NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
कृपया ख़ामोश रहें! मोदी सरकार बहुत व्यस्त है!
तबाह अर्थव्यवस्था, बढ़ती क़ीमतें, बेरोज़गारी, महामारी और वैक्सीन, नाराज़ किसान और कामगारों से घिरी मोदी सरकार मौजूदा हालात का सामना करने में असमर्थ दिखती है।
सुबोध वर्मा
29 Nov 2020
modi

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली केंद्र में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सरकार और भाजपा के नेतृत्व वाली विभिन्न राज्य सरकारें हमेशा की तरह बेहद व्यस्त हैं। पीएम मोदी ने एक प्रतिमा, एक सुरंग, एक नौका सेवा का उद्घाटन किया और इन सब समारोहों को मीडिया द्वारा ज़ोर-शोर से दिखाया और बताया गया। प्रधानमंत्री मोदी ने G-20 शिखर सम्मेलन को सम्बोधित किया, दुनिया के शीर्ष इनवेस्टमेंट फ़ंड प्रबंधकों के साथ मुलाक़ात की, राज्य के मुख्यमंत्रियों को महामारी पर नकेल कसने और वैक्सीन लाने की तैयारी को लेकर सलाह दी। मोदी ने एक सीमा चौकी पर सेना के जवानों के साथ दिवाली मनायी और विस्तारवाद को लेकर अन्य देशों को सख़्त चेतावनी दी। उन्होंने गृह मंत्री के साथ बिहार चुनाव में प्रचार किया, और दोनों अब कथित तौर पर नगर निगम चुनाव के लिए हैदराबाद जा रहे हैं।

इस बीच गृह मंत्री पश्चिम बंगाल पर अपना ध्यान केंद्रित किये हुए हैं, जहां अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। वे वहां पहुंच गये और राजनीतिक रूप से अहम मटुआ समुदाय के एक सदस्य के साथ दोपहर का खाना भी खाया।

चुनावों में भाजपा उम्मीदवारों की मदद करने के अलावा, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपने समकक्षों-मध्य प्रदेश के शिवराज सिंह चौहान और हरियाणा के एमएल खट्टर के साथ अपने-अपने राज्यों में ‘लव जिहाद’ से निपटने में व्यस्त हैं। खट्टर को दिल्ली की ओर कूच कर रहे किसानों को रोकने का निर्देश दिया गया था, जिसे उन्होंने पूरे उत्साह के साथ अंजाम दिया है, ये अलग बात है कि तब उन्हें अपने क़दम पीछे खींचने के लिए कहा गया, जब किसानों ने सभी अवरोधों को तोड़ दिया और दिल्ली की सीमा पर पहुंच गये। भाजपा की सुशासन टीम व्यस्त है।

मंत्री भी व्यस्त हैं। मंत्री तो इस क़दर व्यस्त हैं कि अक्टूबर में कृषि मंत्री और यहां तक कि उनके कनिष्ठ मंत्री के पास पंजाब के किसानों के प्रतिनिधियों के साथ मिलने का वक़्त तक नहीं था।

मोदी के अगुआई वाली इस सरकार ने कामयाबी के साथ संसद से कृषि से जुड़े उन तीनों क़ानूनों को भी पास करा लिया है,जिसके ख़िलाफ़ किसान व्यापक विरोध कर रहे हैं और इस सरकार ने श्रम क़ानूनों को भी पारित कर दिया है, और एकदम जल्दबाज़ी में मौजूदा सुरक्षात्मक क़ानूनों को ख़त्म करते हुए उन क़ानूनों के तहत नियमों को अधिसूचित भी कर दिया है। इससे उस कॉरपोरेट जगत में ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं है, जो टैक्स देने के बाद हर मामले में तब भी भारी फ़ायदा उठा रहा था, जब अर्थव्यवस्था डूब रही थी।

देश के बारे में क्या?

अब आइये, इस बात पर नज़र डालते हैं कि देश और लोगों को लेकर क्या-क्या हो रहा है। कोई शक नहीं कि लोगों की घेराबंदी करने वाली इस सारी गतिविधि और ऊर्जा ने देश भर को आगोश में लेने वाले कई संकटों पर कुछ तो असर डाला होगा?

