NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
आधी आबादी
महिलाएं
भारत
राजनीति
मायके और ससुराल दोनों घरों में महिलाओं को रहने का पूरा अधिकार
सुप्रीम कोर्ट ने एक ज़रूरी टिप्पणी में कहा कि कोर्ट महिला को सिर्फ़ इसलिए घर से बाहर निकालने की इजाज़त नहीं देगा क्योंकि वह अन्य सदस्यों को पसंद नहीं है।
सोनिया यादव
02 Jun 2022
SC

"एक महिला को अपनी मां के साथ-साथ सास के घर पर रहने का भी पूरा अधिकार है और कोर्ट महिला को सिर्फ इसलिए घर से बाहर निकालने की इजाजत नहीं देगा क्योंकि वह अन्य सदस्यों को पसंद नहीं है।"

ये जरूरी टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अजय रस्तोगी और बीवी नागरत्ना की वैकेशन बेंच की है। एक रिट याचिका की सुनवाई के दौरान जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि अगर उस महिला पर दुर्व्यवहार का आरोप लगाया जाता है, तो अदालत द्वारा वैवाहिक घरों में बुजुर्गों और परिवार के सदस्यों को परेशान न करने के लिए शर्तें रखी जा सकती हैं। लेकिन अदालत इसलिए किसी को भी उसे बाहर निकालने की अनुमति नहीं देगी क्योंकि वे उसे बर्दाश्त नहीं कर सकते।

बता दें कि एक हफ्ते पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं के हितों की रक्षा करने को लेकर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया था। कोर्ट ने घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत साझे घर में रहने के अधिकार की व्यापक व्याख्या की थी। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि महिला, चाहे वो मां, बेटी, बहन, पत्नी, सास, बहू या घरेलू संबंधों में हो उसे साझे घर में रहने का अधिकार है।

इससे पहले साल 2020 के एक ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि घरेलू हिंसा की शिकार महिला को सास-ससुर के मालिकाना हक वाली संपत्ति में रहने का अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने बहू को रिहाइश का अधिकार देते हुए "शेयर्ड हाउसहोल्ड" (साझा घर) की परिभाषा की व्याख्या की थी, जिसके मुताबिक घरेलू हिंसा कानून के अनुच्छेद 2 (एस) के तहत साझा घर की परिभाषा सिर्फ यही नहीं है कि वह घर जो संयुक्त परिवार का हो जिसमें पति भी एक सदस्य है या जिसमें पीड़ित महिला के पति का हिस्सा है। एक महिला पति के रिश्तेदारों के घर पर भी रहने की मांग कर सकती जहां वह अपने घरेलू संबंधों के कारण कुछ समय के लिए रह चुकी हो।

क्या है पूरा मामला?

मी़डिया रिपोर्ट्स के अनुसार यह मामला एक महिला और उसके पति द्वारा बॉम्बे हाईकोर्ट के उस आदेश के बाद सुप्रीम कोर्ट में आया जहां हाईकोर्ट ने महिला और उसके पति को ससुर के फ्लैट को खाली करने का आदेश दिया था। ससुर ने ट्रिब्यूनल में मेंटेनेंस एंड वेलफेयर ऑफ पेरेंट्स एंड सीनियर सिटिजंस एक्ट के तहत फ्लैट में विशेष निवास का अधिकार मांगा था।

ट्रिब्यूनल ने महिला और उसके पति को फ्लैट खाली करने का आदेश दिया था और हर महीने सास-ससुर को 25 हजार रुपये भरण पोषण के तौर पर देने को कहा था। महिला ने ट्रिब्यूनल के आदेश के खिलाफ घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम के तहत अपने निवास के अधिकार का हवाला देते हुए ट्रिब्यूनल के आदेश को चुनौती दी और एक रिट याचिका दायर की थी।

हाईकोर्ट ने बुजुर्ग माता-पिता के बेटे को अपनी पत्नी और दो बच्चे के लिए वैकल्पिक रहने के इंतजाम करने के आदेश दिए थे लेकिन भरण पोषण के आदेश को वापस ले लिया था। महिला ने हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। अब इसी हफ्ते सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर दोबारा सुनवाई होगी और सुनवाई के दौरान महिला के सास-ससुर वीडियो लिंक के जरिए शामिल होंगे।

क्या कहता है घरेलू हिंसा के तहत निवास का कानून?

