NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
SC ST OBC
स्वास्थ्य
भारत
राजनीति
EXCLUSIVE: सोनभद्र के सिंदूर मकरा में क़हर ढा रहा बुखार, मलेरिया से अब तक 40 आदिवासियों की मौत
प्रशासन सिर्फ़ 20 मौतों की पुष्टि कर रहा है। सरकारी दावों के उलट रिहंद जलाशय की तलहटी में बसे सिंदूर मकरा गांव में उदासी और सन्नाटा है। बीमारी और मौत से आदिवासी ख़ासे भयभीत हैं। आदिवासियों की लगातार हो रही मौत की ख़बरें सत्ता के गलियारों में नहीं पहुंच रही हैं। 
विजय विनीत
30 Nov 2021
medical camp
कैंप लगाकर मरीजों का उपचार करते चिकित्सक

आदिवासी बहुल सिंदूर मकरा गांव में राजेंद्र खरवार की तीन साल की बेटी रेनू को तीन दिन पहले तेज बुखार हुआ। घर वाले सोनभद्र स्थित जिला अस्पताल ले गए। 27 नवंबर को उसकी मौत हो गई। मड़ौया टोला में राजेंद्र की झोपड़ी है। वह बताते हैं, "बेटी के इलाज के लिए डाक्टरों ने दो यूनिट ब्लड की डिमांड की। हमारे पास न पैसा था, न ही ब्लड डोनर। हालत बिगड़ी तो बेटी को अस्पताल से लेकर घर के लिए निकले। तेज बुखार से तप रही रेनू ने रास्ते में ही दम तोड़ दिया।"

27 नवंबर को ही रामलोचन के 32 वर्षीय पुत्र सुधारे की मलेरिया से मौत हो गई। बुधरहवां टोला के सुधारे हफ्ते भर से बीमार थे। रेणुकूट के एक झोलाछाप डाक्टर के यहां इनका इलाज चल रहा था। एक दिन पहले सिंदूर मकरा के लभरी गाढ़ा टोला के 65 वर्षीय परशुराम भी चल बसे। एक झोलाछाप डाक्टर से इनका इलाज कराया जा रहा था।

सिंदूर मकरा गांव में आदिवासियों की लगातार हो रही मौतों से सोनभद्र थर्रा उठा है। यहां दर्जनों लोग अभी भी मलेरिया बुखार से तप रहे हैं। पीड़ितों में बच्चों की तादाद ज्यादा है। ज्यादातर लोग घर में ही झोलाछाप डाक्टरों की बताई गई दवाओं के सहारे जिंदा हैं। 

आदिवासी महिला लछिमिनिया बताती हैं, "मेरे घर के पांच बच्चों की मौत हो चुकी है। तीन लड़कों और दो लड़कियों की जान जाने से हमारी दुनिया उजड़ गई है। कह नहीं सकते कि यह मलेरिया बुखार अभी और कितनी जानें लेगा।" कुछ ऐसी ही दर्दनाक कहानी है सिंदूर मकरा के रामबालक अगरिया की। इनका तो परिवार ही उजड़ गया। रामबालक समेत इनके घर में चार लोगों की मौतें हुई हैं। 

हर तरफ मौत का खौफ

‘न्यूजक्लिक’ की पड़ताल में डेढ़ महीने में करीब 32 लोगों की मौत की पुष्टि हुई है। इन्हीं में एक हैं क्षेत्र पंचायत सदस्य धनशाह, जिनकी 34 वर्षीय पत्नी फूलकुंवर अपने तीन मासूम बच्चों सविता (2), आशीष (4) और शांति (16) को छोड़कर दुनिया से रुखसत कर गईं। कुछ ऐसी ही दर्दनाक कहानी है अजय की। वह बताते हैं  "मेरी पत्नी प्रतिभा को तीन महीने पहले बच्चा पैदा हुआ था। प्रतिभा की मौत से उनके दोनों नौनिहाल बच्चों की हालत अनाथ की तरह हो गई है। पत्नी को बचाने के लिए प्राइवेट में इलाज कराया, लेकिन बच नहीं सकी। सरकार ने हमारी कोई मदद नहीं की।"

