NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
डेमोक्रेसी का क्या है! बिजनेस हो या पॉलिटिक्स, आसानी बड़ी चीज़ है!
कटाक्ष: डुइंग पॉलिटिक्स की आसानी मांगे डाइरेक्ट राज--इधर राजा, उधर प्रजा। बीच में बाक़ी किसी की भी क्या ज़रूरत है? कानून, संविधान, नागरिक, अदालत, यूनिवर्सिटी, संसद, वगैरह, किसी की भी क्या ज़रूरत है? जो हो डाइरेक्ट हो।
राजेंद्र शर्मा
03 Apr 2021
डेमोक्रेसी का क्या है! बिजनेस हो या पॉलिटिक्स, आसानी बड़ी चीज़ है!

सिंपल सी बात है। सिंपल बोले तो, कॉमनसेंस। जिसे भी देखो, ईज ऑफ डुइंग बिजनेस का दीवाना हुआ पड़ा है कि नहीं। सरकार हर सुबह उठकर खुद लंबाई नापती है और डेली बुलेटिन जारी कर देश को बताती है कि ईज का कद कहां तक पहुंचा। फिर पीएम जी, एफएम जी वगैरह सब जी लोग, देश को समझाने में लग जाते हैं कि जीडीपी पिट गया तो ग़म नहीं, रोजगार बैठ गया तो कोई फिक्र नहीं, बिजनेस करने की ईज का कद तो बढ़ रहा है।

और अगर खुदा-न-खास्ता किसी अंतर्राष्ट्रीय एजेंसी ने बिजनेस की ईज़ के कद पर कोई सवाल उठा दिया तो, विदेशी मंत्री जी देश-दुनिया को डांटकर याद दिलाते हैं कि ये आत्मनिर्भरता वाला न्यू इंडिया है--हम बाहर वालों का नाप नहीं मानेंगे, ईज का कद वही मानना पड़ेगा जो हम अपने इंच टेप से नाप के बताएंगे। सूचना मंत्री जी सूचना- जेहादियों को फटकारेंगे--कॉमनसेंस की बात है; बिजनेस डूइंग में आसानी नहीं होती, तो अम्बानी और अडानी ने मुनाफों की इतनी बड़ी चादर तानी नहीं होती! और जब ईज ऑफ बिजनेस की दीवानगी कॉमनसेंस का मामला है, मोदी जी का न्यू इंडिया ईज ऑफ डुइंग पोलिटिक्स का भी दीवाना क्यों न हो? जब ईज से करते हैं प्यार, तो ईज ऑफ पॉलिटिक्स से कैसे करें इंकार!

यकीन न हो तो गृहराज्य मंत्री किशन रेड्डी  से पूछ लो। अखबारों में लिख-लिखकर बता रहे हैं कि दिल्ली का ताज सीएम से छीनकर लाट-गवर्नर के सिर पर रखना, डुइंग पॉलिटिक्स की आसानी के लिए किया गया है। पहले बड़ा भारी कन्फ्यूजन था। दिल्ली सरकार क्या कर सकती है, शाह साहब की एलजी सरकार क्या नहीं कर सकती है; दिल्ली सरकार क्या नहीं कर सकती है, एलजी सरकार क्या कर सकती है, वगैरह, वगैरह। अब सब साफ है। हुई है वही जो मोशा रचि राखा, फिर खामखां में बहस को लंबा क्यों खींचना। फिर जो ईज ऑफ डुइंग पॉलिटिक्स का मामला है, वह राजनीतिक रिश्तों में स्वच्छता का भी तो मामला है। अब स्वच्छता की तुक, स्वेच्छाचार से जोडने की गलती कोई नहीं करे।

और डेमोक्रेसी-वेमोक्रेसी के नाम पर बौद्धिक-आतंकवादी/ वाममार्गी भरमाने की कितनी ही कोशिश क्यों न करें, मोदी जी का न्यू इंडिया बिल्कुल क्लिअर है कि ईज ऑफ डुइंग पॉलिटिक्स तो पूरे देश पर दिल्ली के एकछत्र राज में ही है। एकछत्र राज माने ऊपर से नीचे तक, हर जगह एक और उसी इंजन की सरकार। दूसरी कोई भी सरकार होती है, तो ईज की जगह, मुश्किलें आती हैं।

बेशक, मुश्किलें कम भी करने के रास्ते हैं। पर ये रास्ते भी क्या कम मुश्किल हैं? पहले हर जगह चुनाव लड़ो। फिर चुनाव जीतो न जीतो, अपनी सरकार बनवाओ। दूसरी पार्टियां तुड़वाओ, बंदे खरीदवाओ, पर अपनी सरकार बनाओ। या फिर अपनी सरकार नहीं बनवायी जाए, तो पहली फुर्सत में दूसरों की सरकार गिराओ और जब तक वह नहीं हो जाए, तब तक दूसरी सरकारों के मन में ईडी से लेकर सीबीआई-एनआईए तक के सहारे अपना डर बैठाओ। वह भी काम नहीं करे तो छोटी सरकार का टंटा ही मुकाओ, जैसा पहले जम्मू-कश्मीर में और अब दिल्ली में किया है।

पॉलिटिक्स की डुइंग की आसानी के लिए, नीचे की सरकार-वरकार का टंटा ही काटना ही सबसे बेहतर है। न बनाने-बिगाडऩे का झंझट और न अधिकारों की खींचातानी। पूछने-बताने की खिचखिच भी नहीं। जब नीचे की सरकारों का टंटा काटने में ही पॉलिटिक्स करने की आसानी है, तो सीधे टंटा ही काटते हैं ना, इतने घुमाकर कान पकडऩे की क्या जरूरत है? एक विधान, एक निशान, एक नोट, एक भाषा, एक धर्म, एक संस्कृति से लेकर, एक टैक्स तक सब एक हो ही लिया है, तो एक सरकार भी क्यों नहीं!

