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रिपोर्ट : भारत में सौ में केवल 24 हैं कामकाजी महिलाएं  
जेंडर गैप रिपोर्ट 2020 के तहत भारत में 82% पुरुषों की तुलना में केवल 24% महिलाएं ही कामकाजी हैं। केवल 14% महिलाएं नेतृत्वकारी भूमिकाओं में हैं और भारत का इस इंडेक्स में 136 वां स्थान है।
राकेश सिंह
25 Jan 2020
women in working sector
प्रतीकात्मक तस्वीर

ऑक्सफेम की ताजा रिपोर्ट में अमीर और गरीब के बीच बढ़ती हुई जिस खाई की ओर संकेत किया गया है, उससे पूरी दुनिया में बढ़ती आर्थिक असमानता की तरफ लोगों का ध्यान थोड़ा मुड़ा है। जबकि वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की जेंडर गैप रिपोर्ट-2020 चर्चा से पूरी तरह बाहर ही रही है। यह सच है कि आर्थिक असमानता पूरी दुनिया में फैली हुई है लेकिन कुछ सामाजिक वर्गों में बहुत ही ज्यादा है। इन सामाजिक वर्गों में महिलाएं गरीबी से सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। वर्ल्ड इकोनामिक फोरम की जेंडर गैप रिपोर्ट-2020 में भारत पिछले साल के तुलना में 4 स्थान और नीचे खिसककर अब 153 देशों की सूची में 112 में नंबर पर है। सबसे बड़ी बात यह है कि भारत अपने पड़ोसी देश बांग्लादेश (50), नेपाल (101) और श्रीलंका (102) से भी नीचे है।

सबसे मजेदार बात यह है कि 153 देशों में भारत इकलौता ऐसा देश है जहां राजनैतिक लिंग अंतर की तुलना में आर्थिक लिंग अंतर ज्यादा है। हालांकि महिलाओं का राजनीतिक प्रतिनिधित्व भी घटा है। संसद में इस समय केवल 14.4% महिलाएं हैं और इस इंडेक्स में भारत का 122 वां और 23% कैबिनेट मंत्रियों के साथ दुनिया में 69वां स्थान है।

भारत में 82% पुरुषों की तुलना में केवल 24% महिलाएं ही कामकाजी हैं। केवल 14% महिलाएं नेतृत्वकारी भूमिकाओं में हैं और भारत का इस इंडेक्स में 136 वां स्थान है। स्वास्थ्य और जीवन रक्षा इंडेक्स में भारत 150 वें नंबर पर है।
 
भारत में कामकाजी महिलाओं के अनुपात के बारे में विश्व बैंक द्वारा पेश आंकड़े इससे भी अधिक हतोत्साहित करने वाले हैं। महिला श्रम शक्ति भागीदारी दर (FLFPR) के मामले में भारत से नीचे केवल मिस्र, मोरक्को, सोमालिया, ईरान, अल्जीरिया, जॉर्डन, इराक, सीरिया और यमन  जैसे नौ देश हैं।
 
एनएसएसओ द्वारा प्रकाशित आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) ने 2017-18 में श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी  केवल 23.3% दिखाई गई है, जो बहुत ही निराशाजनक है। इससे साफ है कि 15 वर्ष की आयु से ऊपर की चार में से तीन महिलाएं काम नहीं कर रही हैं और न ही काम की खोज रही हैं। भौगोलिक रूप से बिहार 4.1% की महिला श्रम शक्ति भागीदारी दर (FLFPR)  के साथ भारत के राज्यों में सबसे नीचे है। जबकि मेघालय (51.2%), हिमाचल प्रदेश (49.6%), छत्तीसगढ़ (49.3%), सिक्किम (43.9%), और आंध्र प्रदेश (42.5%) के साथ महिलाओं की कार्यबल भागीदारी में सबसे आगे हैं।

भारत में शहरी महिलाओं के लिए महिला श्रम शक्ति भागीदारी दर (FLFPR) काफी हद तक स्थिर रही है। 2011-12 में 20.5% से 2017-18 में ये मामूली रूप से घटकर 20.4 प्रतिशत रही है। इसी अवधि में ग्रामीण महिलाओं के लिए कार्यबल की भागीदारी दर 35.8% से गिरकर 24.6% हो गई, जो विशेष चिंता का विषय है। 2004-05 में शहरी और ग्रामीण महिलाओं के लिए दर्ज FLFPR क्रमशः 24.4% और 49.4% थी। इससे साफ है कि भारत में महिलाओं के आर्थिक क्षमता और हैसियत पिछले 15 सालों में लगातार घटती रही है।

कृषि क्षेत्र में महिलाओं की श्रम भागीदारी घटने का एक बड़ा कारण राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून और मनरेगा भी हैं। इसके कारण गरीबी रेखा के नीचे के परिवारों की महिलाओं ने मजदूरी के लिए खेतों में काम करना करीब-करीब बंद कर दिया है। अब वे केवल अपने घर के कृषि कार्यों में बिना मजदूरी के सहयोग देने तक सीमित होती जा रही हैं। ग्रामीण श्रमिकों में 73.2% महिलायें कृषि में लगी हुई थीं, जिसका अर्थ है कि ग्रामीण पृष्ठभूमि में महिलाओं के लिए अभी गैर-कृषि कार्यों को हासिल कर पाना दुर्लभ ही है।

