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अफ़ग़ानिस्तान के घटनाक्रम पर विचार – भाग दो 
अफ़ग़ानिस्तान में एक संक्रमणकालीन सरकार बनाने के लिए तात्कालिक प्रयास किए जा रहे हैं। तालिबान एक व्यापक आधार वाली प्रतिनिधि व्यवस्था के प्रति उत्तरदायी दिखाई दे रहा है।
एम. के. भद्रकुमार
19 Aug 2021
Translated by महेश कुमार
अफ़ग़ानिस्तान के घटनाक्रम पर विचार – भाग दो 
विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी (बाएं से दूसरी ओर) इस्लामाबाद में 16 अगस्त 2021 को तत्कालीन नॉर्दर्न  अलाइन्स और वरिष्ठ अफ़ग़ान राजनेताओं के समग्र प्रतिनिधिमंडल के साथ बातचीत करते हुए। 

राजनीति के पुनर्जीवित होने का आसार फिर से दिखाई दे रहे हैं

जीवन का विस्फोट रुकने वाला नहीं है। रविवार को अपने ही लोगों से बेईमानी से चुराए गए धन की भारी लूट के साथ अशरफ गनी के बिना किसी को बताए काबुल से भागने के बाद गंदगी से पहली कली अपनी जड़ें निकालती दिखाई दे रही हैं। और अब राजनीतिक सुधार के आसार दिखाई दे रहे हैं।

हालात तनावपूर्ण है और इसलिए तत्काल देखभाल की जरूरत है। इलाके लामबंद हो रहे है। पाकिस्तान ने मोर्चा संभाल लिया है।

रविवार की दोपहर, 1990 के दशक के नॉर्दर्न अलाइन्स से जुड़े वरिष्ठ अफ़गान राजनेता बड़े पैमाने पर तालिबान की मुख्यधारा में शामिल होने के संबंध में पाकिस्तानी नेतृत्व के साथ विचार-विमर्श करने के लिए इस्लामाबाद पहुंचे। प्रतिनिधिमंडल में पंजशीर घाटी के तीन शीर्ष हस्ती/नेता, अनुभवी हजारा नेता, जमीयत-ए-इस्लामी नेता, अफ़ग़ान संसद (दिलचस्प रूप से, मजार-ए-शरीफ मोहम्मद अत्ता नूर के ताजिक नेता के सबसे बड़े बेटे सहित) बातचीत में शामिल थे।

निस्संदेह, यह एक शानदार घटनाक्रम है कि पाकिस्तान तत्कालीन नॉर्दर्न अलाइन्स के शीर्ष नेताओं की मेजबानी कर रहा है, जिसने 1990 के दशक में तालिबान विरोधी प्रतिरोध का नेतृत्व किया था। दूसरे शब्दों में कहें तो गनी के रास्ते से हट जाने के बाद, गैर-तालिबान अफ़गान 'विपक्ष', जिसे उसने अपने उन्मादी, भ्रष्ट शासन के दौरान कई तरह से हाशिए पर डाला था, उन्हे अपमानित किया या अनदेखा किया था, वे अब आगे बढ़ रहे है।

वैसे, काबुल में रूसी दूतावास के प्रवक्ता निकिता इशचेंको ने गनी के शर्मनाक पलायन का एक ग्राफिक विवरण दिया है: "जहां तक ​​(निवर्तमान) शासन के पतन का सवाल है, इस बात से  स्पष्ट हो जाता है कि जिस तरह से गनी अफ़ग़ानिस्तान से भाग गया वह इशारा है कि अफ़गान मीन किस तरह की सरकार चल रही थी। चार कारें धन से लबालब भरी थीं, उन्होंने धन के बड़े हिस्से को एक हेलीकॉप्टर में ठुसने की कोशिश की, लेकिन धन उस में समा नहीं पाया। और कुछ पैसा टारमैक पर पड़ा रह गया था।”

साथ ही बहुत यह बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका का आश्चर्यजनक प्रदर्शन हो सकता है जिसे पाकिस्तान अकेले आज की परिस्थितियों में अफ़ग़ानिस्तान में दर्शा सकता है और जो राष्ट्रीय सुलह की सुविधा प्रदान कर सकता है और इसे समावेशी राजनीति की संस्कृति की ओर ले जा सकता है। अफ़गान राजनेता पाकिस्तान की नीतियों और उसकी क्षेत्रीय रणनीति में आए महत्वपूर्ण बदलावों की सराहना करते हैं जो शांतिदूत बनने की पाकिस्तान की साख को बढ़ा देते हैं।

