NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
व्यंग्य
भारत
राजनीति
कटाक्ष: सांप्रदायिकता का विकास क्या विकास नहीं है!
वो नेहरू-गांधियों वाला पुराना इंडिया था, जिसमें सांप्रदायिकता को तरक्की का और खासतौर पर आधुनिक उद्योग-धंधों की तरक्की का, दुश्मन माना जाता था। पर अब और नहीं। नये इंडिया में ऐसे अंधविश्वास नहीं चलते।
राजेंद्र शर्मा
04 Apr 2022
cartoon
प्रतीकात्मक तस्वीर। कार्टून यूसुफ़ मुन्ना। साभार

किरण शॉ मजूमदार की ये बात बिल्कुल ही गलत है। गलत क्या, एकदम एंटीनेशनल है। कह रही हैं कि कर्नाटक में भगवा राज में जिस रफ्तार से सांप्रदायिकता को बढ़ाने का खेल चल रहा है, उसे फौरन रोका नहीं गया तो, राज्य में आधुनिक उद्योगों के विकास को भारी झटका लग सकता है! राज्य से सूचना प्रौद्योगिकी वगैरह आधुनिक उद्योगों का पलायन शुरू हो सकता है। एंवें ही…!

हम पूछते हैं सुश्री शॉ के इस दावे का आधार क्या है? माना कि सुश्री शॉ एक औरत होते हुए भी, एक  बहुत बड़ी आधुनिक कंपनी की सर्वेसर्वा हैं। इसके लिए मोदी जी का नया इंडिया उनका काफी सम्मान भी करता है। लेकिन, इसका मतलब यह थोड़े ही है कि उनकी हरेक बात सच मान ली जाएगी। आधुनिक उद्योगों-धंधों के बारे में हो तब भी नहीं। किसी ठोस प्रमाण के बिना तो हर्गिज नहीं।

वो नेहरू-गांधियों वाला पुराना इंडिया था, जिसमें सांप्रदायिकता को तरक्की का और खासतौर पर आधुनिक उद्योग-धंधों की तरक्की का, दुश्मन माना जाता था। देश बस यह मान कर चलता चला जाता था कि सांप्रदायिकता बढ़ी, तो तरक्की घटी। पर अब और नहीं। नये इंडिया में ऐसे अंधविश्वास नहीं चलते। नया इंडिया हर चीज के लिए प्रमाण मांगता है।

किरण शॉ के पास या उनकी हां में हां मिलाने वाले दूसरे बहुत से लोगों में से किसी के पास भी इसका साक्ष्य हो तो दिखाएं कि सांप्रदायिकता बढऩे से तरक्की घटती है। वर्ना अपने काम से काम रखें, अपनी कंपनी चलाएं और ज्यादा से ज्यादा पैसे बनाएं। नये इंडिया को बदनाम करना बंद करें। वर्ना ईडी, आयकर विभाग वगैरह ने भी, अपने हाथों में कोई चूडिय़ां नहीं पहन रखी हैं!

पर सेकुलर-सेकुलर का जाप करने वाले इन लोगों के पास कोई साक्ष्य हो तब न दिखाएंगे कि सांप्रदायिकता की तरक्की होती है, तो देश की तरक्की घट जाती है। ये तो खामखां में इस तरह का अंधविश्वास फैलाने में लगे हुए हैं। सामने से मोदी जी का विरोध कर नहीं सकते हैं, सो यह अफवाह फैलाने का सहारा ले रहे हैं कि सांप्रदायिकता बढऩे से तरक्की घट जाएगी। यह घुमा-फिराकर मोदी के सब का साथ, सब का विकास को ही गलत बताने की कोशिश है। आखिरकार, इस तरह से यही तो जताने की कोशिश की जा रही है कि सांप्रदायिकता और देश का विकास, साथ-साथ नहीं हो सकता। मोदी जी करें तब भी नहीं! पर पूछो कि साक्ष्य क्या है तो बगलें झांकने लगेंगे। सच पूछिए तो इनके अंधविश्वासीपन पर तरस आता है।

