NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
अर्थव्यवस्था
मनरेगा की हालत दयनीय: इस वर्ष पांच में से एक परिवार को काम देने से मना किया गया
अक्टूबर 2019 तक लगभग 2.5 करोड़ से अधिक आवेदक परिवारों को ग्रामीण नौकरी गारंटी योजना के तहत काम मांगने पर वापस कर दिया गया।
सुबोध वर्मा
05 Nov 2019
MGNAREGA

यह स्वाभाविक लगता है कि भारत मंदी की मार से जूझ रहा है। कृषि अर्थव्यवस्था केवल 2% की दर से बढ़ रही है और ग्रामीण बेरोज़गारी 8% की दर से बढ़ रही है। ऐसे में सरकार ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (मनरेगा) के कार्यान्वयन में शायद कुछ कोशिश करे। इससे ग्रामीण ग़रीबों के पास अधिक पैसा आएगा और न केवल उन्हें इस संकट से बचने में मदद मिलेगी बल्कि यह अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से प्रोत्साहित करेगा।

हालांकि ऐसा लगता है कि बिल्कुल उल्टा हो रहा है। मनरेगा के आधिकारिक वेबसाइट पर उपलब्ध नवीनतम आंकड़ों से पता चलता है कि इस साल अक्टूबर तक इसकी मांग के बावजूद 2.51 करोड़ परिवारों को इस योजना के तहत काम करने से मना कर दिया गया था। इसका मतलब है कि योजना में काम की तलाश में आए पांच लोगों में से एक या लगभग 19% को वापस कर दिया गया। आधिकारिक रिकॉर्ड के अनुसार 13.2 करोड़ से अधिक परिवारों ने काम की मांग की (जो कि अपने आप में एक रिकॉर्ड है) जबकि 10.71 करोड़ को ही काम दिए गए थे।

हाल के वर्षों में इस तरह मना करने यह सबसे बड़ा मामला है जो नीचे दिए गए चार्ट में देखा जा सकता है। वास्तव में चालू वर्ष में मना करने में आई वृद्धि चौंकाने वाली है। पिछले साल की तुलना में ये वृद्धि लगभग 33% ज़्यादा है।
graph 1_0.JPG
राज्यवार विश्लेषण से पता चलता है कि आंध्र प्रदेश और तेलंगाना काम से मना करने में अन्य सभी राज्यों में आगे हैं। आंध्र प्रदेश में लगभग 61 लाख परिवारों को वापस कर दिया गया था यानी कुल लागू करने वाले परिवारों के 35% को वापस कर दिया गया। तेलंगाना में लगभग 24 लाख परिवार दर्ज किए गाए हैं जिन्हें वापस कर दिया गया और जो कुल आवेदकों का लगभग 32% है।

काम की मांग से मना करने वाले राज्यों में हरियाणा (28%), बिहार (26%), कर्नाटक (21%), उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ (20- 20% ), पंजाब (24%) और गुजरात और राजस्थान (18-18%) शामिल हैं।

फंड की कमी

हालांकि केंद्र की तरफ से जारी किया फंड इस साल सामान्य से थोड़ा कम है। इस तरह राज्य सरकारों ने भी फंड में कमी कर दिया और 10% ही योगदान दिया। इस साल केंद्र ने केंद्रीय बजट में मनरेगा के लिए कुल केंद्रीय आवंटन 60,000 करोड़ में से अब तक 51,950 करोड़ रुपए जारी किया। योजना के लिए जारी किए गए कुल बजट का यह लगभग 86% है। साल पूरा होने में अब पांच महीने ही बचे हैं और इस योजना को किस तरह लागू किया जाएगा इसका अंदाजा कोई भी लगा सकता है। याद रहे कि इस वर्ष का मनरेगा आवंटन पिछले वर्ष के व्यय के संशोधित अनुमान से 1000 करोड़ रुपये कम था। इस तरह इस वर्ष यह योजना शुरू से ही लचर थी।

लेकिन अब तक के वित्तीय ब्योरा में चिंता का विषय यह है। ऐसा लगता है कि राज्यों ने अपेक्षा से बहुत कम जारी किया है और अब तक राज्यों में से किसी के लिए कोई प्रारंभिक बैलेंस नहीं दिखाया जा रहा है। सभी शून्य प्रारंभिक बैलेंस के साथ शुरू कर रहे हैं।

पिछले साल राज्यों ने लगभग 3716 करोड़ रुपये ख़र्च नहीं किया। इसका मतलब है कि देय या बकाया राशि पिछले वर्ष लंबित थी। यह केंद्र सरकार की घटिया नीति के कारण हर साल होता है। इस तरह चाहे वह केंद्र हो या राज्य इस राशि को भी इस वर्ष के रिलीज से पहले ही निपटा लिया गया होगा।

