NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
युवा
भारत
राजनीति
देश में बढ़ती बेरोज़गारी सरकार की नीयत और नीति का नतीज़ा
बेरोज़गारी के चलते देश में सबसे निचले तबके में रहने वाले लोगों की हालत दुनिया के अधिकतर देशों के मुक़ाबले और भी ख़राब हो गई। अमीर भले ही और अमीर हो गए, लेकिन गरीब और गरीब ही होते चले जा रहे हैं।
सोनिया यादव
31 Jan 2022
unemployment

उत्तर प्रदेश में बीते दिनों चुनाव अभियान के बीच पुलिस ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हॉस्टल में घुसकर युवाओं को पीटा। इस बार शुरुआत भले ही बिहार से हुई हो लेकिन यूपी समेत देश के लाखों- करोड़ों युवा सालों से रोज़गार की मांग को लेकर मोदी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं। सालों की तैयारी के बाद भी नौकरी न मिलने से युवाओं के मन में निराशा घर कर रही है। आलम ये है कि बेरोज़गारी की बढ़ती दर और घटती सरकारी नौकरियों के बीच देश का युवा आत्महत्या करने को मजबूर है।

बता दें कि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक़, बेरोज़गारी की वजह से 2018 में 2,741 लोगों ने आत्महत्या की थी। 2014 की तुलना में 2018 में आत्महत्या के मामले क़रीब 24 फ़ीसद बढ़े। साल 2019 में 2,851 लोगों ने बेरोज़गारी के कारण आत्महत्या का रास्ता चुना। वहीं 14,019 लोग जिनकी मौत आत्महत्या के कारण हुई वे बेरोज़गार थे और इसमें शामिल ज़्यादातर लोगों की उम्र उम्र 18 से 30 साल के बीच थी।

रोज़गार के वादे और सरकार के इरादे

2014 में केंद्र की सत्ता में आई मोदी सरकार ने रोज़गार को लेकर बड़े- बड़े वादे किए, उत्पादन को बढ़ाने की महत्वाकांक्षी परियोजना 'मेक इन इंडिया' की शुरुआत की, कई बिज़नेस समिटें और विदेशी दौरे किए हालांकि इनमें से किसी भी प्रयास से अभी तक न उत्पादन बढ़ा है और ना ही रोज़गार के मौके। इसके उलट देश में सबसे निचले तबके में रहने वाले लोगों की हालत दुनिया के अधिकतर देशों के मुकाबले और भी ख़राब हो गई। अमीर भले ही और अमीर हो गए लेकिन गरीब और गरीब ही होते चले जा रहे हैं।

बढ़ती बेरोज़गारी का समाज के विभिन्न तबकों पर क्या असर हो रहा है इसी संबंध में रविवार, 30 जनवरी को प्रगतिशील संगठन औरतें लाएंगी इंकलाब ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की, जिसमें नागरिक समाज, महिला संगठन और एलजीबीटीक्यू की जानी-मानी हस्तियों ने हिस्सा लिया। सभी ने एक स्वर में बेरोज़गारी के लिए सरकार की नीतियों को जिम्मेदार ठहराया।

विभिन्न तबकों पर बेरोज़गारी का असर

मानवाधिकार कार्यकर्ता बीना पल्लीकल ने इस मुद्दे पर अपना पक्ष रखते हुए महामारी के दौरान दलित और आदिवासी समुदाय के लोगों पर लॉकडाउन के भंयकर प्रभाव को सभी के सामने रखा। उन्होंने कई आंकड़ों की मदद से ये बात समझाने की कोशिश कि की किस तरह बीना तैयारी के लगे लॉकडाउन ने समाज के हाशिए पर खड़े लोगों को और हाशिए पर धकेल दिया। लोगों की नौकरियां चली गई, आमदनी खत्म हो गई और कई लोगों ने तो अपने घर के इकलौते कमाने वाले हाथों को भी खो दिया। इस महामारी ने पहले से चली आ रही बेरोज़गारी को और बढ़ा दिया।

बेरोज़गारी के चलते एलजीबीटीक्यू समुदाय को किन समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, इस बात को विस्तार से समझाते हुए मित्रा ट्रस्ट की फाउमडर रुद्राणी छेत्री ने कहा कि आज ट्रांस लोग भीख नहीं मांगना चाहते, सेकस वर्कर नहीं बनना चाहते वो स्वाभिमान से छोटी- मोटी कोई भी नौकरी कर अपने आप को सशक्त बनाना चाहते हैं लेकिन आज नौकरियां ही नहीं हैं, ऐसे में ये लोग और बेसहारा हो जाते हैं। इनकी दिक्कतें और व्यापक है, जिस पर समाज और सरकार को अलग से ध्यान देने की जरूरत है।