सिंदूर मकरा गांव की आबादी करीब पांच हजार है। इस गांव के सभी 16 टोलों में मलेरिया से मौत का खौफ है। प्रशासन के दावों को सच मानें तब भी सिंदूर मकरा ग्राम पंचायत में तीन ऐसे परिवार हैं जिसमें 13 लोगों की मौतें हुई हैं। प्रशासन ने जिन लोगों के मौतों की पुष्टि की है उनमें हरिनारायण के परिवार की सुशीला देवी (25), दिव्यांशु (03), हिमांशु (1.5) शामिल हैं। इनके अलावा अंकुश (03), प्रीतम कुमार (04), सरिता (09), रुमित (09), राम बालक (50), सोनू (10), पूजा देवी (20), कविता (11 माह), आरती कुमारी (05), नीतू देवी (24), रिया कुमारी (04), राजेंद्र (05), श्वेता कुमार (14), सोनिया (48) और अंकुश (03) आदि को मलेरिया निगल चुका है। हालांकि प्रशासन के मुताबिक, मृतकों में सिर्फ 13 बच्चे और पांच वयस्क हैं। 

ये भी पढ़ें: EXCLUSIVE :  यूपी में जानलेवा बुखार का वैरिएंट ही नहीं समझ पा रहे डॉक्टर, तीन दिन में हो रहे मल्टी आर्गन फेल्योर!

सिंदूर मकरा गांव में कोई ऐसा घर नहीं है जहां लोग बीमार न हों। इस गांव में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तो है, लेकिन हफ्ते भर पहले डाक्टर की तैनाती तब की गई जब मलेरिया करीब दर्जनों जानें ले चुका था। इस सरकारी अस्पताल में न पर्याप्त दवाएं हैं और न ही मरीजों को भर्ती कर इलाज करने का कोई पुख्ता इंतजाम। बीमार लोग अपने घरों में चारपाई पर पड़े हैं। जो दवाएं झोलाछाप डाक्टरों के यहां से लाए हैं, वही दे रहे हैं।  

मकरा में उदासी और सन्नाटा

उत्तर प्रदेश के सोनभद्र से करीब 85 किलोमीटर दूर सिंदूर मकरा गांव में पिछले डेढ़ महीने से जानलेवा मलेरिया का आतंक है। इस गांव में अब तक कुल 40 लोगों की मौतें हो चुकी हैं। सिर्फ डेढ़ महीने के दौरान यहां मलेरिया ने 32 लोगों की जान ली है और सिलसिला जारी है। हालांकि प्रशासन सिर्फ 20 मौतों की पुष्टि कर रहा है। सरकारी दावों के उलट रिहंद जलाशय की तलहटी में बसे सिंदूर मकरा गांव में उदासी और सन्नाटा है। बीमारी और मौत से आदिवासी खासे भयभीत हैं। आदिवासियों की लगातार हो रही मौत की खबरें सत्ता के गलियारों में नहीं पहुंच रही हैं। 

मकरा गांव में पहुंचने वाले नेताओं को दुखड़ा सुनाते आदिवासी

सिंदूर मकरा सोनभद्र के म्योरपुर प्रखंड का आदिवासी बहुल गांव है, जो 8 किमी के दायरे में 16 टोलों में पहाड़ियों के बीच बसा हुआ है। गरीबी, अंधविश्वास और संसाधनों के अभाव के चलते मलेरिया आदिवासियों की जिंदगियां लील रहा है। इस गांव में हैंडपंप तो हैं, लेकिन पीने का साफ पानी आदिवासियों को मयस्सर नहीं है। कुछ लोग चुहाड़ के पानी से और कुछ ज़हरीले हो चुके रिहंद जलाशय से अपनी प्यास बुझा रहे हैं। साफ-सफाई का मुकम्मल इंतजाम न होने के कारण इस गांव में मलेरिया के जानलेवा मच्छरों का डेरा है। स्वास्थ्य महकमे ने बुखार से आदिवासियों की ताबड़तोड़ हो रही मौतों को पहले छिपाने की कोशिश की और बाद में रहस्यमयी बीमारी बताना शुरू कर दिया। जब अधिसंख्य मरीजों में जानलेवा मलेरिया की पुष्टि हुई तब अफसरों की नींद टूटी। इस गांव में तीन झोलाछाप डाक्टर हैं, जिनकी लापरवाही आदिवासियों की जिंदगी पर भारी पड़ रही है। 

