NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
तनिक महंगे हैं तो क्या हुआ दिन अच्छे हैं!
कटाक्ष: असल में रसोई वाली महंगाई का सीधे-सीधे अच्छे-बुरे दिनों से कनेक्शन जोड़ना, पुराने भारत का ही समाजवादी टाइप का हैंगोवर है। लेकिन, वो पिछड़े जमाने की बातें हैं।
राजेंद्र शर्मा
03 Jul 2021
तनिक महंगे हैं तो क्या हुआ दिन अच्छे हैं!

मोदी जी के विरोधियों ने पहले कभी तुक की बात की है, जो अब करेंगे! उनकी बातों में तुक होती तो मोदी जी के विरोधी ही क्यों होते? भला, अवतारों का भी कोई विरोध करता है! अब रसोई गैस का ही मामला ले लीजिए। मोदी जी ने रसोई गैस के सिलेंडर के दाम में पच्चीस रुपया पचास पैसे की बढ़ोतरी क्या कर दी, लगे भाई लोग अच्छे दिन कहां हैं, अच्छे दिन कहां चले गए का शोर मचाने!

कमाल यह है कि मोदी जी के ही आशीर्वाद से पेट्रोल और डीजल के दाम रोज-रोज बढ़ रहे हैं, लेकिन जलाने वाले तेल के दाम से इन्हें अच्छे दिनों की याद नहीं आयी। जलाने वाले तेल की देखा-देखी, खाने-पकाने के तेल के दामों ने भी हाई जम्प के रिकार्ड कायम कर दिए, तब भी इन्हें इस तरह से अच्छे दिनों का ख्याल नहीं आया। और तो और, दूध के दाम ने दो रुपया लीटर की उछाल लेकर दिखा दी, तब भी इन्हें ऐसे अच्छे दिनों की याद नहीं आयी। पर रसोई गैस के दाम के जरा सा बढ़ते ही, अच्छे दिनों की याद में टसुए बहाने लगे।

क्यों भाई क्यों? गैस के साथ रसोई का अगल्ला जुड़ा हुआ है इसीलिए! खाने-पकाने का तेल या दूध क्या चूल्हे वाली गैस से कम, रसोई वाली चीजें हैं। फिर उनकी महंगाई से अच्छे दिनों के रास्ते में अटकने, भटकने, लटकने की आशंका क्यों नहीं? महिलाओं को बहकाने के लिए ये ख्याल अच्छा है वर्ना जन्नत की हकीकत मोदी जी को अच्छी तरह पता है: इसका कोई सबूत है ही नहीं कि अच्छे दिनों का रास्ता, रसोई से होकर आता है।

सचाई यह है कि महंगा जलाने या पकाने का तेल हो या रसोई गैस का सिलेंडर या दूध या कुछ और, सब बराबर हैं। महंगाई में कोई ऊंच-नीच, छोटा-बड़ा नहीं होता है। पहले होता होगा, पुराने भारत के सत्तर साल में, अब मोदी जी के नये इंडिया में नहीं होता है। असल में रसोई वाली महंगाई का सीधे-सीधे अच्छे-बुरे दिनों से कनेक्शन जोड़ना, पुराने भारत का ही समाजवादी टाइप का हैंगोवर है। लेकिन, वो पिछड़े जमाने की बातें हैं। तब घर का बजट बिगड़ने से सरकारें डरती थीं। सीधे रसोई की चीजों के दाम बढ़ाने में दस बार सोचती थीं। खाने-पीने की चीजों के दाम नीचे रखने के ही चक्कर में रहती थीं। पर यह नया इंडिया है, छप्पन इंच की छाती वाला। यह सरकार किसी से भी नहीं डरती, पाकिस्तान-चीन को छोड़िए, ट्विटर, फेसबुक और गूगल से भी नहीं; फिर घर संभालने वाले स्त्री-पुरुषों से क्यों डरेगी? फिर, यहां पुराने वाला ऊंच-नीच का भेद नहीं चलता।

