NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
राजस्थान : कांग्रेस के लिए बड़े सबक  
‘हालांकि पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने वापस आए नेताओं के प्रति उदार रुख अपनाया है, लेकिन गहलोत के खेमे में रहे विधायक "दलबदलुओं" की सहज वापसी पर बड़बड़ा रहे हैं, कि उन्हें बिना किसी औपचारिक माफ़ी के अंदर कैसे आने दिया गया जिन्होंने इतना बड़ा संकट बरपा किया था।'
सनी सेबास्तियन
13 Aug 2020
Translated by महेश कुमार
राजस्थान
Image Courtesy : New Indian Express

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की एक ओर राज्य को अस्थिर करने की कोशिश को -  राजस्थान में उस वक़्त करारा झटका लगा जब विद्रोही कांग्रेस नेता और पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट की घर-वापसी हो गई- इस घटनाक्रम से दोनों सत्तारूढ़ कांग्रेस और भाजपा के लिए स्पष्ट संकेत मिले हैं कि वे ऐसी हरकतों से बाज आएं।

भाजपा के लिए सबसे पहला और महत्वपूर्ण सबक यह है कि ऐसा लग सकता है कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर कमजोर और टूटी हुई पार्टी है, लेकिन कुछ राज्यों में उसके पास अनुभवी नेताओं का जमावड़ा है, जो सरकार को अस्थिर करने के खतरों के साथ-साथ केंद्र सरकार और उपराज्यपाल के दबाव का सामना कर सकते हैं। हाल के दिनों में राजस्थान ऐसा पहला मामला हो सकता है जिसमें लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित राज्य सरकार को गिराने का प्रयास किया गया, जिसे भाजपा के मुक़ाबले कॉंग्रेस को स्पष्ट बहुमत था, यहां कांग्रेस के चतुर स्थानीय नेतृत्व ने उनकी चाल को पराजित कर दिया।

भाजपा के लिए दूसरा सबक इस कहावत से निकलता है कि: "जो लोग खुद शीशे के घरों में रहते हैं, उन्हें दूसरों के घरों पर पत्थर नहीं फेंकने चाहिए"। भाजपा ने सत्तारूढ़ कांग्रेस में आंतरिक विद्रोह का फायदा उठाने का प्रयास किया, ऐसा उन्होने गहलोत सरकार को अस्थिर कर अपनी सरकार को स्थापित करने के बड़े उद्देश्य से किया था। लेकिन उन्हे चाल उल्टी पड़ने के संकेत मिलने लगे थी। क्योंकि राज्य में पार्टी की दो बार मुख्यमंत्री रही, वसुंधरा राजे ने राजस्थान में इसे अपने नेतृत्व के प्रति खतरा माना और उन्होने अपनी ही पार्टी के गेम-प्लान में भांजी मार दी।

राज्य में भाजपा नेतृत्व को अपने विधायकों का आंकड़ा ही खेदजनक लगने लगा, जबकि वे कांग्रेस द्वारा विधायकों को होटलों में रखने पर “बेड़ाबंदी” कहकर उनका मज़ाक उड़ा रहे थे और अब स्थिति ऐसी हो गई भाजपा खुद ही अपने विधायकों को बचाने के लिए उन्हे यहां से वहाँ होटल में रखने पर मजबूर हो गई थी, क्योंकि अब उन्हे कांग्रेस डर लग रहा था। इस दौरान भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया को भारी शर्मिंदगी उठानी पड़ी, जो इस दौरान सबसे ज्यादा मुखर रहे थे, और पार्टी के जो विधायकों राजे के प्रति राजनीतिक निष्ठा रखते थे ने गुजरात के पोरबंदर और अन्य शहरों में जाने से इनकार कर दिया था।

यह ध्यान रखना दिलचस्प है कि अपने करियर के दौरान, गहलोत और राजे दोनों एक-दूसरे के आलोचक रहे हैं। अतीत में रहे कुछ कांग्रेस मुख्यमंत्रियों के विपरीत, गहलोत ने हमेशा गैर-कांग्रेसी नेताओं से ‘सुरक्षित’ दूरी बना कर रखी है। यदि कोई अपवाद है, तो वह भारत के दिवंगत उपराष्ट्रपति, भैरों सिंह शेखावत के मामले में है। शेखावत के राजस्थान की राजनीति छोड़ने और देश के उपराष्ट्रपति बनने के बाद ही यह रिश्ता विकसित हुआ था। राजे इस मामले में खुद भी उदासीन हैं, और न ही गहलोत की आलोचक हैं। वास्तव में, हैरानी तब हुई जब मौजूदा गहमागहमी की शुरुआत में सचिन पायलट ने गहलोत पर आरोप लगाया कि वे जयपुर सिविल लाइंस में एक बंगले के आवंटन में राजे के प्रति काफी निष्ठावान रहे हैं, ऐसा तब किया गया जब पहले ही राजस्थान उच्च न्यायालय निष्कासन के आदेश दे चुका था।

