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मज़दूर-किसान
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प्रवासी मज़दूरों पर 'संवेदनहीन' सरकारों को रास्ता दिखाते हाईकोर्ट के कुछ फ़ैसले
लॉकडाउन में प्रवासी श्रमिकों की बदतर हालत पर बॉम्बे हाईकोर्ट, आंध्र प्रदेश और मद्रास हाईकोर्ट के फ़ैसले सरकारों को आईना दिखाने का काम कर रहे हैं। हालांकि इस दौरान सुप्रीम कोर्ट से मज़दूरों को ज्यादा राहत नहीं मिल पाई है।
मुकुंद झा
18 May 2020
प्रवासी मज़दूर
Image courtesy: Primetime

देश में लॉकडाउन के लगभग 55 दिन बीत चुके हैं लेकिन इतने दिनों में भी मज़दूरों की समस्याएं जस की तस बनी हुई हैं। एक तरफ सरकार लगातार घोषणाएं कर रही है और मज़दूरों की मदद का दावा कर रही है तो दूसरी तरफ लाखों प्रवासी मज़दूर पैदल ही घर जाने के लिए मजबूर हैं। साथ ही बड़ी संख्या में मज़दूरों की नौकरी छिन रही है।

स्पेशल ट्रेन और बसों की व्यवस्था के सरकारी दावे के विपरीत पिछले कुछ दिनों में ही सड़क हादसों में 50 से ज्यादा मज़दूरों की मौत हो गई है। लेकिन इस बात की फिक्र केंद्र समेत देश की किसी भी राज्य सरकार को नहीं है।

इस दौरान सुप्रीम कोर्ट से भी मज़दूरों को ज्यादा राहत नहीं मिल पाई, हालांकि कुछ उच्च न्यायालयों ने इस दौरान मज़दूरों को लेकर जो टिप्पणियां कीं, वह इन सरकारों को आईना दिखाने के लिए काफी हैं। अब एक बार कुछ हाईकोर्ट के फ़ैसले पर एक नज़र डालते हैं।

बॉम्बे हाईकोर्ट ने 12 मई को अपने एक फ़ैसले में एक नियोक्ता को पूरा वेतन देने का आदेश दिया। राष्ट्रीय श्रमिक अगाड़ी की याचिका की सुनवाई करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद पीठ के न्यायमूर्ति आरवी घुगे ने तुलजा भवानी मंदिर संस्थान को निर्देश दिया है कि ठेका मज़दूरों को मई 2020 तक पूरा वेतन दें।

अदालत ने आज की स्थिति को विशेष स्थिति कहा और कहा कि इस समय काम नहीं तो वेतन नहीं का सिद्धांत नहीं लागू किया जा सकता। कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को निर्देश दिया कि वे दोनों ठेकेदारों को इस मामले में प्रतिवादी बनाएं और ट्रस्ट के अध्यक्ष के रूप में ओसमानाबाद के ज़िला कलक्टर से कहा कि भोजन और कन्वेयन्स भत्ते के अलावा मार्च, अप्रैल और मई 2020 का वेतन संबंधित भुगतान को सुनिश्चित करें। इस मामले की अगली सुनवाई 9 जून को होगी।
 
इसी तरह आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने पैदल घर जा रहे प्रवासी मज़दूरों की दयनीय स्थिति पर ध्यान देते हुए उन्हें मूलभूत सुविधाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए शुक्रवार को निर्देश जारी किए। कोर्ट ने कहा‌ कि अगर वह मज़दूरों की मौजूदा स्थितियों के मद्देनजर आदेश जारी नहीं किया तो यह उसके "रक्षक और दुखहर्ता" के रूप में उसकी भूमिका के साथ अन्याय होगा।

जस्टिस डीवीएसएस सोमयाजुलु और जस्टिस ललिता कान्नेग्नेती की खंडपीठ ने सरकार को प्रवासियों के लिए भोजन, शौचालय और चिकित्सा सहायता आदि की उचित उपलब्धता सुनिश्चित करने का आदेश दिया।

लाइव लॉ के खबर के मुताबिक उन्होंने इसको लेकर सरकार को निर्देश दिया कि सड़कों पर पैदल जा रहे मज़दूरों के भोजन की व्यवस्था सरकार करे। साथ ही हाईवे पर भोजन के और पानी के आवंटन के लिए स्टाल लगाए और मज़दूरों को डिहाइड्रेशन से बचाने की व्यवस्था करे। अदालत ने कहाकि बड़ी संख्या में महिलाएं भी पैदल जा रही हैं। उनके लिए साफ और निजता का ख्याल रखने वाले शौचालय की व्यवस्था की जाए।

