NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
व्यंग्य
भारत
राजनीति
बैठे-ठाले: न होता यूं तो क्या होता!
अपने राज में जो हुआ है, उस पर सवालों के जवाब के देने के लिए, मोदी जी ने जब से यह सवाल उठाने का रास्ता अपनाया है कि विरोधी नहीं होते तो क्या-क्या होता, नहीं होता, तब से विश्व गुरु कुर्सी ने खुद दौड़कर स्वयंवर में उनके गले में वरमाला डाल दी है।
राजेंद्र शर्मा
12 Feb 2022
Modi

भई पब्लिक की ये बात ठीक नहीं है। पहले अच्छे दिनों के लिए कब आएंगे, कब आएंगे पूछ-पूछकर, मोदी जी को इतना परेशान किया, इतना परेशान किया कि उन्होंने आजिज आकर अच्छे दिनों का आर्डर ही कैंसिल कर दिया और नये इंडिया का आर्डर दे दिया। पर मोदी जी के नये इंडिया का आर्डर देने की देर थी कि पब्लिक ने उसके पहुंचने की तारीख पूछ-पूछकर जान खा ली। जल्द ही बेचारे मोदी जी को नये इंडिया का भी आर्डर एक तरफ रखकर, विश्व गुरु की कुर्सी का आर्डर देना पड़ गया। पर पब्लिक है कि अब भी बेचारों को चैन नहीं लेने दे रही है। अब विश्व गुरु की कुर्सी देखने के लिए उतावली हो रही है।

खैर! नये इंडिया की हम नहीं कह सकते, पर मोदी जी की विश्व गुरु की सीट पक्की है। वैसे जब भागवत से लेकर कोविंद तक, वाया मोदी जी बार-बार पब्लिक को पॉजिटिव रहने का कर्तव्य याद दिला रहे हैं, हम ही क्यों यह कहकर नक्कू बनें कि नये इंडिया की हम नहीं कह सकते। धीरे-धीरे भी बनेगा तब भी अमृत काल के अंत तक पहुंचते-पहुंचते नया इंडिया भी विश्व गुरु बन ही जाएगा। तब तक अपने मोदी जी तो विश्व गुरु की कुर्सी होंगे ही।

अपने राज में जो हुआ है, उस पर सवालों के जवाब के देने के लिए, मोदी जी ने जब से यह सवाल उठाने का रास्ता अपनाया है कि विरोधी नहीं होते तो क्या-क्या होता, नहीं होता, तब से विश्व गुरु कुर्सी ने खुद दौड़कर स्वयंवर में उनके गले में वरमाला डाल दी है। सुनने में तो आया है कि ट्रम्प साहब ने पछतावे भरी शिकायत भी भिजवायी है--गुरु ये कटोरा दांव दोस्तों से भी छुपा गए! मोटेरा स्टेडियम में कान में जरा सा मंतर डाल दिया होता, तो तेरे भाई ने डैमोक्रेटों का मुंह चुनाव से पहले ही यह सुना-सुनाकर बंद कर दिया होता कि वे होते ही नहीं, तो क्या होता!
पर इंडियन पब्लिक अब भी बाज कहां आ रही है। मोदी जी को विश्व गुरु बनाने वाले दांव का अनुकरण करने के बहाने से, जिसे भी देखो इतिहास गढ़ने में लगा है कि यूं होता तो क्या होता। और तो और इसके नाम पर कि मोदी जी से क्या-क्या बताना छूट गया कि नेहरू-कांग्रेस नहीं होते तो क्या-क्या नहीं होता, भाई लोग मोदी जी की सूची में अंट-शंट न जाने क्या-क्या जोड़ रहे हैं।

