NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
स्वास्थ्य
भारत
राजनीति
राजस्थान: लॉकडाउन में फ़ुटपाथ के किनारे रहने वालों की कैसी है ज़िंदगी?
कोरोना का नया हॉटस्पॉट राजस्थान बनता जा रहा है। राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इस संकट की घड़ी में गरीबों के लिए कई बड़ी घोषणाएं भी की हैं लेकिन ज़रूरतमंदों को इससे कितनी मदद मिल रही है? एक पड़ताल...
अश्वनी कबीर
06 Apr 2020
राजस्थान

जयपुर: देश भर में लॉकडाउन की स्थिति है। ऐसे में सड़क किनारे फुटपाथ पर तम्बू लगाकर रहने वाले, दिहाड़ी मजदूर, टपरी में रहने वाले, भिखारी ओर कूड़ा बीनने वाले लोगों के लिये ये लॉकडाउन मुसीबत का पहाड़ लेकर आया है। इससे निपटने के लिए तमाम राज्य सरकारों ने बहुत सारी घोषणाएं भी की है। राजस्थान अब कोरोना का नया हॉटस्पॉट बनता जा रहा है।

राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी इस संकट की घड़ी में कई बड़ी घोषणाएं की हैं। जिसमें गरीबों के खाते में दो महीने का 2000 रुपये डालेंगे। बीपीएल कार्ड धारकों को अतिरिक्त राशन मिलेगा। राजस्थान में कोई भी व्यक्ति भूखा नहीं सोएगा। इसलिए सभी को 5 किलो आटा मिलेगा। जरूरतमंद लोगों को घर पर आवश्यक वस्तुओं की सप्लाई की जाएगी।

लेकिन अगर हम हकीकत पर नजर डालें तो कहानी कुछ और नजर आती है। जयपुर शहर में अक्षय पात्र के पास सड़क किनारे सैकड़ों लोग तम्बू लगाकर रहते हैं। इसमे कुछ लोग कूड़ा बिनते हैं तो कुछ लोग जड़ी-बूटी बेचते हैं। कुछ भीख मांगते हैं तो कुछ दिहाड़ी मजदूर हैं। इन तंबुओं मे 50 से अधिक बच्चे, 30 महिलाएं और 25 पुरुष हैं।

Screenshot_2020-04-05-14-59-47-343_com.miui.videoplayer.png

इन लोगों को सुबह-शाम जो खाने का पैकेट मिलता है। उसमें मात्र 150 से 200 ग्राम खिचड़ी रहती है। भले ही वो बच्चा हो या बूढ़ा। सभी को एक समान मिलता है। बन्द पैकेट आता है तो कम-ज्यादा करने की कोई गुंजाइश भी नहीं है। ऐसा दो-तीन दिन से हो रहा हो तो भी ठीक है लेकिन इन लोगों के साथ ऐसा पिछले 22 मार्च से हो रहा है।

लॉकडाउन किया हुआ है तो ये लोग कहीं आ जा भी नहीं सकते। इनके तम्बू के बाहर पुलिस की तैनाती की हुई है। ताकि कोई यहां से कहीं बाहर न जाने पाये। अन्य कोई विकल्प न होने के कारण ये लोग यही खिचड़ी खाकर ही कोरोना से लड़ने को अपने आप को तैयार कर रहे हैं।

तम्बू के एक कोने में अपनी जड़ी-बूटी का बैग लेकर बैठे पप्पू सिंह गोंड चितोड़िया का कहना है कि कोई एक समस्या हो तो बतायें। हमारा जीवन ही समस्या बन गया है। यहां टॉयलेट की कोई सुविधा नहीं है। हम लोग अंधेरा होते ही बोतल लेकर नजदीक झाड़ियों में दौड़ पड़ते हैं। क्योंकि सूरज निकलने के बाद कहीं छुपकर बैठने का कोई उपाय नहीं रहता। एक बार मे केवल एक पुरुष और एक महिला ही शौच के लिए बाहर जा सकते हैं। इसमे में पुलिस की पहरेदारी है।

pappu.jpg

पप्पू आगे कहते हैं कि यहां 22 मार्च से कोई नहीं नहाया है। क्योंकि यहां पर किसी प्रकार का कोई नहाने का ठिकाना नहीं है। पीने के पानी के लिए नजदीक के घरों का दरवाजा खड़खड़ाते हैं। कोई पानी दे देता है तो कोई मना कर देता है। बच्चे सुबह उठते ही पानी के प्रबंधन में लग जाते हैं।

बच्चे, महिलाएँ, बुजर्ग सभी इसी स्थिति में ही जैसे-तैसे करके अपना जीवन काट रहे हैं। कुछ लोगों ने तो 22 मार्च के बाद से कपड़े ही नहीं बदले हैं।