पिछले कुछ दिनों में हज़ारों किसानों ने देश की राजधानी तक पहुंचने और विरोध करने के लिए बड़े पैमाने पर तैनात सुरक्षा बलों और जहां-तहां लगाये गये बैरिकेड के बावजूद संघर्ष किया है, इस बात की ख़बर आ गयी है कि जुलाई-सितंबर की तिमाही में भारत की अर्थव्यवस्था 7.5% तक सिकुड़ गयी, आठ प्रमुख उद्योगों का उत्पादन लगातार आठवें महीने से गोता लगा रहा है, उपभोक्ता क़ीमतें ऊपर की ओर बढ़ रही हैं, और नियोजित लोगों की देशव्यापी हिस्सेदारी 36.4% तक कम हो गयी है, अर्थव्यवस्था के पटरी पर आने की उम्मीद धूमिल होती जा रही है।

इससे पहले के मूल्य वृद्धि के आंकड़ों से पता चलता है कि आम भारतीय सबसे ज़्यादा दबाव में है- खुदरा मुद्रास्फीति 7.6% तक पहुंच गयी है, यह छह साल में सबसे ज़्यादा खुदरा मुद्रास्फीति है, जबकि खाद्य मुद्रास्फीति 11% से ज़्यादा थी। साफ़ है कि सरकार द्वारा समय-समय पर घोषित कथित राहत और कल्याणकारी उपायों के बावजूद अर्थव्यवस्था एक संकटपूर्ण स्थिति में है।

यह तब हो रहा है, जब कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर चल रही है, हालांकि मामले की कुल संख्या में गिरावट दिख रही है। ऐसा इसलिए है,क्योंकि महामारी उन राज्यों और इलाक़ों में प्रवेश कर रही है,जो उस दौरान बहुत ज़्यादा प्रभावित नहीं थे,जिस दौरान पहले उच्च-मामले वाले राज्यों में मामलों के घटने के संकेत दिखने लगे थे। अगर आप इन संख्याओं को सही मानते हैं,तब तो यह ठीक है, लेकिन ऐसा नहीं हो सकता है।

वैक्सीन को लेकर दिखाया जाने वाला अति उत्साह भी ज़्यादातर भारतीयों के गले से आसानी से नहीं उतर रहा है,ऐसा इसलिए,क्योंकि अगर 30 करोड़ सबसे ज़्यादा ज़रूरतमंद आबादी को भी प्राथमिकता दी जाती है,तो सरकार इस लक्ष्य तक भी आवश्यक पैमाने पर वैक्सीन उपलब्ध कराने को लेकर तैयार नहीं दिखती है।

दोषपूर्ण नीतियों का नतीजा है यह संकटकाल

अर्थव्यवस्था तो पहले से ही पिछले साल से ही धीमी हो रही थी। बेशक,प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र की भाजपा सरकार इस बात को लेकर ख़बरदार थी, विशेषज्ञों के साथ बैठकें की जा रही थीं, हर तरह के उपायों का ऐलान किया जा रहा था, और खैरात बांटते हुए इस बात का भरोसा दिया जा रहा था कि जल्द ही सब कुछ ठीक हो जायेगा। सितंबर 2019 में ऐसा ही एक जाना पहचाना उपाय, यानी कॉरपोरेट टैक्स की दर में कटौती कर दी गयी थी, जिससे कॉरपोरेट घरानों को 1 लाख 45 हजार करोड़ का फ़ायदा मिल गया था।

