NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
रुस-उज़बेक संबंध क्षेत्रीय स्थिरता का एक महत्वपूर्ण कारक
रुसी-उज्बेक संबंधों की वर्तमान sतिथि का मध्य एशिया में अंतर-क्षेत्रीय समीकरणों पर निश्चित्त तौर पर एक लाभकारी व शांतिदायक प्रभाव पड़ेगा।
एम. के. भद्रकुमार
25 Nov 2021
Russo-Uzbek
19 नवंबर, 2021 को उज्बेकिस्तान के राष्ट्रपति शवकत मिर्ज़ियोवेव (बायें) ने मास्को में रुसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात की।

राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के निमंत्रण पर 19 नवंबर को उज्बेकिस्तान के राष्ट्रपति शवकत मिर्ज़ियोवेव की मास्को की यात्रा का नतीजा सूचना प्रौद्योगिकी पर एक संयुक्त बयान और व्यापार एवं आर्थिक सहयोग पर दस्तावेजों में देखने को मिल सकता है, लेकिन क्षेत्रीय राजधानियों पर इसके रणनीतिक महत्व को कम करके नहीं आँका जा सकता है।

24 अक्टूबर को राष्ट्रपति चुनाव में दुबारा से चुने जाने के फौरन बाद दौरे पर पहुंचे उजबेक नेता के साथ पुतिन की बातचीत ने अफगानिस्तान एवं क्षेत्रीय राजनीति की स्थिति को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया है।

रूस और उज्बेकिस्तान ने एक नए अध्याय की शुरुआत कर दी है। इन दोनों नेताओं के बीच में व्यक्तिगत स्तर पर जिस प्रकार की गर्मजोशी और बातचीत में आरामदायक स्वर देखने को मिला है, वह मिर्ज़ियोयेव के पूर्ववर्ती इस्लाम करीमोव के युग से पूरी तरह से भिन्न है। 

शवकत मिर्ज़ियोवेव एक मिलनसार व्यक्तित्व हैं और चार साल से उनके सत्ता में रहने से उज्बेकिस्तान के अपने पडोसी देशों के साथ तनावपूर्ण रिश्तों में काफी हद तक कमी आई है। 1980 के दशक से राजनीति में सक्रिय रहने के साथ-साथ पिछले 13 वर्षों से करीमोव की कड़ी निगाह के तहत बने रहते हुए प्रधानमंत्री के तौर पर कार्यकारी शक्ति की कमान को थामे रखने के चलते मिर्ज़ियोयेव संभव की कला में सिद्धहस्त हो चुके हैं। 

वे सत्ता में उज्बेक-रुसी रिश्तों को एक बार फिर से शुरू करने के दृढ निश्चय के साथ आये थे। जिस स्पष्टता के साथ उन्होंने पुतिन से कहा है कि “उज्बेकिस्तान में राष्ट्रपति चुनाव का जो नतीजा आया है वह हमारे आपसी सहयोग के सकारात्मक परिणामों में से एक है” को निश्चित रूप से गंभीरता से लिया जाना चाहिए। असल में देखें तो ताशकंद में चुनाव परिणाम घोषित होने से दो घंटे पहले है पुतिन ने मिर्ज़ियोयेव को फोन पर बधाई दे दी थी।

मिर्ज़ियोयेव की ओर से चीजों में सुधार की कवायद का अर्थ है कि वे उज्बेकिस्तान के बड़े पड़ोसी के साथ एकीकरण के इच्छुक हैं। करीमोव ने मास्को-नेतृत्व में एकीकरण की प्रकिया पर बाल खड़े कर इए थे और पागल दृष्टिकोण के साथ, इनके पीछे के अस्पष्ट इरादों को संदेह की दृष्टि के साथ देखा था।

मिर्ज़ियोयेव द्वारा सत्ता पर मजबूती से पकड़, जो कबीले के संघर्ष में डूबे मैदानों में आसान नहीं है, यह दिखाता है कि वे एक राजनीतिज्ञ के तौर पर दृढ और दूर-दृष्टि रखते हैं। जिस प्रकार से उन्होंने 2018 में रुस्तम इनोयातोव को सुरक्षा ज़ार और ‘किंगमेकर’ की भूमिका से अपदस्थ कर दिया था (जो शक्तिशाली ताशकंद कबीले से नाता रखते थे), जिसे 23 साल से धूसर प्रधान ने अपने पास बरकरार रखा हुआ था, अपनी कहानी खुद बयां करता है। (यहाँ पर बता दें कि खुद मिर्ज़ियोयेव जिज्जाख कबीले से आते हैं।)

