NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
कला
भारत
पद्मश्री श्याम शर्मा: काष्ठ छापा चित्रों में लयात्मक अभिव्यक्ति
वास्तव में छापा कला कठिन विधा ज़रूर है, लेकिन इसमें परिणाम बढ़िया आता है। और एक बार में चित्र की कई प्रतियाँ निकल आती हैं।
डॉ. मंजु प्रसाद
10 Jan 2021
काष्ठ छापा चित्र
काष्ठ छापा चित्र। छापाकार : श्याम शर्मा 

भारतीय कला क्षेत्र में वरिष्ठ कलाकार श्याम शर्मा सर्वाधिक चर्चा में हैं। कुछ महीने पहले ही उन्हें पद्मश्री प्राप्त हुआ है। यह मेरे लिए विशेष रूप से हर्ष की बात है। पटना कला एवं शिल्प महाविद्यालय में अध्ययन के दौरान वे भी मेरे गुरु रहे हैं। मैंने तो छात्र जीवन से ही उन्हें निरंतर सृजनशील ही देखा है लेकिन उनकी बहुत बड़ी विशेषता रही है कि अपने सृजन कर्म को और छात्रों के कलाकर्म से अलग नहीं रखा। हमारी छोटी से छोटी कलाकृति उनके लिए महत्वपूर्ण होती थी।  हमें वे छापा चित्रकला की बारिकियां सिखाते। हमारे लिए आश्चर्यजनक कौतूहल रहता कि कितनी कुशलता से वे लकड़ी के कठोर धरातल पर विभिन्न तरह के औजारों से खुरच कर आकार बनाते थे। फिर रोलर से प्रिंटिंग में काम आने वाले रंगों को कोमलता से लकड़ी के ब्लॉक पर लगाते और सावधानी से उस पर कागज रख कर उसे पलट देते। पेपर पर वे चम्मच या कपड़े से सतर्कता से घिसाई करते। हमारे लिए बड़ा ही रोमांचक क्षण होता था जब वे पेपर को लकड़ी के ब्लाक से अलग करते। स्वाभाविक है कि एक अनोखा रूप निखर कर आता।

यह हमारे लिए बिल्कुल नई विधा थी। वास्तव में छापा कला कठिन विधा जरूर है, लेकिन इसमें परिणाम बढ़िया आता है। और एक बार में चित्र की कई प्रतियाँ निकल आती हैं।

अतः श्याम शर्मा जी ने लगन से मेहनत करने वाले छात्रों को छापा चित्रकला (प्रिंट मेकिंग) सिखाने में कभी भी कोताही नहीं की। इसलिए आज भी उनके नये और पुराने छात्र उनका सम्मान और आदर करते हैं। मैं अपने को भाग्यशाली मानती हूँ कि मुझे भी उनसे छापा चित्रकला विशेषकर काष्ठ छापा चित्रकला की बारीकियां सिखाने का सुअवसर मिला है।

ग्राफिक्स कला का इतिहास बहुत पुराना है। फोटोग्राफी कला के उद्भव के पहले छापा कला ही एक माध्यम था विवरणात्मक या गहन रेखांकन को छपाई के स्याही द्वारा चित्र को पट चाहे वे कागज हो या सिल्क या सूती कपड़े पर छापना और कलाकृति की एकसमान कई प्रतियाँ तैयार की जाती थीं। भारत में मोहनजोदड़ो आदि से प्राप्त मोहरें और मिट्टी के टप्पा इस बात का प्रमाण हैं कि भारत में भी छापा कला की पुरानी परंपरा रही है।

ऐतिहासिक दृष्टि से छापा कला की तकनीकी रूप से खोज 2500 ईसा पूर्व मिस्र  में हुई थी। मिस्रवासी अपने संवादो को पेपरिस (एक तरह का पौधा जिसकी पत्तियों को मिस्री कागज की तरह काम में  लाते थे) पर प्रतीकात्मक चित्रलिपि और कथनात्मक चित्रों को उत्कीर्ण कर एक दूसरे तक पहुंचाते थे।

