NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
राजा महेंद्र प्रतापः इतिहास से मोदी का वही खिलवाड़ 
असल में मोदी और उनका संघ परिवार आज़ादी की एक सांप्रदायिक कथा तैयार करने में लगे हैं। इसमें क्रांतिकारियों के नाम का इस्तेमाल ख़ासतौर पर होता  है जिनमें से शायद ही किसी का वास्तविक संबंध आरएसएस या हिंदू महासभा से हो।
अनिल सिन्हा
18 Sep 2021
Mahendra Pratap
राजा महेंद्र प्रताप के नाम पर भारत सरकार ने 1979 में एक डाक टिकट जारी किया। फोटो : साभार

उत्तर प्रदेश विधानसभा के अगले साल हो रहे चुनावों को ध्यान में रख कर भाजपा ने राजा महेंद्र प्रताप राज्य विश्वविद्यालय स्थापित करने के अपने दो साल पुराने फैसले को जिंदा किया है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इसके शिलान्यास के लिए अलीगढ़ ले गई। जाहिर है कि उन्होंने वही बातें दोहराई कि कांग्रेस ने आजादी के सिपाहियों को भुला दिया और अब वह उन्हें पहली बार लोगों  के सामने ला रहे हैं। असल में, वह और उनका संघ परिवार आजादी की एक सांप्रदायिक कथा तैयार करने में लगे हैं। इसमें क्रांतिकारियों के नाम का इस्तेमाल खासतौर पर होता  है जिनमें से शायद ही किसी का वास्तविक संबंध आरएसएस या हिंदू महासभा से हो।

राजा महेंद्र प्रताप जाट समुदाय से आते हैं। भाजपा उनका नाम लेकर किसान आंदोलन के कारण दूर हो गए इस समुदाय से अपनी दूरी पाटना चाहती है। 

सवाल उठता है कि क्या सच में राजा महेंद्र प्रताप को कांग्रेस ने भुला दिया? दस्तावेज ठीक इसके उलट बताते हैं। ये बताते हैं कि लंबे समय भारत से बाहर रहने वाले इस क्रांतिकारी को कांग्रेस ने न केवल याद रखा बल्कि उन्हें वापस लाने के लिए लगातार प्रयास भी करती रही। 1946 में उनके देश लौटने में कांग्रेस तथा महात्मा गांधी का बहुत योगदान है। जापान के आत्मसमर्पण के बाद जापानी अधिकारियों ने उन्हें ब्रिटिश अधिकारियों को सौंप दिया। विश्व-शांति के लिए काम कर रहे राजा महेंद्र प्रताप के खिलाफ युद्ध-अपराध का मुकदमा नहीं चलाया जा सकता था। लेकिन अंग्रेज उन्हें भारत भी लाना नहीं चाहते थे क्योंकि वे उन्हें कट्टर अंग्रेज-विरोधी मानते थे। कांग्रेस ने अपना दबाव बढ़ाया और आजादी की आहट मिलने लगी थी। राजा महेंद्र प्रताप ने भी भारत आने का मन बना लिया था। वह अगस्त 1946 में भारत आ गए।

हिंदू-मुस्लिम भाईचारे तथा विश्व-बंधुत्व के प्रबल समर्थक राजा ने खुद ही ब्रिटिश भारत की नागरिकता त्यागी थी और कभी भी अंग्रेजों से माफी नहीं मांगी। उन्होंने 1915 में काबुल में स्वतंत्र भारत की निर्वासित सरकार बनाई। वह राष्ट्रपति बने और मौलवी बरकतुल्ला को प्रधानमंत्री बनाया। उनके गृह मंत्री ओबैदुल्ला सिंधी थे।

पिछले कई सालों से भाजपा राजा महेंद्र प्रताप का नाम लेकर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में सांप्रदायिक विवाद खड़ा करने में लगी है। उन्होंने छोटी सी जमीन विश्वविद्यालय को लीज पर दी थी। उसे ही विवाद का आधार बना दिया गया है।

सच्चाई यह है कि विश्वविद्यालय से उनका रिश्ता आजीवन अच्छा रहा और सेकुलरिज्म में उनका विश्वास कभी डिगा नहीं।

वह इतने स्वतंत्र विचारों के थे कि उन्होंने 1957 में मथुरा से लोकसभा का चुनाव स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में लड़ा और जीत कर आए। उनसे हारने वालों में भारतीय जनसंघ के उम्मीदवार अटलबिहारी वाजपेयी भी थे। वह चौथे नंबर पर रहे।

उनके योगदान को देखते हुए स्वतंत्रता सेनानियों ने उन्हें अपना अध्यक्ष बनाया था जिसमें अधिकांश कांग्रेस के लोग थे क्योंकि हिंदुत्ववादियों का आजादी के आंदेालन से कोई रिश्ता नहीं था।

1979 में उनकी मौत के कुछ महीनों के बाद ही भारत सरकार ने उनके नाम एक डाक टिकट जारी किया था। सेकुलरिज्म को लेकर उनके विचार अलग किस्म के थे और उन्होंने धर्मों के बीच टकराव को रोकने के लिए 1957 में एक प्रस्ताव भी लोकसभा में पेश किया था जिसमें ‘प्रेम आधारित धर्म’ के प्रसार की  वकालत की गई थी।