केंद्र और राज्य में भाजपा नेतृत्व के प्रति राजे की नाराजगी समझ में आने वाली है, क्योंकि जहाँ तक राज्य में कांग्रेस सरकार के संकट का सवाल था, लगता है उनसे न तो कोई रणनीति साझा की गई और न ही उनसे कोई राय मांगी गई।

राजे को घबराहट तब हुई जब उन्हे दिखा कि राजस्थान में सरकार का बदलाव उनके पक्ष में नहीं जाएगा। केंद्रीय जल शक्ति मंत्री- गजेंद्र सिंह शेखावत- के इसमें शामिल होने से भी यह धारणा बनी कि अगर गहलोत की सरकार गिर गई और भाजपा ने नई सरकार बनाई तो वह मुख्यमंत्री पद के संभावित उम्मीदवार होंगे। दूसरी संभावना यह थी- कि सचिन पायलट को भी मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है- राजे, जो विधानसभा में 72-सदस्यीय मजबूत बीजेपी समूह में से कम से कम आधे विधायकों के समर्थन का दावा करती हैं, आगे चलकर न केवल नेतृत्व का अपना दावा खो देती बल्कि में भविष्य की भी संभावनाएं खत्म हो जाती। इस दौरान हंगामा मचाने वालों में पार्टी अध्यक्ष सतीश पूनिया और विपक्ष के नेता गुलाब चंद कटारिया थे-और कभी-कभी पूर्व मंत्री राजेंद्र राठौर और ओम माथुर भी आ जाते थे। माथुर, अब राज्यसभा के सदस्य हैं, ने राज्य की राजधानी के दौरे पर आने पर कहा था कि पायलट के लिए "भाजपा के दरवाजे खुले हैं"।

पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश में पिछले साल भाजपा ने सत्ता परिवर्तन कर कॉंग्रेस सरकार गिरा दी थी, उसने सोचा सचिन पायलट भी सिंधिया की तरह भाजपा की सरकार बनाने में मदद करेंगे और कांग्रेस के विधायकों के बड़े हिस्से के साथ वाक आउट की संभावनाओं से काफी उत्साहित थे। उनके भौगोलिक संदर्भ के बावजूद, राजस्थान मध्य प्रदेश नहीं है। जबकि सचिन पायलट कोई "महाराज" साबित नहीं हुए, गहलोत भी पूर्व सांसद सीएम कमलनाथ के विपरीत, कमजोर साबित नहीं हुए। निश्चित रूप से, मौजूदा सीएम शिवराज सिंह चौहान के लिए, कांग्रेस के टूटते विधायकों के साथ बहुमत साबित करना आसान था, क्योंकि दोनों दलों के बीच जीत का अंतर बहुत कम था।

भाजपा नेतृत्व इसे स्वीकार नहीं करेगा, कि पायलट के नेतृत्व में आए 18 बागी विधायकों को पार्टी शासित हरियाणा के गुड़गांव के पास मानेसर में संरक्षण और आतिथ्य देने के बावजूद ऐसा परिणाम निकाला, इसके लिए एक स्पष्टीकरण मांगा जाएगा। हरियाणा के भीतर उनकी आवाजाही इतनी फुर्तीली और तेज़ थी कि राजस्थान का विशेष ऑपरेशन समूह भी क्षेत्र में उनकी तलाश करने में नाकामयाब रहा था। भाजपा ने कांग्रेस के विधायकों और निर्दलीय विधायकों को भारी रकम की पेशकश करने तथा गजेंद्र शेखावत की कथित संलिप्तता से भी इनकार किया है।

