NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
विज्ञान
भारत
अंतरराष्ट्रीय
जैव विविधता के संकट में चमोली में मिले दुर्लभ ऑर्किड फूलों ने दी उम्मीद
सिक्किम और पश्चिम बंगाल में ये पिछले सौ साल में सिर्फ एक बार देखे गए। चमोली के सप्तकुंड ट्रैक पर एक वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में इस ऑर्किड के मात्र 11 पौधे मिले। हालांकि इनका कोई व्यवसायिक इस्तेमाल नहीं होता। लेकिन प्राकितृक और मानवीय गतिविधियों के चलते इनके रहने के ठिकाने प्रभावित हो रहे हैं।
वर्षा सिंह
13 Sep 2020
चमोली

जिस समय हम वन्यजीवों की आबादी 50 से कम वर्षों में दो तिहाई से भी कम होने की ख़बरें पढ़ रहे हैं। जैव विविधता की श्रृंखला कमज़ोर होने पर कोरोना के जानलेवा वायरस का सामना कर रहे हैं। चमोली के जंगलों से ऑर्किड का एक दुर्लभ नन्हा फूल थोड़ी उम्मीद लेकर आया है। आधिकारिक तौर पर सिक्किम के जंगलों में करीब 128 साल पहले देखे गये ये फूल चमोली के सप्तकुंड ट्रैक पर उगे मिले। पश्चिम हिमालयी क्षेत्र में पहली बार ये वाइल्ड ऑर्किड देखे गए हैं। पेड़-पौधों के संसार के लिए ये थोड़ी राहत की बात है।

सिम्बई के बुग्यालों में दिखे दुर्लभ ऑर्किड

समुद्रतल से करीब 3800 मीटर की ऊंचाई पर चमोली के गोपेश्वर वन प्रभाग के रेंज ऑफिसर हरीश नेगी और शोधार्थी मनोज सिंह ने जब इन फूलों को देखा तो उन्हें ये समझ आ गया कि ये आम ऑर्किड फूल नहीं। इनमें कुछ तो ख़ास बात है। शोधार्थी मनोज सिंह न्यूज़क्लिक को बताते हैं कि वे और हरीश नेगी चमोली के दुर्मी गांव से सप्तकुंड ट्रैक की ओर सिम्बई के बुग्यालों में ट्रैकिंग कर रहे थे। करीब 17-18 किलोमीटर ट्रैक करने के बाद रात घिर आई थी। वहीं एक गुफा में उन्होंने रात बितायी। अगली सुबह गुफा के ऊपर सात-आठ नन्हे ऑर्किड पौधे दिखाई दिए। ऑर्किड फूलों पर अध्ययन कर रहे मनोज कहते हैं कि हमें ये तो पता था कि ये लिपैरिस पिगमिया जीनस के पौधे हैं। फिर हमने स्थानीय और भारतीय फ्लोरा चेक किया। सिक्किम में सौ साल से भी ज्यादा समय पहले देखे गए ऑर्किड से इनका मिलान हुआ। इसके आसपास बुरांस की प्रजाति चमुआ, तात्सु और ऑर्किड की एक अन्य प्रजाति ब्लैरिस भी मिली।

orchid in chamoli2.jpeg

बॉटेनिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने की पुष्टि

उत्तराखंड वन विभाग के लिए भी ये एक बड़ी उपलब्धि है। जून में मिले इन फूलों के बारे में जानकारी पुख्ता करने के लिए बॉटेनिकल सर्वे ऑफ इंडिया को नमूने भेजे गए। वन विभाग के रिसर्च विंग के वन संरक्षक संजीव चतुर्वेदी बताते हैं कि बॉटेनिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने इसकी पुष्टि की और ऑर्किड के इन फूलों को नेशनल हर्बेरियम में शामिल किया। जहां पौधों-फूलों को सूखाकर और उनसे जुड़ी सारी जानकारी कार्ड बोर्ड पर चस्पा कर वैज्ञानिक अध्ययन के लिए रखा जाता है।  

फ्रांस के रिसर्च जर्नल रिचर्डियाना में शोध प्रकाशित

फ्रांस के प्रतिष्ठित रिसर्च जर्नल रिचर्डियाना ने भी उत्तराखंड वन विभाग की इस खोज को अपने शोध पत्र में प्रकाशित किया। लिपैरिस पिगमिया (Liparis pygmaea) नाम के ये दुर्लभ ऑर्किड फूल पश्चिम हिमालयी क्षेत्र में पहली बार रिकॉर्ड किए गए। लिपैरिस ऑर्किड फूलों की 320 अलग-अलग प्रजातियां हैं। जो एशिया के गर्म इलाकों में पायी जाती हैं। छोटे और मध्यम आकार के पीले, हरे, नारंगी और बैंगनी फूल बेहद आकर्षक होते हैं। भारत में इस जीन्स की 48 प्रजातियां पायी जाती हैं। जिसमें से 10 प्रजाति पश्चिम हिमालय में पायी जाती है।

