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भारत
राजनीति
भगवा ओढ़ने को तैयार हैं शिवपाल यादव? मोदी, योगी को ट्विटर पर फॉलो करने के क्या हैं मायने?
ऐसा मालूम होता है कि शिवपाल यादव को अपनी राजनीतिक विरासत ख़तरे में दिख रही है। यही कारण है कि वो धीरे-धीरे ही सही लेकिन भाजपा की ओर नरम पड़ते नज़र आ रहे हैं। आने वाले वक़्त में वो सत्ता खेमे में जाते हैं तो भाजपा के संजीवनी हो सकते हैं।
रवि शंकर दुबे
04 Apr 2022
Shivpal Yadav and yogi

भाजपा सदस्यों को प्रतिशत के हिसाब से छान दिया जाए तो छलनी में महज़ 20 प्रतिशत ही ऐसे बचेंगे जो मूल रूप से भाजपा के होंगे, बाक़ी 80 प्रतिशत दूसरे दलों के, या यूं कहें कि दूसरी विचारधारा के। अर्थात भाजपा के भीतर दिखने वाली विचारधारा सिर्फ सत्ता पाने का रास्ता मात्र है। इसी रास्ते पर आगे बढ़ते हुए एक बार फिर भाजपा का निशाना अपनी विचारधारा से कोसों दूर उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े राजनीतिक घराने ‘’यादव परिवार’’ पर है। और इस बार टारगेट पर हैं दिग्गज शिवपाल यादव।

क्योंकि समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव और उनके चाचा शिवपाल यादव के बीच पिछले कुछ दिनों से चल रहे घटनाक्रम भाजपा को साफ दिखाई पड़ रहे हैं, जैसे:

  • विधानसभा चुनावों से पहले मुलायम सिंह यादव के कहने पर शिवपाल यादव अखिलेश यादव के साथ आए।
  • कुछ सीटों के लिए लगातार विनती के बावजूद सिर्फ एक छोड़ी।
  • चुनाव हारने के बाद नेता प्रतिपक्ष के लिए शिवपाल का नाम आगे हुआ लेकिन अखिलेश ने कमान संभाल ली।
  • विधायक दल की बैठक हुई जिसमें शिवपाल यादव ने बुलावा नहीं मिलने का दावा किया।

इन घटनाक्रमों को भाजपा ने लपक लिया और  कुछ ऐसा टिकड़म भिड़ाया शिवपाल यादव ने ट्वीटर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और दिनेश शर्मा को फॉलो कर सियासत को और ज्यादा तीखा बना दिया।

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प्रसपा अध्यक्ष शिवपाल यादव की सत्ता खेमें से बढ़ रही नज़दीकियों के बाद माना जा रहा है कि भाजपा नितिन अग्रवाल की तरह ही शिवपाल को विधानसभा उपाध्यक्ष बनाकर सपा के खिलाफ बड़ा रणनीतिक दांव चल सकती है।

चर्चा ये भी है कि जुलाई में राज्यसभा और विधानसभा परिषद की कई सीटें खाली हो रही हैं, ऐसे में शिवपाल यदि भाजपा में जाते हैं, तो उन्हें राज्यसभा में या विधानसभा परिषद में भेजा जा सकता है। यह भी पता चला है कि लखनऊ में पदाधिकारियों के साथ हुई बैठक में सभी से अगले कुछ दिनों तक इंतजार करने और संगठित रहने को कहा गया है।

शिवपाल यादव अगर भाजपा में आते हैं तो उन्हें समाजवादी पार्टी के खिलाफ आज़मगढ़ से उपचुनाव भी लड़ाया जा सकता है। यानी अभी जो शिवपाल सपा में सिर्फ विधायक हैं उन्हें भाजपा कई लोभ देकर अपने खेमें में शामिल कर सकती है।

बेटे का राजनीतिक भविष्य

तमाम कारणों में एक कारण जो बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है कि शिवपाल अब उम्र के इस पढ़ाव पर चाहते हैं कि उनके पास भी एक सुरक्षित घर हो और बेटे का राजनीतिक भविष्य भी संरक्षित हो सके। इस बार भी शिवपाल अपने बेटे आदित्य यादव को चुनाव लड़वाना चाहते थे, लेकिन अखिलेश ने इससे इनकार कर दिया। शिवपाल की भाजपा से नजदीकियों के पीछे भी यही अहम वजह मानी जा रही है।

उधर सोमवार सुबह शिवपाल यादव के एक ट्वीट ने अटकलों को और रफ्तार दे दी... इस ट्वीट में शिवपाल यादव ने रामायण की चौपाई के साथ भगवान राम को परिवार, संस्कार और राष्ट्र निर्माण की सर्वोत्तम पाठशाला बताया है। इस ट्वीट के बाद एक बार फिर से यह संकेत मिल रहे हैं कि शिवपाल यादव पर भगवा रंग चढ़ने लगा है।

शिवपाल यादव ने लिखा कि ‘’प्रातकाल उठि कै रघुनाथा। मातु पिता गुरु नावहिं माथा॥ आयसु मागि करहिं पुर काजा। देखि चरित हरषइ मन राजा॥ भगवान राम का चरित्र 'परिवार, संस्कार और राष्ट्र' निर्माण की सर्वोत्तम पाठशाला है। चैत्र नवरात्रि आस्था के साथ ही प्रभु राम के आदर्श से जुड़ने व उसे गुनने का भी क्षण है।‘’

प्रातकाल उठि कै रघुनाथा। मातु पिता गुरु नावहिं माथा॥ आयसु मागि करहिं पुर काजा। देखि चरित हरषइ मन राजा॥