पिछले हफ्ते हुई बैठक में पुतिन ने मिर्ज़ियोयेव से कहा था, “उज्बेकिस्तान न सिर्फ रूस का एक करीबी पड़ोसी है बल्कि एक सहयोगी भी है, हम उज्बेकिस्तान को इस नजर से देखते हैं। यह एक प्रमुख क्षेत्रीय देश है, जिसके साथ हमारे अनेकों जुड़ाव के कारक रहे हैं जो कि ऐतिहासिक होने के साथ-साथ वर्तमान दौर में भी हैं।” बदले में मिर्ज़ियोयेव ने स्वीकारा: “मेरा मानना है कि हमारे पास चर्चा के लिए कई चीजें हैं क्योंकि अब हमारे संबंध पूरी तरह से एक भिन्न स्तर पर हैं। हम सभी क्षेत्रों में अपने एकीकरण को तेज कर रहे हैं और यह काफी गहन है।”

यह देखा जाना अभी बाकी है कि क्या मिर्ज़ियोयेव मास्को के नेतृत्त्व में चल रहे क्षेत्रीय संगठनों, सामूहिक सुरक्षा संधि संगठन (सीएसटीओ) और यूरेशियन आर्थिक संघ (ईईयू) में शामिल होकर उज्बेकिस्तान को रणनीतिक तौर पर रूस की ओर ले जा रहे हैं – या सिर्फ मास्को के साथ एक व्यावहारिक, रचनात्मक, पारस्परिक तौर पर लाभकारी, समायोजन वाले संबंध पर ही संतोष करना चाहते हैं। 

संभावनाएं पहले से बेहतर हो रही हैं। करीमोव उज्बेकिस्तान के क्षेत्रीय आधिपत्य और राष्ट्रीय सुरक्षा राज्य की नियति वाली समझ से ग्रस्त थे। जबकि मिर्ज़ियोयेव ने अपना सारा ध्यान मध्य एशियाई सामूहिक एवं आर्थिक स्वायत्तता से क्षेत्रीय सहयोग पर स्थानांतरित कर रखा है।

इसके साथ ही मिर्ज़ियोयेव ने विदेशी निवेश के लिए भी अर्थव्यवस्था को खोल दिया है। वस्तव में दोहरी विनिमय दर प्रणाली को समाप्त कर उज्बेक मुद्रा में उनके सुधार के कारण अंतर्राष्ट्रीय पूँजी बाजार और यूरोबांड बिक्री की एक श्रृंखला तक पहुँच को खोल दिया है। पेशे के लिहाज से मिर्ज़ियोयेव एक टेक्नोक्रेट हैं, उन्होंने अपनी स्नातक की डिग्री सोवियत जमाने के मशहूर ताशकंद इंस्टीट्यूट ऑफ़ इरीगेशन एंड मेलियोरेशन से प्राप्त की है, और तकनीकी विज्ञान में पीएचडी हासिल की है।

यकीनन पुतिन इस मामले में प्रतिक्रिया देने में तेजी से काम लिया है और जिसके चलते द्विपक्षीय व्यापार और निवेश में तेजी आई है। रुसी-उज़बेक आर्थिक रिश्तों में आई नई गतिशीलता ने मिर्ज़ियोयेव के राजनीतिक आधार को मजबूत किया है। 2021 के पहले नौ महीनों में, द्विपक्षीय व्यापार ने 6 बिलियन डॉलर के स्तर को छू लिया है। इसने 2020 के 5.6 बिलियन डॉलर को पार कर लिया है। मिर्ज़ियोयेव की यात्रा के दौरान विभिन्न रुसी कंपनियों के साथ 9 बिलियन डॉलर के समझौतों पर हस्ताक्षर किये गए हैं, जिसमें 7.4 बिलियन डॉलर मूल्य की 141 निवेश परियोजनाएं और 1.6 बिलियन डॉलर कीमत के 455 निर्यात के सौदे शामिल हैं।

बेशक, इससे उज्बेक में जन्में रुसी कुलीन अरबपति अलीशेर उस्मानोव को ही मदद मिलने जा रही है – जिनके पास खनन और धातु उद्योग, दूरसंचार और इंटरनेट कंपनियों में तकरीबन 18 बिलियन डॉलर मूल्य का विशाल निवेश है और वे मशहूर फुटबाल क्लब डायनमो मास्को के प्रायोजक हैं- और अपने विवाह के चलते मिर्ज़ियोयेव के साथ रिश्ते में जुड़े हैं। जैसा कि किसी भी प्राचीन समाज में होता आया है, पारिवारिक नातेदारी दुनिया के उस हिस्से में राजनीतिक सत्ता को खाद-पानी देने का काम करती है। संयोगवश, उस्मानोव जो कोमर्सेंट अख़बार के मालिक हैं, क्रेमलिन के भी करीबी माने जाते हैं।