मनोज सिंह और हिमांशु नेगी ने इन फूलों की पहचान की और इसके नमूने एथेनॉल में संरक्षित किए। बॉटेनिकल सर्वे ऑफ इंडिया के जीवन सिंह जलाल ने इन फूलों का अध्ययन किया। इसकी पहचान लिपैरिस पिगमिया के रूप में की गई। जो वर्ष 1898 में सिक्किम में देखी गई थी।

ये खोज बताती है कि चमोली में मिले ये ऑर्किड फूल आसपास के इलाकों में फैले हो सकते हैं। इन पौधों की लंबाई तीन से चार सेंटीमीटर है।  बुरांस, गुलथरिया और फालू जैसे हिमालयी फूलों के बीच ये ऑर्किड फूल छिपे मिले।

आखिरी बार सौ से अधिक साल पहले सिक्किम से हुई थी रिपोर्टिंग

वैज्ञानिकों के मुताबिक सबसे पहले सिक्किम में तीन जगहों पर देखे गए ये फूल उत्तराखंड के साथ पश्चिम बंगाल के एक क्षेत्र, चीन और नेपाल के एक-एक इलाके में 3100 मीटर से 3900 मीटर तक की ऊंचाई पर रिपोर्ट किए गए हैं। सिक्किम और पश्चिम बंगाल में ये पिछले सौ साल में सिर्फ एक बार देखे गए। हालांकि इनका कोई व्यवसायिक इस्तेमाल नहीं होता। लेकिन प्राकृतिक और मानवीय गतिविधियों के चलते इनके रहने के ठिकाने प्रभावित हो रहे हैं। जिससे इनके अस्तित्व पर खतरा है। रिसर्च पेपर में लिखा गया है कि इन ऑर्किड फूलों के पड़ोसी फूलों-पौधों का औषधीय इस्तेमाल होता है। जिसके चलते इनकी दुनिया भी प्रभावित हो रही है। बेतरतीब पर्यटन और विकास से जुड़ी गतिविधियां भी जंगल की जैव विविधता को प्रभावित कर रही है।

orhid in chamoli.jpeg

सजावट के लिए ऑर्किड की विश्वभर में मांग

ऑर्किड फूलों के विशेषज्ञ बॉटेनिकल सर्वे ऑफ इंडिया के वैज्ञानिक जीवन सिंह जलाल न्यूज़क्लिक को बताते हैं कि भारतीय क्षेत्र में ये फूल 128 साल बाद देखे गए हैं। इनकी ज्यादातर प्रजातियां गर्म क्षेत्रों में मिलती हैं लेकिन कुछ प्रजातियां 3-4 हज़ार मीटर की ऊंचाई पर बुग्यालों में मिलती हैं। वह बताते हैं कि विश्वभर में फूलों की दुनिया में ऑर्किड फूलों की बहुत अधिक मांग है। हॉलैंड में डेन्डोरियम ऑर्किड का बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जाता है। थाईलैंड और सिंगापुर में भी बड़े-बड़े फार्म में ऑर्किड फूल उगाए जाते हैं। सजावट के लिए इस्तेमाल होने वाले इनके कुछ फूल एक-एक महीने तक सुरक्षित रहते हैं। सिक्किम, गोवा, बंगलुरू और केरल में भी ऑर्किड की खेती की जाती है। देहरादून का मौसम भी ऑर्किड के लिहाज से अच्छा है।

बीज से पौधा बनने की प्रक्रिया है जटिल

ऑर्किड फूलों के बीज नंगी आंखों ने नहीं देखे जा सकते। इनके अंकुरित होने की प्रक्रिया बेहद जटिल है। इन्हें उगने के लिए माइक्रो राइजर फंगस की जरूरत होती है। माइक्रो राइजर फंगस से बीज को भोजन मिलता है। जिससे वे पनपते हैं। सिर्फ बीज से पौधा नहीं बन सकता। उत्तराखंड के बुग्यालों में शेफर्ड जानवरों को चराने के लिए जाते हैं। वे बुग्यालों में सितंबर तक रहते हैं और ठंड के समय नीचे आते हैं। डॉ जलाल कहते हैं कि पांवों के नीचे आऩे और जानवरों के चरने के दौरान बहुत से पौधों की आबादी प्रभावित होती है। सीमित संख्या में मिलने वाले इन पौधों को अगर जानवरों ने खा लिया तो इनका पूरा जीवनचक्र प्रभावित होगा। एक समय के बाद ये वहां से विलुप्त हो जाएंगे।

