NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
मोदी जी और सत्याग्रह: या-रब न वो समझे हैं न समझेंगे होली का त्योहार!
मोदी जी ने ज़रा सा बांग्लादेश की आज़ादी की पचासवीं सालगिरह के ईवेंट में तरंग में आकर, बांग्लादेश की आज़ादी की लड़ाई में अपने सत्याग्रह और जेल यात्रा का किस्सा क्या सुना दिया, भाई लोग ले उड़े…।
राजेंद्र शर्मा
28 Mar 2021
मोदी जी और सत्याग्रह: या-रब न वो समझे हैं न समझेंगे होली का त्योहार!
कार्टून साभार : सतीश आचार्य

हम अपने मुंह से एंटीनेशनलता भले ही नहीं कहें, पर ये एंटी-भारतीय संस्कृति जरूर है। और भारतीय संस्कृति में भी किसी छोटी-मोटी चीज के एंटी नहीं। यह तो एंटी होली है यानी भारतीय संस्कृति के आधारस्तंभ के ही खिलाफ। मोदी जी ने जरा सा बांग्लादेश की आज़ादी की पचासवीं सालगिरह के ईवेंट में तरंग में आकर, बांग्लादेश की आज़ादी की लड़ाई में अपने सत्याग्रह और जेल यात्रा का किस्सा क्या सुना दिया, भाई लोग ले उड़े। न मौका देखा न माहौल और तो और इसका भी ख्याल नहीं किया कि पीएम जी अभी देश के बाहर हैं, बस सवाल पर सवाल दागने लगे कि कौन सा सत्याग्रह, कहां की जेल? हद्द तो यह कि जो पहले ‘संदिग्धों’ को बचाने के लिए ‘हम कागज नहीं दिखाएंगे’ के नारे लगाते थे, अब सौ टंच ‘ प्रामाणिक’ पीएम जी की जेलयात्रा के कागज देखने की जिद पकड़े हुए हैं। पहले बेचारों की वैवाहिक स्थिति के कागज मांगते थे। फिर डिग्री के कागज मांगने लगे। और अब जेल यात्रा के कागज! यानी कागज नहीं तो बांग्लादेश की मुक्ति में मोदी जी का योगदान ही नहीं! हलुआ समझ रखा है क्या? यह खांटी भारतीय पीएम की छवि का मामला है, किन्हीं ऐरों-गैरों की नागरिकता का नहीं। हद्द तो यह है कि आइटी सेल ने पीएम जी की तरफ से उनकी एक पुरानी किताब के कागज दिखाए भी तो, भाई लोगों ने उन कागजों को भी खारिज कर दिया। कहते हैं कि काम का कागज लाओ! इमरजेंसी पर किताब में, बांग्लादेश की मुक्ति के लिए सत्याग्रह और जेल का जिक्र तो मोदी जी भी नहीं कर सकते थे।

आप पूछेंगे इसमें एंटी-होली क्या है? क्या नहीं, पूरा का पूरा मामला ही एंटी-होली है। होली की परंपरा और संस्कृति को जानने वाला कोई शख्स, होली के मौसम में कही गयी किसी भी बात के प्रमाण में कागज मांगने की बात सोच भी कैसे सकता है! जब होली में किसी बात का बुरा मानना तक संस्कृतिविरोधी है, तो इन कागज मांगने वालों को हम क्या कहें! मूर्खराज! और हमारी होली संस्कृति को जानने वाला कोई भी कम से कम यह दलील तो दे ही नहीं सकता है कि होली में चार दिन बाकी थे, जब पीएम जी ने खुद को बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम का योद्धा डिक्लेअर किया था। होली क्या महज एक दिन का खेला है कि सुबह शुरू और शाम को खत्म। होली हवाओं में होती है और हवाओं पर आप घंटों या दिनों की कैद नहीं लगा सकते हैं। मौसम की कैद की बात जरूर मानी जा सकती है। खैर! किस्सा कोताह ये कि जो भारतीय संस्कृति से करे प्यार, कम से कम फागुन के महीने में जो कुछ भी हो, उसे होली की मौज के खाते में खतियाने से कैसे करेगा इंकार? और फगुआई हवा तो बांग्लादेश में भी चलती होगी कि नहीं? आखिरकार, वह तो अखंड भारत में आता है। पीएम जी जरा मौज में आ गए और बांग्लादेश की स्वतंत्रता के सेनानियों में अपना नाम लिख दिया, तो क्या गुनाह हो गया। इंडिया के न सही, पुराने इंडिया के एक हिस्से के सही, स्वतंत्रता सेनानी तो बने! बांग्लादेश वाले कोई सम्मान-वम्मान दे दें तब भी ठीक है, वर्ना होली तो है ही। अब कोई इसे शिवजी की बूटी जैसे किसी पवित्र नशे से जोडऩे की कोशिश नहीं करे। फागुन की बयार का तो अपना ही नशा होता है। हमारी तो संस्कृति में ही आत्मनिर्भरता है।