अफगानिस्तान की स्थिति का भी रुसी-उज़बेक सुरक्षा सहयोग के प्रक्षेपवक्र पर असर पड़ा होगा। जिस प्रकार से अमेरिकी सैनिकों ने इस क्षेत्र से अपनी अनौपचारिक वापसी की है और तालिबान शासित अफगानिस्तान से उत्पन्न तीव्र सुरक्षा खतरों को ध्यान में रखते हुए, मध्य एशियाई देशों की ओर से मास्को को सुरक्षा प्रदाता के तौर पर देखा जा रहा है। इस प्रकार से उज्बेकिस्तान की गुट-निरपेक्ष विदेश नीति होने के बावजूद, ताशकंद अब अपनी रणनीतिक स्वायत्तता को करीमोव काल की तरह निरंकुश अर्थों में परिभाषित नहीं करता है।

मध्य एशियाई देशों में देखें तो, अफगानिस्तान में तालिबान के सत्ता पर अधिग्रहण पर उज्बेकिस्तान का नजरिया रूस से सबसे अधिक मेल खाता है। उज़बेक अधिकारी काबुल में नए प्रशासन के साथ लगातार गहन संपर्क बनाये हुए है और आर्थिक सहयोग के क्षेत्र में लगातार गति ला रहे हैं। सोमवार को, उज्बेकिस्तान और कज़ाकिस्तान ने एक रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर कर वर्षों से चली आ रही प्रमुख क्षेत्रीय शक्ति के रूप में अपनी उग्र प्रतिद्वंदिता को पीछे छोड़ दिया है।

ताशकंद के द्वारा पेंटागन को अफगानिस्तान में “आउट ऑफ़ होराइजन” ऑपरेशन चलाने के लिए अपने यहाँ आधार प्रदान करने से इंकार से मिर्ज़ियोयेव के तहत उज़बेक क्षेत्रीय रणनीतियों में इन व्यापक प्रवृत्तियों का पता चलता है। काबुल में तालिबान सरकार को रचनात्मक स्तर पर शामिल करने में अपनी अग्रणी भूमिका निभाने के लिए ताशकंद खुद को तैयार कर रहा है।

ऐसे में जाहिर है कि यह रुसी और चीनी सोच के साथ मेल खाता है और तालिबान सरकार को मान्यता देने की पाकिस्तान की मुहिम से जुड़ा हुआ है। मिर्ज़ियोयेव और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान के बीच रिश्ते मधुर हैं। इस प्रक्रिया में, किर्गिजस्तान के रास्ते चीन से ताशकंद तक रेलमार्ग तैयार हो जाने के साथ ही उज्बेकिस्तान कनेक्टिविटी के मामले में बेहद तेजी से एक क्षेत्रीय केंद्र के रूप में उभर रहा है।

पुतिन ने ताशकंद में नई सोच को बखूबी से संभालने का काम किया है। रूस ने अपना ध्यान, अपने दबंग रवैये से बचते हुए, इस समय संबंधों में अन्तर्निहित वस्तु को जोड़ने पर लगा रखा है। इसके द्वारा उज्बेकिस्तान के वैध हितों को मान्यता देने – रूस में उज़बेक प्रवासी श्रमिकों द्वारा सिर्फ इस वर्ष की पहली तिमाही में ही 70 करोड़ डॉलर के करीब घर भेजा जा चुका है। इसके साथ ही आपसी भरोसे और आपसी सम्मान पर आधारित एक बराबरी के संबंध को बढ़ावा देने जैसा दृष्टिकोण कारगर साबित हो रहा है।

आपस में आरामदायक स्तर इस बिंदु तक बेहतर हो चुका है कि क्रेमलिन को उज्बेकिस्तान के ईईयू में पूर्ण सदस्य के बतौर शामिल होने की (बजाय कि एक “पर्यवेक्षक” के बतौर बने रहने के) या सीएसटीओ (जिससे करीमोव ने नाता तोड़ लिया था) में फिर से शामिल होने को लेकर कोई जल्दी नहीं है। दोनों देशों की ओर से 2018 में उज्बेकिस्तान के जिज्ज़ाख क्षेत्र में बारह वर्षों में अपना पहला संयुक्त सैन्य अभ्यास किया था।