हां? एक चुनाव का मामला जरा सा डिफरेंट है। बेशक, जब बाकी हर चीज के एक होने में ही आसानी है, तो चुनाव में भी आसानी तो एक होने में ही होगी। यानी अगर चुनाव होना ही हो, तो बेशक एक ही हो। वैसे भी जब नीचे की सरकारों का झंझट खत्म हो जाएगा, तो चुनाव तो खुद ब खुद एक ही रह जाएगा। पर क्या चुनाव वाकई इतना ही जरूरी है।

माना कि चुनाव कुछ इतना ज्यादा फैशन में है कि उसके बिना दुनिया बुरा माने या न माने पर, डेमोक्रेसी मानकर हर्गिज नहीं देगी। पर मोदी जी का न्यू इंडिया ऐेसे विदेशी फैशनों के पीछे क्यों भागने लगा। भागना ही होगा तो राम राज्य के देसी फैशन के पीछे भागेगा, अब आत्मनिर्भर जो है। और विदेशी फैशन के पीछे तब तो एक मिनट भी नहीं भागेगा, जब डुइंग पॉलिटिक्स की आसानी का तकाजा कुछ और ही है? डुइंग पॉलिटिक्स की आसानी मांगे डाइरेक्ट राज--इधर राजा, उधर प्रजा। बीच में बाकी किसी की भी क्या जरूरत है? कानून, संविधान, नागरिक, अदालत, यूनिवर्सिटी, संसद, वगैरह, किसी की भी क्या जरूरत है? जो हो डाइरेक्ट हो। राजा राज करे। दरबारी, महाराज की जय-जयकार करें। प्रजाजन, राजाज्ञा का पालन करे! सब कितना साफ, सुव्यवस्थित और आसान होगा; नहीं क्या! डेमोक्रेसी-वेमोक्रेसी का क्या है, पॉलिटिक्स डुइंग की असानी बड़ी चीज है!

(इस व्यंग्य आलेख के लेखक वरिष्ठ पत्रकार और लोकलहर के संपादक हैं।)

sarcasm
democracy
business
politics
BJP
Modi government
Satire
Political satire

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    लंबे संघर्ष के बाद आंगनवाड़ी कार्यकर्ता व सहायक को मिला ग्रेच्युटी का हक़, यूनियन ने बताया ऐतिहासिक निर्णय
    26 Apr 2022
    न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति अभय एस. ओका की पीठ ने कहा कि आंगनवाड़ी केंद्र भी वैधानिक कर्तव्यों का पालन करते हैं तथा वे सरकार की विस्तारित इकाई बन गए हैं। पीठ ने कहा कि 1972 (ग्रेच्युटी का…
  • नाइश हसन
    हलाल बनाम झटका: आख़िर झटका गोश्त के इतने दीवाने कहां से आए?
    26 Apr 2022
    यह बहस किसी वैज्ञानिक प्रमाणिकता को लेकर कतई नहीं है। बहस का केन्द्र हिंदुओं की गोलबंदी करना है।
  • भाषा
    मस्क की बोली पर ट्विटर के सहमत होने के बाद अब आगे क्या होगा?
    26 Apr 2022
    अरबपति कारोबारी और टेस्ला के सीईओ एलन मस्क की लगभग 44 अरब डॉलर की अधिग्रहण बोली को ट्विटर के बोर्ड ने मंजूरी दे दी है। यह सौदा इस साल पूरा होने की उम्मीद है, लेकिन इसके लिए अभी शेयरधारकों और अमेरिकी…
  • भाषा
    कहिए कि ‘धर्म संसद’ में कोई अप्रिय बयान नहीं दिया जाएगा : न्यायालय ने उत्तराखंड के मुख्य सचिव से कहा
    26 Apr 2022
    पीठ ने कहा, “हम उत्तराखंड के मुख्य सचिव को उपरोक्त आश्वासन सार्वजनिक रूप से कहने और सुधारात्मक उपायों से अवगत कराने का निर्देश देते हैं।
  • काशिफ काकवी
    मध्य प्रदेश : मुस्लिम साथी के घर और दुकानों को प्रशासन द्वारा ध्वस्त किए जाने के बाद अंतर्धार्मिक जोड़े को हाईकोर्ट ने उपलब्ध कराई सुरक्षा
    26 Apr 2022
    पिछले तीन महीनों में यह चौथा केस है, जहां कोर्ट ने अंतर्धार्मिक जोड़ों को सुरक्षा उपलब्ध कराई है, यह वह जोड़े हैं, जिन्होंने घर से भाग कर शादी की थी।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License