इसके अलावा मज़दूरों को रोकने के लिए हिंदी और तेलगु में पर्चे बांटने को कहा है जिसमें शेल्टर होम के बारे में जानकारी हो। कोर्ट ने इसके अलावा भी कई अन्य निर्देश दिए हैं। साथ ही  22 मई, 2020 को उपरोक्त निर्देशों की एक अनुपालन रिपोर्ट दायर करने का निर्देश दिया है।

इसके अलावा मद्रास हाईकोर्ट ने भी मज़दूरों की स्थिति को लेकर गंभीर और सख्त टिप्पणी की है। जिस तरह से मज़दूर पैदल जाने को मज़बूर हुए हैं अदालत ने इसे 'मानव त्रासदी' कहा है।

मद्रास हाईकोर्ट ने मज़दूरों की 'सुरक्षा और देखभाल पर ध्यान' न दिए जाने को लेकर केंद्र और तमिलनाडु सरकार को फटकार लगाई। कोर्ट ने सरकारों से पूछा कि प्रवासी मज़दूरों की स्थिति ठीक करने के लिए क्या उचित कदम उठाए गए हैं।

एनडीटीवी की खबर के मुताबिक मद्रास हाईकोर्ट ने कहा कि प्रवासी मज़दूरों को पैदल घर वापस जाते देखकर दया आती है और इस दौरान कई मज़दूरों ने जान भी गवां दी है। कोर्ट ने कहा, "सभी राज्यों को इस दौरान प्रवासी मज़दूरों को मानवीय सुविधा देनी चाहिए थी।"

हाईकोर्ट ने आगे कहा कि मीडिया में दिखाई जा रही प्रवासी मज़दूरों की दयनीय स्थिति को देखकर किसी के लिए भी आंसुओं को रोक पाना मुश्किल है। ये मानव त्रासदी से कम नहीं है।  
 
मद्रास हाईकोर्ट ने केंद्र से पूछा कि क्या हर राज्य में कितने प्रवासी मज़दूर हैं, इसका कोई डेटा है। कोर्ट ने यह भी पूछा कि कितने मज़दूरों की अब तक इस त्रासदी में मौत हो चुकी है और उनके परिवारों को मुआवज़ा देने की क्या योजना है।

कोर्ट ने स्पेशल ट्रेन से घर भेजे गए मज़दूरों के भी डेटा के बारे में पूछा। कोर्ट ने पूछा कि क्या मज़दूरों का इतनी बड़ी तादाद में एक जगह से दूसरी जगह जाना कोरोना वायरस के फैलने के कारणों में से एक है।  

हालांकि इससे इतर इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का एक फ़ैसला मज़दूरों के जख्मों पर मरहम लगाने में असफल रहा। दरअसल प्रवासी मज़दूरों की सुरक्षा को लेकर और उन्हें राहत दिलाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में भी एक याचिका दायर हुई थी। 15 मई को सुनवाई के बाद कोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर दिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि देशभर में प्रवासी मज़दूरों की गतिविधियों की निगरानी करना या उन्हें रोकना संभव नहीं है।  

केंद्र सरकार ने अदालत में कहाकि देशभर में प्रवासी कामगारों को उनके गंतव्य तक के लिए परिवहन उपलब्ध कराए जा रहे हैं लेकिन उन्हें पैदल चलने के बजाय अपनी बारी का इंतजार करना होगा जोकि मज़दूर नहीं कर रहे हैं।

इस याचिका में मांग की गई थी कि अदालत सभी डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट से पैदल घरों को लौट रहे प्रवासी मज़दूरों की पहचान करने और उनके लिए मुफ्त परिवहन सुनिश्चित करने से पहले आश्रय, भोजन उपलब्ध कराने के लिए केंद्र को निर्देश दे लेकिन सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने इस मामले की सुनवाई को लेकर अपनी अनिच्छा जाहिर की और कोई आदेश देने से इनकार कर दिया।

इसी तरह वेतन देने संबंधी एक दूसरी याचिका में भी सुप्रीम कोर्ट ने जो राहत दी वह मज़दूरों के बजाय मालिकों के हित में थी। अदालत ने वेतन न देने वाले संस्थानों पर सरकार की कार्रवाई पर भी रोक लगा दी है। इस मामले की अगली सुनवाई 22 मई को है।

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