NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
देखिए मोदी जी, सुनिए भागवत जी : हम औरतें; सेना से लेकर शाहीन बाग़ तक
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को निर्देश दिए कि वे तीन महीने के भीतर उन महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन दें, जो इसकी हकदार हैं। अदालत ने कहा कि कमांड पदों पर महिला अधिकारियों को पूरी तरह प्रतिबंधित करना अतार्किक है। इसके साथ ही कमांड पदों पर महिलाओं की नियुक्ति का रास्ता तैयार हो गया है।
वर्षा सिंह
17 Feb 2020
Women in Army
Image courtesy: Social Media

सौ हाथ हमें रोकने की कोशिश में फैले हुए, हम अपनी ज़िद से एक और कदम आगे बढ़े। आज हमारे लिए एक बड़ी जीत का दिन है। देश की सर्वोच्च अदालत ने आज माना कि हम सेना में कमांड देने वाले पदों की ज़िम्मेदारी बखूबी निभा सकती हैं। जबकि हमारी केंद्र की सरकार ने अदालत में दलील दी थी कि सेना के जवान महिला अधिकारियों से आदेश लेने में सहज नहीं हैं। देश के आइकॉन बन गए पायलट अभिनंदन जब पाकिस्तान के एफ-16 लड़ाकू विमान को गिराने के लिए आकाश में गोते लगा रहे थे, महिला फ्लाइट कंट्रोलर मिनती अग्रवाल उन्हें दिशा-निर्देश दे रही थीं। मिनती को इसके लिए युद्ध सेवा मेडल दिया गया है। 2010 में काबुल में भारतीय दूतावास पर आतंकी हमले के दौरान लेफ्टिनेंट कर्नल मिताली मधुमिता को उनकी बहादुरी के लिए सेना मेडल से सम्मानित किया गया। ये कुछ उदाहरण अदालत के सामने रखे गए ये बताने के लिए कमांडिंग पोजिशन की ज़िम्मेदारी निभाने में महिलाएं पूरी तरह सक्षम हैं।  

सेना में लैंगिक भेदभाव के लिहाज से सुप्रीम कोर्ट का आज का फ़ैसला बेहद अहम है। अदालत ने केंद्र को निर्देश दिए कि वे तीन महीने के भीतर उन महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन दें, जो इसकी हकदार हैं। अदालत ने कहा कि कमांड पदों पर महिला अधिकारियों को पूरी तरह प्रतिबंधित करना अतार्किक है। इसके साथ ही कमांड पदों पर महिलाओं की नियुक्ति का रास्ता तैयार हो गया है। वर्ष 2010 में दिल्ली हाईकोर्ट ने भी सेना में महिलाओं को स्थायी कमीशन देने के आदेश दिए थे। इसके बावजूद कई महिलाओं को 14 वर्ष काम करने के बावजूद स्थायी कमीशन नहीं दिया गया। स्थायी कमीशन का मतलब 6 साल का सेवा विस्तार और स्थायी कमीशन वाले अधिकारियों के समान वेतन, पेंशन और अन्य सुविधाएं।

‘हमारी’ सरकार कहती है कि स्त्रियों की शारीरिक स्थिति और पारिवारिक दायित्व के चलते वे कमांड देने में सक्षम नहीं है। ‘हमारी’ को मैं इनवर्टेड कोट्स में डालते हुए केंद्र से पूछती हूं कि क्या ये महिलाओं के हितों की रक्षा करने वाली सरकार नहीं है। ये सवाल महिलाओं से भी है कि जब आप अपने वोट का इस्तेमाल करें तो ये भी देखें कि क्या आपके क्षेत्र का कैंडिडेट महिला हितों की बात करता है। पारिवारिक दायित्व निभाने के बाद जो महिला देश-समाज का दायित्व निभाती है उसे अधिक सम्मान दिया जाना चाहिए, साथ ही ये उसकी अधिक क्षमता को दर्शाता है लेकिन भाजपा सरकार को ये दायित्व महिलाओं की कमज़ोरी लगते हैं।