यहां जो बड़ी बात उभर कर सामने आ रही हैं। यदि किसी महिला को मासिक धर्म आ जाये तो इस दौरान वो क्या करेगी? यहां न बाथरूम हैं और न हीं टॉयलेट। सैनेटरी पैड ओर अन्य तमाम बातें तो दूर की बात रही। उसको कपड़ा बदलने की जगह तक नहीं है।

एक तरफ तो सरकार पर्सनल हायजीन जिसमें हाथ धुलने से लेकर सोशल डिस्टेशिंग की बात कर रही हैं और दूसरी तरफ साफ-सफाई और पोषण की ये स्थिति। क्या सरकार खिचड़ी खिलाकर कोरोना वायरस को हराना चाहती हैं या उसको पसीने की बदबू से ही समाप्त कर देना चाहती है?

इनके बसेरे में केवल प्राकृतिक रोशनी का ही मॉडल काम करता है। सूरज ढलते ही जो जहां हैं वहीं जम जाता है। यहां कृत्रिम लाइट की कोई सुविधा नहीं है। इनके तम्बू में जाकर ऐसा लगता है जैसे इनको काला पानी की सजा दी गई हो।

इसी तरह गांधी नगर रेलवे स्टेशन के सामने फुटपाथ पर रहने वाले लोगों की अलग ही कहानी है। इसमे सभी जातियों धर्मों ओर वर्गों के लोग रहते हैं। लॉकडाउन से पहले ये लोग यहां बने सरकरीं अस्थाई रैन बसेरे में रहते थे किंतु कोरोना रोकने का पहला कदम तो ये उठाया गया कि यहां से रैन बसेरे को हटा दिया।

यहां करीब 150 लोग हैं जिसमे अकेली महिलाएं, बुजर्ग ओर अनाथ बच्चे भी शामिल हैं। इन्हीं में सीता भी शामिल हैं वो जैसे तैसे करके सड़क पर ही अपना गुजारा कर रही है। सीता बताती हैं कि सुबह-शाम खाने की गाड़ी आती है। यदि उससे भी चूक गये तो फिर भूखा ही रहना पड़ेगा।

sc.png

सीता आगे बताती हैं। कि यहां टॉयलेट के लिए सुलभ काम्प्लेक्स जाना पड़ता हैं। वहीं पर हम नहाते हैं। काम्प्लेक्स हमसे रोजाना का 10 रुपया लेता है। रोजाना के 10 रुपये कहाँ से लायें ?

सबसे बड़ी दिक्कत हमे रात में सोने की आ रही है। रैन बसेरा भी हटा दिया। सड़क के किनारे सोते हैं तो पुलिस हटा देती है। पार्क में नगर निगम वाले नहीं घुसने देते। मंदिर-गुरुद्वारे भी सरकार ने बन्द कर दिये। हमारे पास कोई घर तो हैं नहीं हम कहाँ जाएं? किसको अपनी बात बतायें?

हम किस पोषण और व्यक्तिगत सफाई की बात कर रहे हैं? जब उनको पोषण मिलेगा ही नहीं तो उनकी बीमारियों से लड़ने की क्षमता कहाँ से आएगी? दिन में 10 बार साबुन से हाथ धुलना तो दूर रहा इनको नहाये 15 दिन हो गये। क्या इससे कोरोना रुकेगा?

इसी तरह जोधपुर के रहने वाले विश्व प्रसिद्ध लोक कलाकार सुगना राम भोपा हताश हैं। वे भोपा समाज से सम्बंधित हैं। जिनका खानदानी पेशा रावण हत्था बजाना रहा है। वे पिछले 40 वर्षों से अपने रावण-हत्थे की धुन से रेगिस्तान की आत्मा को जिंदा रखे हुए हैं। किंतु इस कोरोना काल मे उनका पूरा जीवन ही थम गया है।

सुगना राम बताते हैं कि पिछले 15 दिन से काम धंधा बिल्कुल बन्द है। कहीं आ-जा भी नहीं सकते। घर मे खाने को कुछ नहीं। दो दिन पहले ही बनिये की दुकान से 10 किलो अनाज और 1 किलो दाल उधार लेकर आये थे। वो भी अब समाप्त होने को है।

सरकार कह रही है कि सभी को 5-5 किलो अनाज मिलेगा किन्तु कब मिलेगा? हमें बाहर भी नहीं जाने दे रहे। पुलिस का पहरा है। हम करें तो क्या करें। दो बकरी है जिससे बच्चों के दूध का काम चल जाता है। किंतु उसको बाहर चराने पर सरकार ने रोक लगा दी। करें तो क्या करें?