अपने तमाम कतर-ब्योंत के बावजूद उन्होंने सही मायने में जो कुछ किया, उससे आर्थिक संकट और गहरा गया। अधिक ख़र्च करने से लोगों की ख़रीदने की शक्ति बढ़ जाती और इसके बाद मांग में बढ़ोत्तरी हो पाती, मगर ऐसा करने के बजाय, उन्होंने लोगों के बटुए से पैसे निचोड़ लिए,कल्याणकारी योजनाओं के ख़र्च पर अंकुश लगा दिया, बेहद अमीर लोगों को रियायतें दे दीं, और ख़ुद को यह सोचकर मुग़ालते में रखा कि इससे निवेश में तेज़ी आयेगी, आर्थिक गतिविधियां फिर से अपनी पटरी पर चल पड़ेंगी, रोज़गार को बढ़ावा मिलेगा। यह एक ऐसा बेबुनियाद ख़्वाब था,जो उनकी आंखों के सामने ग़ैर-मामूली तरीक़े से भरभराकर टूट गया।

इसके बावजूद, एक ही बात को दोहराते हुए अलग नतीजे की उम्मीद करना पागलपन होता है-इस मशहूर कहावत की तरह ही प्रधानमंत्री मोदी और उनके वफ़ादार वित्त मंत्री भी एक ही बात पर लगातार क़ायम हैं। उन्हें लगा था कि यह महामारी और लॉकडाउन एक ऐसा सुनहरा मौक़ा है, जहां से यह सरकार जिस तरह आगे बढ़ी है,ऐसा करने की हिम्मत पहले की किसी भी सरकार ने नहीं दिखायी थी।

उन्होंने इसी बीच श्रम क़ानून बना दिये, और फिर उन्होंने कृषि से जुड़े उन तीन क़ानूनों को पारित कर दिया, जो प्रभावी रूप से कृषि-व्यवसाय और बड़े व्यापारियों को कृषि-उपज, इसके भंडारण, आवाजाही और यहां तक कि इसकी क़ीमत पर ख़रीद की अनुमति देकर न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के ज़रिये किसानों को राज्य सब्सिडी ख़त्म करने का आधार देता है। सही बात तो यह है कि यह कॉन्ट्रैक्ट खेती क़ानून, कॉरपोरेट्स को खेती करने की अनुमति देता है, इस प्रकार, यह पूरे कृषि मूल्य श्रृंखला को तबाह करने वाला है। एक ऐसे देश में,जहां तक़रीबन दो-तिहाई किसानों के पास छोटी और सीमांत भूमि है, वहां इसके होने का मतलब तो यही है कि कृषि को कॉर्पोरेट खिलाड़ियों के हवाले छोड़ दिया गया है।

हालिया श्रमिकों की हड़ताल अर्थव्यवस्था के तक़रीबन हर क्षेत्रों में फैली हुई है और जिसमें सरकार के नीतियों के चलते सभी तरह के (निजी / सार्वजनिक, औपचारिक / अनौपचारिक, विनिर्माण / निर्माण / परिवहन / सेवाओं, आदि) के अनुमानित 25 करोड़ कामगार शामिल हैं।

इस तरह,किसानों का यह आंदोलन इसलिए है, क्योंकि किसान वास्तव में बेहतर एमएसपी, ख़रीद प्रणाली को मज़बूत करने, ऋणों को ख़त्म करने आदि की मांग करते रहे हैं। मोदी और उनकी बेहद व्यस्त सरकार ने इसके उलट काम किया और नये-नये बने ख़ास दोस्त (बीएफ़एफ़), यूएस को यह दिखाने के लिए कि वे अपनी कृषि सम्बन्धी मांगों के साथ चल रहे हैं,शायद इसी योजना के तहत कृषि-व्यवसाय (घरेलू और विदेशी दोनों) का पक्ष लिया।

अप्रैल-मई में जैसे-तैसे और बेरहम तरीक़े से लागू लॉकडाउन ने न सिर्फ़ पहले से ही कमज़ोर चल रही अर्थव्यवस्था की लुटिया डुबा दी है, बल्कि इससे महामारी को नियंत्रित करने में भी नाकामी मिली है। चूंकि वक़्त से पहले ही लॉकडाउन को लगा दिया गया था, इसलिए सरकार अब इस महामारी के प्रकोप को कम नहीं कर पा रही है और इससे निपटने के लिए सरकार के पास कोई हथियार भी नहीं बचा है। यही वजह है कि प्रधानमंत्री मोदी इस महामारी के टीका-निर्माताओं का चक्कर यह दिखाने के लिए लगा रहे हैं कि वे कुछ काम कर रहे हैं।