टैंकर से पानी भरतीं आदिवासी महिलाएं

हालांकि मकरा गांव के स्वास्थ्य केंद्र में मरीजों के लिए सिर्फ पांच बिस्तर हैं। हाल में एक-एक चिकित्सक और तीन लोगों का स्टाफ तैनात किया गया है। जब से आदिवासियों की मौतों का सिलसिला तेज हुआ है तब से प्रशासन बैकफुट पर आ गया है। आनन-फानन में यहां तीन एंबुलेंस की व्यवस्था की गई है। एक एंबुलेंस सोनभद्र जिला अस्पताल से और दो अन्य म्योरपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र से भेजी गई हैं, जो 24 घंटे उपलब्ध हैं। लेकिन यहां न तो डॉक्टर और न ही सहायक स्टाफ़ कोई जानकारी देने के लिए तैयार दिखते हैं। हर कोई यही बता रहा है, "हमें मीडिया से बात करने की अनुमति नहीं है, आप सीएमओ साब से बात कीजिए।" 

डेढ़ सौ से ज्यादा बीमार

पर्यावरण कार्यकर्ता जगतनारायण विश्वकर्मा बताते हैं, "सिंदूर मकरा ग्राम पंचायत में चालीस मौतों के बावजूद सरकार की नींद नहीं टूटी है। 32 मौतें तो 22 अक्टूबर के बाद से हुई हैं। बाकी मौतें पहले की हैं। 29 नवंबर को 16 मलेरिया पीड़ितों की शिनाक्त हुई है, जिनमें गंभीर रूप से बीमार छह लोगों को सोनभद्र जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया है। सभी मरीज़ों को एक ही दवा दी जा रही है। यहां 150 से अधिक लोग अभी भी मलेरिया बुखार से तप रहे हैं और बिस्तर पकड़े हुए हैं। आदिवासियों की मौत पर जब शोर-शराबा मचने लगा तब स्वास्थ्य महकमा धनात्मक मलेरिया बताने लगा। नहीं तो अभी तक जिसको बुखार भी आ रहा था,  उसकी रिपोर्ट को निगेटिव ही बताया जा रहा था। आदिवासियों को भरमाने के लिए स्वास्थ्य महकमा इसे अबूझ बीमारी बताने में जुटा था।"

मकरा ग्राम पंचायत में मलेरिया से लगातार हो रही मौतों से भयभीत आदिवासी महिलाएं

जगत नारायण यह भी बताते हैं, "सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं से नाराज़ गांव के ज्यादातर लोग निजी डाक्टरों से इलाज करा रहे हैं। आदिवासियों को लगता है कि अगर सरकारी अस्पताल में गए तो जान नहीं बच पाएगी। वहां कोई सुनने वाला नहीं होता है। सोनभद्र पहले से ही मलेरिया प्रभावित जनपद है। आदिवासियों को यहां शुद्ध पानी तक नसीब नहीं है। मच्छरों से बचाव के उपाय सालों से नहीं ढूंढे जा सके हैं। बीमारी पर अंकुश लगाने में नाकाम स्वास्थ्य महकमा अगर समय से प्रभावी कदम उठाता तो आदिवासियों की अकाल मौतें नहीं होतीं।"  