सोशल मीडिया पर एक तस्वीर बहुत साझा की जाती है, इसमें रेस के मैदान में स्त्री-पुरुष दोनों दौड़ शुरू करने की पोजिशन में हैं। बस एक सीटी बजने का इंतज़ार है। मैदान में महिलाओं के आगे ज़िम्मेदारियां जैसे रसोई संभालना, बच्चों को संभालना, घर की साफ-सफाई करना, घर के बुजुर्गों की देभाल करना जैसी बाधाएं लगा दी हैं, जिन्हें कूद कर उन्हें रेस पूरी करनी है और पुरुषों के सामने खाली मैदान है। इन जिम्मेदारियों को पूरा करने के बाद जो महिला रेस में आगे निकल जाती है, उसके भागते पांवों को रोकने के लिए आप शारीरिक कमज़ोरियों के तर्क अदालत में देते हैं। दरअसल ये सवाल सिर्फ मंशा का है। लैंगिक समानता के लिए हमारी ये दौड़ जारी है। जिसमें एक मुकदमा हमने आज जीत लिया है और आगे भी बहुत सारी जीत के लिए जान झोंक रहे हैं।

सोशल मीडिया पर साझा तस्वीर.jpeg

रविवार को आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने भी कमाल की बात कही। वह ऐसी बातें कई बार अलग-अलग मंचों से अलग-अलग तरीके से एक अरसे से कहते आ रहे हैं। उनके मुताबिक तलाक के मामले पढ़े-लिखे और धनी परिवारों में ज्यादा सामने आते हैं। भागवत कहते हैं कि देश में तलाक के मामले बढ़ रहे हैं, लोग छोटी-छोटी बातों पर तलाक ले रहे हैं। परिवार में संस्कार दिया जाता है और मातृशक्ति का काम संस्कार देना है। भागवत देश में हिंदू समाज की स्थापना करना चाहते हैं जिसमें महिलाएं घर की सारी ज़िम्मेदारी संभालें और उनके जैसे पुरुष देशभर में घूम-घूम कर ज्ञान बांट सकें।

तो भागवत नहीं चाहते कि महिलाएं पढ़ें, शिक्षित समाज का हिस्सा बनें, अपने लिए फ़ैसले करें और आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर बनें। आरएसएस प्रमुख को ये समझना चाहिए कि तलाक पारिवारिक मुश्किल नहीं, बल्कि पारिवारिक मुश्किलों का हल है। तलाक के मामले बढ़ने का मतलब है कि ‘अबला औरत तेरी यही कहानी, आंचल में दूध, आंखों में पानी’ वाली स्थिति बदल रही है। वो सबला बन रही है और वह सबला औरत को देख कर डरते हैं। दुर्गा और काली को पूजने वाला समाज अपने परिवार की बेटी और बहू को दुर्गा-काली के रूप में नहीं देखना चाहता।

अभी 8 मार्च को हम बड़े जश्न के साथ महिला सशक्तिकरण दिवस मनाएंगे। इंटरनेट पर वर्ल्ड इकोनॉमिक फ़ोरम की रिपोर्ट और महिलाओं की आर्थिक आत्म निर्भरता, शिक्षा, समान वेतन से जुड़े रिपोर्ट तलाशिये। हम अब भी उसी सूची में निचले पायदानों पर ही पाये जा रहे हैं। नोटबंदी, जीएसटी जैसे बड़े-बड़े सर्जिकल स्ट्राइक सरीखे बदलाव लाने वाली केंद्र की भाजपा सरकार महिला आरक्षण बिल को पास क्यों नहीं करती। इस बिल को पास कराने के लिए सरकार के पास पर्याप्त संख्याबल है। बस इच्छा नहीं है। यहां तो हमें युद्ध के मोर्चे पर नहीं जाना और युद्ध बंदी बनाए जाने का ख़ौफ़ नहीं। यहां सुप्रीम कोर्ट की बात ही सटीक बैठती है कि यदि मानसिकता में बदलाव किया जाए, इच्छाशक्ति हो, तो बहुत कुछ कर पाना संभव है।