शॉ साहिबा तो खुद कह रही हैं कि सांप्रदायिकता यूं ही बढ़ती रही तो, तरक्की को झटका लग सकता है? यानी कोई झटका-वटका कम से कम अब तक तो लगा नहीं है। इन्हें भी सिर्फ आशंका है, आगे झटका लगने की। लेकिन, हिजाब से लेकर, मेलों में/ मंदिरों के गिर्द मुसलमानों की दुकानें हटवाने से लेकर हलाल तक, सांप्रदायिकता का तो खूब ही विकास हो रहा है। तरक्की पर अब तक भी इसका असर नहीं पड़ा तो आगे क्या ही असर पड़ेगा! ये बिचारे सेकुलरवादी ‘वेटिंग फॉर गोदों’ वाली मुद्रा में तरक्की पर बुरा असर पडऩे की प्रतीक्षा ही करते रह जाएंगे और मोदी जी सांप्रदायिकता और देश, दोनों का साथ-साथ विकास कर ले जाएंगे।

सच पूछिए तो अब तक के सारे साक्ष्य तो सांप्रदायिकता और आधुनिक उद्योग, दोनों का साथ-साथ विकास करने में मोदी जी की कामयाबी के ही हैं। अमित मालवीय जी झूठ थोड़े ही कहेंगे। आखिर, मोदी जी की पार्टी के साइबर प्रचार के मुखिया हैं। उन्होंने बिना कोई वक्त गंवाए, किरण शॉ को भारत के कारर्पोरेट जगत के सच का आईना दिखा दिया। 2002 के गुजरात के सांप्रदायिक खून-खराबे के बाद भी तो सेकुलरवालों ने यही कहा था--इससे गुजरात नये-उद्योगों की प्रगति में पिछड़ सकता है। लेकिन, हुआ क्या? उससे ठीक उल्टा हुआ। न सिर्फ गुजरात, मोटर वगैरह बनाने के उद्योगों में देश के दूसरे कई राज्यों से आगे निकल गया, गुजरात का सीएम तो इतना आगे निकला कि पीएम की रेस में देश भर में सबसे आगे निकल गया। सबसे बड़े कारपोरेट खुद गुजरातियों से मांग कर ले गए कि पूरे देश की तरक्की कराने के लिए, ऐसा ही पीएम चाहिए। उसके बाद से अडानी-अंबानी के देश की तरक्की ने थमने का नाम नहीं लिया है। उल्टे मोदी जी ने देश और सांप्रदायिकता के साथ-साथ विकास से आगे, सब का साथ को और बढ़ा दिया है और अपनी पार्टी के खजाने का भी अभूतपूर्व विकास करा दिया है। चुनावी बांडों की बारिश, कब की बाढ़ बन चुकी है।

अब सोचने वाली बात है कि कर्नाटक में सीएम की बड़ी कुर्सी पर बैठे छोटे बोम्मई साहब, अपनी पार्टी के यशस्वी पीएम के दिखाए गुजरात वाले रास्ते पर चलेंगे या किरण शॉ टाइप की सुनेंगे, जिनके कमजोर दिल सांप्रदायिकता का शोर सुनते ही घबराहट में कुछ ज्यादा ही जोर-जोर से धडक़ने लगते हैं। वैसे तो मोदी जी के नये इंडिया में ऐसे कमजोर दिल वालों की कोई खास जरूरत नहीं है। निकल ले जिसे डर लगता हो, मोदी जी के नये इंडिया में तो सांप्रदायिकता और देश, दोनों का विकास यूं ही साथ-साथ होगा। बस जरा सी यही एक प्राब्लम है कि ऐसे कमजोर दिल वाले, दुनिया में नये इंडिया की छवि ज्यादा खराब न कर दें। देश में कोई प्राब्लम नहीं है। उल्टे गुजरात से लेकर अब तक, देश में तो सांप्रदायिता और तरक्की का यह साथ ही पब्लिक का वोट भी दिला रहा है और कारपोरेटों के नोट भी। वैसे बाकी दुनिया में भी न तो कारपोरेटों के मन में ज्यादा दुविधा है और न अमरीका-वमरीका के मन में। उन्हें जब हिटलर से दिक्कत नहीं हुई तब...। बस, बाहर की पब्लिक को ही सांप्रदायिकता और तरक्की का यह साथ पसंद नहीं है, वह भी एनआरआई भाई-बहनों को छोडक़र। पर इतना तो उन बाहर वालों के लिए भी काफी होना चाहिए कि यहां सांप्रदायिकता तो है ही कहां? हिजाब पर रोक, मुस्लिम बहनों की मुक्ति का मामला है। मुस्लिम दुकानदारों पर रोक, हिंदू धार्मिक परंपराओं का मामला है। और हलाल—वह तो खाने-पीने की चीजों में धार्मिक रोक-टोक खत्म कराने का मामला है। हम तो इतने सेकुलर हैं कि मांस नहीं भी खाएं, तब भी झटके के मांस के लिए मुसलमान कसाइयों से भिड़ सकते हैं।