कुछ लोग तो उस सूची को पचहत्तर साल से भी पीछे खींचकर ले जाना चाहते हैं। कह रहे हैं कि कांग्रेस होती ही नहीं तो दो बातें हो सकती थीं। या तो किसी और नाम से कांग्रेस होती या फिर कांग्रेस वाली जगह खाली ही रहती। कांग्रेस किसी और नाम से होती तो कोई बात नहीं, पर कांग्रेस वाली जगह खाली रहती तो दो बातें हो सकती थीं। या तो कांग्रेस की जगह चीन, वियतनाम, दक्षिण अफ्रीका वगैरह की तरह कोई और ज्यादा क्रांतिकारी पार्टी आती थी या फिर गोलवालकर-सावरकर की मुस्लिम भगाओ, मुस्लिम हटाओ करने वाली अंग्रेजभक्त पार्टी ही आ जाती थी।

कांग्रेस से ज्यादा क्रांतिकारी पार्टी आ जाती तो ठीक, पर मुस्लिम भगाओ, मुस्लिम हटाओ पार्टी आ जाती, तो दो बातें हो सकती थीं। अंगरेज दांयी तरफ से गोदी में उनको और बांयी तरफ से गोदी में लीग को बैठाते और देश को बांटते न बांटते, वही राज चलाते या फिर इनको दांयी और लीग को बांयी तरफ से गोदी में बैठाते और खुद ही राज चलाते। राज अंगरेजों का ही चलता, फिर दूसरी बात क्या होनी थी? गोलवालकर-सावरकर दांयी तरफ से अंगरेजों की गोदी में चढ़ते या बांयी तरफ से, बात तो एक ही होनी थी, लल्लू! और हां! तब गांधी जी होते भी तो राष्ट्रपिता वाले महात्मा गांधी नहीं होते। फिर गोडसे को उन्हें गोली भी नहीं मारनी पड़ती और सरदार पटेल को भी न सावरकर पर हत्या का मुकद्दमा चलाना पड़ता और न आरएसएस पर प्रतिबंध लगाना पड़ता।

सरदार वाले पटेल और चाचा वाले नेहरू भी कहां होते! तब क्या मोदी जी होते? होते भी तो मोदी जी महंगाई से लेकर बेकारी तक का ठीकरा किस के सिर फोड़ते! और रामलला के अलावा किस की मूर्ति बनाते!
दूसरी तरफ से इसकी सेकुलर अटकलें लगाने वाले भी मैदान में कूद पड़े हैं कि गोलवालकर-सावरकर कुनबे वाले ही नहीं होते और दूसरे किसी नाम से भी उनके कुनबे वाले नहीं होते तो, क्या होता? मुसलमान हटाओ, मुसलमान भगाओ करने वाले नहीं होते, तो दो बातें हो सकती थीं। या तो हिंदुओं से बचाओ, हिंदुओं से अलग ले जाओ करने वाले लीगी भी नहीं होते या लीगी फिर भी होते।

लीगी होते ही नहीं, तब तो ठीक, पर लीगी होते दो बातें हो सकती थीं। या तो अंगरेज, अपने रैडीकल विरोधियों के खिलाफ उनका इस्तेमाल करते या उनका इस्तेमाल भी नहीं करते। अंगरेज उनका इस्तेमाल नहीं करते तो ठीक, इस्तेमाल करते तो दो बातें हो सकती थीं। क्रांतिकारी विरोधियों का भी हमेशा तो मुकाबला करते रह नहीं सकते थे, इसलिए अंगरेज जाते-जाते या तो देश को बांटकर, लीग वालों को उनका पाकिस्तान देते जाते या भारत को अविभाजित ही छोड़कर चले जाते। जब अंगरेजों को जाना ही पड़ता और भारत के आजादी के इतिहास से हिंदुत्व के कुनबे का नाम गायब ही रहना था, तो दूसरी बात भी दूसरी बात तो क्या ही होती? हां! मोदी जी गद्दी पर नहीं होते, दिल्ली में भी नहीं और शायद गुजरात में भी नहीं! बिना गद्दी के मोदी जी का होना भी कोई होना होता, लल्लू!
इसी बीच मोदी जी ने खुद कांग्रेस नहीं होती तो की अपनी सूची को कुछ और बढ़ा दिया है।

गोवा में उन्होंने याद दिलाया कि नेहरू जी डिले नहीं कराते तो गोवा को आजादी 1947 में ही लगे हाथों मिल जाती, वह भी दो मिनट में। नेहरू जी नहीं होते तो गोवा को आजादी के लिए तेरह साल इंतजार नहीं करना पड़ता। पर लोग पूछ रहे हैं कि नेहरू तो खैर काहिल थे ही और सरदार पटेल ने भी कोई खास दम नहीं दिखाया, न कश्मीर में और न गोवा में, पर गोलवालकर-सावरकर की जोड़ी ने क्यों गोवा वालों को आजाद नहीं करा लिया?