कोई शक नहीं कि बीजेपी और इसके संघ परिवार में सहयोगी हालांकि एक बात में ज़रूर सफल रहे हैं,और वह है-देश भर में कलह और नफ़रत का बीजारोपण, चाहे यह चुनाव अभियानों (दिल्ली, बिहार या अब हैदराबाद नगरपालिका चुनावों में) के ज़रिये हों या क़ानून में बदलाव (नागरिकता संशोधन अधिनियम और नागरिकों के प्रस्तावित राष्ट्रीय रजिस्टर जैसे क़ानूनों) के ज़रिये हो या फिर त्योहारों, अयोध्या में राम मंदिर की आधारशिला रखने जैसे समारोहों और दूसरे 'अवसरों' के दौरान ज़बरदस्त दुष्प्रचार के ज़रिये ही क्यों न हो। अजीब बात तो यह है कि इस सरकार की वजह से पैदा हुए संकट के ख़िलाफ़ लोगों की बढ़ती एकता को भी दरकिनार किया जा रहा है।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Silence Please! Modi Government is Very Busy!

Narendra Modi . BJP
RSS
COVID 19
MSP
US
CAA
Ram Mandir
ayodhya

Related Stories

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

कटाक्ष:  …गोडसे जी का नंबर कब आएगा!

विचार: सांप्रदायिकता से संघर्ष को स्थगित रखना घातक

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में आईपीईएफ़ पर दूसरे देशों को साथ लाना कठिन कार्य होगा

राम मंदिर के बाद, मथुरा-काशी पहुँचा राष्ट्रवादी सिलेबस 

क्या ज्ञानवापी के बाद ख़त्म हो जाएगा मंदिर-मस्जिद का विवाद?

अलविदा शहीद ए आज़म भगतसिंह! स्वागत डॉ हेडगेवार !

किसानों और सत्ता-प्रतिष्ठान के बीच जंग जारी है

कांग्रेस का संकट लोगों से जुड़ाव का नुक़सान भर नहीं, संगठनात्मक भी है


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ः 60 दिनों से हड़ताल कर रहे 15 हज़ार मनरेगा कर्मी इस्तीफ़ा देने को तैयार
    03 Jun 2022
    मनरेगा महासंघ के बैनर तले क़रीब 15 हज़ार मनरेगा कर्मी पिछले 60 दिनों से हड़ताल कर रहे हैं फिर भी सरकार उनकी मांग को सुन नहीं रही है।
  • ऋचा चिंतन
    वृद्धावस्था पेंशन: राशि में ठहराव की स्थिति एवं लैंगिक आधार पर भेद
    03 Jun 2022
    2007 से केंद्र सरकार की ओर से बुजुर्गों को प्रतिदिन के हिसाब से मात्र 7 रूपये से लेकर 16 रूपये दिए जा रहे हैं।
  • भाषा
    मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने चंपावत उपचुनाव में दर्ज की रिकार्ड जीत
    03 Jun 2022
    चंपावत जिला निर्वाचन कार्यालय से मिली जानकारी के अनुसार, मुख्यमंत्री को 13 चक्रों में हुई मतगणना में कुल 57,268 मत मिले और उनके खिलाफ चुनाव लड़ने वाल़ कांग्रेस समेत सभी प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो…
  • अखिलेश अखिल
    मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 
    03 Jun 2022
    बिहार सरकार की ओर से जाति आधारित जनगणना के एलान के बाद अब भाजपा भले बैकफुट पर दिख रही हो, लेकिन नीतीश का ये एलान उसकी कमंडल राजनीति पर लगाम का डर भी दर्शा रही है।
  • लाल बहादुर सिंह
    गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया
    03 Jun 2022
    मोदी सरकार पिछले 8 साल से भारतीय राज और समाज में जिन बड़े और ख़तरनाक बदलावों के रास्ते पर चल रही है, उसके आईने में ही NEP-2020 की बड़ी बड़ी घोषणाओं के पीछे छुपे सच को decode किया जाना चाहिए।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License