NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
अर्थव्यवस्था
40 साल में पहली बार घटी लोगों के खर्च करने की क्षमता: रिपोर्ट
नेशनल स्टैटिस्टिकल ऑफिस (एनएसओ) के लीक हुए सर्वे के अनुसार एक महीने में एक भारतीय द्वारा खर्च की गई औसत राशि 2011-12 में 1,501 रुपये से गिरकर 2017-18 में 1,446 रुपये रह गई।
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
15 Nov 2019
kirana stor
Image courtesy: Business Standard

भारतीय अर्थव्यवस्था में आमजन की हैसियत को दर्शा रहे एक और आंकड़े को सरकार ने दबा लिया था। नेशनल स्टैटिस्टिकल ऑफिस (एनएसओ) की रिपोर्ट से खुलासा हुआ है कि 40 साल में अब उपभोक्ता खर्च में गिरावट आई है। यानी वह आंकड़ें जो आम जनता की महीने में खर्च की गयी राशि को दर्शाते हैं। इस रिपोर्ट के तहत यह पता चला है कि पिछले चालीस सालों में इस समय लोग प्रति महीने सबसे कम खर्चा कर रहे हैं।

बिजनेस स्टैंडर्ड की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ‘स्टेट इंडिकेटर्स: होम कंज्यूमर एक्सपेंडिचर इन इंडिया’ शीर्षक से लीक हुए एनएसओ के सर्वे में दिखाया गया है कि एक महीने में एक भारतीय द्वारा खर्च की गई औसत राशि 2011-12 में 1,501 रुपये से गिरकर 2017-18 में 3.7 प्रतिशत यानि 1,446 रुपये रह गई।

यानी साल 2017-18 में एक व्यक्ति तकरीबन 1,446 रुपये खर्च कर रहा है। यह साल 2011-12 के मुकाबले 3.7 फीसदी कम है। साल 2011-12 में वह 1501 रुपये खर्च करता था। यह आंकड़े साल 2010 को आधार वर्ष बनाकर दिए गए हैं। इसक साथ महंगाई दर को भी शामिल किया गया है। यानी साल 2010 के बाद महंगाई दर से होने वाले इजाफा को नहीं दिखाया गया। तकनीकी शब्दावली में इसे रीयल टर्म में दिखाए गए आंकड़े कहते हैं।  

बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक इस सर्वे को छिपाने का कारण वही पुराना है कि खबर बाहर आने से सरकारी कामकाज पर सवाल उठेगा। सरकार की छवि धूमिल होगी। इसलिए जुलाई 2017 से 2018 के बीच किये गए सर्वे को जून 19, 2019 को नेशनल स्टैटिस्टिकल ऑफिस से प्रकाशित करने की मंजूरी मिलने के बाद भी रोक दिया गया।

इन आंकड़ों से उनकी बातों को दम मिलता है जो अर्थव्यवस्था को भांपने में लगे रहते हैं।  उनकी बातों को भी वजन मिलता है जो रोजमर्रा की जिंदगी से जूझते हुए कई महीनों से कहते आ रहे हैं कि लोगों की कमाई नहीं हो रही है। कमाई है भी तो बहुत कम है साथ में यह भी डर लग रहा है कि कहीं उनके कमाई का जरिया भी न चला जाए।
 
लोगों के खर्च में ऐसी कमी का सबसे बड़ा कारण है, ग्रामीण इलाके में मांग में कमी होना। यानी ग्रामीण इलाके के लोगों के पास पैसा नहीं है। और वह पहले के मुकाबले भी बहुत कम खर्च करने लगे हैं।

जानकारों का इन आंकड़ों पर कहना है कि अगर लोगों के खर्च के आंकड़े ऐसे हैं तो इसका मतलब है कि भारत में गरीबी और अधिक फैल रही है। लोगों की आमदनी कम हो रही है। और इन आंकड़ों से यह साफ़ नजर आ रहा है कि अर्थव्यवस्था में मांग की कमी क्यों हैं? ग्रामीण इलाके के लोगों के खर्च में साल 2011-12 के मुकाबले 8.8 फीसदी की कमी आयी है। और भारत के छह बड़े शहरों में लोगों के खर्चें में पिछले छह सालों में तकरीबन 2.2 फीसदी का इजाफा हुआ है।  