चीन और जापान की काष्ठ छापा चित्रकला से भी विश्व की कला समृद्ध हुई है।

जोहान्स गुटेनबर्ग को श्रेय जाता है कि उन्होंने एशिया से बाहर 1450 में प्रथम प्रिंटिंग प्रेस ईज़ाद किया था। पुनर्जागरण काल में यूरोप में विधिवत शास्त्रीय अध्ययन में छापा कला ने प्रमुख भूमिका निभायी थी। बड़े पैमाने पर लिथोग्राफी और अम्लांकन (एचिंग) माध्यम के द्वारा पुस्तकों को सुसज्जित किया गया था।

भारत में छापा कला को मशीन से मुद्रण करने से पहले पुर्तगालियों ने मशीनी पुस्तक मुद्रण शुरू किया। अंग्रेजों ने 18वीं शताब्दी के अन्त में पुस्तकों में कथात्मक चित्र (नैरेटिव) और चित्र सृजन की शुरुआत की। आधुनिक युग के शुरुआत में ग्राफिक्स आर्ट को व्यावसायिक उद्देश्य से ही काम में लाया जाता था। 1964 से कला सृजन के क्षेत्र में मौलिक छापा चित्र को महत्व मिलने लगा। जिसमें नियम निर्धारित किया गया कि प्लेट, काष्ठ, शिला (स्टोन) आदि पर कलाकार स्वयं ब्लॉक तैयार करेगा और खुद ही उसका प्रिंट उठायेगा ।

भारत के अन्य कला केन्द्रों के समान लखनऊ में भी छापा चित्रकला का विकास हुआ। जहाँ एलएम सेन जैसे महत्वपूर्ण छापा चित्रकार हुए। श्याम शर्मा जी ने लखनऊ कला महाविद्यालय से ही कला अध्ययन किया है।

मेरी बहुत समय से अभिलाषा थी कि मैं उनके कला सृजन के बारे में उनके मुख से सुनूँ। कला एवं शिल्प महाविद्यालय से स्नातक करने बाद भी मेरा उनसे संबंध गुरु-शिष्य के तौर पर बना रहा और मुझे कला संबंधी और जानकारी उनसे मिलती रही है। आज इंटरनेट के जरिये हमें निरंतर उनके नवीन से नवीन कलाकृतियां  देखने को मिल रहीं हैं। वो आज भी कलासृजन कर्म में लगे हैं। वास्तव में यह उनकी प्रतिभा और अदम्य साहस ही है जो विशेषकर मुझे भी संबल और प्रेरणा दे रहा है निरंतर सृजनरत रहने को। यह उनका एक गुरु के रूप में अनुग्रह और स्नेह है कि उन्होंने वाट्सअप के जरिये मुझे अपने कला कर्म के बारे में जिज्ञासा को बड़े धैर्य से दूर किया है।

मैंने हाल ही में उनसे उनके माँ- पिता के बारे में और शिक्षा के बारे में जिज्ञासा जाहिर की तो उन्होंने बताया- ' मेरी माँ का नाम चन्दा देवी और पिता एनडी शर्मा थे। जन्म 8 फरवरी 1941 को गोवर्धन, मथुरा, उत्तर प्रदेश में हुआ था। सुन्दर प्राकृतिक,धार्मिक जगह थी। सुबह-सुबह निरंकार शीला खंड का दुग्ध स्नान होता

है। शाम को साकार कृष्ण रूप की पूजा मैंने देखी है। मंदिर में बनाते कलाकारों को भी देखा था। यूसुफ़ चाचा की साइन बोर्ड की दुकान थी। वे रंग-बिरंगे साइन बोर्ड बनाते थे। जिसमें अक्षर स्टेंसिल से और बार्डर भी स्टेंसिल से बनते देखा है। बरेली में पिता जी का प्रिंटिंग प्रेस था। कला शिक्षा कॉलेज ऑफ आर्ट लखनऊ से 1966 में डिप्लोमा किया। स्नातक पूरा नहीं कर पाये क्योंकि 1966 में कला एवं शिल्प महाविद्यालय पटना के छापा चित्रकला विभाग में कला प्राध्यापक के बतौर नियुक्ति हो गई।’