सिंदूर मकरा ग्राम पंचायत में जिस टोले में कदम रखेंगे, वहां उदासी देखने को मिलेगी। प्रशासन के दावों के विपरीत गांव में कई जगहों पर गंदगी फैली नज़र आती है। हालांकि इस गांव की तस्वीर यूपी के दूसरे गांवों के मुक़ाबले बहुत ज्यादा खराब है। ऊबड़-खाबड़ सड़कें और झाड़-झंखाड़ भरे रास्ते सिंदूर मकरा के सभी टोलों का पता बता देती हैं। पानी निकासी का पुख्ता इंतजाम न होने के कारण बारिश का पानी जहां-तहां जमा हो जाता है। रिहंद जलाशय के नजदीक होने के कारण इस गांव में मलेरिया के जानलेवा मच्छर हमेशा पलते रहते हैं। 

दरअसल, आदिवासी बहुल इस ग्राम पंचायत में भीषण गरीबी है, जिसके चलते लोग ठीक से अपना उपचार नहीं करा पा रहे हैं। करीब 32 मौतों के बाद इलाकाई विधायक (दुद्धी) हरिराम चेरो पहुंचे और अफसरों को जमकर लताड़ लगाई, तब तब सुस्त पड़ी सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था में हलचल दिखी। सिर्फ सिंदूर मकरा ही नहीं, सोनभद्र के म्योरपुर और दुद्धी प्रखंड के तमाम गांवों में मलेरिया ने पैर पसारना शुरू कर दिया है। एक तरफ़ लोगों को सरकारी व्यवस्था पर भरोसा नहीं हो रहा है, दूसरी तरफ़ बीमारी का असर लगातार बढ़ रहा है। 

सिंदूर मकरा गांव की एक टोले में आदिवासियों को जागरूक करने की कोशिश करते अफसर

पूरे मामले में सोनभद्र के मुख्य चिकित्साधिकारी डा. नेम सिंह दावा करते हैं, "हमलोग लगातार ज़ागरुकता अभियान चला रहे हैं। मलेरिया से मौतों में काफी कमी आई है। शिथिलता बरतने वाले कुछ कर्मचारियों को प्रभावित क्षेत्रों से हटा दिया गया है। साथ ही उनसे जवाब तलब भी किया गया है। मलेरिया निरीक्षक के अक्सर गायब होने की वजह भी जांची जाएगी। स्वास्थ्य विभाग की टीम लगातार गांव में फॉगिंग और दवाओं का छिड़काव कर रही है। गांव में लगे हैंडपंपों के पानी का सैंपल लिया गया है। सिंदूर मकरा में होने वाली हर एक मौत का ऑडिट भी कराया जा रहा है। आदिवासियों को सरकारी अस्पताल में इलाज के लिए हम फोर्स नहीं कर सकते हैं, लेकिन हम लगातार लोगों को अच्छे और फ्री इलाज के बारे में बता रहे हैं।" 

मलेरिया से मौत के बाद मातम

एनएचआरसी ने तलब की रिपोर्ट

मलेरिया जांच में मकरा ग्राम पंचायत का हर पांचवा आदमी मलेरिया पीड़ित है। स्कूली बच्चों की जांच में मलेरिया की पुष्टि से हड़कंप जैसी स्थिति है। मलेरिया से हुई मौतों पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने सोनभद्र जिला प्रशासन से रिपोर्ट तलब की है। ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट जिला संयोजक कृपाशंकर पनिका ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में शिकायत दर्ज कराई थी। इस मामले के तूल पकड़ने पर मलेरिया निरीक्षक प्रवीण कुमार सिंह को म्योरपुर से हटाकर उनकी जगह दिनेश कुमार पांडेय को भेजा गया है। एसडीएम दुद्धी की रिपोर्ट पर डीएम ने कई कर्मचारियों से स्पष्टीकरण तलब किया है।

