NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
राममंदिर बनाम सोमनाथ पुनर्निर्माणः गांधी, पटेल और नेहरू
आज यह ज़रूरी हो गया है कि इतिहास के उस पन्ने को पलटा जाए जिसमें नेहरू ने सोमनाथ मंदिर निर्माण का विरोध किया था और यह भी जाना जाए कि गांधी ने किन शर्तों पर अनुमति दी थी और पटेल से क्या कहा था।
अरुण कुमार त्रिपाठी
04 Aug 2020
 नेहरू, गांधी और पटेल

अयोध्या में राममंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन की तैयारी के साथ यह दावा तेजी से किया जा रहा है कि यह भारत का सांस्कृतिक पुनर्जागरण है। कि यह राम का नहीं भारत का मंदिर निर्माण है और इसके उत्सवों को भारत के सांस्कृतिक इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा। राममंदिर निर्माण के साथ आजादी के बाद हुए सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण के इतिहास की चर्चा भी जोरों पर है। कहा जा रहा है कि नेहरू ने उस मंदिर का निर्माण रोका था जबकि सरदार पटेल, महात्मा गांधी, केएम मुंशी, वीपी मेनन, एस राधाकृष्णन और राजेंद्र प्रसाद ने सहमति दी थी। इस तरह आज जब अयोध्या में उसी पद्धति पर राममंदिर का निर्माण होने जा रहा है तो यह साबित करने का प्रयास किया जा रहा है कि नेहरू की सोच कितनी यूरोपीय, अदूरदर्शी और हिंदू विरोधी थी।

इसलिए आज यह जरूरी हो गया है कि इतिहास के उस पन्ने को पलटा जाए जिसमें नेहरू ने सोमनाथ मंदिर निर्माण का विरोध किया था और यह भी जाना जाए कि गांधी ने किन शर्तों पर अनुमति दी थी और पटेल से क्या कहा था जिसके बाद पटेल ने सरकारी खजाने के सहयोग से मंदिर बनाए जाने से फैसले से अपना कदम पीछे खींच लिया था।

यहां यह याद दिलाने की जरूरत है कि 1990 में विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार की ओर से मंडल आयोग की सिफारिशें लागू किए जाने के बाद जब उस सरकार का समर्थन कर रही भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने अयोध्या में राममंदिर निर्माण के लिए रथयात्रा की घोषणा की तो उन्होंने उसका आरंभ गुजरात के सोमनाथ मंदिर से किया। दरअसल यह राष्ट्रवाद का नया आख्यान रचने का प्रयास था जिसमें तमाम हिंदू आबादी को मुस्लिम आक्रांताओं से उत्पीड़ित बताकर उनके घाव कुरेदने और देश के हिंदू मुस्लिम इतिहास की साझी विरासत को झटक कर उसे प्राचीन हिंदू गौरव में ले जाना था। इस तरह भाजपा को केंद्र में सत्तारूढ़ करना था। उस रथयात्रा के दौरान मध्यकालीन इतिहास को केंद्र में रखकर आधुनिक मुस्लिम राजनीति और इस्लाम के मानने वालों की जीवन शैली को लेकर काफी आक्रामक बातें की गईं और उसके कारण देश में जगह जगह दंगे भी हुए।

इसी संदर्भ में 12 नवंबर 1947 को गुजरात के सोमनाथ मंदिर के स्थल पर दौरा करते हुए तत्कालीन गृहमंत्री सरदार पटेल के उस एलान को देखा जा सकता है कि मंदिर का पुनर्निर्माण सरकार करेगी। सरदार पटेल के साथ काठियावाड़ इलाके में समुद्र के किनारे स्थित सोमनाथ मंदिर का निरीक्षण करने केंद्रीय मंत्री कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी के साथ महाराष्ट्र के कांग्रेस नेता नरहर विष्णु गाडगिल भी गए थे। पहले गाडगिल ने एलान किया कि इस मंदिर का पुनर्निर्माण भारत सरकार करेगी फिर सरदार पटेल ने उस पर सहमति जताई।

सरदार के इस एलान पर जवाहर लाल नेहरू ने असहमति जताई। उनका कहना था कि हम एक आधुनिक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र हैं और हमें मंदिर निर्माण के चक्कर में फंसने की जरूरत नहीं है। पंडित नेहरू ने चेतावनी भी दी थी इससे देश में एक तरह का हिंदु पुनरुत्थान का दौर शुरू होगा जो भारत को एक आधुनिक और धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बनाने में बाधक होगा। सवाल उठता है कि क्या 1947 में दी गई नेहरू की वह चेतावनी आज 2020 में सही साबित नहीं होने जा रही है?

