NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
दिल्ली में बेहतर पुनर्वास के बिना न हटाई जाएं झुग्गी-बस्तियां: भाकपा माले
सुप्रीम कोर्ट ने तीन महीने के भीतर दिल्ली में 140 किलोमीटर लंबी रेल पटरियों के आसपास की लगभग 48,000 झुग्गी-झोंपड़ियों को हटाने का आदेश दिया है।
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
07 Sep 2020
झुग्गी-बस्तियां:

दिल्ली: जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच (ये वहीं बेंच है जिसने प्रशांत भूषण को न्यायालय की अवमानना का दोषी माना था) ने अभी हाल ही में एक असंवेदनशील फैसला देते हुए दिल्ली में रेलवे लाइन के पास बसी सभी झुग्गी बस्तियों को तीन महीने के भीतर उजाड़ने के आदेश दिए। डराने वाली बात है कि 31 अगस्त को पारित इस आदेश में ये निर्देश भी दिया गया है कि किसी भी कोर्ट को इस अतिक्रमण को हटाने के आदेश पर स्टे नहीं देना चाहिए। CPI-ML का मानना है कि अब रिटायर्ड जस्टिस मिश्रा की बेंच द्वारा पारित ये आदेश भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के अंर्तगत मिले जीवन के अधिकार का खुलेआम उल्लंघन है।

भाकपा माले द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि इसमें चौंकाने वाली बात है कि ये आदेश राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में प्रदूषण के मामले की सुनवाई के दौरान पास किया गया है जिसका इन झुग्गी-बस्तियों से कोई लेना-देना ही नहीं है। बेंच ने ये आदेश पारित करते समय इस बात को भी संज्ञान नहीं लिया कि सुप्रीम कोर्ट ने ही आश्रय के अधिकार को मूलभूत अधिकार माना है और इसीलिए ये आदेश इस बात की एक और मिसाल बन जाता है कि किस तरह हाल के दिनों में सुप्रीम कोर्ट नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करने में असफल साबित हुआ है।

विज्ञप्ति में आगे कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न फैसलों में ये स्थापित किया जा चुका है कि आश्रय का अधिकार अनुच्छेद 19 (1) 'ई' के अंर्तगत आवास के अधिकार और अनुच्छेद 21 के अंर्तगत जीवन के अधिकार के तहत दिया गया है, लेकिन जस्टिस मिश्रा की बेंच द्वारा पारित इस आदेश में इन पूर्ववर्ती मिसालों को पूरी तरह अनदेखा कर दिया गया। इसके अलावा ये प्राकृतिक न्याय के सिद्धातों का पूरी तरह उल्लंघन करता है कि सुप्रीम कोर्ट देश के अन्य न्यायालयों को इस मामले में किसी भी तरह के अंतरिम आदेश को पारित करने तक से रोक दे।

भाकपा माले का कहना है कि प्रदूषण पर किसी मामले की सुनवाई करते हुए इस आदेश को पारित करते हुए बेंच ने, रेलवे लाइन के आस पास रहने वाले झुग्गी बस्ती निवासियों को ही शहर में होने वाले प्रदूषण के लिये जिम्मेदार मानने जैसे अजीबोगरीब दावे भी किये। ये साफ है कि ये बेंच अपने अधिकार क्षेत्र से भी बाहर चला गया और उसने एक ऐसे मामले में आदेश पारित कर दिया जिसका उस मामले से कोई संबंध ही नहीं था जिसकी वो सुनवाई कर रहा था।

विज्ञप्ति में कहा गया है कि ये आदेश रेल मंत्रालय के उस दावे के आधार पर पारित किया गया है, जिसमें उसने कहा है कि वो रेलवे लाइन के आस-पास की सफाई नहीं कर पा रहे हैं जिनके पास ये झुग्गी-बस्तियां बसी हैं, इन्होने कोर्ट के सामने वो पुराने आदेश भी पेश नहीं किए जिसमें ये साफ कहा गया था कि बिना समुचित पुर्नवास के किसी भी तरह का विस्थापन नहीं किया जा सकता। रेल मंत्रालय ने इस आदेश को पारित करवाने में एक कुटिल चाल चली है और उन्हे इस आदेश का जिम्मदार ठहराया जाना चाहिए।

वे लोग जो झुग्गी-बस्तियों में रहते हैं,  जिन्हें सुप्रीम कोर्ट ने उजाड़ने का आदेश दिया है ये मेहनतकश-ग़रीब लोग हैं, और उनके भी मूलभूत अधिकार हैं, जिनका संरक्षण किया जाना ज़रूरी है. इस शहर पर उनका भी उतना ही हक़ है जितना किसी और का है।

साल 2018 में दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने एक आदेश में भीख मांगने को अपराध की श्रेणी से हटाने का आदेश पारित करते हुए ये कहा था कि शहर पर हर नागरिक का हक़ है और इस अधिकार का संरक्षण किया जाना ज़रूरी है। शहर के इन मेहनतकश ग़रीबों को सुप्रीम कोर्ट के इस तरह के मनमाने फैसलों के हवाले नहीं छोड़ा जा सकता।
 