लखनऊ के कौन से कला गुरु आपके आर्दश थे? पूछने पर श्याम शर्मा ने बताया कि ‘लखनऊ आर्ट्स कालेज में पढ़ने के दौरान पद्मश्री सुधीर रंजन खास्तगीर प्राचार्य थे। मैं भाग्यशाली था कि मुझे नागर जी, योगी जी, श्रीखण्डे जी, जय कृष्ण अग्रवाल, बीएन आर्या जी, नित्यानंद महापात्रा जी आदि ने कला संबंधी शिक्षा दिया और पुत्रवत प्यार दिया। और गुरु थे आरएस बिष्ट, अवतार सिंह पवार। ये कला गुरू मुझे भू-दृश्य चित्र बनाना सिखाते, कला की बारिकियां बताते, संयोजन (कंपोजिशन ) के मंत्र बताते। उनकी चित्रकला में मौलिकता थी रंग और आकृतियाँ में भावप्रवणता थी। चित्र विषयपरक होते थे। लखनऊ शहर में शहर का पुरानापन, गली-कूचे आदि में मुगल स्थापत्य की झलक थी। नाटक में रूचि के कारण नाटकों में भी भाग लेता था। 'ग्राफिक्स आर्ट जय कृष्ण अग्रवाल सिखाते थे। प्रिंटिंग में ज्यादा मन लगता था। बरेली में पिता जी का प्रिंटिंग प्रेस था। अतः छुट्टियों में खूब काम करता था। दैनिक दिनचर्या (डेली लाइफ) में काष्ठ छापा चित्रण णमाध्यम में बनता गया। कॉलेज में लिथोग्राफी में ज्यादा काम होता था। काष्ठ छापा चित्र भी खूब बनाये जाते थे।'

श्याम शर्मा अपने कलागुरुओं के विशेष अनुग्रही हैं जिन्होंने उन्हें कला संबंधी ज्ञान दिया।  वे बताते हैं, '1965 में कीन विलियम कलकत्ता आये, उन्होंने कला विद्यालयों के छात्रों की अखिल भारतीय प्रतियोगिता आयोजित की जिसमें मेरा प्रिंट पुरस्कृत हुआ। मैं बहुत उत्साहित हुआ और मैंने प्रिंटमेकर बनने की सोची और भाग्य ने मेरा साथ दिया। गुरु कृपा से मैं पटना आ गया। मैं भाग्यशाली था कि पटना आर्ट कॉलेज में मुझे काम मिला। टिचिंग के साथ मैं काम भी करता था। छुट्टी में खूब घूमता। कलाकारों के काम देखता। कला क्या है सोचता। हमेशा नया करने को सोचता। प्रिंट बनाकर शांति निकेतन जाता, लखनऊ जयकृष्ण अग्रवाल के पास, भोपाल में जे. स्वामीनाथन जी का पास जाता। दिल्ली जाता प्रदर्शनी देखने।'

जब आपकी नियुक्ति कला एवं शिल्प महाविद्यालय पटना में हुई उस समय बिहार में कला का माहौल कैसा था?

इस सवाल के जवाब में श्याम जी ने बताया, ' पटना में 1966 में बंगाल स्कूल की तरह काम होता था। कला ग्रामर को ही कला मानते थे। कॉलेज में बटेश्वर बाबू , विरेश्वर भट्टाचार्या जी में नया करने की सोच थी। मेरी इनके साथ कला चर्चा होने लगी। छात्र मुझे काम करता देख प्रभावित होने लगे। 1966 में कॉलेज में ग्राफिक्स डिपार्टमेन्ट तैयार होने लगा। लिथोग्राफी में काम होने लगा। बाद में काष्ठ छापा कला में भी नये प्रयोग होने लगे। हम छात्रों को राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय कला प्रदर्शनी देखने को भेजते। बात करते। धीरे-धीरे सोच बदलने लगी। नया होने लगा। उनकी भी सोच बदली, उनकी भी कला को जगह मिली। बिहार राष्ट्रीय कलाधारा से जुड़ गया।'

वे कहते हैं, ‘शिक्षक अगर काम करेगा तो छात्र भी काम करेंगे। मैं भाग्यशाली हूँ कि मेरे गुरु भी निरंतर काम करते थे।'

