NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
चुनाव 2022
विधानसभा चुनाव
भारत
राजनीति
पंजाब में नेताओं का दल-बदली अभियान जारी, आप, अकाली, भाजपा, कांग्रेस सबके नेता हुए इधर-उधर
पंजाब विधान सभा के इस चुनाव में 100 के करीब ऐसे उम्मीदवार मैदान में हैं जिनको दल-बदली के बाद टिकट दी गई है। जिन नेताओं को अपनी पुरानी पार्टी में टिकट नहीं मिली उन्हें नई पार्टी में जाते ही टिकट मिल गई।
शिव इंदर सिंह
24 Jan 2022
PUNJAB

पंजाब में जैसे ही चुनावी माहौल गरमाने लगा है नेताओं ने कपड़ों की तरह पार्टियाँ बदलनी शुरू कर दी हैं। इस दल-बदली में राज्य के छोटे-बड़े नेता, बड़े नेताओं के परिवारिक सदस्य सब शामिल हैं। दूसरी तरफ पंजाब के आम लोग नेताओं की इस दल-बदली को राजनैतिक मौकापरस्ती समझ रहे हैं। लोगों में यह बात आम है कि इन नेताओं का जनता से कोई सरोकार नहीं है। अपने सियासी फ़ायदे के लिए ये किसी भी हद तक जा सकते हैं।

पंजाब विधान सभा के इस चुनाव में 100 के करीब ऐसे उम्मीदवार मैदान में हैं जिनको दल-बदली के बाद टिकट दी गई है। जिन नेताओं को अपनी पुरानी पार्टी में टिकट नहीं मिली उन्हें नई पार्टी में जाते ही टिकट मिल गई। आम आदमी पार्टी ने 35 से ऊपर ऐसे उम्मीदवारों को टिकट दी है जो अन्य पार्टियों से आए हैं। इन 35 में ज़्यादा गिनती कांग्रेस और अकाली दल छोड़कर आने वाले नेताओं की है। शिरोमणि अकाली दल द्वारा घोषित 94 उम्मीदवारों में से 30 ऐसे हैं जिनकी मूल पार्टी अकाली दल नहीं है। कांग्रेस द्वारा मैदान में उतारे गये 86 उम्मीदवारों में से 17 बाहर की पार्टियों से आए हुए हैं। भाजपा द्वारा मैदान में अभी तक उतारे गये 34 उम्मीदवारों में से बड़ी गिनती भी दल बदलूओं की है।

दूसरी पार्टियों को छोड़ कर भाजपा से टिकट पाने वालों में से राणा गुरमीत सोढी, अरविंद खन्ना, दिनेश बब्बी, गुरप्रीत भट्टी, निमिषा मेहता आदि शामिल हैं। मैदान में उतरे इन दल बदलू नेताओं में से कई नेता तो एक से अधिक बार पार्टी बदल चुके हैं। आम आदमी पार्टी के मोहाली से उम्मीदवार कुलवंत सिंह पहले अकाली दल में थे फिर उन्होंने आज़ाद उम्मीदवार के तौर पर किस्मत आजमाई अब ‘आप’ में शामिल हुए हैं। लुधियाना पूर्वी से दलजीत भोला पहले अकाली दल में थे फिर लोक इंसाफ पार्टी के साथ जा मिले और अब आम आदमी पार्टी से चुनाव लड़ रहे हैं। कादीयाँ विधानसभा क्षेत्र से जगरूप सेखवां पहले अकाली थे, फिर अकाली दल टकसाली, उसके बाद अकाली दल (संयुक्त) और अब आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार हैं। लुधियाना आत्म नगर से कंवलजीत करवल पहले अकाली दल, फिर लोक इंसाफ पार्टी, फिर दोबारा अकाली दल और अब कांग्रेस के उम्मीदवार हैं। कई ऐसे नेता भी हैं जो अपनी पार्टी से रूठ कर दूसरी पार्टी में गए कुछ दिनों बाद ही टिकट का आश्वासन मिलने पर दोबारा अपनी पुरानी पार्टी में आ गए और जब टिकट नहीं मिली तो फिर विरोध में आ गये।

पंजाब में अपने पैर जमाने की कोशिश कर रही भाजपा ने दूसरी पार्टियों के कमजोर और नाराज़ उम्मीदवारों को अपने में शामिल किया है पर ज्यादा नेता उसने अपने पुराने मित्र अकाली दल और कुछ सिख धार्मिक संस्थाओं के खींचे हैं। ज़्यादा सिख चेहरों को शामिल करवाकर भाजपा देश और दुनिया में यह संदेश देना चाहती है (भले ही उसके इस संदेश का असर पंजाब में न हो) कि सिख भाईचारे में हम अछूते नहीं है।