भगवान राम का चरित्र 'परिवार, संस्कार और राष्ट्र' निर्माण की सर्वोत्तम पाठशाला है। चैत्र नवरात्रि आस्था के साथ ही प्रभु राम के आदर्श से जुड़ने व उसे गुनने का भी क्षण है। pic.twitter.com/yDmjA7Cgns

— Shivpal Singh Yadav (@shivpalsinghyad) April 4, 2022

इस नये कदम की पुष्टि करते हुए प्रसपा के प्रवक्ता दीपक मिश्रा ने शनिवार को कहा था कि नए साल में कुछ नया होना चाहिए। प्रवक्ता ने कहा, ‘‘ शिवपाल जी ने हिंदू नव वर्ष के पहले दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उत्तर प्रदेश के पूर्व उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा को ट्विटर पर फॉलो करना शुरू कर दिया।’’

वहीं जब न्यूज़क्लिक ने सपा प्रवक्ता अब्दुल हफीज़ गांधी से इस विषय में बात कि तो उन्होंने कहा कि--- ये शिवपाल जी का अपना फैसला होगा और इतनी जल्दी इस विषय पर कुछ बोलना ठीक नहीं होगा।

ग़ौर करने वाली बात ये है कि जब प्रसपा के प्रवक्ता बदलाव का संकेत दे रहे हैं ऐसे में सपा प्रवक्ता कुछ भी कहने से बच रहे हैं। यानी ये कहना ग़लत नहीं होगा कि अगले कुछ दिनों में शिवपाल यादव, योगी और मोदी के साथ एक मंच पर नज़र आ जाएं।

दो दिनों में हुई इस सियासी उठापठक के बीच दिल्ली में अखिलेश यादव ने मुलायम सिंह यादव से मुलाकात की। हालांकि, पिता-पुत्र के बीच चली बैठक में किन बिंदुओं पर चर्चा हुई, इसके बारे में कोई जानकारी नहीं मिली। माना जा रहा है कि बदलती परिस्थितियों को लेकर अखिलेश यादव ने अपने पिता से बातचीत की।

ग़ौरतलब है कि शिवपाल की नाराजगी की शुरुआत करीब 6 साल पहले उस समय हुई जब सपा की बागडोर मुलायम सिंह यादव के हाथ से निकलकर अखिलेश यादव के पास चली गई। मुलायम के सपा मुखिया रहते शिवपाल सपा में हमेशा नंबर दो की हैसियत में रहे। उनका सम्मान होता रहा। मगर, सपा की कमान अखिलेश के हाथ में आने के बाद सम्मान न मिलने की वजह से यह दूरियां बढ़ती गईं। उन्होंने प्रगतिशील समाजवादी पार्टी यानी प्रसपा का गठन करके अपनी अलग जमीन तैयार करने की कोशिश की, लेकिन इसमें कोई खास सफलता नहीं मिल पाई।

शिवपाल का साथ मिला तो यादव वोट बैंक में सेंध लगा सकेगी भाजपा

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के रवैये से आहत विधायक शिवपाल सिंह यादव अपने समर्थकों के साथ लगातार बैठक कर रहे हैं। उन्होंने पिछले दिनों भी पार्टी कार्यालय में प्रसपा से जुड़े वरिष्ठ नेताओं के साथ मंत्रणा की थी। हालांकि भाजपा में जाने के सवाल पर चुप रहे। उन्होंने कहा कि अगले कदम के बारे में जल्द ही घोषणा करेंगे। अगर शिवपाल भाजपा में शामिल होते हैं तो यह अखिलेश व सपा के लिए बड़ा झटका होगा। साथ ही मिशन 2024 के तहत यादव वोट बैंक में सेंध लगाने में जुटी भाजपा का यह बड़ा कदम होगा।

2024 में बीजेपी के लिए साबित हो सकते हैं ट्रंप कार्ड

शिवपाल यादव सपा के टिकट पर जीतकर भले ही विधायक बने हो, लेकिन अखिलेश यादव उन्हें सहयोगी दल के नेताओं के तौर पर ही ट्रीट कर रहे हैं, ऐसे में बीजेपी उन्हें अपने साथ लेकर सूबे की योगी सरकार की कैबिनेट में मंत्री बनाने का दांव चल सकती है। योगी सरकार 2.0 मंत्रिमंडल में यादव समुदाय से कोई भी कैबिनेट मंत्री नहीं है। गिरीश यादव इकलौते हैं, जिन्हें स्वतंत्र प्रभार राज्यमंत्री बनाया गया है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ शिवपाल यादव की केमिस्ट्री पहले से अच्छी रही है और आने वाले दिनों में इस केमिस्ट्री का असर भी दिखाई दे सकता है।

शिवपाल यादव का अपना सियासी कद है और यादव समुदाय के बीच अच्छी पकड़ मानी जाती है, क्योंकि सपा में रहते हुए वह यादव समुदाय के लोगों का काम करते रहे हैं। यूपी में 9 फीसदी यादव वोटर हैं और ओबीसी में सबसे बड़ी आबादी है, जो सपा के मूल वोटर माना जाता है।

आपको बताते चलें कि विधानसभा चुनावों से पहले यादव परिवार की छोटी बहू अपर्णा यादव ने भाजपा का दामन थाम लिया था। तब उन्हें लखनऊ कैंट सीट से चुनाव लड़ाने की बात हो रही थी, हालांकि चुनावी नतीजे भी आ चुके हैं और योगी कैबिनेट भी चुना जा चुका है लेकिन अभी तक वो सिर्फ भाजपा नेता ही हैं। लेकिन शिवपाल यादव के राजनीतिक कद के हिसाब से भाजपा उन्हें ज़रूर बड़ा पद दे सकती है।

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