 चित्रों के मुख्य विषय की बात करने पर श्याम शर्मा जी ने बताया, 'जब पटना आया तब आकृति निरपेक्ष, कभी आकृति सापेक्ष रूप में 'अर्थ एंड स्पेस 'चित्र श्रृंखला बनाई, जोकि काष्ठ छापा माध्यम में था। जिसमें छाया और प्रकाश दिखाने का प्रयास था। आपातकाल के बाद मेरे प्रिंट में व्यंग आने लगा। जिसके प्रमुख चित्र रहे 'इनोसेंट स्नेक', वेजिटेरियन लायन, आउल,  स्लीपिंग गॉड, माटी गाड़ी। ये बीस छापा चित्र रंगीन थे। धीरे-धीरे आम आदमी के दुख-सुख से जुड़ गया। प्रिंट सरल व सुगम होने लगे। रंग भी दो या एक रंग में हो गये। अब मैं समय के साथ जीता हूँ। जीवन में कभी- कभी आध्यात्म का प्रभाव भी आ जाता है। कोरोना पीरियड में चित्र बना रहा हूँ। चिड़िया देखी, आवाज सुनी चिड़िया भी आ गई। निरंतर काम में लगा रहता हूँ। कला पर पंद्रह पुस्तकें भी प्रकाशित हो गईं। ये निरंतर काम करने का प्रतिफल ही है। अच्छा सोचो तो अच्छा ही होगा।'

तकनीकी रूप से कठिन है काष्ठ छापा चित्रकला। जरूरी नहीं है कि आपको अनुकूल लकड़ी का टुकड़ा मिल ही जाये। छापा चित्रण के दौरान कई बार तो अद्भुत परिणाम मिलते हैं तो कई बार अनुकूल परिणाम नहीं आ पाता। चित्रकला के अन्य विधा के समान इसमें सुधारने की गुंजाइश कम रहती है। इसलिए बहुत कम कलाकार इस विधा में अपनी महारथ हासिल कर पाते हैं। यह बहुत बड़ी बात है कि श्याम शर्मा जी छापा चित्रकला के कई विधियों में पारंगत हैं। काष्ठ छापा चित्रकला में वह सिद्धहस्त हैं। देश विदेश में उनके चित्रों की प्रदर्शनी होती रही है।

भारत के विख्यात छापा चित्रकार जयकृष्ण अग्रवाल ने श्याम शर्मा के बारे में कहा 'वह छात्र कोई और नहीं श्याम शर्मा ही था जिसने वुडकट से अपने सृजन की यात्रा आरम्भ की और वर्षों से निरंतर इस विधा में सृजनरत रहते हुए अपने को एक सफल प्रिंट मेकर के रूप में स्थापित कर लखनऊ महाविद्यालय का मान

बढ़ाया है।'  

निरंतर क्रियाशील रहना यही श्याम शर्मा जी के कला सृजन क्षेत्र में  सफलता का सार है। वास्तव में किसी भी योग्य व्यक्ति को मिलने वाला सम्मान खुद ही पुरस्कृत होता है। श्याम शर्मा जी का जितना भी सम्मान हो कम है। उन्हें बहुत सारे महत्वपूर्ण पुरस्कार मिल चुके हैं। मैं छात्र जीवन से अब तक उनसे सीख रही हूँ। प्रेरित हो रही हूँ।

श्याम शर्मा सर कई कलाओं में पारंगत हैं। उदाहरण स्वरूप बिहार में रंग मंच में कई बार अभिनय किया है। उनकी जीवन संगिनी नवनीत कौर एक सफल रंग मंच अभिनेत्री रही हैं। उनकी दो पुत्रियां और एक पुत्र कला के अलग-विधाओं में पारंगत हैं। मेरी शुभकामनाएं उनके साथ हैं।

(लेखिका डॉ. मंजु प्रसाद एक चित्रकार हैं। आप इन दिनों लखनऊ में रहकर पेंटिंग के अलावा ‘हिन्दी में कला लेखन’ क्षेत्र में सक्रिय हैं।)

कला विशेष में इन्हें भी पढ़ें :