सोनभद्र के वरिष्ठ पत्रकार शशिकांत चौबे कहते हैं, "आदिवासियों की मौतों को छिपाने और एक दूसरे पर ठीकरा फोड़ मामले को मैनेज करने की कोशिश चल रही है। बीमारी शुरू होने पर स्वास्थ्य महकमे को सूचना दी जाती है, लेकिन न तो सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के लोग इसे गंभीरता से लेते हैं, न ही जिले आला अफसर संजीदगी दिखाते हैं। मकरा ग्राम पंचायत में हर साल मलेरिया से आठ-दस अदिवासी दम तोड़ देते हैं। इनकी मौतें जब अखबारों में सुर्खियां बनती है, तभी स्वास्थ्य महकमे के टीमें गांव में आती हैं। स्थिति नियंत्रित होने के बाद अफसर पहले की तरह उदासीन हो जाते हैं। " 

भाजपा के सहयोगी दल अपना दल (एस) के दुद्धी विधायक हरिराम चेरो ने मौतों के लिए सीधे-सीधे स्वास्थ्य महकमे को जिम्मेदार ठहरा डाला। उन्होंने इस मामले में जिले के मुख्य चिकित्साधिकारी डा. नेम सिंह पर कई संगीन आरोप लगाए और इन मौतों के लिए उन्हें जिम्मेदार ठहराते हुए दंडात्मक कार्रवाई की मांग उठाई है। वह कहते हैं, "सोनभद्र मलेरिया का डेंजर जोन है। बावजूद जिस समय फील्ड में रहकर मलेरिया के रोकथाम के लिए किए जाने वाले कार्यों की स्थिति जाने चाहिए थी। मच्छररोधी दवाओं का छिड़काव और साफ-सफाई होनी चाहिए थी। जिनकी लापरवाही की आदिवासियों की जानें गई हैं उनके खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई नहीं हुई तो वह मुख्यमंत्री से मिलकर सोनभद्र के जिम्मेदार अफसरों शिकायत करेंगे।" 

कई मौतों के बाद गांव में साफ-सफाई करते कर्मचारी

सपा के पूर्व विधायक अविनाश कुशवाहा ने मकरा में 34 लोगों की मौत का दावा किया है। ट्विटर के जरिए नौकरशाही पर निशाना साधते हुए कहा है, "स्वास्थ्य विभाग और प्रशासन एक मलेरिया निरीक्षक पीके सिंह को बचाने में लगा है। इस मामले में लीपापोती जारी है, जबकि गांव की स्थिति बहुत ही खराब है।" एनएसयूआई के प्रदेश सचिव अंकुश दुबे ने मुख्य सचिव को पत्र भेजकर मकरा की मौतों के मामले में मलेरिया विभाग के अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराते हुए सख्त कार्रवाई की मांग की है। साथ ही मृतकों के परिजनों के लिए मुआवजा भी मांगा है। 

सिंदूर मकरा गांव में आदिवासियों के घरों में फागिंग कराते अधिकारी

पूर्व प्रधान रामभगत यादव, जगधारी, अक्षय, राम नारायण, हरि प्रसाद आदि कहते हैं, "मकरा में समय रहते मलेरियारोधी दवा का छिड़काव हो गया होता तो शायद यह स्थिति न आती। आईपीएफ जिला संयोजक कृपा शंकर पनिका, मजदूर किसान मंच जिलाध्यक्ष राजेन्द्र प्रसाद गोंड, मंगरू प्रसाद गोंड, मनोहर गोंड, ज्ञानदास गोंड, बिरझन गोंड, रामचंदर गोंड, रामसुभग गोंड, जयपत गोंड और जगमोहन गोंड कहते हैं, "सोनभद्र में एक तरफ आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर आदिवासी मलेरिया से बेमौत मर रहे है। मकरा के आदिवासियों को टैंकर से जो पानी मुहैया कराया जा रहा है उसकी उसकी शुद्धता की गारंटी लेने वाला कोई नहीं है। कोई यह बताने वाला नहीं है कि आखिर आदिवासी बाहुल्य इस गांव में मौतों का सिलसिला कब थमेंगा?" 