हताशा और निराशा के चलते एक बड़ा तबका लेबर फोर्स से हो गया है बाहर

समाज के हर तबके तक नौकरियों की पहुंच और उनकी उपलब्धता पर डेटा के माध्यम से पूरा विवरण रखते हुए अखिल भारतीय प्रगतिशील महिलावादी संगठन की राष्ट्रीय सचिव और सीपीआई (एम एल) की पोलित ब्यूरो मेंबर कविता कृष्णन ने कहा कि बेरोजगारी का सवाल आज बहुत बड़ा है और इसके बारे में इतने मिथक हैं की लोगों को अपने अधिकारों और सरकारों को अपनी जिम्मेदारी समझने की जरूरत है।

कविता के मुताबिक भारत में एक बड़ा तबका ऐसा है जो लेबर फोर्स से बाहर हो गया है और इसमें एक बहुत बड़ा हिस्सा महिलाओं का है। ये वो लोग हैं जिनके पास नौकरी नहीं है और जो तलाश भी नहीं रहे हैं, तलाश इसलिए नहीं रहे क्योंकि वो हताश हैं। वो कोशिश कर कर के थक गए हैं। और अब उन्हें लगता है कि नौकरी उनके लिए है ही नहीं।

कविता ने घटती सरकारी नौकरियां और निज़ीकरण के ग्रामीण भारत पर पड़ रहे असर की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए सरकार की तमाम योजनाओं को अमीरों की पहुंच तक सीमित कर देने का भी आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि आज देश का गरीब और गरीब होता चला जा रहा है लेकिन अमीरों पर इसका कोई असर नहीं हो रहा।

गुजरात विधानसभा के सदस्य जिग्नेश मेवाणी समेत अन्य स्पीकर्स जिसमें इस संगठन की फाउंडर अमीषा नंदा और छात्र नेता आफताब आलम शामिल थे, सभी ने युवाओं के संघर्षों को याद करते हुए उनकी सस्याओं पर विस्तार से चर्चा की। साथ ही युवाओं और महिलाओं के मुद्दे को पुरजोर तरीके से वर्तमान और भविष्य में उठाने की बात भी कही।

बढ़ती बेरोज़गारी और सिमटती नौकरियां

गौरतलब है कि एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भारत कोरोना के पहले से ही सुस्ती के लंबे दौर में थी। ऐसे में महामारी के बाद गतिविधियों में आई तेज़ी की वजह से अर्थव्यवस्था थोड़ी रफ़्तार तो पकड़ रही है, लेकिन युवाओं को नौकरियां नहीं दे पा रही। जिसे लेकर लंबे समय से देश में युवा प्रदर्शन कर रहे हैं, सड़कों पर हैं।

भारत की अर्थव्यवस्था पर नज़र रखने वाले संस्थान सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के मुताबिक दिसंबर में भारत की बेरोज़गारी दर आठ प्रतिशत तक पहुंच गई थी। 2020 और 2021 के अंतिम महीनों तक ये 7 प्रतिशत से अधिक थी। जानकारों की मानें तो ये अब तक भारत में जो आंकड़े देखे गए हैं ये उससे कहीं ज़्यादा है। साल 1991 में जब भारत गंभीर आर्थिक संकट में था (तब भारत के पास आयात की कीमत चुकाने के लिए पर्याप्त डॉलर भी नहीं थे) तब भी हालात ऐसे नहीं थे।

सीएमआईई के मुताबिक देश में वेतन वाली नौकरियां भी लगातार सिमट रही हैं। दिसंबर 2021 तक भारत में बेरोजगार लोगों की संख्या 5.3 करोड़ रही। इनमें महिलाओं की संख्या 1.7 करोड़ है। घर बैठे लोगों में उनकी संख्या अधिक है, जो लगातार काम की तलाश करने के बाद भी बेरोजगार बैठे हैं।

महामारी के दौरान कंपनियों ने ख़र्च कम करने के लिए अपने कर्मचारियों की संख्या में कटौती की है। भारत में काम करने लायक आयु वर्ग में नौकरियां खोज रहे लोगों की संख्या गिरी है। भारत में 15 और उससे अधिक आयु वर्ग की महिलाओं की संख्या नौकरियों के मामले में दुनिया में सबसे कम है।