इसी तरह पिछले कई वर्षों से ऊँटों को बचाने में लगे पुष्कर निवासी सामाजिक कार्यकर्ता अशोक टाक का कहना है कि इस कोरोना संकट में ज्यादा खराब हालात उन पशुपालकों के हैं जो अपने मवेशियों को लेकर अभी तक बाहर नहीं निकले थे। वे लोग अपने मवेशियों को खुला छोड़ने पर विवश हैं। अशोक आगे कहते हैं कि सरकारी नीतियाँ लूनी नदी बन गई हैं जो रेगिस्तान में पहुंचने से पहले ही गायब हो जाती हैं।

फिलहाल प्रदेश सरकारों ने अपने बेतरतीब निर्णयों ओर लापरवाही की बदौलत इस कोरोना संकट को फैलाने में बड़ी भूमिका निभाई है। केरल राज्य जहां कोरोना का सबसे पहला केस सामने आया था। उनकी सूझ-बूझ, मेहनत और समर्पण भाव ने पिछले 2 महीने में कोरोना को 300 मरीजों पर ही रोक लिया है। अन्य प्रदेशों को भी लोक लुभावन घोषणाओं की बजाय केरल सरकार से सीखना चाहिए।

(लेखक एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

India Lockdown
Coronavirus lockdown
Rajasthan
Social Distancing
ashok gehlot
poverty
Hunger Crisis
Cattle Ranchers

Related Stories

दवाई की क़ीमतों में 5 से लेकर 5 हज़ार रुपये से ज़्यादा का इज़ाफ़ा

दुनिया की 42 फ़ीसदी आबादी पौष्टिक आहार खरीदने में असमर्थ

कोरोना संकट के बीच भूख से दम तोड़ते लोग

कोरोना से दुनिया भर में आर्थिक संकट की मार, ग़रीब भुखमरी के कगार पर

विश्व में हर एक मिनट में भुखमरी से 11 लोगों की मौत होती है: ऑक्सफैम

ग्राउंड रिपोर्ट : बेपरवाह PM-CM, भारतीय नागरिकों को भूख से मरने के लिए बेसहारा छोड़ा

कोरोना से भी तेज़ फैल रहा है भारत में अमीर और ग़रीब का फ़ासला

कोरोना संकट: अलग-अलग राज्यों में आशिंक तौर पर फिर लौट रहा है लॉकडाउन

देश में पोषण के हालात बदतर फिर भी पोषण से जुड़ी अहम कमेटियों ने नहीं की मीटिंग!

भूख और अकेलेपन का होता है दिमाग़ पर एक जैसा प्रभाव : शोध


बाकी खबरें

  • CARTOON
    आज का कार्टून
    प्रधानमंत्री जी... पक्का ये भाषण राजनीतिक नहीं था?
    27 Apr 2022
    मुख्यमंत्रियों संग संवाद करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्य सरकारों से पेट्रोल-डीज़ल के दामों पर टैक्स कम करने की बात कही।
  • JAHANGEERPURI
    नाज़मा ख़ान
    जहांगीरपुरी— बुलडोज़र ने तो ज़िंदगी की पटरी ही ध्वस्त कर दी
    27 Apr 2022
    अकबरी को देने के लिए मेरे पास कुछ नहीं था न ही ये विश्वास कि सब ठीक हो जाएगा और न ही ये कि मैं उनको मुआवज़ा दिलाने की हैसियत रखती हूं। मुझे उनकी डबडबाई आँखों से नज़र चुरा कर चले जाना था।
  • बिहारः महिलाओं की बेहतर सुरक्षा के लिए वाहनों में वीएलटीडी व इमरजेंसी बटन की व्यवस्था
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    बिहारः महिलाओं की बेहतर सुरक्षा के लिए वाहनों में वीएलटीडी व इमरजेंसी बटन की व्यवस्था
    27 Apr 2022
    वाहनों में महिलाओं को बेहतर सुरक्षा देने के उद्देश्य से निर्भया सेफ्टी मॉडल तैयार किया गया है। इस ख़ास मॉडल से सार्वजनिक वाहनों से यात्रा करने वाली महिलाओं की सुरक्षा व्यवस्था बेहतर होगी।
  • श्रीलंका का आर्थिक संकट : असली दोषी कौन?
    प्रभात पटनायक
    श्रीलंका का आर्थिक संकट : असली दोषी कौन?
    27 Apr 2022
    श्रीलंका के संकट की सारी की सारी व्याख्याओं की समस्या यह है कि उनमें, श्रीलंका के संकट को भड़काने में नवउदारवाद की भूमिका को पूरी तरह से अनदेखा ही कर दिया जाता है।
  • israel
    एम के भद्रकुमार
    अमेरिका ने रूस के ख़िलाफ़ इज़राइल को किया तैनात
    27 Apr 2022
    रविवार को इज़राइली प्रधानमंत्री नफ्ताली बेनेट के साथ जो बाइडेन की फोन पर हुई बातचीत के गहरे मायने हैं।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License