लगता है नेहरू और कांग्रेस का न होना ही काफी नहीं होता। मोदी जी के हुए बिना कुछ भी नहीं होता, न हुआ और न होगा। क्या-क्या न रुका रहा यहां, इक मोदी के न होने से; मोदी होता तो ये होता, मोदी होता तो वो होता!

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और लोकलहर के संपादक हैं।)

sarcasm
Satire
Political satire
Narendra modi
BJP
Congress
Modi Govt

Related Stories

तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

कटाक्ष:  …गोडसे जी का नंबर कब आएगा!

तिरछी नज़र: ये कहां आ गए हम! यूं ही सिर फिराते फिराते

तिरछी नज़र: 2047 की बात है

कटाक्ष: महंगाई, बेकारी भुलाओ, मस्जिद से मंदिर निकलवाओ! 

ताजमहल किसे चाहिए— ऐ नफ़रत तू ज़िंदाबाद!

तिरछी नज़र: ...ओह माई गॉड!

कटाक्ष: एक निशान, अलग-अलग विधान, फिर भी नया इंडिया महान!

तिरछी नज़र: हम सहनशील तो हैं, पर इतने भी नहीं


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    लॉकडाउन-2020: यही तो दिन थे, जब राजा ने अचानक कह दिया था— स्टैचू!
    27 Mar 2022
    पुनर्प्रकाशन : यही तो दिन थे, जब दो बरस पहले 2020 में पूरे देश पर अनियोजित लॉकडाउन थोप दिया गया था। ‘इतवार की कविता’ में पढ़ते हैं लॉकडाउन की कहानी कहती कवि-पत्रकार मुकुल सरल की कविता- ‘लॉकडाउन—2020’।
  • डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
    लीजिए विकास फिर से शुरू हो गया है, अब ख़ुश!
    27 Mar 2022
    ये एक सौ तीस-चालीस दिन बहुत ही बेचैनी में गुजरे। पहले तो अच्छा लगा कि पेट्रोल डीज़ल की कीमत बढ़ नहीं रही हैं। पर फिर हुई बेचैनी शुरू। लगा जैसे कि हम अनाथ ही हो गये हैं। जैसे कि देश में सरकार ही नहीं…
  • सुबोध वर्मा
    28-29 मार्च को आम हड़ताल क्यों करने जा रहा है पूरा भारत ?
    27 Mar 2022
    मज़दूर और किसान आर्थिक संकट से राहत के साथ-साथ मोदी सरकार की आर्थिक नीति में संपूर्ण बदलाव की भी मांग कर रहे हैं।
  • अजय कुमार
    महंगाई मार गई...: चावल, आटा, दाल, सरसों के तेल से लेकर सर्फ़ साबुन सब महंगा
    27 Mar 2022
    सरकारी महंगाई के आंकड़ों के साथ किराना दुकान के महंगाई आकड़ें देखिये तो पता चलेगा कि महंगाई की मार से आम जनता कितनी बेहाल होगी ?
  • जॉन पी. रुएहल
    क्या यूक्रेन मामले में CSTO की एंट्री कराएगा रूस? क्या हैं संभावनाएँ?
    27 Mar 2022
    अपने सैन्य गठबंधन, सामूहिक सुरक्षा संधि संगठन (सीएसटीओ) के जरिये संभावित हस्तक्षेप से रूस को एक राजनयिक जीत प्राप्त हो सकती है और अपने अभियान को आगे बढ़ाने के लिए उसके पास एक स्वीकार्य मार्ग प्रशस्त…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License