बिजनेस स्टैंडर्ड से बातचीत में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हिमांशु सिंह कहते हैं कि इन पांच दशकों में ऐसा कभी भी नहीं हुआ कि लोगों की खर्च करने की मंहगाई दर को समायोजित करने के बाद भी कमी आयी हो। यानी महंगाई दर को हटाकर देखने के बाद कमी आयी हो। ऐसा पहली बार हो रहा है कि लोग साल 2011-12 में प्रति महीना जितना खर्च करते थे, उससे कम साल 2017-18 में कर रहे हैं। इन आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि गरीबी के आंकड़ों में भारी इजाफा हुआ है। हो सकता है कि कुल आबादी में गरीबी की संख्या में 10 पॉइंट का इजाफा हुआ हो। इससे पहले आम आदमी के खर्चों में इतनी भारी गिरावट साल 1972-73 में वैश्विक स्तर पर तेल संकट के दौरान उभरी थी।

इस रिपोर्ट पर जानकारों का कहना है कि इस रिपोर्ट में सबसे चौंकाने वाली बात यह निकल रही है कि लोगों ने खाद्य पदार्थों पर खर्च करना कम किया है। ऐसा दस सालों में पहली बार दिख रहा है। लोगों के खर्च में ऐसे लक्षण समाज में अल्पपोषण की तरफ ले जाते हैं। आंकड़ों से साफ़ है कि साल 2017-18 में  ग्रामीण इलाके में 643 रुपये प्रति महीने खर्च किये जाते थे अब यह खर्च केवल 580 रुपये प्रति महीने हो चुका है।  

इस रिपोर्ट से पता चलता है कि ग्रामीण इलाके में लोगों ने दूध और दूध से बने चीजों के अलावा सभी खाद्य पदार्थों की कम खरीददारी की। पूरे भारत में लोगों ने खाने वाले तेल, चीनी, नमक मसालों जैसे खाद्य पदार्थों की खपत में भी कमी आयी है।

बिजनेस स्टैंडर्ड से बातचीत में अभिजीत सेन कहते हैं कि चूंकि यह आंकड़े साल 2011-12 के बाद साल 2017-18 के लिए आ रहे है। इसलिए यह बताना बहुत मुश्किल है कि खर्च में कब से कमी आनी शुरू हुई। यह कृषि क्षेत्र की बदहाली की तरफ भी इशारा करता है।

इस रिपोर्ट को उन सभी रिपोर्टों के साथ देखने की जरूरत है, जो पिछले कई महीने से सामने  आ रही है और भारतीय अर्थव्यवस्था के खस्ताहाली को दिखा रही है। जैसे जीडीपी के आंकड़े,  पिछले 45 साल में सबसे अधिक बेरोजगारी दर के आंकड़े।  इन आंकड़ों के सामने आने से यह बात साफ़ हो रही है कि भारत ने उदारीकरण के बाद कुछ लोगों का विकास कर जो कमाया था, उसे गंवाने वाली नौबत में पहुँच गया है।

अर्थव्यवस्था बुरे चक्र में फंस चुकी है। लोगों की आमदनी बहुत कम है, खर्च कम है, मांग नहीं है। इसलिए अर्थव्यवस्था को बचाने के चाहें जो तरीकों हो लेकिन यह तरीका तो कत्तई कारगर नहीं कि कॉर्पोरेट टैक्स में कमी कर दी जाए और अर्थव्यवस्था को बचा लिया जाए।

Economic Recession
economic crises
Indian Economy under Modi Government
Nirmala Sitharaman
National Statistical Office
Unemployment under Modi govt in India

Related Stories

क्या जानबूझकर महंगाई पर चर्चा से आम आदमी से जुड़े मुद्दे बाहर रखे जाते हैं?