दरअसल, हम भारत की महिलाएं कई मोर्चों पर एक साथ, एक ही समय में लड़ रही हैं। हम अभी शाहीन बाग में मौजूद हैं और संविधान के पन्ने पलट रही हैं। हम गार्गी कॉलेज में मौजूद थीं, जब वे बाहरी तत्व कैंपस में घुस आए थे। वे बाहरी तत्व देश के भीतर के ही नागरिक थे, उन्हें टटोलियो आधार कार्ड, राशन कार्ड सब मिल जाएगा। हम अपने घर के काम निपटा कर दफ्तर जाती हैं और वहां मिशन मंगल को सफल बनाने के प्रयास करती हैं, तब आरएसएस के शीर्ष मोहन भागवत कहते हैं कि हम ज्यादा पढ़-लिख गई हैं इसलिए परिवार टूट रहे हैं। आप हमें रोकने की कोशिश करते रहिए, हम पिंजड़े तोड़ कर उड़ते जाएंगे।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। लेख में व्यक्त विचार निजी हैं।)

Mohan Bhagwat
RSS
Narendra modi
Indian army
india air force
Women Leadership
Women in army

Related Stories

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

भारत के निर्यात प्रतिबंध को लेकर चल रही राजनीति

गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !

PM की इतनी बेअदबी क्यों कर रहे हैं CM? आख़िर कौन है ज़िम्मेदार?


बाकी खबरें

  • Asha Usha workers
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    मध्य प्रदेश : आशा ऊषा कार्यकर्ताओं के प्रदर्शन से पहले पुलिस ने किया यूनियन नेताओं को गिरफ़्तार
    07 Mar 2022
    मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने शिवराज सरकार की बढ़ती 'तानाशाही' की निंदा करते हुए कहा, "शिवराज सरकार मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय राजनितिक दल के कार्यालय में ही पुलिस को बिना आदेश ही नहीं घुसा रही है,…
  • Syrian refugees
    सोनाली कोल्हटकर
    क्यों हम सभी शरणार्थियों को यूक्रेनी शरणार्थियों की तरह नहीं मानते?
    07 Mar 2022
    अफ़ग़ानिस्तान, इराक़, सीरिया, सोमालिया, यमन और दूसरी जगह के शरणार्थियों के साथ यूरोप में नस्लीय भेदभाव और दुर्व्यवहार किया जाता रहा है। यूक्रेन का शरणार्थी संकट पश्चिम का दोहरा रवैया प्रदर्शित कर रहा…
  • air pollution
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    हवा में ज़हर घोल रहे लखनऊ के दस हॉटस्पॉट, रोकने के लिए प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने तैयार किया एक्शन प्लान
    07 Mar 2022
    वायु गुणवत्ता सूचकांक की बात करें तो उत्तर प्रदेश के ज्यादातर शहर अब भी प्रदूषण के मामले में शीर्ष स्थान पर हैं। इन शहरों में लखनऊ, कानपुर और गाजियाबाद जैसे बड़े शहर प्रमुख हैं।
  • Chaudhary Charan Singh University
    महेश कुमार
    मेरठ: चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के भर्ती विज्ञापन में आरक्षण का नहीं कोई ज़िक्र, राज्यपाल ने किया जवाब तलब
    07 Mar 2022
    मेरठ के चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय में सेल्फ फाइनेंस कोर्स के लिए सहायक शिक्षक और सहआचार्य के 72 पदों पर भर्ती के लिए एक विज्ञापन निकाला था। लेकिन विज्ञापित की गई इन भर्तियों में दलितों, पिछड़ों और…
  • shimla
    टिकेंदर सिंह पंवार
    गैर-स्टार्टर स्मार्ट सिटी में शहरों में शिमला कोई अपवाद नहीं है
    07 Mar 2022
    स्मार्ट सिटी परियोजनाएं एक बड़ी विफलता हैं, और यहां तक कि अब सरकार भी इसे महसूस करने लगी है। इसीलिए कभी खूब जोर-शोर से शुरू की गई इस योजना का नए केंद्रीय बजट में शायद ही कोई उल्लेख किया गया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License