चारो तरफ से घिरी हुई कांग्रेस पार्टी और उसकी सरकार के पास भी कई ऐसे सबक हैं, जो सबक दर्दनाक हालत, करीब-करीब मौत के अनुभव से सीखने से मिले हैं जिन्हे किसी ओर के नहीं बल्कि खुद के कारण भुगतना पड़ा है- और वह भी एक ऐसे व्यक्ति के कारण जो राज्य कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष था। हालांकि वे दूसरों के दृष्टिकोण में मदद नहीं कर सकते हैं, लेकिन राजस्थान में पार्टी और सरकार स्वयं के कामकाज, आंतरिक संवाद, आंतरिक पार्टी लोकतंत्र और केंद्र और राज्य नेतृत्व के बीच संबंधों का आत्मनिरीक्षण कर सकती है। मुसीबत के शुरुआती दिनों में, कांग्रेस नेतृत्व को सचिन पायलट की बगावत से झटका लगा, और सीएम अशोक गहलोत से पायलट और बीजेपी के बीच हुई साजिश का सबूत देने मांग की थी। एक बार जब यह साबित हो गया और तय पाया गया कि पार्टी के अधिकांश विधायक गहलोत के साथ हैं, तब नेतृत्व ने भी वह सब किया जिससे कि वह राजस्थान में अपनी सरकार को बचा सके- इसने राज्य में नेतृत्व परिवर्तन की मांग को भी ठुकरा दिया है।

अब, चूंकि महतवाकांक्षी या ख़र्चीले पुत्र पार्टी में लौट आए हैं तो उनके लिए कोई बड़ी दावत का इंतजाम नहीं किया गया है। हालांकि पार्टी के उच्च नेतृत्व ने उनके प्रति उदार रुख अपनाया है, लेकिन गहलोत के साथ वाले विधायकों ने उनकी सहज वापसी के बारे में बड़बड़ाना शुरू कर दिया है, इतनी बड़े संकट को खड़ा करने के बाद उनकी बिना किसी औपचारिक माफ़ी के ऐसा करना उन्हें खल रहा है।

लेखक हरिदेव जोशी विश्वविद्यालय ऑफ़ जर्नलिज़्म एंड मास कम्यूनिकेशन के पूर्व कुलपति हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें

Rajasthan: Returning Prodigals and the Side-Effects of a Failed Coup

Rajasthan
Congress
BJP
ashok gehlot
sachin pilot
Vasundhara Raje
Kamal Nath
Jyotiraditya Scindia
Gajendra Singh Shekhawat
Rajasthan Politics

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

भारत में धार्मिक असहिष्णुता और पूजा-स्थलों पर हमले को लेकर अमेरिकी रिपोर्ट में फिर उठे सवाल

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ः 60 दिनों से हड़ताल कर रहे 15 हज़ार मनरेगा कर्मी इस्तीफ़ा देने को तैयार
    03 Jun 2022
    मनरेगा महासंघ के बैनर तले क़रीब 15 हज़ार मनरेगा कर्मी पिछले 60 दिनों से हड़ताल कर रहे हैं फिर भी सरकार उनकी मांग को सुन नहीं रही है।
  • ऋचा चिंतन
    वृद्धावस्था पेंशन: राशि में ठहराव की स्थिति एवं लैंगिक आधार पर भेद
    03 Jun 2022
    2007 से केंद्र सरकार की ओर से बुजुर्गों को प्रतिदिन के हिसाब से मात्र 7 रूपये से लेकर 16 रूपये दिए जा रहे हैं।
  • भाषा
    मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने चंपावत उपचुनाव में दर्ज की रिकार्ड जीत
    03 Jun 2022
    चंपावत जिला निर्वाचन कार्यालय से मिली जानकारी के अनुसार, मुख्यमंत्री को 13 चक्रों में हुई मतगणना में कुल 57,268 मत मिले और उनके खिलाफ चुनाव लड़ने वाल़ कांग्रेस समेत सभी प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो…
  • अखिलेश अखिल
    मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 
    03 Jun 2022
    बिहार सरकार की ओर से जाति आधारित जनगणना के एलान के बाद अब भाजपा भले बैकफुट पर दिख रही हो, लेकिन नीतीश का ये एलान उसकी कमंडल राजनीति पर लगाम का डर भी दर्शा रही है।
  • लाल बहादुर सिंह
    गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया
    03 Jun 2022
    मोदी सरकार पिछले 8 साल से भारतीय राज और समाज में जिन बड़े और ख़तरनाक बदलावों के रास्ते पर चल रही है, उसके आईने में ही NEP-2020 की बड़ी बड़ी घोषणाओं के पीछे छुपे सच को decode किया जाना चाहिए।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License