सुप्रीम कोर्ट ने घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं के हितों की रक्षा करने को लेकर एक महत्वपूर्ण फैसले में घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत साझे घर में रहने के अधिकार की व्यापक व्याख्या की थी। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि महिला, चाहे वो मां, बेटी, बहन, पत्नी, सास, बहू या घरेलू संबंधों में हो उसे साझे घर में रहने का अधिकार है।

तब जस्टिस नागरत्ना ने घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम के तहत 'साझा परिवार' प्रावधान का विश्लेषण करते हुए 79 पेज का फैसला लिखते हुए कहा था, "घरेलू रिश्ते में एक महिला जो पीड़ित नहीं है, इस अर्थ में कि जिसे घरेलू हिंसा का शिकार नहीं बनाया गया है, उसे साझा घर में रहने का अधिकार है। इस प्रकार, एक घरेलू रिश्ते में एक मां, बेटी, बहन, पत्नी, सास और बहू या महिलाओं की ऐसी अन्य श्रेणियों को एक साझा घर में रहने का अधिकार है।"

इस दौरान बेंच ने भारतीय महिलाओं की उस अजीब स्थिति से निपटने की कोशिश की थी जो वैवाहिक आवासों से अलग जगहों पर रहती हैं, जैसे कि उनके पति का कार्यस्थल आदि। सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा था कि अनेक प्रकार की स्थितियां एवं परिस्थितियां हो सकती हैं और प्रत्येक महिला साझे वाले घर में रहने के अपने अधिकार का प्रयोग कर सकती है। फैसले में जस्टिस नागरत्ना ने कहा था कि महिलाओं की उपरोक्त श्रेणियों और घरेलू संबंधों में महिलाओं की ऐसी अन्य श्रेणियों के निवास के अधिकार की धारा 17 की उप-धारा (1) के तहत गारंटी है। इस तरह से उन्हें साझे घर से बेदखल या बाहर नहीं किया जा सकता है। घरेलू हिंसा के किसी भी रूप के न होने पर भी एक घर में रह सकते हैं।

अधिकांश महिलाएं स्वतंत्र आय या वित्तीय क्षमता नहीं रखती

इस महत्वपूर्ण फैसले के दौरान बेंच ने भारतीय सामाजिक संदर्भ की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए कहा था कि एक महिला के साझा घर में रहने का अधिकार का अद्वितीय महत्व है। इसकी वजह है कि भारत में ज्यादातर महिलाएं शिक्षित नहीं हैं और न ही वे कमा रही हैं। इसके अलावा न ही उनके पास अकेले रहने के लिए स्वतंत्र रूप से खर्च करने के लिए पैसे हैं। अधिकांश महिलाएं स्वतंत्र आय या वित्तीय क्षमता नहीं रखती, जिसके चलते वे अपने घर पर पूरी तरह से निर्भर हैं।

गौरतलब है कि देश के क़ानून में महिलाओं के संरक्षण के लिए कई नियम बनाए गए हैं लेकिन समाज में महिलाओं की स्थिति इतनी ख़राब है कि आमतौर पर उन्हें अपने अधिकार ही नहीं पता। वे अपने हक़ के प्रति बिल्कुल जागरूक नहीं हैं जिसका एक मुख्य कारण है पितृसत्ता। हमारे घर में महिलाओं की ये भूमिकाएं जो उन्हें रिश्ते और इज़्ज़त के नाम पर इस कदर बांधती हैं कि वे ये तक भूल जाती हैं कि वे किसी की मां, बहन, पत्नी और बेटी होने से पहले एक इंसान हैं और उनके अपने मौलिक अधिकार हैं। आज भी ज्यादातर महिलाएं खुद पर होने वाली तमाम हिंसाओं का सामना करते हुए भी उफ़ तक नहीं करती और सहने की प्रवृति को ‘अच्छी औरत’ की परिभाषा समझ कर ख़ुद को सांत्वना देती हैं। बहरहाल, महिलाओं के पक्ष में अदालतों के लगातार आते फैसले एक बेहतर कल की उम्मीद जरूर जगाते हैं। एक ऐसे कल की जो बराबरी का हो, सुख और सुकून का हो।