अब जरा यह देखा जाए कि इस मसले पर महात्मा गांधी ने क्या कहा और उसका उस समय की स्थिति पर क्या असर पड़ा। यहां यह बात ध्यान देने की है कि महात्मा गांधी उस समय हिंदू मुस्लिम विवाद की भयानक समस्या से गंभीर रूप से जूझ रहे थे और अपने नैतिक बल के माध्यम से इन दोनों संप्रदायों के बीच एकता कायम करने का जीतोड़ प्रयास कर रहे थे। हालांकि वे इस बात के लिए लाचारी भी महसूस कर रहे थे कि आजाद भारत की नई सरकार उनकी सभी बातें नहीं मानती।

इसी सिलसिले में सरदार वल्लभभाई पटेल के एलान के 16 दिन बाद यानी 28 नवंबर 1947 को प्रार्थना सभा में टिप्पणी करते हुए महात्मा गांधी कहते हैं, `` एक भाई मुझे लिखते हैं कि जो सोमनाथ मंदिर था (1025 में नष्ट कर दिया गया था) उसका जीर्णोद्धार होगा। उसके लिए पैसा चाहिए। वहीं जूनागढ़ में सांवलदास गांधी (महात्मा जी के भतीजे) ने जो आरजी हुकूमत बनाई है उसमें से वे 50,000 रुपये दे रहे हैं।

जामनगर (वहां के राजा जाम साहेब दिग्विजय सिंह) ने एक लाख रुपये देने को कहा है। सरदार जी आज मेरे पास आए तो मैंने उनसे पूछा कि सरदार होकर क्या तुम ऐसी हुकूमत बनाओगे कि जो हिंदू धर्म के लिए अपने खजाने में से जितना पैसा चाहे निकालकर दे दे। हुकूमत तो सब लोगों के लिए बनाई है। अंग्रेजी शब्द तो उसके लिए `सेक्यूलर’ है। अर्थात वह कोई धार्मिक सरकार नहीं है या ऐसा कहो कि एक धर्म की नहीं है। तब वह यह तो कर नहीं सकती कि चलो हिंदुओं के लिए इतना पैसा निकालकर दे दे, सिखों के लिए इतना और मुसलमानों के लिए इतना। हमारे पास तो एक ही चीज है और वह यह कि सब लोग हिंदी हैं। धर्म तो अलग अलग सबका रह सकता है। मेरे पास मेरा धर्म है और आपके पास आपका।’’

प्रार्थना सभा के इसी भाषण में गांधी सरदार का उल्लेख करते हुए राज्य के सेक्यूलर चरित्र को और स्पष्ट करने का प्रयास करते हैं। वे कहते हैं , `` एक भाई ने लिखा है और अच्छा लिखा है कि अगर जूनागढ़ की रियासत सोमनाथ मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए पैसा देती है या केंद्र सरकार देती है तो यह बड़ा अधर्म होगा। मैं मानता हूं कि यह बिल्कुल ठीक लिखा है। तब मैंने सरदार से पूछा कि क्या ऐसी ही बात है?  तब उन्होंने कहा कि मेरे जिंदा रहते ऐसी यह बनने वाली बात नहीं है। सोमनाथ के जीर्णोद्धार के लिए जूनागढ़ की तिजोरी से एक कौड़ी नहीं दी जा सकती।’’

इन बयानों को आप चाहे तो नेहरू विरोध में इस्तेमाल करें या संघ परिवार के हिंदुत्व के समर्थन में। इनमें आप मान सकते हैं कि गांधी ने सोमनाथ मंदिर बनाने की सहमति दी थी या आप यह मान सकते हैं कि गांधी ने सरकारी खर्च से मंदिर बनाने से मना किया था और पटेल ने उसे माना। इसमें आप एक हिंदू राष्ट्र के बीज को पड़ते हुए भी देख सकते हैं या उससे बचने का प्रयास भी। यह दरअसल हमारे पुरखों के बीच की खींचतान है जो सिद्धांत और उस समय की स्थितियों के बीच चल रही है।

उस समय इस उपमहाद्वीप में भयंकर नरसंहार चल रहा है। सरदार पटेल को हिंदुत्ववादी बनाने का संघ परिवार का प्रयास अपनी जगह है लेकिन गौर से देखा जाए तो वे गांधी और नेहरू के बीच एक तरह की कशमकश में चलते हुए दिखते हैं। अगर वे नेहरू के आधुनिक सेक्यूलर राष्ट्र के विचारों से असहमत होते हैं तो महात्मा के नैतिक तर्कों के आगे हथियार डाल देते हैं। वे कई बार नेहरू के साथ खड़े रहते हैं और गांधी की हत्या के बाद संघ पर पाबंदी भी लगाते हैं। इस बीच 1940 से 1948 तक महात्मा गांधी अपने तमाम धार्मिक रूपकों से बाहर निकल कर लगातार नेहरू के सेक्यूलर राज्य का समर्थन कर रहे हैं।

उस दौरान गांधी निरंतर एक सेक्यूलर लोकतांत्रिक राज्य को परिभाषित कर रहे हैं। वे अगस्त 1942 में कहते हैं, `` धर्म निजी मामला है राजनीति में इसके लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए।’’ वे सितंबर 1946 में एक मिशनरी से कहते हैं, `` यदि मैं डिक्टेटर होता तो धर्म और शासन को अलग कर देता। मैं अपने धर्म की शपथ खाता हूं। मैं इसके लिए मर जाऊंगा। लेकिन यह मेरा निजी मामला है। शासन का इससे कुछ लेना देना नहीं है।’’

