NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
घटना-दुर्घटना
संगीत
भारत
स्मृति शेष : ज़िंदगी पहेली ही रही, योगेश नहीं रहे
अपने गीतों में एक गर्मजोशी और गुणवत्ता को महत्व देने वाले योगेश, बड़े सरल और नर्म स्वभाव के थे। अपने स्वभाव के अनुरूप उन्होंने जो गीत लिखे, वो सदा याद रहने वाले हैं।
आमिर मलिक
02 Jun 2020
योगेश नहीं रहे
फोटो साभार : मोती लालवानी, यूट्यूब 

आनन्द फ़िल्म का वह गीत ज़िंदगी कैसी है पहेली  किसने नहीं सुना होगा। वाकई ज़िंदगी पहेली ही है जो, कभी हंसाती है और कभी रुलाती है। इस पहेली से जूझने वाले इस गीत के रचयिता योगेश गौर का शुक्रवार को निधन हो गया। वो 77वर्ष के थे।

अपने गीतों में एक गर्मजोशी और गुणवत्ता को महत्व देने वाले योगेश, बड़े सरल और नर्म स्वभाव के थे। अपने स्वभाव के अनुरूप उन्होंने जो गीत लिखे, वो सदा याद रहने वाले हैं। मैंने ज़िंदगी कैसी है पहेली  गीत पहली बार बचपन में विविध भारती पर सुना था। गीत ख़त्म होने पर एंकर ने बताया “योगेश के लिखे इस गीत को संगीत से सजाया है सलिल चौधरी ने।” योगेश का नाम तभी याद रह गया था। उसके बाद उनसे एक लगाव हुआ।

ये लगाव उनके गीतों में मौजूद फिलॉस्फी से था या उनकी सरल भाषा से, ये कहना मुश्किल है। उनकी मौत की ख़बर पर दिल ग़मगीन था और बार बार कह रहा था कि गीतों के मेलों में अपना रंग सजा कर न मालूम योगेश अकेले कहां चले गए।

सन् 1962 में आई फ़िल्म सखी रॉबिन के उस सुंदर गीत तुम जो आओ तो प्यार आ जाए  को आवाज़ दी थी मन्ना डे और सुमन कल्याणपुर ने। योगेश के लिखे तमाम गीतों के बीच इसकी चर्चा अब ज़रा कम होती है। योगेश ने इस गीत को अपने युवा अवस्था में लिखा था। एक युवा लेखक प्रेम की उम्मीद को इतनी सरलता से शब्दों में बांध दे, कम होता है, ये कला योगेश को बखूबी आती थी।

यही गीत योगेश की कामयाबी की पहली सीढ़ी भी थी। इससे उन्हें जो कुछ रुपये मिले, उसको लेकर योगेश अपने दोस्त सत्तू के साथ बंबई (मुंबई) चले गए। हुआ यूं था कि योगेश को अपने शहर लखनऊ में किसी ने काम नहीं दिया। वो लखनऊ छोड़कर, सबसे नाता-रिश्ता तोड़कर नौकरी की तलाश में सत्तू के साथ बंबई आ गए थे।

बंबई में वो लोगों से मिलते, काम ढूंढ़ते और सत्तू कहीं छोटी-मोटी नौकरी करके दोनों का पेट भरते। इसी हाल में गुज़र करते, एक साल दर-ब-दर भटकने के बाद उनको काम मिला, तब ये रुपए आए थे। पहली कमाई थी, दोस्त सत्तू के साथ खानपान तो बनता था। ऐसे ही सरल व्यक्ति थे योगेश।

भटकने के इसी दरम्यान उन्होंने डायरी रखनी शुरू की और ज़िन्दगी के बारे में सोचते हुए टहलते रहते। टहलते हुए लिखते, और लिखते-लिखते उन्होंने गीत और मिसरों का खज़ाना जमा कर लिया। टहलना बंद नहीं हुआ पर कम ज़रूर हो गया। उनको अपने कैरियर का बड़ा मकाम मिला, कहीं दूर जब दिन ढल जाए से जिसे गया है मुकेश ने।

धीरे धीरे शिखर पर पहुंचते हुए जब रिश्तेदारों ने उनको देखा, तो पूछा भी “क्या तुम वही योगेश हो?” योगेश ने जवाब देना मुनासिब नहीं समझा। अना भी भरपूर थी इस शायर में।

खूबसूरती पर जब उन्होंने लिखा सौ बार बनाकर मालिक ने तो मजरूह सुल्तानपुरी ने कहा, “इससे अच्छा कुछ लिखा ही नहीं जा सकता”। इस गाने को फिल्माया जाना था सिम्मी गरेवाल के ऊपर और सिम्मी जी गाने पर इतनी फिदा हुई थीं कि योगेश जी को फ़िल्म के सेट पर मिलने के लिए बुलवा लिया।

सौ बार बनाकर मालिक ने

सौ बार मिटाया होगा

ये हुस्न मुजस्सिम तब तेरा

इस रंग पे आया होगा...

