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वैश्विक महामारी के बीच रामायण का प्रसारण एक राजनीतिक हथियार?
दूरदर्शन पर रामायण धारावाहिक को फिर से प्रसारित करने का मोदी सरकार का फ़ैसला विभिन्न समुदायों में इस माहाकाव्य को देखने की ललक को कम कर देगा और यह सिर्फ़ राजनीतिक लामबंदी का हथियार बन कर रह जाएगा।
नीलांजन मुखोपाध्याय
30 Mar 2020
Translated by महेश कुमार
 रामायण का प्रसारण

हालांकि यह विरोधाभासी लग सकता है, लेकिन दूरदर्शन पर रामायण धारावाहिक का दैनिक प्रसारण करने का सरकार का फ़ैसला विभिन्न समुदायों में उस महाकाव्य को देखने की ललक को कम कर देगा, और इसे एक राजनीतिक गोलबंदी का हथियार बना देगा। जैसा कि यह सर्वविदित है, कि 1980 के दशक में विश्व हिंदू परिषद और संघपरिवार ने अपने सहयोगियों के साथ इसे राजनीतिक उद्देश्य के लिए इस्तेमाल किया था जिसके बाद रामायण की सार्वभौमिक अपील में गिरावट आ गई थी।

इस बात को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है कि रामायण विश्व स्तर पर सबसे लोकप्रिय महाकाव्यों में से एक है और पिछले तीन दशकों के भीतर इसके राजनीतिकरण होने के बावजूद यह इंडोनेशिया में  सबसे अधिक लोकप्रिय है जो कि एक बहुत बड़ा मुस्लिम देश है। इस महाकाव्य के अनुयायियों की संख्या का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसे इंडोनेशियाई शहर, याग्याकार्टा में 1976 से लगातार हर शाम एक बैले के रूप में खेला जाता है। अब तक, बिना किसी विफलता के खुले मंच पर लगभग 16,000 शो मंचित किए जा चुके हैं, जिसमें बारिश होने पर शो को भीतर स्थानांतरित करने का भी प्रावधान रखा गया है।

लेकिन, रामायण का जो संस्करण हर शाम इंडोनेशिया के योगयकार्ता में मंचित किया जाता है, वह दूरदर्शन पर प्रसारित किए जाने वाले संस्करण से भिन्न है। वास्तव में, न केवल इंडोनेशियाई संस्करण दूरदर्शन वाले संस्करण से अलग है, बल्कि दक्षिण पूर्व एशिया में रामायण कथा में व्यापक रूप से भिन्नताएं हैं, इसलिए इस क्षेत्र को रामायण महाकाव्य की व्यापक लोकप्रियता, इसके पौराणिक नायक और उनके सहयोगियों की लोकप्रियता के लिए जाना जाता है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि "एशियन देशों के साथ भारत की सभ्यता के गहरे और ऐतिहासिक संबंध है" को खासतौर पर रेखांकित करने के लिए सरकार ने अपनी रणनीति के तौर पर, इंडियन काउंसिल फॉर कल्चरल रिलेशन ने 25 वर्ष मनाने के लिए शिखर सम्मेलन के दौरान पांच दिवसीय रामायण महोत्सव आयोजित किया था, और भारत और आसियान देशों के बीच सहयोग के 25 वर्ष को जनवरी 2018 में नई दिल्ली में भारत द्वारा आयोजित किया गया था।

इस समारोह में, एशियन देशों से आए सांस्कृतिक समूहों ने रामायण की विभिन्न प्रस्तुतियाँ पेश की। ग़ौरतलब है कि इन मंचनों ने यह स्थापित कर दिया कि हर मंचन में राम कहानी अलग थी: यानि जितना अधिक इस महाकाव्य ने विभिन्न देशों की यात्रा की और उन क्षेत्रों और देशों में विभिन्न भाषाओं में फिर से लिखा गया या फिर से प्रस्तुत किया गया, तो महाकाव्य और उसके प्रमुख नायकों के चरित्र में बदलाब हुए।