एक ‘अंतर्राष्ट्रीय’ मध्यवर्ग के उदय की प्रवृत्ति

किधर जाएगा भारत— फ़ासीवाद या लोकतंत्र : रोज़गार-संकट से जूझते युवाओं की भूमिका अहम

कन्क्लूसिव लैंड टाईटलिंग की भारत सरकार की बड़ी छलांग

क्या एफटीए की मौजूदा होड़ दर्शाती है कि भारतीय अर्थव्यवस्था परिपक्व हो चली है?

श्रीलंका का संकट सभी दक्षिण एशियाई देशों के लिए चेतावनी

मध्य प्रदेश : एलपीजी की क़ीमतें बढ़ने के बाद से सिर्फ़ 30% उज्ज्वल कार्ड एक्टिव

रूस पर लगे आर्थिक प्रतिबंध का भारत के आम लोगों पर क्या असर पड़ेगा?

महामारी के मद्देनजर कामगार वर्ग की ज़रूरतों के अनुरूप शहरों की योजना में बदलाव की आवश्यकता  

5,000 कस्बों और शहरों की समस्याओं का समाधान करने में केंद्रीय बजट फेल


बाकी खबरें

  • राज वाल्मीकि
    भारतीय रंगमंच का इतिहास वर्ग संघर्षों का ही नहीं, वर्ण संघर्षों का भी है : राजेश कुमार
    10 Apr 2022
    आज विपक्ष की तरह रंगमंच भी कमजोर हो गया है। शहरी रंगमंच इतना महंगा हो गया है कि सरकारी ग्रांट या अनुदान लेना उसकी मजबूरी हो गयी है। जो प्रतिरोध की धारा से जुड़ कर नाटक कर रहे हैं, उन पर सत्ता का दमन…
  • bhasha
    न्यूज़क्लिक टीम
    “नंगा करने का दुख है लेकिन सच्ची पत्रकारिता करने का फ़ख़्र”: कनिष्क तिवारी
    09 Apr 2022
    ख़ास बातचीत में वरिष्ठ पत्रकार भाषा सिंह ने मध्यप्रदेश के सीधी ज़िले के पत्रकार कनिष्क तिवारी से बातचीत की और उनकी पीड़ा को जाना। कनिष्क तिवारी वही पत्रकार हैं, जिन्हें एक अन्य पत्रकार और कई…
  • sdmc
    न्यूज़क्लिक टीम
    CR Park: SDMC मेयर के बयान के बाद मछली विक्रेताओं पर रोज़ी रोटी का संकट?
    09 Apr 2022
    दक्षिणी दिल्ली नगर निगम के मेयर के बयान के बाद दशकों से मछली बेच रहे विक्रेताओं के लिए रोज़ी रोटी का संकट पैदा हो गया है. विक्रेता आरोप लगा रहे है कि वे SDMC और DDA की बेरुख़ी का शिकार हो रहे है जबकि…
  • hafte ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    पत्रकार-पत्रकारिता से नाराज़ सरकार और राष्ट्रपति पद के संभावित उम्मीदवार
    09 Apr 2022
    भारत प्रेस फ्रीडम की रिपोर्ट में उन देशों में शामिल है जहाँ पर पत्रकारों की हालत बहुत खराब मानी जाती है। हाल ही के दिनों में हुई कुछ घटनाएं इस रिपोर्ट को सही साबित करती हैं. पिछले कुछ दिनों में…
  • सोनिया यादव
    यूपी: खुलेआम बलात्कार की धमकी देने वाला महंत, आख़िर अब तक गिरफ़्तार क्यों नहीं
    09 Apr 2022
    पुलिस की मौजूदगी में मुस्लिम महिलाओं को सरेआम बलात्कार की धमकी देने वाला महंत बजरंग मुनि दास अभी भी पुलिस की गिरफ़्त से बाहर है। वहीं उसके ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे छात्र और नागरिक समाज के लोग दिल्ली…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License