NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
स्वास्थ्य
अंतरराष्ट्रीय
अफ़वाहें, महामारी और सामाजिक रोग : इतिहास ख़ुद को दोहराता रहता है
जब से कोरोनो वायरस का डर शुरू हुआ है, तबसे इस महामारी के लिए चीनी आवाम और चीनी संस्कृतियों को दोषी ठहराये जाने का विचार सामने आने लगा है। इसकी जगह हमें इस बात को संदर्भ में भी इसे देखना चाहिए कि भारत में जो हैज़े की महामारी शुरू हुई थी, वह पूरी दुनिया में फैल गयी थी।
संजीव कुमार
27 Mar 2020
coronavirus

उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में, जब हैज़ा (cholera) और प्लेग (plague)  से लंदन में हज़ारों लोग मारे गये थे, तब एक बात,जो बार-बार कही गयी थी,वह यह थी,"जब तक महामारी हज़ारों को अपना शिकार बनाती है, तबतक डर लाखों लोगों को अपना शिकार बना चुका होता है।" दुनिया के किसी भी हिस्से में जब भी महामारी हुई है, अफ़वाह, ग़लत सूचनायें और दुष्प्रचार हमारी सूचना प्रणाली पर राज करते रहे हैं।

यही कोरोनो वायरस के मामले में भी हो रहा है। जानकार इस भ्रामक जानकारी के तेज़ी से फैलने के पीछे व्हाट्सएप, फ़ेसबुक और ट्विटर जैसे सोशल मीडिया टूल को ज़िम्मेदार मानते हैं। हालांकि, कुछ सबसे विनाशकारी महामारियों के इतिहास पर एक नज़र डालने से एक अलग ही तस्वीर नज़र आती है। जब इंटरनेट नहीं भी होता, तब भी इस बीमारी के बारे में अफ़वाहें और ग़लत जानकारियां व्यापक रूप से प्रसारित होतीं। इन अफ़वाहों और ग़लत जानकारियों से लड़ने की आवश्यकता उतनी ही महत्वपूर्ण है, जितनी कि कोरोनो वायरस के ख़िलाफ़ लड़ाई अहम है।

उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में जब लंदन में हैज़ा फैला था, तब लोग डॉक्टर और पुजारियों (priests), दोनों की तरफ़ बराबर-बराबर तादाद में रूख़ कर रहे थे। वे हैज़ा से संक्रमित लोगों को इलाज सुनिश्चित करने के लिए सड़कों पर मार्च कर रहे थे। अपनी किताब, ‘द घोस्ट मैप’ में स्टीवन जॉनसन ने प्लेग के कुछ लोकप्रिय समाधानों का उल्लेख किया है, जिसमें सॉंडर के एंटी-मेफिटिक फ्ल्यूड, ओपियॉइड से सम्बन्धित कंपाउंड, ब्रांडी, देसी नुस्खे और जुलाब शामिल हैं। ब्रांडी डिहाइड्रेशन को बढ़ा देती है, इसके बावजूद चिकित्सकों द्वारा इसके इस्तेमाल की सिफ़ारिश की जाती थी, जो कि हैज़ा के मामले में बहुत घातक है। ब्रांडी का उपयोग इतना प्रचलित हो गया था कि लोग ब्रांडी को घरों में शुद्ध करने के लिए उसी तरह छिड़कते थे, जैसे कि भारत में लोग गंगा जल को छिड़कते हैं।

इस तथ्य के बावजूद कि जॉन स्नो जैसे लोगों ने तबतक साबित कर दिया था कि हैज़ा दूषित पानी से फैल रहा था, अफ़वाहें तेज़ी से फैलीं। शुरुआती दिनों में तो सरकार ने भी जॉन स्नो के इस प्रस्ताव को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था। बाद के दिनों में सरकार और स्थानीय प्रशासन द्वारा उनके प्रस्ताव को मंजूरी दिये जाने के बाद भी लोग इसे स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थे। उन्होंने जो कुछ कहा था, उसे आम लोगों को समझाने के लिए उन्हें एक नक्शे को स्केच करके दिखाना पड़ा था कि ज़्यादा से ज़्यादा लोगों की मौत जल निकायों, ख़ासकर पानी के पंपों के क़रीब हुई है।