इस के बहाने असल में मोदी सरकार चाहती है कि दुनियाभर में उसकी जो अल्पसंख्यक विरोधी छवि बन गई है उसे थोड़ा सुधारा जा सके, भाजपा ने पहले भी यह कोशिशें की हैं। भाजपा ने मनजिंदर सिंह सिरसा और उनके साथियों समेत दिल्ली के कई सिख नेताओं को शामिल किया है। पंजाब में दमदमी टकसाल के नेता व बिक्रम सिंह मजीठिया के करीबी रहे प्रो. सरचांद सिंह और दीदार सिंह भट्टी जैसे नेता भाजपा में शामिल हुए हैं।

इसी तरह कांग्रेस से भाजपा में आए नेताओं में सतवंत मोही, अरविंद खन्ना और फतहजंग बाजवा (प्रताप सिंह बाजवा के भाई) के नाम शामिल हैं। आम आदमी पार्टी में भी कई चर्चित चेहरे दूसरी पार्टियों से आये हैं। इन दिनों कांग्रेस छोड़कर ‘आप’ में शामिल होने वालों में जोगिन्दर सिंह मान, लाली मजीठिया जैसे नेताओं के नाम शामिल हैं।

कांग्रेस ने अभी तक अपने 117 में से 86 उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है। जिन नेताओं को टिकट नहीं मिली या  तो वे दूसरी पार्टियों की तरफ मुंह कर रहे हैं या फिर आज़ाद चुनाव लड़ने की चेतावनी दे रहे हैं। इनमें पंजाब के मुख्यमंत्री चरनजीत चन्नी के भाई का नाम भी शामिल है। चन्नी के भाई डा. मनोहर सिंह ने, जो बसी पठाना से टिकट मांग रहे थे, टिकट न मिलने की सूरत में स्वतंत्र चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। याद रहे कि कांग्रेस ने इन चुनावों में एक परिवार के किसी एक सदस्य को ही टिकट देने का फैसला किया है जिसके चलते कांग्रेस से जुड़े वे परिवार जो एक से ज्यादा सीट की आस रखते थे उनमें भी बगावत के सुर तीखे हो गये हैं।

फतहजंग बाजवा ने भी भाजपा का पल्लू इस लिए पकड़ा क्योंकि उनके भाई को टिकट मिल गई लेकिन उनका पत्ता कट गया था। इसी तरह पंजाब सरकार में मंत्री राणा गुरजीत सिंह को खुद को तो कपूरथला से टिकट मिल गई पर उनके बेटे का नंबर कट गया, जिसके चलते बेटे इंदरप्रताप सिंह ने सुल्तानपुर लोधी से स्वतंत्र चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया। मोगा से मालविका सूद (सोनू सूद की बहन) को टिकट मिलने के कारण नाराज़ हरजोत कमल ने भाजपा का कमल हाथ में पकड़ लिया है। मानसा से पंजाबी गायक सिद्धू मूसेवाला को जैसे ही कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार घोषित किया पुराने कांग्रेसियों ने बगावत शुरू कर दी, इसी तरह पार्टी के सीनियर नेता महेंदर केपी ने भी टिकट न मिलने के कारण बगावत का झंडा बुलंद कर दिया। बाकी सभी पार्टियों में भी यही हाल दिखाई देता है।

पंजाब के लोग इसे मौकापरस्ती और सत्ता लोभ से बढ़कर कुछ नहीं समझते। जिला लुधियाना के रिटायर्ड अध्यापक हरबंस सिंह संधू कहते है, “यह हमारी त्रासदी है कि हमें लोगों की संवेदनाओं से दूर, लालची और सत्ता लोभी नेता मिले हैं। बेमिसाल किसान आंदोलन के कारण पूरी दुनिया ने पंजाब को आदर की नज़र से देखा अब जब ये पंजाब के नेता एक पार्टी से दूसरी पार्टी में टिकट और सियासी लालच में जा रहे हैं इन्हें भी दुनिया देख रही है। अंतर साफ़ है पंजाब के लोग संघर्ष कर रहे हैं और नेता सियासी बेईमानी कर रहे हैं। इन दल-बदलू नेताओं में से भाजपा का दामन पकड़ने वालों को तो यह भी शर्म नहीं आई कि जिस पार्टी के कारण हमारे 700 से ऊपर किसान-मज़दूर भाई-बहन शहीद हो गए हों वे किस मुंह में उधर जा रहे हैं? असल में पार्टियाँ और नेता सभी मौकापरस्त हैं। पार्टियाँ बाहर से पैराशूट के जरिए उम्मीदवार लाती हैं। नेताओं को किसी भी पार्टी से टिकट मिल जाये वे उछलते हुए उधर चले जाते हैं, पार्टी के विचार कोई मायने नहीं रखते। पंजाब के सचेत लोग इसी गंदे सियासी सिस्टम से निजात पाना चाहते हैं।’’