ये कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि गुलज़ार, इन्दीवर, गुलशन बावरा, आनंद बक्शी और तमाम कवि-गीतकारों के बीच योगेश ने अपनी अलग पहचान बनाई। वो पहचान जो कभी उन्हें मिली और कभी नहीं भी। शायद इसका दुःख उनको हुआ भी हो, पर कभी उन्होंने ज़िक्र नहीं किया। वो हरफनमौला थे। जो गीत उन्होंने लिखे, कहीं न कहीं वो उनके जीवन का आइना थे। योगेश हर्फ़ से मोती पीरो देते थे।

उनको अपने लेखन में प्रयोग भी करना था। रजनीगंधा फूल तुम्हारे महके यूंही जीवन में  गाने में में शब्द “अनुरागी” को प्रवेश देना एक ऐसा ही प्रयोग था। उनको लग रहा था कि संगीत निर्देशक सलिल चौधरी उनसे कहेंगे कि ये क्या लिख दिया। पर सलिल ने ना सिर्फ़ इसको पसंद किया बल्कि ये गीत आज भी सुनने को जी कर जाता है। अनुरागी शब्द इस गीत की जान है।

लगभग 50 बरस पहले आई फ़िल्म छोटी सी बात का वो बड़ा मशहूर गाना जानेमन जानेमन तेरे दो नयन  हो या 2018 में आई फ़िल्म अंग्रेजी में कहते हैं का मेरी आंखें, ऐसा लगता है जैसे योगेश को आंखों से बड़ी दिलचस्पी थी।

मंज़िल फ़िल्म का वो गाना लें, रिमझिम गिरे सावन, सुलग-सुलग जाए मन  बारिश में अगर न सुना जाए, तो बारिश मुकम्मल नहीं लगती।

एक बात तय है कि योगेश को अगर कहानी में दम दिखता, तो वो उस फ़िल्म के गाने ज़रूर लिखते।

ये सब जानने के बाद उनको सिर्फ़ हुस्न और अदाओं का लेखक समझना भूल होगी। अपने लेखन के शुरूआत में तो उन्होनें अदाओं पर, इश्क़ और हुस्न पर लिखा पर बाद में इससे चिढ़ने लगे। कामना, इच्छा और दुआ को समेटे हुए योगेश की गीतों में एक जीवन पसरा हुआ मिलता है।

देखो रे आया मौसम सुहाना  गीत किसान की उस खुशी को बयान करता है जब वो लहलहाते खेत देखता है। अच्छी फसल पर इस गीत की एक पंक्ति “गूंज उठी खेतों में पायल” आज भी दिलों को कायल करती है। ये अलग बात है कि देश उस समय “हरित क्रांति” से गुज़र रहा था और ऐसे गीत आने स्वाभाविक थे।

वो बातचीत के दरम्यान अपना दाहिना कंधा उचकाते और अपने  हाथों को हमेशा इधर-उधर करते रहते। मानो, बहुत कुछ कहना हो और बहुत कम वक़्त रह गया हो। उनको खिलखिला कर हंसना आता था। शायद उन्होंने ज़िंदगी से ये बातें सीख ली हों। मिर्ज़ा ग़ालिब का एक शे’र है:

“आगे आती थी हाल ए दिल पे हंसी

अब किसी बात पर नहीं आती”

योगेश जीवनभर इसकी दूसरी पंक्ति को हराते रहे। फ़िल्म मिली का वो गीत मैने कहा फूलों से हँसो तो वो खिल खिला के हंस दिए इसी बात कि गवाही देते हैं। एक और शब्द है जिससे उन्हें बड़ी आशनाई थी। दुल्हन।