रामायण परंपरा की बहुलता का अध्ययन किया गया है और अकादमिक हस्तियों से लेकर जो लोग सामान्य पाठकों (इस लेखक सहित) के लिए लिखते हैं ने और विभिन्न लेखकों ने इस पर लंबी टिप्पणी की है। अकादमिक लेखन में विश्वस्तरीय लेखक जेएल ब्रॉकिंगटन ने 1981 में राइटियस राम: इवोल्यूशन ऑफ एन एपिक  लिखी थी, इतिहासकार, कवि और साहित्यकार एके रामानुजन ने निबंध लिखे, जो पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित व्यक्ति थे जिनके खिलाफ खिलाफ संघपरिवार और उसके सहयोगियों ने  एक सफल अभियान चलाया और दिल्ली विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम की पठन सूची से उनके निबंधों को बाहर कर दिया गया।

ग़ौरतलब बात यह है कि ब्रॉकिंगटन 1960 के दशक के अंत से रामायण अध्ययन के क्षेत्र में सबसे प्रख्यात संस्कृत विद्वानों में से एक रहे हैं और उनके रामायण पर उत्कर्ष काम (क्लासिक) को 1984 में भारत में प्रकाशित किया गया था, यह राम जन्मभूमि आंदोलन के खड़े होने के बहुत पहले प्रकाशित हुआ था। अपने सभी लेखन में, चाहे वह रामायण पर हो या हिंदुओं के धार्मिक अनुभवों पर, उन्होंने बार-बार धर्म की विविधता पर जोर दिया है और कहा कि हिंदू धर्म कभी भी एकात्मक घटना नहीं थी।

इसी तरह, रामानुजन के निबंध, थ्री हंड्रेड रामायण: फाइव एक्जांपाल एंड थ्री थौटस ऑन ट्रांसलेशन में बार-बार पूछते हैं कि कितनी रामायण थी।  रामायण परंपरा की बहुलता के विपरीत, जिसने काफी लंबे समय तक इसने विभिन-समुदाय के लोगों को अपना अनुयाई बनाया, संघपरिवार ने केवल इसके संस्करण और इसकी व्याख्या को रामायण के 'सत्य' संस्करण के रूप में पेश किया।

रामायण और राम, इसमें रामानंदसागर का धारावाहिक भी शामिल है, जिसे संघपरिवार ने संरक्षण दिया और प्रसिद्ध किया, कई मायनों में यह एक 'सेनीटाइज्ड' संस्करण का महाकाव्य है, जो राम को कभी कुछ भी गलत न करने वाले 'आदर्श पुरुष' के रूप में प्रस्तुत करता है। महाकाव्य में वे अंश फिर चाहे  वाल्मीकि या तुलसीदास की रामायण हो जिसमें राम का चरित्र खामियों के रूप में सामने आता है और अक्सर वह अपने भीतर की उथल-पुथल से जूझता होता है क्योंकि वह अपने करुणामय स्वयं के माफिक काम नहीं कर पाते हैं, उस अंश को भी निकाल दिया गया हैं।

यहाँ यह ध्यान देने की बात है कि संघपरिवार के आंदोलन ने राम को राष्ट्र के राजनीतिक प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया और तर्क दिया कि अयोध्या में राम मंदिर की गैर-मौजूदगी वह भी उनके जन्म स्थल पर, देश में हिंदुओं का राजनीतिक अपमान है। राम मंदिर को अन्य लोगों पर एक आधिपत्य के प्रतीक के रूप में पेश किया गया था, जो 'विदेशियों' के हाथों हुए आक्रमणों को मिटाने के लिए आवश्यक था, जो 'घुपैठिए' भी थे।

1980 के दशक में, जब राजीव गांधी सरकार ने रामायण धारवाहीक को चालू करने का फैसला किया, तो राम जन्मभूमि आंदोलन की शुरुवात हो चुकी थी, लेकिन वह इतना मज़बूत नहीं था। रामायण को प्रसारित करने के फैंसले से सरकार ने धार्मिक सामग्री वाली किसी भी सामग्री को बढ़ावा नहीं दिया जाएगा जैसे लंबे समय से बने नियम/निषेध का उल्लंघन कर दिया। जब इसे  हर रविवार सुबह को पहली बार दिखाया गया तो धारावाहिक लगभग पूरे राष्ट्र को थाम देता था और कर्फ़्यू जैसा माहौल बन जाता था। इस धारावाहिक ने कई कथाओं के भीतर की बहुलता को छीन लिया, जो कि मूल महाकाव्य पर सदियों से चली आ रही थी। सागर के धारावाहिक ने राम को एक 'सही' और एक-आयामी चरित्र और कहानी को लंबे और रैखिकीय अंदाज़ में पेश कर उस के सार और सुंदरता को नष्ट कर दिया और भारतीयों के महत्वपूर्ण तबकों को क्लासिक माहाकाव्य से दूर कर दिया, क्योंकि अब तक यह एक राजनीतिक परियोजना का घोषणापत्र बन चुका था।