क्षेत्रीय अर्थों में कहें तो, रुसी-उज्बेक संबंधों के वर्तमान प्रक्षेपवक्र का मध्य एशिया के अंतर-क्षेत्रीय समीकरणों पर एक शांतिदायक प्रभाव पड़ने जा रहा है। रुसी दृष्टिकोण के लिहाज से, मिर्ज़ियोयेव के तहत उज्बेकिस्तान अब अफगानिस्तान के रु-बरु एक विश्वसनीय बफर बन गया है।

साभार: इंडियन पंचलाइन 

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

Russo-Uzbek Ties a Factor of Regional Stability

Afghanistan
central asia

Related Stories

भोजन की भारी क़िल्लत का सामना कर रहे दो करोड़ अफ़ग़ानी : आईपीसी

तालिबान को सत्ता संभाले 200 से ज़्यादा दिन लेकिन लड़कियों को नहीं मिल पा रही शिक्षा

रूस पर बाइडेन के युद्ध की एशियाई दोष रेखाएं

काबुल में आगे बढ़ने को लेकर चीन की कूटनीति

तालिबान के आने के बाद अफ़ग़ान सिनेमा का भविष्य क्या है?

अफ़ग़ानिस्तान हो या यूक्रेन, युद्ध से क्या हासिल है अमेरिका को

बाइडेन का पहला साल : क्या कुछ बुनियादी अंतर आया?

सीमांत गांधी की पुण्यतिथि पर विशेष: सभी रूढ़िवादिता को तोड़ती उनकी दिलेरी की याद में 

कज़ाख़िस्तान में पूरा हुआ CSTO का मिशन 

अफ़ग़ानिस्तान में सिविल सोसाइटी और अधिकार समूहों ने प्रोफ़ेसर फ़ैज़ुल्ला जलाल की रिहाई की मांग की


बाकी खबरें

  • शारिब अहमद खान
    ईरानी नागरिक एक बार फिर सड़कों पर, आम ज़रूरत की वस्तुओं के दामों में अचानक 300% की वृद्धि
    28 May 2022
    ईरान एक बार फिर से आंदोलन की राह पर है, इस बार वजह सरकार द्वारा आम ज़रूरत की चीजों पर मिलने वाली सब्सिडी का खात्मा है। सब्सिडी खत्म होने के कारण रातों-रात कई वस्तुओं के दामों मे 300% से भी अधिक की…
  • डॉ. राजू पाण्डेय
    विचार: सांप्रदायिकता से संघर्ष को स्थगित रखना घातक
    28 May 2022
    हिंसा का अंत नहीं होता। घात-प्रतिघात, आक्रमण-प्रत्याक्रमण, अत्याचार-प्रतिशोध - यह सारे शब्द युग्म हिंसा को अंतहीन बना देते हैं। यह नाभिकीय विखंडन की चेन रिएक्शन की तरह होती है। सर्वनाश ही इसका अंत है।
  • सत्यम् तिवारी
    अजमेर : ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ की दरगाह के मायने और उन्हें बदनाम करने की साज़िश
    27 May 2022
    दरगाह अजमेर शरीफ़ के नीचे मंदिर होने के दावे पर सलमान चिश्ती कहते हैं, "यह कोई भूल से उठाया क़दम नहीं है बल्कि एक साज़िश है जिससे कोई मसला बने और देश को नुकसान हो। दरगाह अजमेर शरीफ़ 'लिविंग हिस्ट्री' है…
  • अजय सिंह
    यासीन मलिक को उम्रक़ैद : कश्मीरियों का अलगाव और बढ़ेगा
    27 May 2022
    यासीन मलिक ऐसे कश्मीरी नेता हैं, जिनसे भारत के दो भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह मिलते रहे हैं और कश्मीर के मसले पर विचार-विमर्श करते रहे हैं। सवाल है, अगर यासीन मलिक इतने ही…
  • रवि शंकर दुबे
    प. बंगाल : अब राज्यपाल नहीं मुख्यमंत्री होंगे विश्वविद्यालयों के कुलपति
    27 May 2022
    प. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बड़ा फ़ैसला लेते हुए राज्यपाल की शक्तियों को कम किया है। उन्होंने ऐलान किया कि अब विश्वविद्यालयों में राज्यपाल की जगह मुख्यमंत्री संभालेगा कुलपति पद का कार्यभार।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License