वैसे भी रसोई की मामूली चीजों के दामों की परवाह सत्तर साल में बहुत हो गयी, अब ऊंची चीजों के दाम की परवाह करने की बारी है। सुना है कि हरियाणा की खट्टर सरकार एअरकंडीशनरों पर सब्सिडी दे रही है। ज्यादा से ज्यादा लोग एअरकंडीशनर अपने घरों, दूकानों वगैरह-वगैरह में लगाएं और मई-जून की झुलसाने वाली गर्मी में, अच्छे दिन लाएं।

ये तो शुरूआत है। आगे-आगे देखिए, होता है क्या-क्या सस्ता? चार पहिए वाली गाडिय़ां, टीवी, कंप्यूटर, फोन वगैरह तो सस्ते होने ही होने हैं और खुले-खुले घर भी, अब वक्त आ गया है कि सरकार जरा और अच्छे दिन लाए और हैलीकोप्टरों, छोटे जहाजों वगैरह के लिए सब्सिडी का सहारा लगाए। चार पहिया और दो पहिया गाडिय़ों से, दिल्ली-मुंबई में सडक़ों पर ट्रैफिक कुछ ज्यादा भी तो हो जाता है।

तो भाई, गैस-तेल वगैरह के दाम कितने ही चढ़ जाएं, इतना तो तय है कि एअरकंडीशनर, हैलीकोप्टर वगैरह वाले अच्छे दिन आ रहे हैं। कोरोना-वोरोना के भी रोके नहीं रुक रहे हैं; मंदी-वंदी की भी नहीं सुन रहे हैं; बेकारी-वेकारी को भी नहीं देख रहे हैं; शेयर बाजार के रथ पर सवार होकर अच्छे दिन सरपट आ रहे हैं। लेकिन, इसका मतलब यह हर्गिज नहीं है कि अच्छे दिन सिर्फ शेयर बाजार के रथ पर सवार होकर आ रहे हैं। अच्छे दिन  सिर्फ एअरकंडीशनर, हैलीकोप्टर वालों के नहीं आ रहे हैं। यह तो मोदी के न्यू इंडिया के विरोधियों का झूठा प्रचार है। यह न्यू इंडिया को बदनाम करने की कोशिश है। यह सत्तर साल में पहली बार आयी सरकार राष्ट्रवादी सरकार को, सूट-बूट की सरकार साबित करने की कोशिश है।

माना कि अडानी जी, अंबानी जी के अच्छे दिन आ रहे हैं बल्कि आ चुके हैं, पर अच्छे दिन सिर्फ उनके ही नहीं आए हैं। अच्छे दिन औरों के भी आ रहे हैं। बस जरा पुराने भारत के समाजवादी टाइप के कन्फ्यूजन का पर्दा आंखों से हटाकर देखने की जरूरत है। सस्ता, सस्ता है और अच्छे दिन, अच्छे दिन हैं। अच्छे दिनों को सस्ते के खूंटे से बंधी भैंस समझने की गलती कोई नहीं करे। और महंगे का अच्छे दिनों से कोई बैर नहीं है उल्टे छुपा हुआ प्यार है। पुराने लोग यूं ही नहीं कह गए हैं--सस्ता रोये बार-बार, महंगा रोये एक बार।

छह महीने पहले, जो सात सौ रुपए से कम का और सात साल पहले चार सौ रुपए का गैस सिलेंडर रसोई में लगा पाते थे, अब सवा आठ सौ रुपये से ऊपर का सिलेंडर रसोई में बरत रहे हैं; यह रसोई की और घर संभालने वाले स्त्री-पुरुषों की तरक्की नहीं तो और क्या है? यही किस्सा राशन, दूध, चीनी, दाल, तेल, सब्जी सब का है। यानी तरक्की ही तरक्की, अच्छे दिन ही अच्छे दिन। और जो किसी कारण से सवा आठ सौ रुपए का सिलेंडर नहीं भरवा पाएं, वे ईंधन के मामले में पुराने तरीके  से आत्मनिर्भर हो जाएं और अपने अच्छे दिनों के साथ ही साथ, धरती माता के भी अच्छे दिन लाएं। जिन्हें महंगा तेल खरीदने में ज्यादा दिक्कत है, उनके लिए भी मध्य प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री का समाधान हाजिर है--साइकिल से बल्कि पैदल ही आएं-जाएं और अपने स्वास्थ्य से लेकर स्वास्थ्य विभाग तक के अच्छे दिन लाएं। चार पहिए का ज्यादा ही शौक हो तो वहीं के सीएम का फार्मूला आजमाएं और बिजली की गाड़ी चलाएं, तेल की चिकचिक मिटाएं। हां! एक प्राब्लम जरूर है कि सब ऐसे ही तेल बचाने लग गए, तो मोदी जी के सेंट्रल विस्टा के अच्छे दिन कैसे आएंगे!

