NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
मज़दूर-किसान
भारत
राजनीति
श्रम कानूनों को कमज़ोर करने के ख़िलाफ़ सात राजनीतिक दलों ने राष्ट्रपति को पत्र लिखा
इस पत्र में कहा गया है कि कामगारों के साथ गुलामों की तरह व्यवहार किया जा रहा है ऐसे में श्रम कानून में बदलाव न केवल संविधान का उल्लंघन है बल्कि उसे निष्प्रभावी बनाना भी है।
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
09 May 2020
labours
फोटो साभार: अमर उजाला

दिल्ली: देश के सात राजनीतिक दलों ने सरकार पर श्रम कानूनों को कमजोर करने का आरोप लगाते हुए शुक्रवार को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पत्र लिखा और इस मुद्दे पर अपना विरोध दर्ज कराया। माकपा महासचिव सीताराम येचुरी, भाकपा महासचिव डी राजा, भाकपा (माले) महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य, ऑल इंडिया फारवर्ड ब्लॉक के महासचिव देबव्रत विश्वास, आरसपी के महासचिव मनोज भट्टाचार्य, राजद सांसद मनोज झा और वीसीके (तमिलनाडु का दल) के अध्यक्ष थोल तिरूवमवलवन ने इस पत्र पर हस्ताक्षर किये हैं।

क्या कहा गया है पत्र में?

इन नेताओं ने पत्र में कहा कि श्रम कानूनों को इस तरह से कमजोर करना संविधान का उल्लंघन है। साथ ही कामगारों के साथ गुलामों की तरह व्यवहार किया जा रहा है। ऐसे में श्रम कानूनों में बदलाव करना न केवल संविधान का उल्लंघन है बल्कि निष्प्रभावी बनाना भी है। पत्र में कहा गया है कि इन कानूनों के लागू होने के बाद भारत एक आधुनिक लोकतांत्रिक गणराज्य के बजाय मध्ययुगीन दासता की तरफ बढ़ रहा है।

गौरतलब है कि गुजरात, मध्य प्रदेश, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान और पंजाब ने फैक्ट्री अधिनियम में संशोधन किए बगैर काम के घंटे को आठ से बढ़ाकर 12 घंटे कर दिया है। पार्टियों ने अन्य राज्यों के भी इस राह पर आने की आशंका जताई है। इन्होंने कहा कि कोरोना वायरस महामारी के आने से पहले भारत की अर्थव्यवस्था मंदी की तरफ बढ़ रही थी।

उत्तर प्रदेश ने फैक्ट्री, बिजनेस, प्रतिष्ठान और उद्योगों को श्रम कानून के तीन प्रावधानों और एक अन्य कानून को छोड़कर सभी प्रावधानों से तीन साल के लिए छूट दे दी है। मध्य प्रदेश सरकार ने सभी प्रतिष्ठानों को सभी श्रम कानूनों से एक हजार दिवस के लिए सभी जवाबदेही से मुक्त कर दिया है।

इन राजनीतिक दलों ने अपने पत्र में यह भी कहा कि जिन्होंने अपनी आजीविक खोई है, सरकार ने उनकी मदद के लिए बहुत कम प्रयास किया है। जबसे लॉकडाउन की शुरुआत हुई है, 14 करोड़ लोग अपना रोजगार खो चुके हैं।

पत्र में कहा गया है कि स्वास्थ्य सुविधाओं को बढ़ाकर और हमारे डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों और लोगों की जरूरतों पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, यह महामारी, श्रम अधिकारों को कमजोर करने के लिए आपकी केंद्र और कुछ राज्यों की सरकारों का तर्क बन गई है।

पत्र में राष्ट्रपति से अपील की गई है कि इस मामले में हस्तक्षेप करें और मजदूरों को गुलाम बनाने वाले कानूनों पर रोक लगाएं।

मजदूर संगठनों ने भी जताया था विरोध

गौरतलब है कि श्रम कानूनों में बदलाव का विरोध सीटू समेत दूसरे मजदूर संगठन भी कर रहे हैं। उनका कहना है कि कंपनियां इसका इस्तेमाल अपने फायदे और मजदूरों का शोषण करने के लिए करेंगी।

आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और गुजरात जैसे राज्यों ने श्रम कानूनों में बड़े बदलाव की घोषणा की है। तो वहीं हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, राजस्थान जैसे राज्यों ने दैनिक कामकाज का समय 12 घंटे तक बढ़ाने की अधिसूचना जारी की है। बताया जा रहा है कि महाराष्ट्र व त्रिपुरा की सरकारें भी कथित तौर पर उसी दिशा में आगे बढ़ रही है।

आपको यह भी बता दें कि भारत के संविधान के तहत श्रम समवर्ती सूची (कन्करेंट लिस्ट) का विषय है, इसलिए राज्य को कानून बनाने से पहले केंद्र की मंजूरी लेनी पड़ती है। ऐसे में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की मंजूरी के बाद ही ये कानून बन पाएगा।

(समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ)

यह भी पढ़ें: कोरोना के बहाने मज़दूरों के अधिकार कुचलने की तैयारी, यूपी और एमपी में श्रम क़ानूनों में बदलाव

Seven political parties wrote letters
Labour Code
Workers and Labors
president ramnath kovind
Sitaram yechury
CPI
D.Raja
CPIML
CPIM
Labour Laws
Constitution of India
Letter to President

Related Stories

तमिलनाडु: छोटे बागानों के श्रमिकों को न्यूनतम मज़दूरी और कल्याणकारी योजनाओं से वंचित रखा जा रहा है

उनके बारे में सोचिये जो इस झुलसा देने वाली गर्मी में चारदीवारी के बाहर काम करने के लिए अभिशप्त हैं

पूर्वांचल में ट्रेड यूनियनों की राष्ट्रव्यापी हड़ताल के बीच सड़कों पर उतरे मज़दूर

देशव्यापी हड़ताल के पहले दिन दिल्ली-एनसीआर में दिखा व्यापक असर

UP Elections: जनता के मुद्दे भाजपा के एजेंडे से गायब: सुभाषिनी अली

उत्तराखंड चुनाव: भाजपा एक बार फिर मोदी लहर पर सवार, कांग्रेस को सत्ता विरोधी लहर से उम्मीद

ग्राउंड रिपोर्ट: देश की सबसे बड़ी कोयला मंडी में छोटी होती जा रही मज़दूरों की ज़िंदगी

बाघमारा कोल साइडिंग में छंटनी का विरोध कर रहे मज़दूरों पर प्रबंधन ने कराया लाठीचार्ज

मुश्किलों से जूझ रहे किसानों का भारत बंद आज

भारत में अभी भी क्यों जारी है बंधुआ मज़दूरी?


बाकी खबरें

  • संदीपन तालुकदार
    वैज्ञानिकों ने कहा- धरती के 44% हिस्से को बायोडायवर्सिटी और इकोसिस्टम के की सुरक्षा के लिए संरक्षण की आवश्यकता है
    04 Jun 2022
    यह अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया भर की सरकारें जैव विविधता संरक्षण के लिए अपने  लक्ष्य निर्धारित करना शुरू कर चुकी हैं, जो विशेषज्ञों को लगता है कि अगले दशक के लिए एजेंडा बनाएगा।
  • सोनिया यादव
    हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?
    04 Jun 2022
    17 साल की नाबालिग़ से कथित गैंगरेप का मामला हाई-प्रोफ़ाइल होने की वजह से प्रदेश में एक राजनीतिक विवाद का कारण बन गया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ : दो सूत्रीय मांगों को लेकर बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दिया
    04 Jun 2022
    राज्य में बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दे दिया है। दो दिन पहले इन कर्मियों के महासंघ की ओर से मांग न मानने पर सामूहिक इस्तीफ़े का ऐलान किया गया था।
  • bulldozer politics
    न्यूज़क्लिक टीम
    वे डरते हैं...तमाम गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज और बुलडोज़र के बावजूद!
    04 Jun 2022
    बुलडोज़र क्या है? सत्ता का यंत्र… ताक़त का नशा, जो कुचल देता है ग़रीबों के आशियाने... और यह कोई यह ऐरा-गैरा बुलडोज़र नहीं यह हिंदुत्व फ़ासीवादी बुलडोज़र है, इस्लामोफ़ोबिया के मंत्र से यह चलता है……
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: उनकी ‘शाखा’, उनके ‘पौधे’
    04 Jun 2022
    यूं तो आरएसएस पौधे नहीं ‘शाखा’ लगाता है, लेकिन उसके छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने एक करोड़ पौधे लगाने का ऐलान किया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License