पेड़-पौधों की दुनिया में दिलचस्पी ज़रूरी

वैज्ञानिक जीवन सिंह जलाल कहते हैं कि फूल-पौधों का संसार बेहद विस्तार लिए हुए है। हम अपने आसपास बहुत से फूल-पौधों को देखते हैं लेकिन उनके बारे में हमारी दिलचस्पी, जिज्ञासा या जानकारी सीमित होती है। मनोज सिंह और हिमांशु नेगी को इसके बारे में दिलचस्पी थी। उन्होंने ये फूल देखे। इसके बारे में जानकारी जुटायी और जैव-विविधता से दस्तावेज़ों में एक नया दुर्लभ फूल जुड़ गया। उनके मुताबिक हिमालयी क्षेत्र के ऐसे कई पॉकेट्स हैं जहां आवाजाही कम है। वहां और ऐसे अचंभे देखने को मिल सकते हैं।

Biodiversity
Flowers
Flower crops
chamoli
Rare Flowers
Botanical Survey of India
Plant and flowers
Environment

Related Stories

क्या इंसानों को सूर्य से आने वाले प्रकाश की मात्रा में बदलाव करना चाहिए?

उत्तरी हिमालय में कैमरे में क़ैद हुआ भारतीय भूरा भेड़िया

जलवायु परिवर्तन, विलुप्त होती प्रजातियों के दोहरे संकट को साथ हल करने की ज़रूरत: संयुक्त राष्ट्र के वैज्ञानिक

बर्ड फ्लू और कोरोना के बीच जैव-विविधता के खतरे से आगाह करता है पॉलीनेटर पार्क

कुदरत का करिश्मा है काई, जो बन सकती है आपके गले का हार

तेज़ी से पिघल रहे हैं सतोपंथ और ऋषि गंगा ग्लेशियर

चमोली के मंडल में कीटभक्षी पौधों का अद्भुत संसार

जलवायु परिवर्तन केवल पर्यावरण का मुद्दा नहीं!


बाकी खबरें

  • hafte ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    मोदी सरकार के 8 साल: सत्ता के अच्छे दिन, लोगोें के बुरे दिन!
    29 May 2022
    देश के सत्ताधारी अपने शासन के आठ सालो को 'गौरवशाली 8 साल' बताकर उत्सव कर रहे हैं. पर आम लोग हर मोर्चे पर बेहाल हैं. हर हलके में तबाही का आलम है. #HafteKiBaat के नये एपिसोड में वरिष्ठ पत्रकार…
  • Kejriwal
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: MCD के बाद क्या ख़त्म हो सकती है दिल्ली विधानसभा?
    29 May 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस बार भी सप्ताह की महत्वपूर्ण ख़बरों को लेकर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन…
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष:  …गोडसे जी का नंबर कब आएगा!
    29 May 2022
    गोडसे जी के साथ न्याय नहीं हुआ। हम पूछते हैं, अब भी नहीं तो कब। गोडसे जी के अच्छे दिन कब आएंगे! गोडसे जी का नंबर कब आएगा!
  • Raja Ram Mohan Roy
    न्यूज़क्लिक टीम
    क्या राजा राममोहन राय की सीख आज के ध्रुवीकरण की काट है ?
    29 May 2022
    इस साल राजा राममोहन रॉय की 250वी वर्षगांठ है। राजा राम मोहन राय ने ही देश में अंतर धर्म सौहार्द और शान्ति की नींव रखी थी जिसे आज बर्बाद किया जा रहा है। क्या अब वक्त आ गया है उनकी दी हुई सीख को अमल…
  • अरविंद दास
    ओटीटी से जगी थी आशा, लेकिन यह छोटे फिल्मकारों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा: गिरीश कसारावल्ली
    29 May 2022
    प्रख्यात निर्देशक का कहना है कि फिल्मी अवसंरचना, जिसमें प्राथमिक तौर पर थिएटर और वितरण तंत्र शामिल है, वह मुख्यधारा से हटकर बनने वाली समानांतर फिल्मों या गैर फिल्मों की जरूरतों के लिए मुफ़ीद नहीं है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License