पाकिस्तान ने अफ़गान प्रतिनिधिमंडल से अफ़गान मुद्दे पर व्यापक आधार वाले व्यापक राजनीतिक समाधान की मांग की है और एक शांतिपूर्ण, एकजुट, लोकतांत्रिक, स्थिर देश बनाने के उद्देश्य से तत्काल कदम के रूप में एक व्यापक राजनीतिक वार्ता शुरू करने का आग्रह किया है।

साथ ही, पाकिस्तान की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद, देश की सर्वोच्च नागरिक-सैन्य नीति बनाने वाली संस्था ने प्रधानमंत्री इमरान खान की अध्यक्षता में सोमवार को बैठक की और दोहराया कि एक समावेशी राजनीतिक समझौता ही आगे बढ़ने का एकमात्र तरीका है, जो सभी अफ़गान जातीय समूहों का प्रतिनिधित्व करता हो। 

जाहिर है, इस्लामाबाद के घटनाक्रम को अलग-थलग करके नहीं देखा जा सकता है। काबुल से अमेरिकी राजनयिकों को निकलने की असफल कोशिशों के बीच, राष्ट्रपति बाइडेन ने सोमवार को अपने रुख को नरम करते हुए कहा कि अफ़गानिस्तान में आगे के समय में, अमेरिका "अपनी कूटनीति, अपने अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव और अपनी मानवीय सहायता” के साथ उम्मीद करता हैं कि वह; "क्षेत्रीय कूटनीति को आगे बढ़ाएगा"; "राष्ट्र-निर्माण" से दूर "अपने आर्थिक साधनों" की मदद में गतिशीलता लाएगा; और, "अपने आतंकवाद विरोधी मिशनों पर कम केन्द्रित रहेगा"।

यह एक दुस्साहसिक बयान है। बाइडेन ने अपने विवादास्पद सैन्य वापसी के फैसले का समर्थन किया है। उनकी कर्कश दहाड़ के ज़रीए वे घरेलू दर्शकों को संबोधित कर रहे थे, लेकिन उनके भाषण से जो उभर कर आता है, वह यह कि "दुनिया में महत्वपूर्ण हितों पर ध्यान केंद्रित करते हुए अमेरिका की सुस्त वापसी है जिसे हम अनदेखा नहीं कर सकते हैं।"

हमें इस पर भरोसा करना होगा कि शांति कायम करने का महत्वपूर्ण काम अब क्षेत्रीय देशों के कान्धो पर आ गया है। तालिबान को इसका आभास है और वह ईमानदारी से जल्दबाजी में की जाने वाली किसी भी कार्रवाइयों से बच रहा है। इस बीच, पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई, अब्दुल्ला अब्दुल्ला और मुजाहिदीन नेता गुलबुद्दीन हिकमतयार का "समन्वय समूह" गनी के भाग जाने के बाद पैदा हुए शून्य को भरने के लिए एक पुल का काम कर रहा है।

अनिवार्य रूप से, पाकिस्तान की इसमें एक केंद्रीय भूमिका है, लेकिन ईरान, चीन और रूस की भूमिका भी महत्वपूर्ण होगी। तात्कालिक प्रयास एक संक्रमणकालीन सरकार बनाने का है। तालिबान एक व्यापक-आधारित, प्रतिनिधि व्यवस्था के प्रति उत्तरदायी प्रतीत होता है।

भारत को सरसरी तौर पर पाकिस्तान के खिलाफ दुश्मनी बनाए रखने के अपने काल्पनिक व्यवहार को छोड़ देना चाहिए और इन नई हलचलों को पहचानना चाहिए। गनी और उसके समूह के साथ-साथ अमेरिकी जुए के साथ फॉस्टियन सौदे से मुक्त होकर भारतीय कूटनीति को अब अफ़गान अभिजात वर्ग के साथ नेटवर्किंग को नवीनीकृत करना चाहिए जिन्हें अब तक सत्ता से बाहर रखा गया था।

इस ऐतिहासिक मोड़ पर, काबुल में राजनयिक मिशन को बंद करना एक बड़ी भूल होगी जब अफ़गानिस्तान में कूटनीति और राजनीति के पहिये तेज घूमने के मक़ाम पर हैं। सामान्य राजनीति हर दिन थोड़ा बढ़ने की ओर अग्रसर है, और हवा में बेजान लटकी तीस साल की धूल जमने वाली है। इस प्रक्रिया से दूर रहना केवल भारत के हितों को नुकसान पहुंचाएगा और यह इसे क्षेत्र की राजनीति में अलग-थलग कर देगी।

एम.के. भद्रकुमार एक पूर्व राजनयिक हैं। वे उज़्बेकिस्तान और तुर्की में भारत के राजदूत रह चुके हैं। व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Reflections on Events in Afghanistan – II

Afganistan
TALIBAN
Pakistan
Ashraf Ghani

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