हैज़ा के प्रसार को समझने और रोकने के लिए वैज्ञानिक और तर्कसंगत प्रयासों के बावजूद, लोगों का एक बड़ा हिस्सा आस्था को मानते हैं और हैज़े से जुड़ी अफ़वाहों के फ़ैलाने में अपना योगदान करते रहते हैं। जब सरकारों ने हैज़े के प्रसार को नियंत्रित करने के लिए सीवर निर्माण शुरू किया था, तो अफ़वाहें थीं कि सीवर की खुदाई से उस सड़े-गले चीज़ों का पता चला था, बल्कि अफ़वाहें तो यहां तक थीं कि अब भी प्लेग से मरे लोगों के दफ़्न किये जाने वाली जगह से मारक लाशों ने अड़ोस-पड़ोस का चक्कर लगाना शुरू कर दिया है। बड़े अखबारों ने सीवर निर्माताओं के बारे में रिपोर्ट छापी और इस हद तक उनकी आलोचना की कि सरकार को इस मामले की जांच के लिए एक आयोग तक का गठन करना पड़ा था।

कोरोना वायरस का मामला भी काफी हद तक, ख़ासकर भारत में ऐसा ही है। COVID-19 के लिए दवा की नयी खोज को लेकर संदेश प्रसारित किये जा रहे हैं। मीडिया कोरोनो वायरस से ठीक होने वालों के मामलों को कोरोना वायरस के ख़िलाफ़ कामयाब दवा की नयी खोज के रूप में प्रस्तुत कर रहा है, जबकि मीडिया इस बात उल्लेख नहीं कर रहा है कि दुनिया भर में कोरोनो वायरस से संक्रमित होने वाले लगभग 90% लोगों का सफलतापूर्वक इलाज किया जा रहा है। WHO (विश्व स्वास्थ्य संगठन) के अनुसार, दुनिया भर में कोरोना वायरस की वजह से होने वाली मृत्यु का अनुपात 3% से 4% के बीच है।

मगर, इस समय गोमूत्र, तुलसी, धूप, आदि जैसे उपायों को कोरोनो वायरस के लिए कारगर 'दवा' के रूप में प्रचारित किया जा रहा है। कोरोनो वायरस से लड़ने के लिए एहतियाती उपाय के तौर पर एक सामूहिक सभा में ‘गो कोरोना गो’ का जाप करते हुए हमारे राजनीतिक प्रतिनिधि तो एक क़दम और आगे बढ़ चले हैं। भारत में लोगों का मानना है कि नासा द्वारा COVID-19 के ख़िलाफ़ कार्रवाई में घंटियों, शंख, स्टील की थालियों की सामूहिक ध्वनि को कारगर पाया गया है।

चिकित्सा विशेषज्ञों से बार-बार अपील किये जाने के बावजूद लोग अपने पैतृक गांवों का सफ़र कर रहे हैं। जब स्थानीय लोगों के लिए एक राष्ट्रव्यापी अपील की जा चुकी थी, इसके बावजूद दिल्ली से बिहार के लिए अलग-अलग रास्तों से ऑटो रिक्शा चालकों की रवानगी की ख़बरें सामने आयी थीं। इन स्थितियों में सफ़र करना सबसे घातक हो सकता है, महाराष्ट्र और गुजरात में कार्य करने वाले बिहार और यूपी के विस्थापित मज़दूर अपने पैतृक गांवों की यात्रा करने के लिए मजबूर हैं।

नॉर्थ-ईस्ट के लोगों के साथ नस्लीय दुर्व्यवहार और उन पर हमलों किये जाने की ख़बरें देखी गयी हैं। जब से कोरोनो वायरस का डर शुरू हुआ है, तबसे इस महामारी के लिए चीनी आवाम और चीनी संस्कृतियों को दोषी ठहराये जाने का विचार सामने आने लगा है। इसकी जगह हमें इस बात को संदर्भ में भी इसे देखना चाहिए कि भारत में जो हैज़े की महामारी शुरू हुई थी, वह पूरी दुनिया में फैल गयी थी। प्लेग यूरोप में शुरू हुआ था और दुनिया के हर कोने में पहुंच गया था। जॉनसन लिखते हैं कि उन्नीसवीं शताब्दी के दौरान हुए हैज़ा और प्लेग के समय मज़दूर वर्ग के मैले और गंदे जीवन और यहूदियों को उस महामारी के फ़ैलने के लिए दोषी ठहराया गया था। जॉनसन ने यह भी बताया है कि हैज़ा और प्लेग ने अमीर और ग़रीब, दोनों को समान रूप से प्रभावित किया था। एक दूसरे पर दोष मढ़ने के बजाय, वैश्विक संकट से लड़ने के लिए एक वैश्विक पहल की ज़रूरत है।