शहरी कामकाजी महिलाओं के बीच दो सबसे बड़े रोजगार वस्त्र संबंधी व्यवसाय और घरेलू कर्मचारी का है। इससे साफ है कि शहरों में कामकाजी महिलाओं की भागीदारी अच्छे व्यवसायों में बहुत कम है और उनके काम की गुणवत्ता भी संदिग्ध है।

मैक्किंसे ग्लोबल इंस्टीट्यूट के अनुसार भारत अपने कार्यबल में लिंग समानता को या महिला श्रम शक्ति भागीदारी दर (FLFPR) को अगर 10% प्रतिशत और बढ़ा लेता है, तो भारत अपने सकल घरेलू उत्पाद (GDP) को 2025 तक 700  अरब डॉलर या 1.4% प्रतिवर्ष तक बढ़ा सकता है।

भारत में लैंगिक आय असमानता के संदर्भ में महिलाओं द्वारा अपने परिवारों में किये गये घरेलू देखभाल के अवैतनिक कार्य की प्रकृति और उसके प्रभाव को एक विशिष्ट ढंग से समझने का प्रयास किया जाना चाहिये। महिलाओं का घरेलू से व्यावसायिक रोजगारों में स्थानांतरण पूरी दुनिया में आर्थिक विकास की सबसे उल्लेखनीय विशेषताओं में से एक रहा है। जबकि भारत में  इसके उलट प्रक्रिया देखी जा रही है। भारत में जैसे-जैसे परिवारों की आर्थिक स्थिति सुधरती है, उन परिवारों में महिलाएं आर्थिक गतिविधियों से हटती जाती हैं और घरेलू कामों में लगती जाती हैं।
 
हालांकि इसके कुछ सामाजिक पहलू भी हैं। भारत में खासकर उत्तर भारत की ऊंची जातियों और मुस्लिम महिलाओं की कार्यबल में भागीदारी बहुत कम होने को इसी संदर्भ में ही समझा जा सकता है। कार्य स्थलों पर महिलाओं से बेहतर व्यवहार न होना भी इसका एक बड़ा कारण है। जिसके कारण बहुत मजबूरी में ही महिलाएं घरों से बाहर काम करने के लिए निकलना पसंद करती हैं। इसके कारण कम मजदूरी और कम उत्पादकता वाले कामों में महिलाओं की भारी बहुलता है। इससे महिलाओं की आर्थिक और सामाजिक हैसियत एवं गतिशीलता सीमित होती है।
 
भारत में लैंगिक आय असमानता का सबसे बड़ा कारण महिलाओं का घरेलू कामों में ज्यादा लगा होना है। इसके कारण महिलायें आर्थिक रूप से लाभदायक व्यवसाय में अपनी भागीदारी बढ़ा नहीं पा रही हैं। जो महिलाएं नौकरी करती भी हैं, उनको कुछ संस्थागत क्षेत्रों को छोड़कर पुरुषों के समान वेतन शायद ही मिलता है। महिलाओं के बीच क्षेत्रीय विषमता में भी बहुत है। अपनी ग्रामीण बहनों की तुलना में शहरों में रहने वाली महिलाएं ज्यादा खुशनसीब हैं। शहरी महिलाओं के 51.5% की तुलना में केवल 27.3% ग्रामीण महिलाएं ही 10वीं तक स्कूली शिक्षा या उससे ज्यादा पढ़ाई कर पाती हैं।

आर्थिक आय अर्जित करने वाली महिलायें अपने परिवारों के भीतर और बाहर निर्णय लेने और सौदेबाजी की ज्यादा शक्ति हासिल कर लेती हैं। यह ध्यान रखना सबसे महत्वपूर्ण है कि श्रम बाजार में लैंगिक समानता यानी महिलाओं की ज्यादा भागीदारी होने से गरीबी, शिशु मृत्यु दर, प्रजनन और बाल श्रम में तेजी से कमी होती है। इस तरह अन्य उपायों सहित कार्यबल में लिंग समानता या महिला श्रम शक्ति भागीदारी दर का बढ़ना व्यापक मानव विकास लक्ष्यों को हासिल करने का सबसे बड़ा साधन है। महिलाओं की आर्थिक क्षमता कमजोर होने से सामाजिक समावेशन के लक्ष्यों को हासिल करना भविष्य में भारत के लिए और भी ज्यादा कठिन होने वाला है।

स्रोत- इस पूरी रिपोर्ट को यहाँ पढ़ें  :

https://www.oxfamindia.org/
The Global Gender Gap Report, World Economic Forum, 2020, at http://www3.weforum.org/docs/WEF_GGGR_2020.pdf

Global Gender Gap Report 2020
gender discrimination
working sector
male dominant society
Unequal society
unequal sex ratio
Poor-Rich
beti bachao beti padhao
Women Rights
exploitation of women

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