जाहिर है कोरोना के दौर में महिलाओं ने न सिर्फ शारीरिक और मानसिक कष्ट झेला बल्कि उन्होंने आर्थिक तौर पर भी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। अलग- अलग संस्थाओं की ओर से जारी कई रिपोर्ट्स में भी इस बात का दावा किया गया है कि रोज़गार और शिक्षा के मौक़े ख़त्म होने से महिलाएं ख़राब मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य का शिकार हो रही हैं। इसके अलावा लगातार घरेलू हिंसा, महिलाओं के साथ यौन हिंसा बढ़ने की खबरें भी लगातार सामने आ रही हैं।

इसे भी पढ़ें: कोरोना महामारी के बीच औरतों पर आर्थिक और सामाजिक संकट की दोहरी मार!

unemployment
Rising Unemployment
Narendra modi
Modi government
government policies
BJP
COVID-19
NTPC
RRB
Inflation
Rising inflation

Related Stories

उत्तर प्रदेश: "सरकार हमें नियुक्ति दे या मुक्ति दे"  इच्छामृत्यु की माँग करते हजारों बेरोजगार युवा

छात्र संसद: "नई शिक्षा नीति आधुनिक युग में एकलव्य बनाने वाला दस्तावेज़"

राष्ट्रीय युवा नीति या युवाओं से धोखा: मसौदे में एक भी जगह बेरोज़गारी का ज़िक्र नहीं

नौजवान आत्मघात नहीं, रोज़गार और लोकतंत्र के लिए संयुक्त संघर्ष के रास्ते पर आगे बढ़ें

दो दिवसीय देशव्यापी हड़ताल को मिला व्यापक जनसमर्थन, मज़दूरों के साथ किसान-छात्र-महिलाओं ने भी किया प्रदर्शन

बढ़ती बेरोजगारी पूछ रही है कि देश का बढ़ा हुआ कर्ज इस्तेमाल कहां हो रहा है?

भाजपा से क्यों नाराज़ हैं छात्र-नौजवान? क्या चाहते हैं उत्तर प्रदेश के युवा

झारखंड: राज्य के युवा मांग रहे स्थानीय नीति और रोज़गार, सियासी दलों को वोट बैंक की दरकार

कौन हैं ओवैसी पर गोली चलाने वाले दोनों युवक?, भाजपा के कई नेताओं संग तस्वीर वायरल

क्या बजट में पूंजीगत खर्चा बढ़ने से बेरोज़गारी दूर हो जाएगी?


बाकी खबरें

  • fact check
    राज कुमार
    फ़ैक्ट चेक : संबित ने जर्जर स्कूलों को सपा सरकार का बताया, स्कूल योगी सरकार के निकले
    06 Jan 2022
    एक बार फिर बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा ने ट्विटर पर फ़ेक न्यूज़ के ज़रिये विपक्ष पर निशाना साधने की कोशिश की है।
  • jnu
    रवि कौशल
    जेएनयू हिंसा के दो साल : नाराज़ पीड़ितों को अब भी है न्याय का इंतज़ार 
    06 Jan 2022
    ऐसा लगता है कि दिल्ली पुलिस की जांच भटक चुकी है। अब तक दोषियों की पहचान तक नहीं की जा सकी है।
  • punjab security
    शंभूनाथ शुक्ल
    'सुरक्षा चूक' की आड़ में राजनीतिक स्टंट?
    06 Jan 2022
    प्रधानमंत्री को एयरपोर्ट में पंजाब के अधिकारियों को दिए बयान से बचना चाहिए था। और जो कुछ करना था, वह सीधे गृह मंत्रालय के आला अधिकारी करते तो भविष्य में ऐसी किसी भी चूक से प्रशासन सतर्क रहते। तथा…
  • election
    सौरभ शर्मा
    यूपी: युवाओं को रोजगार मुहैय्या कराने के राज्य सरकार के दावे जमीनी हकीकत से मेल नहीं खाते हैं!
    06 Jan 2022
    लगभग 43 उम्मीदवारो को उत्तर प्रदेश में पिछले साल विभिन्न चिकित्सा विभागों द्वारा विभिन्न कोरोना लहरों के दौरान में रोजगार पर रखा गया था। बाद में इन्हें काम से मुक्त कर दिया गया। उन्होंने इस कदम के…
  • MP
    काशिफ काकवी
    मध्य प्रदेश : मंत्री ने माना, आदिवासी कल्याण कोष के पैसों को मोदी की रैली पर खर्च किया 
    06 Jan 2022
    कांग्रेस के आदिवासी विधायक अलावा का आरोप है कि राज्य सरकार के पास न तो आदिवासी मनरेगा मजदूरों का बकाया चुकाने के लिए धन है और न ही छात्रवृत्ति की प्रतीक्षा कर रहे आदिवासी छात्रों को देने के लिए।…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License