कांग्रेस उन्हें किस गंभीरता से लेती थी, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उसने उनकी वापसी का सवाल 1935, 1937, 1938 और 1946 तक लेजिस्लेटिव असेंबली के हर सत्र में उठाया। 1937 में प्रांतों में कांग्रेस की सरकार बन गई तो उसने राजा महेंद्र प्रताप को फिर से देश वापस लाने की कोशिश की और अंग्रेज सरकार को आश्वासन दिया कि वह उनकी जिम्मेदारी लेगी। जब यह प्रस्ताव अंसेबली में रखा गया तो सरकार ने साफ मना कर दिया। लेजिस्लेटिव असेंबली में कृष्णदत्त पालीवाल, श्री प्रकाश, ब्रिजलाल बियानी, एस सत्यमूर्ति और मोहन लाल सक्सेना जैसे कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओें तथा अकाली नेता सरदार मंगल सिंह ने यह सवाल बार-बार उठाया।

1935 में अंसेबली की बैठक में अंग्रेज सरकार ने कहा कि राजा महेंद्र प्रताप ने विश्वयुद्ध में अंग्रेजों के खिलाफ जर्मनों का साथ दिया। वह देशद्रोही हैं और इसलिए उन्हें वापस आने की अनुमति देने का सवाल ही नहीं पैदा होता है। इस पर एस सत्यमूर्ति ने कहा कि अंग्रेजों का विरोध करने वालों को सरकार देशनिकाला देगी तो उन्हें हम सभी लोगों को भी देश के बाहर भेजना पड़ेगा।

कांग्रेस के साथ उनके संबंधों को समझने के लिए 18 फरवरी, 1938 को संयुक्त प्रांत की कांग्रेस की सरकार के प्रधानमंत्री (उन दिनों मुख्यमंत्री को प्रधानमंत्री कहा जाता था) को टोकियो से लिखे गए पत्र को पढ़ना चाहिए। 

‘‘मुझे अपने पासपोर्ट की कॉपी भेजते हुए गर्व महसूस हो रहा है जो फरवरी के अंक में प्रकाशित हुआ है। (वह टोकियो से अपना अखबार निकालते थे)। मैं आपसे निवेदन करता हूं कि इस बयान में  दिए गए मेरे जन्म तथा हिंदुस्तान में मेरे जीवन से संबंधित  तथ्यों के बारे में एक आधिकारिक प्रमाण-पत्र जारी करें। मैं मुरसान, जिला अलीगढ़ में पैदा हुआ और मैंने बृंदाबन, जिला मथुरा में प्रेम महाविद्यालय की स्थापना की थी, ये दोनों आपके क्षेत्र में पड़ता है।

मुझे उम्मीद है कि आप मुझे जरूरी दस्तावेज देंगे। इसे मैं अपने पसपोर्ट के साथ इस्तेमाल करूंगा। इसके बाद इसी पासपोर्ट के आधार पर हिंदुस्तान की यात्रा करने के लिए ब्रिटिश दूतावास से वीजा या परमिट मांगूगा। अगर दूतावास ने मेरे आवेदन को ठुकरा दिया तो मैं एक दिन ‘‘महात्मा गांधी के तरीका’’ यानी उस कानून को नहीं मानना जिसके बारे में हमें ईमानदारी से लगता है कि यह भगवान के कानून के खिलाफ है, अपना कर देश में प्रवेश करने का प्रयास करूंगा।

पुनश्चः मैं इस पत्र की एक कॉपी टोकियों में ब्रिटिश दूतावास को भेज रहा हूं क्योंकि आखिरकार उनके कार्यालय को ही जरूरी कार्यवाही करनी पड़ेगी।

मेरा पासपोर्ट। जब तक भारतीय कांग्रेस कार्यालय मुझे एक आर्य प्रमाण-पत्र नहीं देता है जिसका इस्तेमाल मैं पासपोर्ट के रूप में कर सकूं, मैं खुद बनाई गई आर्य-पहचान का इस्तेमाल करना चाहता हूं। इसमें मेरे फोटो के साथ निम्नलिखित बयान होगाः