Supreme Court
Women Rights
SC on Women's Right
Domestic Violence
violence against women
Women

Related Stories

मैरिटल रेप : दिल्ली हाई कोर्ट के बंटे हुए फ़ैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती, क्या अब ख़त्म होगा न्याय का इंतज़ार!

लड़कियां कोई बीमारी नहीं होतीं, जिनसे निजात के लिए दवाएं बनायी और खायी जाएं

सवाल: आख़िर लड़कियां ख़ुद को क्यों मानती हैं कमतर

यूपी से लेकर बिहार तक महिलाओं के शोषण-उत्पीड़न की एक सी कहानी

रूस और यूक्रेन: हर मोर्चे पर डटीं महिलाएं युद्ध के विरोध में

सोनी सोरी और बेला भाटिया: संघर्ष-ग्रस्त बस्तर में आदिवासियों-महिलाओं के लिए मानवाधिकारों की लड़ाई लड़ने वाली योद्धा

बिहार विधानसभा में महिला सदस्यों ने आरक्षण देने की मांग की

निर्भया फंड: प्राथमिकता में चूक या स्मृति में विचलन?

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस: महिलाओं के संघर्ष और बेहतर कल की उम्मीद

दलित और आदिवासी महिलाओं के सम्मान से जुड़े सवाल


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक टीम
    कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 2,451 नए मामले, 54 मरीज़ों की मौत 
    22 Apr 2022
    दिल्ली सरकार ने कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए, 18 साल से ऊपर के सभी लोगों को बूस्टर डोज मुफ्त देने का ऐलान किया है। 
  • पीपल्स डिस्पैच
    नाटो देशों ने यूक्रेन को और हथियारों की आपूर्ति के लिए कसी कमर
    22 Apr 2022
    जर्मनी, कनाडा, यूके, नीदरलैंड और रोमानिया उन देशों में शामिल हैं, जिन्होंने यूक्रेन को और ज़्यादा हथियारों की आपूर्ति का वादा किया है। अमेरिका पहले ही एक हफ़्ते में एक अरब डॉलर क़ीमत के हथियारों की…
  • एम. के. भद्रकुमार
    सामूहिक विनाश के प्रवासी पक्षी
    22 Apr 2022
    रूसियों ने चौंकाने वाला दावा किया है कि, पेंटागन की जैव-प्रयोगशालाओं में तैयार किए गए डिजिटलीकृत प्रवासी पक्षी वास्तव में उनके क़ब्ज़े में आ गए हैं।
  • रश्मि सहगल
    उत्तराखंड समान नागरिक संहिता चाहता है, इसका क्या मतलब है?
    21 Apr 2022
    भाजपा के नेता समय-समय पर, मतदाताओं का अपने पक्ष में ध्रुवीकरण करने के लिए, यूसीसी का मुद्दा उछालते रहते हैं। फिर, यह केवल एक संहिता का मामला नहीं है, जो मुसलमानों को फिक्रमंद करता है। यह हिंदुओं पर…
  • abhisar
    न्यूज़क्लिक टीम
    बोलडोज़र पर सुप्रीम कोर्ट की रोक! कानून और संविधान के साथ बीजेपी का खिलवाड़!
    21 Apr 2022
    बोल के लब आज़ाद हैं तेरे के इस एपिसोड में अभिसार बुलडोज़र राजनीति और भाजपा के वायदों के बारे में बात कर रहे हैं।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License