आखिर में यह कि टैक में डैक जोडक़र, मोदी जी इंडिया का टैकेड ला रहे हैं। नाम से ही महंगा जरूर लगता है, पर अच्छे दिन तो आ रहे हैं। कुछ महंगाई, टैकेड की खातिर भी सही। पर हां! आत्मनिर्भर भारत की याद दिलाकर, अब नेगेटिविटी कोई नहीं फैलाए।  

(इस व्यंग्य आलेख के लेखक वरिष्ठ पत्रकार और लोकलहर के संपादक हैं।)

sarcasm
Inflation
Gas Price Hike
LPG gas
Petrol & diesel price
Rising inflation
achhe din
Narendra modi
Modi government

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

डरावना आर्थिक संकट: न तो ख़रीदने की ताक़त, न कोई नौकरी, और उस पर बढ़ती कीमतें

तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

भारत के निर्यात प्रतिबंध को लेकर चल रही राजनीति

गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया

आर्थिक रिकवरी के वहम का शिकार है मोदी सरकार

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !

क्या जानबूझकर महंगाई पर चर्चा से आम आदमी से जुड़े मुद्दे बाहर रखे जाते हैं?


बाकी खबरें

  • अजय कुमार
    महामारी में लोग झेल रहे थे दर्द, बंपर कमाई करती रहीं- फार्मा, ऑयल और टेक्नोलोजी की कंपनियां
    26 May 2022
    विश्व आर्थिक मंच पर पेश की गई ऑक्सफोर्ड इंटरनेशनल रिपोर्ट के मुताबिक महामारी के दौर में फूड फ़ार्मा ऑयल और टेक्नोलॉजी कंपनियों ने जमकर कमाई की।
  • परमजीत सिंह जज
    ‘आप’ के मंत्री को बर्ख़ास्त करने से पंजाब में मचा हड़कंप
    26 May 2022
    पंजाब सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती पंजाब की गिरती अर्थव्यवस्था को फिर से खड़ा करना है, और भ्रष्टाचार की बड़ी मछलियों को पकड़ना अभी बाक़ी है, लेकिन पार्टी के ताज़ा क़दम ने सनसनी मचा दी है।
  • virus
    न्यूज़क्लिक टीम
    क्या मंकी पॉक्स का इलाज संभव है?
    25 May 2022
    अफ्रीका के बाद यूरोपीय देशों में इन दिनों मंकी पॉक्स का फैलना जारी है, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में मामले मिलने के बाद कई देशों की सरकार अलर्ट हो गई है। वहीं भारत की सरकार ने भी सख्ती बरतनी शुरु कर दी है…
  • भाषा
    आतंकवाद के वित्तपोषण मामले में कश्मीर के अलगाववादी नेता यासीन मलिक को उम्रक़ैद
    25 May 2022
    विशेष न्यायाधीश प्रवीण सिंह ने गैर-कानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत विभिन्न अपराधों के लिए अलग-अलग अवधि की सजा सुनाईं। सभी सजाएं साथ-साथ चलेंगी।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    "हसदेव अरण्य स्थानीय मुद्दा नहीं, बल्कि आदिवासियों के अस्तित्व का सवाल"
    25 May 2022
    हसदेव अरण्य के आदिवासी अपने जंगल, जीवन, आजीविका और पहचान को बचाने के लिए एक दशक से कर रहे हैं सघंर्ष, दिल्ली में हुई प्रेस वार्ता।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License