CPI-ML ने मांग की है कि -

◆ झुग्गी-बस्तियों को किसी भी तरह का नुकसान पहुंचाए जाने या उजाड़े जाने से पहले समुचित पुर्नवास सुनिश्चित किया जाए।

◆ रेल मंत्रालय को पुराने आदेश के अनुसान काम करना होगा और रेलवे लाइन के पास रहने वाले झुग्गी-बस्ती वासियों के पुर्नवास की गारंटी करनी होगी।

◆ रेलवे लाइन के पास रहने वालों का एक ताजा सर्वे किया जाना चाहिए ताकि वहां रह रहे परिवारों की सही संख्या सुनिश्चित की जा सके और सभी के पुनर्वास की गारंटी हो सके। इसमें किन्ही खास दस्तावेजों, जैसे राशन कार्ड / आधार आदि पर जोर नहीं देना चाहिए, क्योंकि कई परिवारों के पास ये दस्तावेज़ नहीं होते, बल्कि किसी भी सरकारी पहचान पत्र को स्वीकृति देनी चाहिए।

◆ दिल्ली सरकार को फौरन भारत के मुख्य न्यायाधीश को एक पत्र लिख कर इस आदेश को वापिस लेने की मांग करनी चाहिये क्योंकि ये संविधान के मूलभूत अधिकारों और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है। दिल्ली सरकार को ये भी सुनिश्चित करना चाहिए कि बिना पुर्नवास कोई बेदखली ना हो।

slums
Supreme Court
CPI-ML
Railway ministry

Related Stories

ज्ञानवापी मस्जिद के ख़िलाफ़ दाख़िल सभी याचिकाएं एक दूसरे की कॉपी-पेस्ट!

आर्य समाज द्वारा जारी विवाह प्रमाणपत्र क़ानूनी मान्य नहीं: सुप्रीम कोर्ट

समलैंगिक साथ रहने के लिए 'आज़ाद’, केरल हाई कोर्ट का फैसला एक मिसाल

मायके और ससुराल दोनों घरों में महिलाओं को रहने का पूरा अधिकार

जब "आतंक" पर क्लीनचिट, तो उमर खालिद जेल में क्यों ?

विचार: सांप्रदायिकता से संघर्ष को स्थगित रखना घातक

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक आदेश : सेक्स वर्कर्स भी सम्मान की हकदार, सेक्स वर्क भी एक पेशा

बिहार : नीतीश सरकार के ‘बुलडोज़र राज’ के खिलाफ गरीबों ने खोला मोर्चा!   

तेलंगाना एनकाउंटर की गुत्थी तो सुलझ गई लेकिन अब दोषियों पर कार्रवाई कब होगी?

मलियाना कांडः 72 मौतें, क्रूर व्यवस्था से न्याय की आस हारते 35 साल


बाकी खबरें

  • असद रिज़वी
    CAA आंदोलनकारियों को फिर निशाना बनाती यूपी सरकार, प्रदर्शनकारी बोले- बिना दोषी साबित हुए अपराधियों सा सुलूक किया जा रहा
    06 May 2022
    न्यूज़क्लिक ने यूपी सरकार का नोटिस पाने वाले आंदोलनकारियों में से सदफ़ जाफ़र और दीपक मिश्रा उर्फ़ दीपक कबीर से बात की है।
  • नीलाम्बरन ए
    तमिलनाडु: छोटे बागानों के श्रमिकों को न्यूनतम मज़दूरी और कल्याणकारी योजनाओं से वंचित रखा जा रहा है
    06 May 2022
    रबर के गिरते दामों, केंद्र सरकार की श्रम एवं निर्यात नीतियों के चलते छोटे रबर बागानों में श्रमिक सीधे तौर पर प्रभावित हो रहे हैं।
  • दमयन्ती धर
    गुजरात: मेहसाणा कोर्ट ने विधायक जिग्नेश मेवानी और 11 अन्य लोगों को 2017 में ग़ैर-क़ानूनी सभा करने का दोषी ठहराया
    06 May 2022
    इस मामले में वह रैली शामिल है, जिसे ऊना में सरवैया परिवार के दलितों की सरेआम पिटाई की घटना के एक साल पूरा होने के मौक़े पर 2017 में बुलायी गयी थी।
  • लाल बहादुर सिंह
    यूपी में संघ-भाजपा की बदलती रणनीति : लोकतांत्रिक ताकतों की बढ़ती चुनौती
    06 May 2022
    नज़रिया: ऐसा लगता है इस दौर की रणनीति के अनुरूप काम का नया बंटवारा है- नॉन-स्टेट एक्टर्स अपने नफ़रती अभियान में लगे रहेंगे, दूसरी ओर प्रशासन उन्हें एक सीमा से आगे नहीं जाने देगा ताकि योगी जी के '…
  • भाषा
    दिल्ली: केंद्र प्रशासनिक सेवा विवाद : न्यायालय ने मामला पांच सदस्यीय पीठ को सौंपा
    06 May 2022
    केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच इस बात को लेकर विवाद है कि राष्ट्रीय राजधानी में प्रशासनिक सेवाएं किसके नियंत्रण में रहेंगी।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License