नीता कुमार के चित्रों में लोक कला : चटख रंग और रेखाएं

नीर भरी दुख की बदली : चित्रकार कुमुद शर्मा 

कला विशेष: प्राचीन चीन से आधुनिक युग तक सतत बहती कला धारा

कला प्रेमी समाज के लिए चाहिए स्तरीय कला शिक्षा: आनंदी प्रसाद बादल

कला विशेष : चित्रकार उमेश कुमार की कला अभिव्यक्ति

कला विशेष: हितकारी मानवतावाद से प्रेरित चित्रकार अर्पणा कौर के चित्र

Shyam Sharma
Padma Shri Shyam Sharma
Indian painter
art
artist
Indian painting
Indian Folk Life
Art and Artists
Folk Art
Folk Artist
Indian art
Modern Art
Traditional Art

Related Stories

'द इम्मोर्टल': भगत सिंह के जीवन और रूढ़ियों से परे उनके विचारों को सामने लाती कला

राम कथा से ईद मुबारक तक : मिथिला कला ने फैलाए पंख

पर्यावरण, समाज और परिवार: रंग और आकार से रचती महिला कलाकार

सार्थक चित्रण : सार्थक कला अभिव्यक्ति 

आर्ट गैलरी: प्रगतिशील कला समूह (पैग) के अभूतपूर्व कलासृजक

आर्ट गैलरी : देश की प्रमुख महिला छापा चित्रकार अनुपम सूद

छापा चित्रों में मणिपुर की स्मृतियां: चित्रकार आरके सरोज कुमार सिंह

जया अप्पा स्वामी : अग्रणी भारतीय कला समीक्षक और संवेदनशील चित्रकार

कला गुरु उमानाथ झा : परंपरागत चित्र शैली के प्रणेता और आचार्य विज्ञ

चित्रकार सैयद हैदर रज़ा : चित्रों में रची-बसी जन्मभूमि


बाकी खबरें

  • एम.ओबैद
    एमपी : ओबीसी चयनित शिक्षक कोटे के आधार पर नियुक्ति पत्र की मांग को लेकर आमरण अनशन पर बैठे
    26 Apr 2022
    चयनित शिक्षक पिछले एक महीने से नियुक्ति पत्र को लेकर प्रदेश भर में धरना प्रदर्शन कर रहे हैं लेकिन मांग पूरी न होने पर अंत में आमरण अनशन का रास्ता चयन किया।
  • अखिलेश अखिल
    यह लोकतांत्रिक संस्थाओं के पतन का अमृतकाल है
    26 Apr 2022
    इस पर आप इतराइये या फिर रुदाली कीजिए लेकिन सच यही है कि आज जब देश आज़ादी का अमृतकाल मना रहा है तो लोकतंत्र के चार प्रमुख स्तम्भों समेत तमाम तरह की संविधानिक और सरकारी संस्थाओं के लचर होने की गाथा भी…
  • विजय विनीत
    बलिया पेपर लीक मामला: ज़मानत पर रिहा पत्रकारों का जगह-जगह स्वागत, लेकिन लड़ाई अभी बाक़ी है
    26 Apr 2022
    "डबल इंजन की सरकार पत्रकारों को लाठी के जोर पर हांकने की हर कोशिश में जुटी हुई है। ताजा घटनाक्रम पर गौर किया जाए तो कानपुर में पुलिस द्वारा पत्रकारों को नंगाकर उनका वीडियो जारी करना यह बताता है कि…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    जन आंदोलनों के आयोजन पर प्रतिबंध अलोकतांत्रिक, आदेश वापस लें सरकार : माकपा
    26 Apr 2022
    माकपा ने सवाल किया है कि अब जन आंदोलन क्या सरकार और प्रशासन की कृपा से चलेंगे?
  • ज़ाहिद खान
    आग़ा हश्र काश्मीरी: गंगा-ज़मुनी संस्कृति पर ऐतिहासिक नाटक लिखने वाला ‘हिंदोस्तानी शेक्सपियर’
    26 Apr 2022
    नाट्य लेखन पर शेक्सपियर के प्रभाव, भारतीय रंगमंच में महत्वपूर्ण योगदान और अवाम में उनकी मक़बूलियत ने आग़ा हश्र काश्मीरी को हिंदोस्तानी शेक्सपियर बना दिया।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License