वे जून 1947 में कहते हैं, `` धर्म राष्ट्रीयता की कसौटी नहीं है। बल्कि मनुष्य और ईश्वर के बीच निजी मामला है।’’ ......वे हिंद स्वराज में पहले ही लिख चुके थे, `` दुनिया के किसी हिस्से में एक राष्ट्रीयता और एक धर्म पर्यायवाची नहीं हैं। भारत में भी ऐसा नहीं होगा।’’

इसलिए जो लोग आज सोमनाथ और अयोध्या के आख्यान के बहाने गांधी को भी नेहरू के खिलाफ खड़ा कर रहे हैं और नेहरू को हिंदुओं का दुश्मन और भारत की स्वाभाविक राष्ट्रीयता का शत्रु बता रहे हैं वे उन दोनों के साथ अन्याय कर रहे हैं। वे अन्याय पटेल के साथ भी कर रहे हैं।

पटेल तो 1950 में ही गुजर गए और 1951 में सोमनाथ मंदिर के उद्घाटन के मौके पर नहीं रहे। जहां तक राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद की बात है तो उनके इस चरित्र की आलोचना करके नेहरू ने भावी संदेश दिया था। डॉ. राजेंद्र प्रसाद एक बार बनारस गए और उन्होंने काशी विश्वनाथ मंदिर में सौ ब्राह्मणों के पैर धोए थे। उनके इस आचरण की डॉ. लोहिया ने कठोर निंदा की थी। राजेंद्र बाबू ने तो हिंदू कोड बिल का भी विरोध किया था और उसके चलते डॉ. भीमराव आंबेडकर ने मंत्रमंडल से इस्तीफा दे दिया था। उस संघर्ष को उदार और कट्टर हिंदू के संघर्ष के रूप में देखना चाहिए। जिसे लोहिया हिंदू बनाम हिंदू कहते थे।

इसलिए हमें अगर भारत को धर्म आधारित राज्य नहीं बनाना है तो महात्मा गांधी के अंतिम दिनों की चेतावनी को समझना होगा उनकी प्रार्थना सभाओं पर ध्यान देना होगा और उनको पंडित नेहरू की सोच के साथ रखकर देखना होगा। गांधी आर्थिक मॉडल पर भले नेहरू से मतभेद रखते हों लेकिन सेक्यूलर सोच में लगातार नेहरू के नजदीक जा रहे हैं। गांधी और नेहरू को अलग करने की कोशिश के बारे में गांधी का वह कथन याद रखना चाहिए कि लाठी मारने से पानी नहीं फटता। आज भारत अगर हिंदू कट्टरता का शिकार हो रहा है तो उस बारे में गांधी की चिंता और नेहरू की चेतावनी एकदम सटीक बैठती है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

Ram Mandir
Somnath Mandir
Mahatma Gandhi
Sardar Vallabhbhai Patel
Jawaharlal Nehru
Religion and Politics
lal krishna advani
Hindutva
RSS
BJP
Congress

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

डिजीपब पत्रकार और फ़ैक्ट चेकर ज़ुबैर के साथ आया, यूपी पुलिस की FIR की निंदा

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

भारत में धार्मिक असहिष्णुता और पूजा-स्थलों पर हमले को लेकर अमेरिकी रिपोर्ट में फिर उठे सवाल

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 


बाकी खबरें

  • blast
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    हापुड़ अग्निकांड: कम से कम 13 लोगों की मौत, किसान-मजदूर संघ ने किया प्रदर्शन
    05 Jun 2022
    हापुड़ में एक ब्लायलर फैक्ट्री में ब्लास्ट के कारण करीब 13 मज़दूरों की मौत हो गई, जिसके बाद से लगातार किसान और मज़दूर संघ ग़ैर कानूनी फैक्ट्रियों को बंद कराने के लिए सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रही…
  • Adhar
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: आधार पर अब खुली सरकार की नींद
    05 Jun 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस सप्ताह की जरूरी ख़बरों को लेकर फिर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन
  • डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
    तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष
    05 Jun 2022
    हमारे वर्तमान सरकार जी पिछले आठ वर्षों से हमारे सरकार जी हैं। ऐसा नहीं है कि सरकार जी भविष्य में सिर्फ अपने पहनावे और खान-पान को लेकर ही जाने जाएंगे। वे तो अपने कथनों (quotes) के लिए भी याद किए…
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' का तर्जुमा
    05 Jun 2022
    इतवार की कविता में आज पढ़िये ऑस्ट्रेलियाई कवयित्री एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' जिसका हिंदी तर्जुमा किया है योगेंद्र दत्त त्यागी ने।
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित
    04 Jun 2022
    देशभक्तों ने कहां सोचा था कि कश्मीरी पंडित इतने स्वार्थी हो जाएंगे। मोदी जी के डाइरेक्ट राज में भी कश्मीर में असुरक्षा का शोर मचाएंगे।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License