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

ये भी पढ़ें: पंजाब विधानसभा चुनाव की नई तारीख़, अब 20 फरवरी को पड़ेंगे वोट

punjab
Punjab Assembly Elections 2022
AAP
BJP
Congress
Shiromani Akali Dal

Related Stories

यूपी : आज़मगढ़ और रामपुर लोकसभा उपचुनाव में सपा की साख़ बचेगी या बीजेपी सेंध मारेगी?

त्रिपुरा: सीपीआई(एम) उपचुनाव की तैयारियों में लगी, भाजपा को विश्वास सीएम बदलने से नहीं होगा नुकसान

भगवंत मान ने पंजाब के मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण की

ख़बरों के आगे-पीछे: केजरीवाल मॉडल ऑफ़ गवर्नेंस से लेकर पंजाब के नए राजनीतिक युग तक

यूपीः किसान आंदोलन और गठबंधन के गढ़ में भी भाजपा को महज़ 18 सीटों का हुआ नुक़सान

जनादेश-2022: रोटी बनाम स्वाधीनता या रोटी और स्वाधीनता

पंजाब : कांग्रेस की हार और ‘आप’ की जीत के मायने

यूपी चुनाव : पूर्वांचल में हर दांव रहा नाकाम, न गठबंधन-न गोलबंदी आया काम !

उत्तराखंड में भाजपा को पूर्ण बहुमत के बीच कुछ ज़रूरी सवाल

गोवा में फिर से भाजपा सरकार


बाकी खबरें

  • सोनिया यादव
    यूपी : आज़मगढ़ और रामपुर लोकसभा उपचुनाव में सपा की साख़ बचेगी या बीजेपी सेंध मारेगी?
    31 May 2022
    बीते विधानसभा चुनाव में इन दोनों जगहों से सपा को जीत मिली थी, लेकिन लोकसभा उपचुनाव में ये आसान नहीं होगा, क्योंकि यहां सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है तो वहीं मुख्य…
  • Himachal
    टिकेंदर सिंह पंवार
    हिमाचल में हाती समूह को आदिवासी समूह घोषित करने की तैयारी, क्या हैं इसके नुक़सान? 
    31 May 2022
    केंद्र को यह समझना चाहिए कि हाती कोई सजातीय समूह नहीं है। इसमें कई जातिगत उपसमूह भी शामिल हैं। जनजातीय दर्जा, काग़जों पर इनके अंतर को खत्म करता नज़र आएगा, लेकिन वास्तविकता में यह जातिगत पदानुक्रम को…
  • रबीन्द्र नाथ सिन्हा
    त्रिपुरा: सीपीआई(एम) उपचुनाव की तैयारियों में लगी, भाजपा को विश्वास सीएम बदलने से नहीं होगा नुकसान
    31 May 2022
    हाई-प्रोफाइल बिप्लब कुमार देब को पद से अपदस्थ कर, भाजपा के शीर्षस्थ नेतृत्व ने नए सीएम के तौर पर पूर्व-कांग्रेसी, प्रोफेसर और दंत चिकित्सक माणिक साहा को चुना है। 
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कर्नाटक पाठ्यपुस्तक संशोधन और कुवेम्पु के अपमान के विरोध में लेखकों का इस्तीफ़ा
    31 May 2022
    “राज्य की शिक्षा, संस्कृति तथा राजनीतिक परिदृ्श्य का दमन और हालिया असंवैधानिक हमलों ने हम लोगों को चिंता में डाल दिया है।"
  • abhisar
    न्यूज़क्लिक टीम
    जब "आतंक" पर क्लीनचिट, तो उमर खालिद जेल में क्यों ?
    31 May 2022
    न्यूज़चक्र के इस एपिसोड में आज वरिष्ठ पत्रकार अभिसार शर्मा चर्चा कर रहे हैं उमर खालिद के केस की। शुक्रवार को कोर्ट ने कहा कि उमर खालिद का भाषण अनुचित था, लेकिन यह यह आतंकवादी कृत्य नहीं।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License