(इस व्यंग्य स्तंभ के लेखक वरिष्ठ पत्रकार और लोकलहर के संपादक हैं।)

sarcasm
Satire
Political satire
Communalism
communal politics
Communal Hate
new india
Narendra modi
Modi government

Related Stories

तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

कटाक्ष:  …गोडसे जी का नंबर कब आएगा!

तिरछी नज़र: ये कहां आ गए हम! यूं ही सिर फिराते फिराते

तिरछी नज़र: 2047 की बात है

कटाक्ष: महंगाई, बेकारी भुलाओ, मस्जिद से मंदिर निकलवाओ! 

ताजमहल किसे चाहिए— ऐ नफ़रत तू ज़िंदाबाद!

तिरछी नज़र: ...ओह माई गॉड!

कटाक्ष: एक निशान, अलग-अलग विधान, फिर भी नया इंडिया महान!

तिरछी नज़र: हम सहनशील तो हैं, पर इतने भी नहीं


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ः 60 दिनों से हड़ताल कर रहे 15 हज़ार मनरेगा कर्मी इस्तीफ़ा देने को तैयार
    03 Jun 2022
    मनरेगा महासंघ के बैनर तले क़रीब 15 हज़ार मनरेगा कर्मी पिछले 60 दिनों से हड़ताल कर रहे हैं फिर भी सरकार उनकी मांग को सुन नहीं रही है।
  • ऋचा चिंतन
    वृद्धावस्था पेंशन: राशि में ठहराव की स्थिति एवं लैंगिक आधार पर भेद
    03 Jun 2022
    2007 से केंद्र सरकार की ओर से बुजुर्गों को प्रतिदिन के हिसाब से मात्र 7 रूपये से लेकर 16 रूपये दिए जा रहे हैं।
  • भाषा
    मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने चंपावत उपचुनाव में दर्ज की रिकार्ड जीत
    03 Jun 2022
    चंपावत जिला निर्वाचन कार्यालय से मिली जानकारी के अनुसार, मुख्यमंत्री को 13 चक्रों में हुई मतगणना में कुल 57,268 मत मिले और उनके खिलाफ चुनाव लड़ने वाल़ कांग्रेस समेत सभी प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो…
  • अखिलेश अखिल
    मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 
    03 Jun 2022
    बिहार सरकार की ओर से जाति आधारित जनगणना के एलान के बाद अब भाजपा भले बैकफुट पर दिख रही हो, लेकिन नीतीश का ये एलान उसकी कमंडल राजनीति पर लगाम का डर भी दर्शा रही है।
  • लाल बहादुर सिंह
    गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया
    03 Jun 2022
    मोदी सरकार पिछले 8 साल से भारतीय राज और समाज में जिन बड़े और ख़तरनाक बदलावों के रास्ते पर चल रही है, उसके आईने में ही NEP-2020 की बड़ी बड़ी घोषणाओं के पीछे छुपे सच को decode किया जाना चाहिए।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License