लेकिन 'शून्य' आरंभिक बैलेंस (ओपनिंग बैलेंस) अजीब है। पिछले साल सभी राज्यों के लिए कुल मिलाकर शेष राशि 2064 करोड़ रुपये थी। या तो कुछ लेखांकन मुद्दा है जैसे कि उपयोग प्रमाण पत्र (यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट) प्रस्तुत नहीं करना या कोई दूसरा घपला।

व्यय न किए गए फंड और लंबित भुगतान

लेकिन पैसा ख़र्च न होने का असली कारण जो कि मना करने के उच्च दरों से दिखाई देता है ऐसा लगता है कि आर्थिक मंदी के चलते सामान्य फंड में कमी होने की वजह से राज्यों ने फंड को दबा रखा है। इसलिए ऐसा हो सकता है कि केंद्र ने उन्हें हाथ तंग करने की सलाह दी है या यह उनका अपना फैसला हो सकता है।

ख़ैर जो भी मामला हो, सभी राज्यों के पास कुल मिलाकर अब तक 12,546 करोड़ रुपये ख़र्च न किया हुआ बैलेंस है और 5284 करोड़ रुपये का बकाया है। जाहिर है, ख़र्च को बहुत ही सीमित तरीक़े से रोका जा रहा है। और, ऐसा चाहे बीजेपी की सरकार हो या कांग्रेस की सरकार या यहां तक कि क्षेत्रीय पार्टी के सरकार हो वहां हो रहा है।

इस दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति को इस तथ्य के संदर्भ में देखा जाना चाहिए कि इस वर्ष मंदी के कारण काम की मांग बहुत ज़्यादा बढ़ गई है। हाल ही में बाढ़ और फसलों की बर्बादी ने मनरेगा के काम की मांग में भी बढ़ोतरी की है। फिर भी सरकार पूरा करने में असफल हो रही है। वास्तव में, सरकारी फंड को कम करने के नवउदारवादी हठधर्मिता से प्रेरित होकर कम फंड खर्च किया जा रहा है। इसका मतलब आम लोगों के लिए मुसीबत और संकट है और आने वाले महीनों में स्थिति और खराब हो जाएगी।

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आपने नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

Sinking MGNREGA: Almost One-in-Five Households Refused Work This Year

MGNREGA Funds
BJP
Narendra modi
Rural Employment

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

भारत के निर्यात प्रतिबंध को लेकर चल रही राजनीति


बाकी खबरें

  • itihas ke panne
    न्यूज़क्लिक टीम
    मलियाना नरसंहार के 35 साल, क्या मिल पाया पीड़ितों को इंसाफ?
    22 May 2022
    न्यूज़क्लिक की इस ख़ास पेशकश में वरिष्ठ पत्रकार नीलांजन मुखोपाध्याय ने पत्रकार और मेरठ दंगो को करीब से देख चुके कुर्बान अली से बात की | 35 साल पहले उत्तर प्रदेश में मेरठ के पास हुए बर्बर मलियाना-…
  • Modi
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: मोदी और शी जिनपिंग के “निज़ी” रिश्तों से लेकर विदेशी कंपनियों के भारत छोड़ने तक
    22 May 2022
    हर बार की तरह इस हफ़्ते भी, इस सप्ताह की ज़रूरी ख़बरों को लेकर आए हैं लेखक अनिल जैन..
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : 'कल शब मौसम की पहली बारिश थी...'
    22 May 2022
    बदलते मौसम को उर्दू शायरी में कई तरीक़ों से ढाला गया है, ये मौसम कभी दोस्त है तो कभी दुश्मन। बदलते मौसम के बीच पढ़िये परवीन शाकिर की एक नज़्म और इदरीस बाबर की एक ग़ज़ल।
  • diwakar
    अनिल अंशुमन
    बिहार : जन संघर्षों से जुड़े कलाकार राकेश दिवाकर की आकस्मिक मौत से सांस्कृतिक धारा को बड़ा झटका
    22 May 2022
    बिहार के चर्चित क्रन्तिकारी किसान आन्दोलन की धरती कही जानेवाली भोजपुर की धरती से जुड़े आरा के युवा जन संस्कृतिकर्मी व आला दर्जे के प्रयोगधर्मी चित्रकार राकेश कुमार दिवाकर को एक जीवंत मिसाल माना जा…
  • उपेंद्र स्वामी
    ऑस्ट्रेलिया: नौ साल बाद लिबरल पार्टी सत्ता से बेदख़ल, लेबर नेता अल्बानीज होंगे नए प्रधानमंत्री
    22 May 2022
    ऑस्ट्रेलिया में नतीजों के गहरे निहितार्थ हैं। यह भी कि क्या अब पर्यावरण व जलवायु परिवर्तन बन गए हैं चुनावी मुद्दे!
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License