मैं जो महेंद्र प्रताप (राजा) के नाम से जाना जाता हूं, मानवता का सेवक, ‘वर्ल्ड फेडरेशन’ का संपादक और संस्थापक हूं। मेरे अन्य नाम मूसा पीटर, मुहम्मद पीर सिंह आदि हैं। मेरा जन्म, वे कहते हैं, मुरसान में एक दिसंबर 1986 को, राजा घनश्याम सिंह बहादुर के तीसरे बेटे के रूप में हुआ था और हाथरस के राजा हरनारायण सिंह साहिब ने मुझे अपने बेटे के रूप में गोद ले लिया। मेरी शिक्षा अलीगढ़ के मोहम्मडन आंग्लो कॉलेज में हुई। मेरी शादी पंजाब में जींद के हिज हाईनेस रनबीर सिंह साहिब की एक बहन से हुई। मैं ने बृंदाबन में एक टेक्निकल कॉलेज, प्रेम महाविद्यालय की स्थापना की। मैं ने कॉलेज को सालाना दो हजार पौंड आय वाली भू-संपति दी है। मैं 1910 में कांग्रेस का नियमित सदस्य था। मैं कई प्रकार की समाज-सेवा करता था। मैंने हिंदुस्तान में दो अखबारों का संपादन किया है। मैंने 1914 में देश छोड़ दिया। मैं जर्मनी के साथ हो गया। कैसर विलहेल्म ने मेरा स्वागत किया। तुर्की के सुलतान ने अफगानिस्तान के राजा के साथ मेरा व्यक्तिगत परिचय कराया। मैंने अफगानिस्तान के पासपोर्ट पर कई बार दुनिया की सैर की। मैंने 1937 में इस दस्तावेज को त्याग दिया ताकि खुद मुक्त हो सकूं और अफगानिस्तान को भी अपने बोझ से मुक्ति दे सकूं। मैं इस दयालुता के लिए अफगानिस्तान का शुक्रगुजार था, हूं और सदा रहूंगा। मैं धर्मों की एकता में विश्वास करता हूं। मैं विश्व-संघ के लिए काम करता हूं। मैं कोदाइरामुरा, कोकुबनजी, टोकियो-फु, जापान के वर्ल्ड सेंटर फॉर जापान में रहता हूं। मैं ईरान से आसाम तक फैले आर्यन में पैदा हुआ, इसलिए यह आर्यन पहचान दस्तावेज रखता हूं। मुझे उम्मीद और विश्वास है कि वे तमाम लोग जिन्हें मेरी पहचान जानने की परवाह है, मेरी इस घोषणा से संतुष्ट होंगे। अंत में, मैं इस विवरण को सत्यापित करने वाले कुछ प्रति-हस्ताक्षर प्राप्त करने का प्रयास करूंगा। फिर देखूंगा कि कोई देश मुझे यात्रा के लिए वीजा देने को तैयार है या नहीं? और, जापान मुझे फिर से वापस आने की अनुमति देता या नहीं?’’

क्या सभी मजहबों के खिलाफ और अंध-राष्ट्रवाद का समर्थक संघ परिवार राजा महेंद्र प्रताप जैसे सभी धर्मों की एकता और विश्व-संघ में विश्वास रखने वाले क्रांतिकारी विरासत से अपने को जोड़ सकता है। वह तो उनकी विरासत को तोड़ने-मरोड़ने के अलावा क्या कर सकता है?

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

इसे भी पढ़ें: राजा महेंद्र प्रताप सिंह के नाम पर हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण की कोशिश!

Mahendra Pratap
Raja Mahendra Pratap Singh
RSS
Narendra modi
BJP
UP ELections 2022
Raja Mahendra Pratap State University

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

भारत के निर्यात प्रतिबंध को लेकर चल रही राजनीति


बाकी खबरें

  • विजय विनीत
    ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां
    04 Jun 2022
    बनारस के फुलवरिया स्थित कब्रिस्तान में बिंदर के कुनबे का स्थायी ठिकाना है। यहीं से गुजरता है एक विशाल नाला, जो बारिश के दिनों में फुंफकार मारने लगता है। कब्र और नाले में जहरीले सांप भी पलते हैं और…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 3,962 नए मामले, 26 लोगों की मौत
    04 Jun 2022
    केरल में कोरोना के मामलों में कमी आयी है, जबकि दूसरे राज्यों में कोरोना के मामले में बढ़ोतरी हुई है | केंद्र सरकार ने कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए पांच राज्यों को पत्र लिखकर सावधानी बरतने को कहा…
  • kanpur
    रवि शंकर दुबे
    कानपुर हिंसा: दोषियों पर गैंगस्टर के तहत मुकदमे का आदेश... नूपुर शर्मा पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं!
    04 Jun 2022
    उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था का सच तब सामने आ गया जब राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के दौरे के बावजूद पड़ोस में कानपुर शहर में बवाल हो गया।
  • अशोक कुमार पाण्डेय
    धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है
    04 Jun 2022
    केंद्र ने कश्मीरी पंडितों की वापसी को अपनी कश्मीर नीति का केंद्र बिंदु बना लिया था और इसलिए धारा 370 को समाप्त कर दिया गया था। अब इसके नतीजे सब भुगत रहे हैं।
  • अनिल अंशुमन
    बिहार : जीएनएम छात्राएं हॉस्टल और पढ़ाई की मांग को लेकर अनिश्चितकालीन धरने पर
    04 Jun 2022
    जीएनएम प्रशिक्षण संस्थान को अनिश्चितकाल के लिए बंद करने की घोषणा करते हुए सभी नर्सिंग छात्राओं को 24 घंटे के अंदर हॉस्टल ख़ाली कर वैशाली ज़िला स्थित राजापकड़ जाने का फ़रमान जारी किया गया, जिसके ख़िलाफ़…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License