अशोक सिंघल, विहिप नेता, जो लाल कृष्ण आडवाणी के आंदोलन का नेतृत्व संभालने से पहले और इसे राजनीतिक रंग देने से पहले, इसका नेतृत्व कर रहे थे, ने कहा जो रिकॉर्ड में भी दर्ज़  है कि धारावाहिक "हमारे आंदोलन के लिए एक महान उपहार बन कर आया है।" महंत अवेध्यानाथ, और आध्यतामिक नेता और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गुरु ने भी यह टिप्पणी की थी कि सागर ने राम के और उसके आंदोलन का शुभ प्रचार प्रसार किया है। यह सिलसिला जनवरी 1987 से अगस्त 1989 तक चला (कुछ महीनों के लिए विराम हुआ) - लगभग यही वह अवधि थी जब यह आंदोलन जो पहले एक मुख्य धारा के राजनीतिक मुद्दे के रूप में प्रसिद्ध नहीं था और एक नगण्य आंदोलन था लेकिन अब वह भारत का सामाजिक-राजनीतिक नींव को हिला देने वाला आंदोलन बन गया।

धारावाहिक को फिर से चलाने का निर्णय राम मंदिर निर्माण परियोजना में तेज़ी लाने के लिए  किया गया है। 24 मार्च को मोदी द्वारा भारत में पूर्ण रूप से तालाबंदी की घोषणा किए जाने के कुछ ही घंटों बाद, योगी आदित्यनाथ राम लल्ला की मूर्ति को मंदिर के निर्माण तक अस्थायी ढाँचे में रखने के लिए एक अनिर्धारित समारोह करने अयोध्या जाते हैं। जिस तेज़ी से  आदित्यनाथ उस रात वहाँ गए, अनुष्ठान पूरा किया और यह सुनिश्चित किया कि सुबह होने से पहले इसे प्रचारित किया जाए जो अपने आप में  यह रेखांकित करता है कि कोरोनोवायरस से खतरा हो या न हो लेकिन भारतीय जनता पार्टी अपनी ध्रुवीकरण की राजनीति का प्रयास बेरोकटोक जारी रखेगी।

धारावाहिक का प्रसारण एक स्तर पर आवश्यक भी नहीं है क्योंकि मंदिर का निर्माण का रास्ता साफ हो चुका है। हालाँकि, बहुत सा राष्ट्रवादी एजेंडा अभी लंबित पड़ा हुआ है जिसमें उनके शीर्ष पर वाराणसी और मथुरा के दो मंदिरों को, जो उनसे सटी मस्जिदों को गिराने से हासिल किया जाएगा।

इस प्रक्रिया में बेशक राम और रामायण ‘प्रभावहीन’ बन जाए इसकी उन्हे कोई चिंता नहीं है क्योंकि उनका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना नहीं है कि राम को इमाम-ए-हिंद के रूप में देखा जाए, जैसा कि अल्लामाईकबाल कहते थे। जब तक सागर का धारावाहिक अपना वर्तमान पाठ्यक्रम चलाता है, तब तक भारतीयों की एक नई पीढ़ी रामायण और राम के बहुआयामी मूल से बहुत दूर हो जाएगी।

लेखक पत्रकार और लेखक है। उनकी पहली पुस्तक द डिमोलिशन: इंडिया एट द क्रॉसरोड्स थी। उनकी नवीनतम पुस्तक द आरएसएस: आइकन्स ऑफ़ द इंडियन राइट है।

अंग्रेजी में लिखे गए मूल आलेख को आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं

Ramayan in the Times of Pandemic

Ramayan
Doordarshan
rajiv gandhi
Sanghparivar
Hindutva
Hindu Nationalism
Tam Janmabhoomi Movement
AdvaniRathyatra
BJP agenda

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CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License