(विजय विनीत बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)

ये भी पढ़ें: दोहरा संकट : बिहार में कोरोना के साथ चमकी बुख़ार भी शुरू, लेकिन व्यवस्था वही बदहाल

Uttar pradesh
sonbhadra
malaria
Malaria Deaths
Sindoor Makra Village
aadiwasi
Public Healthcare
UP Viral Fever
Viral Fever
Yogi Adityanath
yogi government
BJP
Health Sector
health care facilities

Related Stories

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

मध्यप्रदेश: गौकशी के नाम पर आदिवासियों की हत्या का विरोध, पूरी तरह बंद रहा सिवनी

सवर्णों के साथ मिलकर मलाई खाने की चाहत बहुजनों की राजनीति को खत्म कर देगी

ज़रूरी है दलित आदिवासी मज़दूरों के हालात पर भी ग़ौर करना

जहांगीरपुरी— बुलडोज़र ने तो ज़िंदगी की पटरी ही ध्वस्त कर दी

अमित शाह का शाही दौरा और आदिवासी मुद्दे

रुड़की से ग्राउंड रिपोर्ट : डाडा जलालपुर में अभी भी तनाव, कई मुस्लिम परिवारों ने किया पलायन

उत्तर प्रदेश: योगी के "रामराज्य" में पुलिस पर थाने में दलित औरतों और बच्चियों को निर्वस्त्र कर पीटेने का आरोप

यूपी चुनाव परिणाम: क्षेत्रीय OBC नेताओं पर भारी पड़ता केंद्रीय ओबीसी नेता? 

अनुसूचित जाति के छात्रों की छात्रवृत्ति और मकान किराए के 525 करोड़ रुपए दबाए बैठी है शिवराज सरकार: माकपा


बाकी खबरें

  • मनोलो डी लॉस सैंटॉस
    क्यूबाई गुटनिरपेक्षता: शांति और समाजवाद की विदेश नीति
    03 Jun 2022
    क्यूबा में ‘गुट-निरपेक्षता’ का अर्थ कभी भी तटस्थता का नहीं रहा है और हमेशा से इसका आशय मानवता को विभाजित करने की कुचेष्टाओं के विरोध में खड़े होने को माना गया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    आर्य समाज द्वारा जारी विवाह प्रमाणपत्र क़ानूनी मान्य नहीं: सुप्रीम कोर्ट
    03 Jun 2022
    जस्टिस अजय रस्तोगी और बीवी नागरत्ना की पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि आर्यसमाज का काम और अधिकार क्षेत्र विवाह प्रमाणपत्र जारी करना नहीं है।
  • सोनिया यादव
    भारत में धार्मिक असहिष्णुता और पूजा-स्थलों पर हमले को लेकर अमेरिकी रिपोर्ट में फिर उठे सवाल
    03 Jun 2022
    दुनिया भर में धार्मिक स्वतंत्रता पर जारी अमेरिकी विदेश मंत्रालय की रिपोर्ट भारत के संदर्भ में चिंताजनक है। इसमें देश में हाल के दिनों में त्रिपुरा, राजस्थान और जम्मू-कश्मीर में मुस्लिमों के साथ हुई…
  • बी. सिवरामन
    भारत के निर्यात प्रतिबंध को लेकर चल रही राजनीति
    03 Jun 2022
    गेहूं और चीनी के निर्यात पर रोक ने अटकलों को जन्म दिया है कि चावल के निर्यात पर भी अंकुश लगाया जा सकता है।
  • अनीस ज़रगर
    कश्मीर: एक और लक्षित हत्या से बढ़ा पलायन, बदतर हुई स्थिति
    03 Jun 2022
    मई के बाद से कश्मीरी पंडितों को राहत पहुंचाने और उनके पुनर्वास के लिए  प्रधानमंत्री विशेष पैकेज के तहत घाटी में काम करने वाले कम से कम 165 कर्मचारी अपने परिवारों के साथ जा चुके हैं।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License