कहीं दूर जब दिन ढल जाए में सांझ की दुल्हन बदन चुराए  हो या

ये शाम तो यूँ हँसी जैसे हँसी दुल्हन, जिस पल नैनों में सपना तेरा आए उस पल मौसम पर मेहंदी रच जाए और तू बन जाए जैसे दुल्हन और उदाहरण के तौर पर एक और गीत—सजी हुई है आज हरियाली जैसे कोई दुल्हन मतवाली  इन्हीं अल्फ़ाज़ का खूबसूरती से गानों में बंध जाना, योगेश के गीतों को अमर बनाता है।

जीवनभर उनका कलम काग़ज़ पर दौड़ता रहा। लफ्ज़ सांस, दामन, सितारा, बंधन पर तो उन्हें महारत हासिल थीं। एक और बात पर महारत हासिल थी उनको। ज़िन्दगी के कटु सच्चाई और दुःख को हंसते हंसते बयान करना। सांसों की आमद-ओ-रफ़्त जबतक गिरफ़्तार न हो गई, योगेश ने हार नहीं मानी। वो खुद कहते रहे हैं कि उनको लेखनी मिली ताकि जबतक सांस चलती रहे योगेश कुछ करता रहे।

वही डगर है वही सफ़र है पर गीत और योगेश का साथ बस इतना ही था। न जाने क्यूँ, होता है ये ज़िंदगी के साथ। ऐसा लगता है वो अपनी मौत के बाद का गीत अपने रहती जीवन में लिख गए हों। उनके जाने के बाद उनका ही गीत उनके चले जाने के दर्द की तर्जुमानी करता है— “बड़ी सूनी सूनी है...ज़िंदगी ये ज़िंदगी।”

(आमिर मलिक दिल्ली में रहते हैं और स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

Yogesh
Singer
Journey of Yogesh
Yogesh Life
Yogesh Died

Related Stories


बाकी खबरें

  • sedition
    भाषा
    सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह मामलों की कार्यवाही पर लगाई रोक, नई FIR दर्ज नहीं करने का आदेश
    11 May 2022
    पीठ ने कहा कि राजद्रोह के आरोप से संबंधित सभी लंबित मामले, अपील और कार्यवाही को स्थगित रखा जाना चाहिए। अदालतों द्वारा आरोपियों को दी गई राहत जारी रहेगी। उसने आगे कहा कि प्रावधान की वैधता को चुनौती…
  • बिहार मिड-डे-मीलः सरकार का सुधार केवल काग़ज़ों पर, हक़ से महरूम ग़रीब बच्चे
    एम.ओबैद
    बिहार मिड-डे-मीलः सरकार का सुधार केवल काग़ज़ों पर, हक़ से महरूम ग़रीब बच्चे
    11 May 2022
    "ख़ासकर बिहार में बड़ी संख्या में वैसे बच्चे जाते हैं जिनके घरों में खाना उपलब्ध नहीं होता है। उनके लिए कम से कम एक वक्त के खाने का स्कूल ही आसरा है। लेकिन उन्हें ये भी न मिलना बिहार सरकार की विफलता…
  • मार्को फ़र्नांडीज़
    लैटिन अमेरिका को क्यों एक नई विश्व व्यवस्था की ज़रूरत है?
    11 May 2022
    दुनिया यूक्रेन में युद्ध का अंत देखना चाहती है। हालाँकि, नाटो देश यूक्रेन को हथियारों की खेप बढ़ाकर युद्ध को लम्बा खींचना चाहते हैं और इस घोषणा के साथ कि वे "रूस को कमजोर" बनाना चाहते हैं। यूक्रेन
  • assad
    एम. के. भद्रकुमार
    असद ने फिर सीरिया के ईरान से रिश्तों की नई शुरुआत की
    11 May 2022
    राष्ट्रपति बशर अल-असद का यह तेहरान दौरा इस बात का संकेत है कि ईरान, सीरिया की भविष्य की रणनीति का मुख्य आधार बना हुआ है।
  • रवि शंकर दुबे
    इप्टा की सांस्कृतिक यात्रा यूपी में: कबीर और भारतेंदु से लेकर बिस्मिल्लाह तक के आंगन से इकट्ठा की मिट्टी
    11 May 2022
    इप्टा की ढाई आखर प्रेम की सांस्कृतिक यात्रा उत्तर प्रदेश पहुंच चुकी है। प्रदेश के अलग-अलग शहरों में गीतों, नाटकों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का मंचन किया जा रहा है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License