो, वे मुश्किल से मुश्किल हालात में अपने लोगों से शांति की अपील और शांति के लिए जरूरी बंदोबस्त करती दिखती हैं। लेकिन भारत एक अपवाद है जहां सरकार के स्तर पर गृहयुद्ध के लिए आबादियों को ललकारा/उकसाया जा रहा है। व्यक्तिगत रूप से तो लोगों के आत्मदाह करने की खबरें अक्सर आती ही रहती हैं लेकिन किसी चुनी सरकार द्वारा खुद को और पूरे मुल्क को आग में झोंकने की मिसाल पहली बार देखने को मिल रही है।

अब तक हमें ऐसी सरकारें मिलती रही हैं जो किताबों, नाटकों, चित्र और कार्टून प्रदर्शनियों, जुलूसों, सभाओं आदि पर इस वजह से प्रतिबंध लगाती रही हैं कि उनसे समाज में तनाव पैदा हो सकता था, लोगों की भावनाएं आहत और अनियंत्रित हो सकती है, शांति भंग हो सकती है और कानून-व्यवस्था की स्थिति बेकाबू होने का खतरा पैदा हो सकता है। लेकिन अब हम ऐसी सरकार देख रहे हैं जो पूरी शिद्दत से चाहती है कि यह सब हो और जरूर हो।

समूची दुनिया के इतिहास में केवल एक ही उदाहरण मिलता है जब किसी चुनी हुई सरकार ने अपनी जनता को नफरत फैलाने वाली फिल्म देखने के लिए प्रेरित किया हो, वह थी- नाजी जर्मनी की सरकार। एडोल्फ हिटलर की नाजी पार्टी ने 1933 में जर्मनी में अपनी सरकार के तहत फिल्म विभाग की स्थापना की थी। उसका मुख्य कार्य 'सार्वजनिक शिक्षा और ज्ञान के लिए उपयुक्त’ फिल्में बनाना और लोगों को दिखाना था। ऐसी फिल्मों का मुख्य उद्देश्य जातीय और नस्लीय 'सफाई’ था उस दौर में डाक्यूमेंट्री, न्यूजरील, लघु फिल्म और फीचर फिल्म मिलाकर लगभग एक हजार फिल्में बनाई गई थीं। नाजी फिल्म विभाग द्वारा निर्मित यहूदी विरोधी फिल्म 'द एटरनल जूयस’ और 'जूड सस’ को 1940 में रिलीज किया गया था।

जिस तरह हमारे यहां मध्य प्रदेश सरकार पुलिसकर्मियों को, कुछ अन्य राज्यों में सभी सरकारी कर्मचारियों को फिल्म देखने के लिए छुट्टी दी जा रही है, उसी तरह होलोकास्ट के मुख्य कर्ताधर्ता और हिटलर के विश्वस्त सहयोगी हेनरिक हिमलर ने भी अपने यहां की पुलिस सहित दूसरे कर्मचारियों को यहूदी विरोधी फिल्में देखने का फरमान जारी किया था।

नाजी जर्मनी में खास विचारधारा पर आधारित नफरत फैलाने वाली ऐसी फिल्मों के निर्माण के लिए कम ब्याज पर कर्ज उपलब्ध कराने के लिए लिए एक 'फिल्म क्रेडिट बैंक’ की स्थापना की गई और ऐसी फिल्मों को टैक्स फ्री भी किया गया था। नाजी सरकार की ओर से ऐसी फिल्मों को पुरस्कृत भी किया जाता था।

दरअसल हिटलर खुद भी फिल्मों के मनोवैज्ञानिक प्रभाव के बारे में समझ रखता था। अपनी आत्मकथा 'मीन कैम्फ’ में उसने लिखा है कि लोगों को लिखे अथवा छपे हुए शब्दों की अपेक्षा फिल्मों से जोड़ना ज्यादा आसान है। हिटलर और उसका प्रचार मंत्री जोसेफ गॉएबल्स नियमित रूप से अपने घर में फिल्में देखते थे और अक्सर उन फिल्मों के तथा फिल्म निर्माण के बारे में चर्चा करते थे।

साफ़ नजर आता है कि फिल्में नाजी जर्मनी में नफरत फैलाने का सबसे महत्वपूर्ण माध्यम थीं और आज भारत में भी उसी तर्ज पर नफरत फैलाने के लिए उसी माध्यम को अपनाया जा रहा है।

ये भी पढ़ें: कश्मीर फाइल्स: आपके आंसू सेलेक्टिव हैं संघी महाराज, कभी बहते हैं, और अक्सर नहीं बहते

The Kashmir Files
Kashmiri Pandits
Vivek Agnihotri
Movie on Kashmiri Pandit
BJP
RSS
social media hate speech
Communal Hate
Narendra modi
Modi government
Hindu
Muslim

Related Stories

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !

फ़िल्म निर्माताओं की ज़िम्मेदारी इतिहास के प्रति है—द कश्मीर फ़ाइल्स पर जाने-माने निर्देशक श्याम बेनेगल

कश्मीर फाइल्स हेट प्रोजेक्ट: लोगों को कट्टरपंथी बनाने वाला शो?

भाजपा सरकार के प्रचार का जरिया बना बॉलीवुड

कश्मीर फाइल्स की कमाई कश्मीरी पंडितों को देने के सवाल को टाल गए विवेक अग्निहोत्री

कश्मीरी पंडितों ने द कश्मीर फाइल्स में किए गए सांप्रदायिक दावों का खंडन किया

तिरछी नज़र: बिन देखे मुझे भी पता है कि फ़िल्म बहुत ही अधिक अच्छी है

सद्भाव बनाए रखना मुसलमानों की जिम्मेदारी: असम CM

कश्मीर फाइल्स: आपके आंसू सेलेक्टिव हैं संघी महाराज, कभी बहते हैं, और अक्सर नहीं बहते


बाकी खबरें

  • blast
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    हापुड़ अग्निकांड: कम से कम 13 लोगों की मौत, किसान-मजदूर संघ ने किया प्रदर्शन
    05 Jun 2022
    हापुड़ में एक ब्लायलर फैक्ट्री में ब्लास्ट के कारण करीब 13 मज़दूरों की मौत हो गई, जिसके बाद से लगातार किसान और मज़दूर संघ ग़ैर कानूनी फैक्ट्रियों को बंद कराने के लिए सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रही…
  • Adhar
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: आधार पर अब खुली सरकार की नींद
    05 Jun 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस सप्ताह की जरूरी ख़बरों को लेकर फिर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन
  • डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
    तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष
    05 Jun 2022
    हमारे वर्तमान सरकार जी पिछले आठ वर्षों से हमारे सरकार जी हैं। ऐसा नहीं है कि सरकार जी भविष्य में सिर्फ अपने पहनावे और खान-पान को लेकर ही जाने जाएंगे। वे तो अपने कथनों (quotes) के लिए भी याद किए…
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' का तर्जुमा
    05 Jun 2022
    इतवार की कविता में आज पढ़िये ऑस्ट्रेलियाई कवयित्री एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' जिसका हिंदी तर्जुमा किया है योगेंद्र दत्त त्यागी ने।
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित
    04 Jun 2022
    देशभक्तों ने कहां सोचा था कि कश्मीरी पंडित इतने स्वार्थी हो जाएंगे। मोदी जी के डाइरेक्ट राज में भी कश्मीर में असुरक्षा का शोर मचाएंगे।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License