 (लेखक संजीव कुमार, मुंबई स्थित TISS में प्रोग्राम मैनेजर के रूप में कार्यरत हैं। उनसे इस ई-मेल पर संपर्क किया जा सकता है : subaltern1@gmail.com. ये उनके व्यक्तिगत विचार हैं।)

 अंग्रेजी में लिखे गए मूल आलेख को आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं

Rumours, Epidemics and Social Illness: History Repeats Itself

Coronavirus
history of epidemics
coronavirus history
coronavirus ru-mours

Related Stories

कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में 2,745 नए मामले, 6 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में आज फिर कोरोना के मामलों में क़रीब 27 फीसदी की बढ़ोतरी

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना के घटते मामलों के बीच बढ़ रहा ओमिक्रॉन के सब स्ट्रेन BA.4, BA.5 का ख़तरा 

कोरोना अपडेट: देश में ओमिक्रॉन वैरिएंट के सब स्ट्रेन BA.4 और BA.5 का एक-एक मामला सामने आया

कोरोना अपडेट: देश में फिर से हो रही कोरोना के मामले बढ़ोतरी 

कोविड-19 महामारी स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में दुनिया का नज़रिया नहीं बदल पाई

कोरोना अपडेट: अभी नहीं चौथी लहर की संभावना, फिर भी सावधानी बरतने की ज़रूरत

कोरोना अपडेट: दुनियाभर के कई देशों में अब भी क़हर बरपा रहा कोरोना 

कोरोना अपडेट: देश में एक्टिव मामलों की संख्या 20 हज़ार के क़रीब पहुंची 

देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, PM मोदी आज मुख्यमंत्रियों संग लेंगे बैठक


बाकी खबरें

  • left
    अनिल अंशुमन
    झारखंड-बिहार : महंगाई के ख़िलाफ़ सभी वाम दलों ने शुरू किया अभियान
    01 Jun 2022
    बढ़ती महंगाई के ख़िलाफ़ वामपंथी दलों ने दोनों राज्यों में अपना विरोध सप्ताह अभियान शुरू कर दिया है।
  • Changes
    रवि शंकर दुबे
    ध्यान देने वाली बात: 1 जून से आपकी जेब पर अतिरिक्त ख़र्च
    01 Jun 2022
    वाहनों के बीमा समेत कई चीज़ों में बदलाव से एक बार फिर महंगाई की मार पड़ी है। इसके अलावा ग़रीबों के राशन समेत कई चीज़ों में बड़ा बदलाव किया गया है।
  • Denmark
    पीपल्स डिस्पैच
    डेनमार्क: प्रगतिशील ताकतों का आगामी यूरोपीय संघ के सैन्य गठबंधन से बाहर बने रहने पर जनमत संग्रह में ‘न’ के पक्ष में वोट का आह्वान
    01 Jun 2022
    वर्तमान में जारी रूस-यूक्रेन युद्ध की पृष्ठभूमि में, यूरोपीय संघ के समर्थक वर्गों के द्वारा डेनमार्क का सैन्य गठबंधन से बाहर बने रहने की नीति को समाप्त करने और देश को ईयू की रक्षा संरचनाओं और सैन्य…
  • सत्यम् तिवारी
    अलीगढ़ : कॉलेज में नमाज़ पढ़ने वाले शिक्षक को 1 महीने की छुट्टी पर भेजा, प्रिंसिपल ने कहा, "ऐसी गतिविधि बर्दाश्त नहीं"
    01 Jun 2022
    अलीगढ़ के श्री वार्ष्णेय कॉलेज के एस आर ख़ालिद का कॉलेज के पार्क में नमाज़ पढ़ने का वीडियो वायरल होने के बाद एबीवीपी ने उन पर मुकदमा दर्ज कर जेल भेजने की मांग की थी। कॉलेज की जांच कमेटी गुरुवार तक अपनी…
  • भारत में तंबाकू से जुड़ी बीमारियों से हर साल 1.3 मिलियन लोगों की मौत
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    भारत में तंबाकू से जुड़ी बीमारियों से हर साल 1.3 मिलियन लोगों की मौत
    01 Jun 2022
    मुंह का कैंसर दुनिया भर में सबसे आम ग़ैर-संचारी रोगों में से एक है। भारत में पुरूषों में सबसे ज़्यादा सामान्य कैंसर मुंह का कैंसर है जो मुख्य रूप से धुआं रहित तंबाकू के इस्तेमाल से होता है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License