खैर! इंडिया की आजादी की लड़ाई से याद आया कि उसमें होली के बिना ही बड़ा लोचा हो गया लगता है। कुछ-कुछ मंटो की मारक कहानी, ‘मिस्टेक’ जैसा मामला लगता है। इंडिया वालों ने दसियों साल, मारा-मारी से लेकर सत्याग्रह तक, न जाने क्या-क्या कर के अंगरेजों को बाहर निकलवाया। समझते  थे कि अंगरेजों को बाहर निकाल देंगे, तो आज़ाद हो जाएंगे। और तो और 15 अगस्त 1947 को अपनी आज़ादी का एलान भी कर दिया। यहां तक कि अगले साल, स्वतंत्रता का अमृतवर्ष मनाने की भी तैयारियां शुरू कर दी हैं। पर अब पता चल रहा है कि हमसे तो भारी मिस्टेक हो गयी। उत्तराखंड वाले तीरथ सिंह जी ने, जीन्स से झांकते घुटनों के चिंतन से वक्त निकलाकर, शोध कर के बताया तो हमें पता चला कि हम तो गोरे रंग के चक्कर में, राम को ही श्याम समझ बैठे। हम पर दो सौ साल राज किया था अमरीकियों ने और हमने बेचारे अंगरेजों को लड़-लडक़र बाहर निकाल दिया। लड़ाई तो खूब रही, पर ऐसी लक्ष्य से भटकी हुई लड़ाई से आज़ादी कैसे मिलती? अमरीकियों का राज तो फिर भी बना ही रहा! शुक्र है कि बेचारे संघ वालों ने शुरू में ही भांप लिया था कि जरूर, इसमें राम-श्याम का चक्कर है, सो आज़ादी की लड़ाई के चक्कर में ही नहीं फंसे। पर देश ने तो उनकी नहीं सुनी। उल्टे, गलती से बेचारे अंगरेजों को वापस भेजने के बाद, भाई लोगों के आज़ादी-आज़ादी का इतना शोर मचाया कि मोदी जी को आज़ादी के शब्द से ही नफ़रत सी हो गयी। अब आज़ादी का शब्द सुनते ही, उनका बंदे/ बंदी को सीधे यूएपीए में बंद करने का मन करता है। वैसे अमरीकी कहीं यह सोच कर नाराज नहीं हो जाएं कि अब इंडिया वाले उनके खिलाफ भी स्वतंत्रता की लड़ाई चलाएंगे, तीरथ सिंह ने बाद में ‘बुरा न मानो होली है’ का बैनर भी टांग दिया है। यानी फागुन के पूरे महीने कहा-किया सब कैंसल। फटी जीन्स के झांकते घुटनों से लेकर, ज्यादा बच्चे पैदा न करने के बाद, कम राशन पर पछतावा तक। और भी बहुतों का बहुत कुछ। बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम में पीएम जी का योगदान भी।

पर एक बात समझ में नहीं आयी। देश भर में किसान और बिहार में विपक्ष वाले, कानूनों के कागज जलाकर, खुद को एंटी-संस्कृति साबित करने पर क्यों तुले हैं? कम से कम होली के महीने में तो, सरकार जो करती है या नहीं करती है, उसे करने दें--बुरा नहीं मानें होली है! 

(इस व्यंग्य आलेख के लेखक वरिष्ठ पत्रकार और लोकलहर के संपादक हैं।)

Satire
Political satire
Narendra modi
Bangalore
Bangladesh's freedom struggle

Related Stories

तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

भारत के निर्यात प्रतिबंध को लेकर चल रही राजनीति

गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !

PM की इतनी बेअदबी क्यों कर रहे हैं CM? आख़िर कौन है ज़िम्मेदार?

छात्र संसद: "नई शिक्षा नीति आधुनिक युग में एकलव्य बनाने वाला दस्तावेज़"

भाजपा के लिए सिर्फ़ वोट बैंक है मुसलमान?... संसद भेजने से करती है परहेज़

हिमाचल में हाती समूह को आदिवासी समूह घोषित करने की तैयारी, क्या हैं इसके नुक़सान? 


बाकी खबरें

  • एम. के. भद्रकुमार
    डोनबास में हार के बाद अमेरिकी कहानी ज़िंदा नहीं रहेगी 
    26 Apr 2022
    ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने शुक्रवार को नई दिल्ली में अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस को बेहद अहम बताया है।
  • दमयन्ती धर
    गुजरात : विधायक जिग्नेश मेवानी की गिरफ़्तारी का पूरे राज्य में विरोध
    26 Apr 2022
    2016 में ऊना की घटना का विरोध करने के लिए गुजरात के दलित सड़क पर आ गए थे। ऐसा ही कुछ इस बार हो सकता है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    पिछले 5 साल में भारत में 2 करोड़ महिलाएं नौकरियों से हुईं अलग- रिपोर्ट
    26 Apr 2022
    क़ानूनी कामकाजी उम्र के 50% से भी अधिक भारतवासी मनमाफिक रोजगार के अभाव के चलते नौकरी नहीं करना चाहते हैं: सीएमआईई 
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए राज्य सरकारें अलर्ट 
    26 Apr 2022
    देश में पिछले 24 घंटों में कोरोना के 2,483 नए मामले सामने आए हैं। देश में अब कोरोना संक्रमण के मामलों की संख्या बढ़कर 4 करोड़ 30 लाख 62 हज़ार 569 हो गयी है।
  • श्रिया सिंह
    कौन हैं गोटाबाया राजपक्षे, जिसने पूरे श्रीलंका को सड़क पर उतरने को मजबूर कर दिया है
    26 Apr 2022
    सैनिक से नेता बने गोटाबाया राजपक्षे की मौजूदा सरकार इसलिए ज़बरदस्त आलोचना की ज़द में है, क्योंकि देश का आर्थिक संकट अब मानवीय संकट का रूप लेने लगा है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License